भारत में बढ़ सकते हैं कैंसर के मामले

आईसीएमआर तथा एनसीडीआईआर ने कहा है कि भारत में आने वाले पाँच साल में कैंसर के 12 फीसदी मामले बढ़ जाएँगे। भारत के लिए यह चिन्ताजनक है, क्योंकि यहाँ पहले से ही बड़ी संख्या में कैंसर के मरीज़ हैं।

कोरोना-काल में भारत में दूसरे रोगों से पीडि़त लोगों के इलाज में काफी रुकावट पैदा हुई है। ऐसे में कई रोगों में बढ़ोतरी हुई है। हाल में कैंसर को लेकर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् यानी इंडियन कॉउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय रोग सूचना विज्ञान एवं अनुसंधान केंद्र यानी नेशनल सेंटर फॉर डिसीज इन्फॉरमेटिक्स एंड रिसर्च (एनसीडीआईआर) द्वारा किये गये खुलासे ने एक बड़ी चिन्ता पैदा कर दी है। आईसीएमआर और एनसीडीआईआर ने कहा है कि आने वाले पाँच साल में भारत में कैंसर के 12 फीसदी तक मामले बढ़ जाएँगे।

इन संस्थानों द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इस साल 13.9 लाख कैंसर के मामले रह सकते हैं। यही नहीं संस्थानों ने रिपोर्ट में कहा है कि 2025 तक भारत में कैंसर के मरीज़ों की संख्या 15.7 लाख तक पहुँच सकती है। इतना ही नहीं, नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम (एनसीआरपी) की एक ताज़ा रिपोर्ट में भी यही कहा गया है कि अगले पाँच साल में भारत में कैंसर के 12 फीसदी तक तक मामले बढ़ जाएँगे। इस हिसाब से इस साल के अन्त तक यहाँ 13.9 लाख और 2025 तक 15.7 लाख कैंसर के मामले हो जाएँगे। रिपोट्र्स के मुताबिक, पूर्वोत्तर में सबसे ज़्यादा कैंसर के मामले हैं और आगे भी यहीं सबसे ज़्यादा कैंसर के मामले बढऩे की सम्भावना है। पूर्वोत्तर में कैंसर के तेज़ी से बढऩे का सबसे बड़ा कारण तम्बाकू सेवन बताया गया है।

आईसीएमआर और एनसीडीआईआर के मुताबिक, राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम रिपोर्ट- 2020 में लगाया गया यह अनुमान 58 अस्पतालों की कैंसर मरीज़ों और जनसंख्या आधारित कैंसर मरीज़ों को लेकर मिली सूचना पर आधारित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले तकरीबन दो लाख (14.8 फीसदी) और गर्भाशय के कैंसर के करीब 0.75 लाख (5.4 फीसदी) मामले हैं। भारत में वर्ष 2018 में ब्रेस्ट कैंसर से 87 हज़ार महिलाओं की मौत हुई, जिसका औसत हर दिन 239 पीडि़त महिलाओं की मौतें है। इसी तरह गर्भाशय के कैंसर से हर दिन 164 और अण्डाशय के कैंसर से हर दिन 99 मौतें हुईं। वहीं तम्बाकू से करीब 3.7 लाख (27 फीसदी) मामले फैले हैं, जो 2020 के कैंसर के कुल मामलों के 27.1 फीसदी हैं। इसके अलावा, पुरुषों और महिलाओं दोनों में 2025 तक आँतों के कैंसर के करीब 2.7 लाख मामले (19.7 फीसदी) रहने का अनुमान है।

जरनल ऑफ ग्लोबल एन्कोलॉजी में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुषों में फेफड़ों, मुँह, पेट और गले का कैंसर, तो वहीं महिलाओं में स्तन कैंसर तथा गर्भाशय का कैंसर तेज़ी से बढ़ रहा है। यह साझा अध्ययन टाटा मेडिकल सेंटर के डिपार्टमेंट ऑफ डाइजेस्टिव डिजीस (कोलकाता) के शोधछात्र मोहनदास के. मल्लाथ और किंग्स कॉलेज (लंदन) के शोधछात्र राबर्ट डी. स्मिथ ने एक फेलोशिप के तहत किया है, जो हिस्ट्री ऑफ द ग्रोइंग बर्डेन ऑफ कैंसर इन इंडिया : फ्रॉम एंटीक्विटी टू ट्वेंटीफस्र्ट सेंचुरी नाम से प्रकाशित हुआ है। मल्लाथ और स्मिथ ने लंदन स्थित ब्रिटिश लाइब्रेरी और वेलकम कलेक्शन लाइब्रेरी में 200 साल के दौरान भारत में कैंसर से सम्बन्धित विभिन्न प्रकाशनों का अध्ययन किया है। अध्ययन में लगाये गये अनुमान के मुताबिक, भारत में हर 20 साल में कैंसर के दोगुने मामले हो जाएँगे। अध्ययन में बताया गया है कि भारत में 26 वर्षों (सन् 1990 से 2016 के बीच) कैंसर से मरने वालों की दर दोगुनी रही है। सन् 2018 में कैंसर के 11.50 लाख नये मामले सामने आये थे। अब सन् 2040 तक इस कैंसर के इससे दोगुने यानी करीब 23 लाख मामले होने की आशंका है।

पूर्वोत्तर राज्यों में ज़्यादा मरीज़

अध्ययन में कहा गया है कि पूर्वोत्तर राज्यों झारखण्ड, ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश आदि में कैंसर का सबसे ज़्यादा खतरा है। इसकी वजह यह इन राज्यों में कोरोना महामारी के चलते कैंसर के मरीज़ों के इलाज में आयी गिरावट है। अगर इन राज्यों ने जल्द ही इस दिशा में पहल नहीं की, तो इसके गम्भीर परिणाम भुगतने होंगे। शोधछात्र मोहनदास के मल्लाथ ने तो अपने अध्ययन में यहाँ तक कहा है कि देश में कैंसर के इलाज का आधारभूत ढाँचा बेहतर नहीं है; क्योंकि सरकारी अस्पतालों में ऐसी सुविधाओं का अभाव है और निजी अस्पतालों तक आम लोगों की पहुँच ही नहीं है। अध्ययन में कहा गया है कि अगर तम्बाकू पर पूरी तरह पाबन्दी लगा दी जाए, तो महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर और पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर के केवल वो मामले बढ़ेंगे, जो उम्र से सम्बन्धित हैं और आम लोगों की औसतन 10 साल उम्र बढ़ जाएगी। अध्ययन में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों को शुरू में ही कैंसर के इलाज की पहल करनी चाहिए। लेकिन दोनों सरकारों की आपसी खींचतान के चलते आम मरीज़ों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। इस मामले में विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को निजी अस्पतालों को कैंसर केयर प्रोग्राम चलाने की इजाज़त नहीं देनी चाहिए। क्योंकि वहाँ आम मरीज़ अपना इलाज नहीं करा सकते।

कोलकाता के एक सरकारी कैंसर अस्पताल से जुड़े एक डॉक्टर कहते हैं कि केंद्र सरकार को कैंसर के इलाज के लिए वर्ष 1946 में बनी भोरे समिति और मुदलियार समिति की रिपोट्र्स लागू करनी चाहिए। बता दें कि इन दोनों समितियों ने सभी मेडिकल कॉलेजों में बहुआयामी कैंसर इलाज यूनिट स्थापित करने और हर राज्य में केरल के तिररुअनंतपुरम स्थित रीजनल कैंसर सेंटर की तर्ज पर कैंसर स्पेशिलिटी अस्पताल खोलने की सिफारिश की थी।

भारत में 10 मरीज़ों में से 7 की मौत

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) और ग्लोबल कैंसर ऑब्जर्वेटरी (जीसीओ) के 2018 के एक अध्ययन के मुताबिक, दुनिया भर में 2018 में कुल 96 लाख मौतें केवल कैंसर से हुई थीं, जिनमें से गरीब देशों में 70 फीसदी मौतें हुई थीं, जिसमें से करीब 7.84 लाख (8 फीसदी) मौतें अकेले भारत में हुई थीं।

जर्नल ऑफ ग्लोबल एन्कोलॉजी में 2017 प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में विकसित देशों की अपेक्षा लगभग दोगुने लोग कैंसर से मरते हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, भारत में 2018 में महिलाओं में कैंसर के 5.87 लाख और पुरुषों में 5.70 लाख मामले सामने आये थे। वहीं, सन् 2018 में कैंसर से 4.13 लाख पुरुषों की मौत हुई, जो महिलाओं से 42 फीसदी ज़्यादा थी।

वहीं, इस साल 3.71 लाख महिलाएँ कैंसर से मरी थीं। अध्ययन में कहा गया है कि भारत में हर 10 कैंसर मरीज़ों में से 7 की मौत हो जाती है, जिसका कारण कैंसर के डॉक्टरों की कमी बताया गया था। पूरे विश्व में 2018 में कैंसर से 22 फीसदी मौतें तम्बाकू सेवन से हुईं। वहीं गरीब और विकासशील देशों में 25 फीसदी मौतों का कारण हैपेटाइटिस और एचपीवी वायरस के इंफेक्शन रहा। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि भारत में पैसे वाले लोग कैंसर का इलाज विदेशों में कराना पसन्द करते हैं।

विश्व में कैंसर की स्थिति

डब्ल्यूएचओ और जीसीओ के मुताबिक, सन् 2018 में विश्व भर में कैंसर के करीब 1.81 करोड़ मामले सामने आये थे, जिनमें से 94 लाख से अधिक पुरुष तथा 86 लाख से अधिक महिलाएँ कैंसर पीडि़त पायी गयी थीं। वहीं इस साल 53.85 लाख पुरुषों तथा 41.69 लाख महिलाओं की कैंसर से मौत हुई थी। सन् 2018 की इस रिपोर्ट में पुरुषों में फेफड़ों के कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर और मलाशय कैंसर के सबसे ज़्यादा मामले सामने आये; जबकि महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर, मलाशय कैंसर और फेफड़ों के कैंसर के सबसे ज़्यादा मामले सामने आये थे।

पुरानी बीमारी है कैंसर

कैंसर काफी पुरानी बीमारी है, जिसे आयुर्वेद-काल से ही पनपा बताया गया है। यह बात कोलकाता के शोधछात्र मोहनदास के. मल्लाथ और लंदन के राबर्ट डी. स्मिथ अपनी साझा अध्ययन रिपोर्ट में कही है। मल्लाथ कहते हैं कि कैंसर पश्चिमी सभ्यता की देन नहीं है। आम लोगों में यह धारणा गलत बैठी हुई है। दरअसल भारत में कैंसर की बीमारी सदियों पुरानी है, जिससे मिलते-जुलते लक्षण और उससे बचने के उपायों का अथर्ववेद समेत कई पुराने भारतीय ग्रन्थों में मिलता है। फर्क यह है कि कैंसर की प्राथमिक पहचान 19वीं सदी में की गयी थी। इंडियन मेडिकल सर्विस ने सन् 1910 में कैंसर के मामलों का ब्यौरा भी प्रकाशित करना शुरू किया था। लेकिन 19वीं सदी में पश्चिमी दवाओं की स्वीकार्यता बढऩे के बाद इस बीमारी की जाँच शुरू हुई।

मीठे ड्रिंक्स और गर्म पेय से भी कैंसर का खतरा

फ्रांस में हुए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि मीठे (शक्कर वाले) ड्रिंक्स का सेवन कम करने से कैंसर के मामले घट सकते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा है कि दुनिया भर में मीठे ड्रिंक्स का सेवन बढऩे से मोटापा बढ़ा है, जिससे कैंसर का जोखिम बढ़ा है। कुछ समय पहले साइंस पत्रिका ‘ब्रिटिश मेडिकल जनरल’ में एक लाख लोगों पर किये गये अध्ययन में पाया गया 21 फीसदी पुरुषों और 79 फीसदी महिलाओं में मीठे ड्रिंक्स लेने की आदत है; जो कैंसर के खतरे को बढ़ाती है। अध्ययन में पाया गया कि एक दिन में 100 मिलीलीटर से अधिक शर्करा युक्त ड्रिंक्स लेने से 18 फीसदी कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है, जिसमें करीब 22 फीसदी मामले स्तन कैंसर के हो सकते हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, लोगों को रोज़ की अपनी ऊर्जा खपत का 10 फीसदी या इससे भी कम भाग शक्कर या चीनी के रूप में लेना चाहिए। बेहतर होगा कि चीनी का सेवन पाँच फीसदी या 25 ग्राम तक प्रतिदिन ही रखना चाहिए।

वहीं, ईरान की तेहरान यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज के शोधकर्ताओं ने अपने 2016 के एक अध्ययन में कहा है कि 60 डिग्री से अधिक तापमान पर बनाकर पी जाने वाली चाय, कॉफी आदि के सेवन से एसोफैगल कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। एक अन्य अध्ययन में कहा गया है कि डिस्पोजल और प्लास्टिक के बर्तनों में गर्म पेय पीने से कैंसर का खतरा बहुत ज़्यादा रहता है। इसके अलावा शराब, बीड़ी, सिगरेट और अन्य नशीले पदार्थों से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।

कुत्ते लगा सकते हैं लंग्स कैंसर का पता

अमेरिकी शहर ऑरलैंडो में अमेरिकन सोसायटी फॉर बायोकेमिस्ट्री एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी की वार्षिक बैठक में पेश किये गये एक शोध में कहा गया है कि इंसान की तुलना में कुत्ते 10,000 गुना ज़्यादा तेज़ गति से कोई चीज़ सूँघ सकते हैं। इस अध्ययन रिपोर्ट को कुत्तों को इंसानों के खून के नमूने सुँघाकर लिये गये जायज़े के आधार पर तैयार किया गया, जिसमें दो साल के चार कुत्तों को कुछ सैंपल सुँघाये गये। इनमें से तीन कुत्तों ने कैंसर के लक्षण वाले खून को सूँघकर भौंककर इसकी सूचना दी, जो जाँच में सही पायी गयी। कुत्तों की लंग्स कैंसर की पता लगाने की क्षमता 96.7 फीसदी सटीक निकली, जो इस अध्ययन में पहली बार सामने आयी।

कैंसर में कारगर है फफूँद

फफूँद (फंगस) को हर कोई एकदम बेकार समझता है; लेकिन आम लोग यह बात नहीं जानते कि फफूँद का प्राचीनकाल से ही दवाओं में इस्तेमाल होती आयी है। एक अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि फफूँद में ऐसे कुछ तत्त्व होते हैं, जो कैंसर कोशिकाओं से लडऩे में मदद करते हैं। इसके लिए बाकायदा वैज्ञानिकों ने एक फफूँद को विकसित किया, जो कैंसर के इलाज में कारगर है। एफआरआई की फॉरेस्ट पैथोलॉजी डिवीजन के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एन.एस.के. हर्ष ने इस अध्ययन में कहा था कि भारत में फफूँद को आसानी से उगाया जा सकता है। अध्ययन में कहा गया है कि फफूँद से केवल कैंसर का ही नहीं, बल्कि एचआईवी, तंत्रिका रोग, अस्थमा, हृदय रोग, पक्षाघात, उच्च व निम्न रक्तचाप, मधुमेह, हेपेटाइटिस, अल्सर, एल्कोहोलिज्म, मम्स, इपीलेप्सी, टॉयरडनेस आदि का इलाज हो सकता है।

खानपान बचायेगा कैंसर से

दवाओं के अलावा खानपान से विभिन्न बीमारियाँ ठीक करने की जुगत में दुनिया भर के रोग विशेषज्ञ और पोषण-विज्ञानी लगे हैं। इस खोज में पाया गया है कि खानपान सुधारकर कैंसर जैसी बीमारी को भी ठीक किया जा सकता है। इसमें ब्रोकली (हरी गोभी) बहुत ही कारगर है। ब्रोकली के तने में फूलों से ज़्यादा ऐसे तत्त्व होते हैं, जो कैंसर-रोधी तत्त्वों से भरपूर होते हैं। इसके अलावा कद्दू और लाल और पीले रंग के फल भी कैंसर-रोधी का काम करते हैं। सेब, अँगूर, पपीता, नारंगी में भी कैंसर से लडऩे की क्षमता पायी जाती है। कई लोगों ने खानपान से कैंसर के प्रभाव को कम किया है। कई लोगों ने तो इस खतरनाक बीमारी से छुटकारा भी पाया है। इतना ही नहीं, अगर शुरू से ही शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाए, तो कैंसर को शरीर में फैलने से रोका जा सकता है। इस बात के अनेक उदाहरण हैं कि स्वस्थ्य लोगों को कैंसर ही नहीं, बल्कि कोई और बीमारी भी जल्द नहीं होती।