भाजपा ने भोपाल को अपनी हिंदुत्व विचारधारा के चलते भूकंप केंद्र सा बना दिया है। भोपाल लोकसभा सीट पर उसने आतंक आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बतौर उम्मीदवार उतारा है। इससे भोपाल अचानक देश की वैज्ञानिक और चुनावी जंग का एक रोचक केंद्र बन गया है।
ठाकुर को उम्मीदवार बनाना बहुतों के लिए आश्चर्य ही रही। भाजपा में ऐसे कदावर नेता कम नहीं है जो मध्यप्रद्रेश में कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह को चुनौती न दे सकें। सिंह राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर एक दशक सक्रिय भी रहे हैं। चामत्कारिक उमा भारती से वे 15 साल पहले परास्त हुए। वे भी यह मुकाबला कर सकती थीं। वैसे ही पूर्व मुख्यमंत्री हैं बाबूलाल गौर जिन्होंने राज्य विधानसभा में दस सूत्रों तक अपनी सीट लगातार मतों में बढ़ोतरी के साथ जीतने का कीर्तीमान बनाया।
फिर भी भाजपा ने ठाकुर को चुना जिस पर आतंक के एक मामले पर मुकदमा चल रहा है। मालेगांव धमाका 2008 में हुआ था। इसमें छह मारे गए थे और 101 लोग घायल हुए थे। भाजपा ने ठाकुर में हिंदुत्व के शुभंकर की पहचान की। हालांकि भाजपा का यह भी आरोप है कि इसकी पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने ठाकुर और दूसरे कट्टरपंथी हिंदू कार्यकर्ताओं को झूठे मामलों में फंसाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठाकुर की उम्मीदवारी को प्रतीकात्मक जवाब बताया है जिन्होंने हिंदुओं पर आतंकवादी होने के झूठे आरोप लगाए। भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीज़ तो साफ तौर पर कहते हैं, ‘कांगे्रस ने तो यह बताने की कोशिश की है कि हिंदू भी आतंकवादी हो सकते हैं। अब इसका जवाब हिंदुओं को वोट के जरिए जवाब देना हैं।’
हालांकि आरएसएस खुद को राष्ट्र निर्माता बताने में गर्व महसूस करती है लेकिन सिंह जैसे विपक्षी इस पर हिंसा और सांप्रदायिक राजनीति का आरोप लगाते हैं। भोपाल से उनकी उम्मीदवारी भाजपा के लिए खुली चुनौती थी जो इस सीट पर 1989 से जीतती रही है। इसका पुराना रूप जो जनसंघ का रहा है, उसके भी कार्यकाल को जोड़ें तो लगभग 20 साल तक इस राज्य में उसका शासन चला। हालांकि पांच महीने पहले यह सत्ता से बाहर हुई। हालांकि इसने कांग्रेस से ज्य़ादा वोट पाए थे।
कांग्रेस जब अपनी भुजाएं फड़काती है तो भाजपा अपने फन फैलाती है। इसे पता है कि सिंह के मुकाबले ठाकुर को खड़ा करने से धु्रवीकरण होगा। यह इसका वैचारिक राजनीतिक एजंडा भी है। ठाकुर इस समय 49 साल की है। उसने अखिल भारतीय विधार्थी परिषद की कार्यकर्ता बतौर चंबल घाटी के अपने गृहजिले भिंड में राजनीतिक जीवन शुरू किया था। लेकिन आरएसएस इसके लिए खासा रूढि़वादी साबित हुआ। उसने एक दूसरे हिंदू संगठन से अपनी सक्रियता तेज की जो कहीं ज्य़ादा उग्रवादी है।
महाराष्ट्र की एटीएस टीम ने इसे 2008 में मालेगांव धमाकों में ‘एक प्रमुख षडय़ंत्रकारी’ के तौर पर गिरफ्तार किया। उसने तकरीबन नौ साल जेल में काटे। जब 2015 में भाजपा सत्ता में आई तो एनआईए ने उस पर लगे आरोपों को खारिज कर दिया। हालांकि अदालत ने एनआईए के फैसले को मानने से इंकार कर दिया और उसके खिलाफ आतंकवादी होने, आपराधिक साजिश रचने और हत्या के आरोप बरकरार रखे। चार साल पहले सरकारी दबावों के चलते सरकारी वकील ने इस मामले से खुद को अलग कर दिया।
आरएसएस के कर्मठ कार्यकर्ता सुनील जोशी की 2007 में हत्या हुई। इसमें कथित अभियोगी ठाकुर को गिरफ्तार किया गया। उनके साथ सात और भी गिरफ्तार हुए। अदालत ने आठों आरोपियों को दो साल पहले छोड़ दिया।
अपने चुनाव प्रचार में हिंदुत्व की खारित ठाकुर खुद को ‘शिकार’ बताती है। पुलिस हिरासत में खुद के नंगा किए जाने, उल्टा लटकाए जाने और दूसरे तरह की यातनाओं का रैलियों में वे हवाला देती है। बताती हैं कि एक बार तो पूछताछ के दौरान वे बेहोश हो गई। अमानवीय अत्याचारों के ही चलते उन्हें कैंसर हो गया। उनका कहना है कि अब वे गौ माता के मूत्रपान से हुई चिकित्सा के कारण पूरी तौर पर स्वस्थ हैं।
मध्यप्रदेश भाजपा के समझदार हिंदुत्व समर्थक नेताओं को दिग्विजय की काट के लिए प्रज्ञा ठाकुर बेहतर उम्मीदवार जान पड़ीं। एक बैठक में तो उन्होंने कहा कि हेमंत करकरे की मौत उनके ‘श्राप’ देने से हुई। हेमंत करकरे महाराष्ट्र में एटीएस के माने हुए अधिकारी थे। मुंबई आतंकवाद 2008 में हुआ। इस घटना में बहादुरी के साथ लड़ते हुए मारे गए थे। उन्हें देश के सबसे बड़े वीरता सम्मान अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था लेकिन प्रज्ञा का कहना है कि उन्होंने जेल में उसे यातना देने में कोई कसर नहीं छोड़ी इसलिए उनकी मौत के लिए उन्होंने श्राप दे दिया। उनकी इस बात से पूरे देश में खासी सनसनी फैली। लोगों का हेमंत के बारे में प्रज्ञा के इस कथन का खासा विरोध किया। इसके बाद प्रज्ञा ने बतलाया कि कैसे वह बाबरी मस्जिद पर चढ़ी और उसने कैसे इसे तोड़ा। हमने देश पर लगे धब्बे को मिटा दिया।
चुनाव आयोग ने उसे नोटिस दी। उसने जवाब दिया। आयोग ने उसे चुनाव प्रचार रोकने के लिए कहा। लेकिन वह चुनाव प्रचार करती रही। चुनाव प्रचार के दौरान प्रज्ञा हिंदुत्व को केंद्र में रख कर अपना प्रचार करती रही।
उधर सिंह बड़ी ही सावधानी से विकास के मुद्दे के साथ अपना चुनाव प्रचार कर रहे हैं। वे हिंदुत्व का सामना करते हुए अपनी बात रख रहे हैं। यह वाकई रोचक है क्योंकि जब वे मुख्यमंत्री थे तो उनकी मान्यता थी कि राजनीतिक प्रबंधन और सोशल इंजीनियरिंग से ही चुनाव जीते जा सकते हैं।
सिंह ने खुद में हिंदू की फिर नई तलाश की है। मंदिरों में जाकर उन्होंने अपना चुनाव प्रचार शुरू किया। ऐसा सुना जाता है कि मतदाताओं को रिझाने के लिए उनके कार्यकर्ताओं ने नर्मदा के पवित्र जल को मतदाताओं में बांटा। सिंह ने पिछले साल 192 दिन की पैदल नर्मदा परिक्रमा भी की। उन्हें उम्मीद है कि पदयात्रा करके की गई परिक्रमा से उनकी हिंदू विरोधी छवि धुंधली हो जाएगी जिसे उनके विरोधियों ने उन पर थोप रखा है।
सिंह निजी जिंदगी में श्रद्धालुु हिंदू हैं। वे जब मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने पूरे मंत्रिमंडल के साथ मथुरा जाकर 24 किमी पैदल एक पवित्र पहाड़ी की परिक्रमा की थी। भाजपा के एक बुजुर्ग नेता ने टिप्पणी की कि आरएसएस के हिंदुत्व की कसौटी है भोपाल चुनावी हमने एक बड़ी जोखिम लिया है। यदि हम हारे तो यह जाहिर होगा कि मतदाता ने हिंदुत्व को नकार दिया है। यदि यहां जीते तो जग जीते।