अभी हाल में बीते शरणार्थी दिवस (20 जून) पर ही नही बल्कि लगभग हर दिन मैं एक अफगान परिवार के बारे में सोचती हूं जिसे मैं कुछ साल पहले नई दिल्ली में एक क्रॉसिंग पर मिली थी। उन्होंने पर्याप्त कपड़े पहने हुए थे लेकिन वे बेहद भूखे थे और मदद के लिए अनुरोध कर रहे थे। मैं उनसे बात करने के लिए रुकी तो एक दर्दनाक कहानी सामने आई। वे अपने देश में अच्छी तरह रह रहे थे जब तक परिस्थितियों ने उन्हें भारत आने के लिए मज़बूर नही कर दिया। वे यहां आकर शरणार्थी बन गए और उनका जीवन बर्बाद हो गया।
मैंने उनके एक कमरे के शरण स्थल का दौरा किया जो कि जंगपुरा इलाके की बाहरी बस्तियों में था। जहां उनके बच्चे बिना स्कूल और बढ़ते बच्चों की दैनिक ज़रूरतों के बिना जीवित रहने की कोशिश कर रहे थे। उनके अगले दरवाजे का पड़ोसी एक शरणार्थी अफगान परिवार था जो अपने सीमित साधनों और भारतीय समाज के बहिष्कार के साथ जीवित रहने की कोशिश में लगा था। यहां उनके जीवन की एक कठिन त्रासदी दिखी जैसा उन्होंने बताया कि वे इस धारणा के तहत भारत आए थे कि ”अच्छे लोगों के साथ भारत एक बड़ा विशाल देश है। लेकिन हमें यहां शक की नज़र से देखा जाता है। हम अफगानों के प्रति फैली अनेक कहानियों के कारण। हमें दूर रखा जाता है। हम नही जानते कि हमारे बच्चों का भविष्य क्या होगा। हमने कभी कल्पना नही की थी कि हम ऐसे दिन भी देखेगें और विदेशी धरती पर हमारा जीवन भिखारियों से भी बदत्तर होगा। हमारे घरों में सब कुछ था पर अब घर कहां है। हमारे लिए कहीं भी कोई घर नहीं है।
इस शरणार्थी परिवार की त्रासदी या शरण के लिए भटक रहे किसी भी शरणार्थी के मामले को शब्दों में लिखना मुश्किल है। वे जीवित हैं बल्कि ज़रूरी बंदोबस्त के बिना छोटी बस्तियों में जीवन जीने के लिए उन्हें मज़बूर किया जाता है। उनके लिए यह मुश्किल ही नही बल्कि असंभव भी है कि वे मदद के लिए याचना, अनुरोध करें या गिड़गिड़ाएं यदि स्थानीय आबादी उनके साथ कुछ मदद करना ही नहीं चाहती हो। विडंबना यह है कि नई दिल्ली के आधे से अधिक निवासियों के माता-पिता या दादा-दादी ने विभाजन के भय और इसके परिणाम को देखा है। परन्तु जब आज के शरणार्थियों की बात आती है तो वे घबरा जाते हैं।
यह लिखना ज़रूरी नहीं कि हर समय हमारे देश में पाखंड का स्तर ऊंचा रहा है। कोई भी इस प्रकार का तमाशा और खोखले भाषण ‘वर्ल्ड रिफ्यूजी डेÓ पर सुन सकता है लेकिन जैसे ही यह दिन खत्म होता है तब सब खत्म हो जाता है। हम असहाय शरणार्थियों को परेशान करने, उनकी खिल्ली उड़ाने के लिए वापस आ जाते हैं।
यह सब मुझे यह लिखने के लिए मज़बूर कर रहा है कि दक्षिणपंथी भाजपा की सरकार केंद्र में है इस कारण शरणार्थी समस्या और गंभीर हो जाती है खास तौर पर यदि शरणार्थी मुसलमान हों। असल में जब पिछले साल भाजपा सरकार ने रोहिग्यां शरणार्थियों के साथ आतंकी होने का ‘टैगÓ लगा कर उसे खूब उछाला तो एनडीटीवी के श्रीनिवासन जैन और उसके सहयोगियों ने ऐसे तथ्य पेश किए जिनसे साफ हो गया कि उन शरणार्थियों की तरफ से देश की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है। एनडीटीवी के पत्रकारों ने चार स्थानों से रिर्पोटिंग की, ये स्थान थे- जम्मू, फरीदाबाद, राजस्थान और नई दिल्ली। उन्होंने वहां विभिन्न पुलिस अफसरों से बात की और पुलिस ने कैमरे पर बताया कि किसी भी शरणार्थी का आईएसआईएस, अलकायदा, इंडियन मुजाहिदीन और जिहादियों से कोई संबंध नहीं है।
एनडीटीवी की वेबसाइट से पता चलता है कि भारत में जहां भी रोहिंग्या लोग रह रहे हैं, वहां उनके किसी आतंकवादी संगठन या अपराधी गैंग के साथ होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं। ज़्यादातर रोहिंग्या जम्मू, दिल्ली, राजस्थान और हरियाणा में बसे हैं। सबसे अधिक रोहिंग्या जिनकी संख्या 5,743 है, जम्मू में बसे हैं। इस साल 20 जनवरी को तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने विधानसभा में बताया था कि जम्मू-कश्मीर में रहने वाला कोई भी रोहिंग्या किसी प्रकार की आतंकी कार्रवाई में शामिल नहीं है। उन्होंने बताया कि रोहिंग्या के खिलाफ गैर कानूनी तौर पर सीमा पार करने जैसे आरोपां के साथ 17 एफआरआई दर्ज हैं।
एनडीटीवी को पता चला कि इनमें 17 एफआईआर में से दो बांग्लादेशियों के खिलाफ, और एक पाकिस्तानी के खिलाफ। इसलिए 5,743 रोहिंग्या शरणार्थियों के खिलाफ मात्र 14 एफआईआर हैं। रिपोटरों ने इन एफआईआर को खंगाला तो पाया कि इनमें आठ मामले वीज़ा के, दो मामले बलात्कार के, एक मामला गाए काटने का, एक मामला मारपीट का, एक ब्लैक मार्केट में सामान बेचने का और एक रेलवे संपत्ति को बेचे जाने का था। ये आंकडे उससे मेल खाते हैं जो जम्मू में वरिष्ठ पुलिस अफसरों ने एनडीटीवी को दिए थे। जम्मू के आईजी डा. एसडी सिंह ने कहा, ”हमें इन के खिलाफ कोई भी गंभीर आपराधिक मामला नहीं मिला है। न ही इनकी कोई संगठनात्मक आपराधिक गतिविधियां सामने आई हैं।ÓÓ
दिल्ली में लगभग 1,000 रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे हैं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि उनके पास इस बात को कोई आंकडा नहीं है कि शरणर्थियां के खिलाफ कितने मामले दर्ज हुए हैं। पुलिस को इन लोगों के किसी आतंकी गुट से संबंधित होने की संभावना नज़र नही आ रही। उनके खिलाफ केवल एक एफआईआर है वह भी बलात्कार की जो कि एक रोहिंग्या महिला ने हरियाणा में दर्ज कराई है। रोहिंग्या मुसलमान फरीदाबाद और मेवात में रह रहे हैं। फरीदाबाद और चंडीगढ़ दोनों ही स्थानों की पुलिस ने इन रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ किसी आपराधिक मामला दर्ज होने से इंकार किया है।
मुझे हैरानी है कि हम कभी बैठ कर इस तरह की घटनाओं पर चर्चा क्यों नहीं करते। आज आप एक आलीशान बंगले में रह रहे हैं पर कल आपको वहां से निकाल दिया जाता है आप उजड़ जाते हैं। आप अपने ही देश में शरणार्थी बने लोगों को अनदेखा नहीं कर सकते। यह कोई परीकथा नहीं अपितु कड़वी सच्चाई है। आज सैकड़ों पंडित कश्मीर घाटी से उजड़ कर देश में भटक रहे हैं। आज सैंकड़ों मुस्लिम घरों से उखड़ कर पश्चिम उत्तरप्रदेश में तंबू लगाकर रह रहे हैं। इसी तरह हज़ारों आज असाम में खौफ के साए में जी रहे हैं।
इन हालात में भरोसा नहीं कल आप भी शरणार्थी का ‘टैगÓ लगाने पर मज़बूर कर दिए जाएं।