संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत और तुर्की को अपने देश की जेनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंस (जीएसपी) की सूची से बाहर करने का अपना इरादा जता दिया है। जीएसपी की कार्य के तहत गरीब और विकासशील देशों को सीधे अमेरिकी बज़ारों तक अपने उत्पाद पहुंचाने मे कामयाबी मिलती रही है। अब ट्रंप प्रशासन ने भारत से व्यापार के मामले में 60 दिन का नोटिस दे दिया है।
अमेरिकी प्रशासन ने जेनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंस के तहत (जीएसपी) भारत के मुनाफे पर रोक लगा दी है। असलियत तो यह है कि वर्तमान सुरक्षा माहौल में भारत को आज अमेरिका की हर पल ज़रूरत है। ऐसे समय में अमेरिका ने यह दांव चला है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाउस ऑफ रिप्रजेंड टेटिव्स और सीनेट को एक चिट्ठी भेजी है, ‘मैं अपने इरादे से संबंधित नोटिस भेज रहा हूं। मेरा इरादा है कि भारत को ‘जेनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंस’ के तहत लाभ कमाने वाले देशों की सूची से बाहर कर देना चाहिए।’ राष्ट्रपति ने जोड़ा कि ‘वे ऐसा इसलिए करने को बध्य हैं क्योंकि भारत ने अमेरिका को यह भरोसा नहीं दिया है कि यह उसे भी समान तौर पर भारतीय बाजारों में प्रवेश का मौका देगा।’
जीएसपी से तकरीबन दो हज़ार उत्पादों को ड्यूटी फ्री (कर-मुक्त) करना पड़ता है। ऐसे उत्पादों में वस्त्र और ऑटो के कलपुर्जे हैं। भारत इस कार्यक्रम से खासा लाभान्नित हुआ और अमेरिकी सरकार के आंकड़ों के अनुसार इसने 2017 में इसने 5.7 बिलियन डालर का निर्यात अमेरिका को इस प्रणाली के तहत किया।
मुद्दा चीन का
विदेश मंत्रालय के विशेषज्ञों का कहना है कि मुख्य वजह यह है अमेरिका यह जताना चाहता है कि चीन को दरकिनार करने की ट्रंप की जो नीति हैं उसका अंधा अनुसरण नहीं रहा है इसलिए भारत को लाभ पहुंचाने की कोशिश भी नहीं हो रही है। इस के पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन को यह चेतावनी दी थी कि यदि यह व्यापार में गलत नीतियां बंद नहीं करेगा तो उसके निर्यात पर ड्यूटी बढ़ा दी जाएगी। अब तक अमेरिका ने चीनी उत्पादों पर अमेरिकी डालर 250 बिलियन से कुछ ज्य़ादा कर लगाए हैं। साथ ही यह धमकी भी दी है कि अमेरिकी डालर 267 बिलियन का और आयात श्ुाल्क लगाया जा सकता है। बड़ी ताकतों के बीच छिड़े व्यापार युद्ध को इस तरीके से भी समझा जा सकता है कि चीन ने अमेरिकी उत्पादों पर अमेरिकी 110 बिलियन डालर का कर लगाया औ अब यह धमकी दे रहा है कि चीन में जो अमेरिकी व्यापार धंधा चल रहा है उस पर अंकुश लगा देगा।
फिलहाल न तो ट्रंप और न चीनीं राष्ट्रपति जी जिंग्पिंग झुकते नज़र आ रहे हैं। अमेरिकी-चीनी व्यापार में जो तनाव इन दिनों है उसमेें फैलाव हो रहा है। चीन के वाणिज्य मंत्रालय की चेतावनी है कि व्यापार को यह झगड़ा अर्थव्यवस्था के इतिहास में सबसे बड़ी व्यापारी लड़ाई साबित होगी। जानकारों के अनुसार इस लड़ाई से चीन में विकास पर असर पड़ा है।
भारत ने सोवियत संघ और ईरान से रक्षा समझौते करके ऊर्जा पर नए समझौते करके अमेरिकी भरोसे को तोड़ा है। भारत के वाणिव्य सचिव के अनुसार भारत का अमेरिका को निर्यात इससे प्रमाणित होगा। भारतीय रु पए में तकरीबन
रु पए 40 हज़ार करोड़ मात्र का निर्यात अमेरिकी जीएसपी योजना के तहत नहीं हो पाएगा। यह अतिरिक्त ड्यूटी है जो निर्यातकों को अदा करनी होगी। उन्हें ज्य़ादा तंगी तब आएगी जब उनका माल जीएसटी संविधान से दूसरे देशों से आए माल की तुलना में कहीं ज्य़ादा महंगा होगा। अमेरिका ने हाल फिलहाल 60 दिनों की एक अवधि दी है। इस बीच बातचीत कर समस्या हल की जा सकती है।
यह अमेरिकी धमकी तब आई जब अमेरिकी ट्रेड रिप्रजेंटटिव (यूएसटीआर) ने यह सूचना दी। राष्ट्रपति डोनाल्ड टं्रप के निर्देशों के तहत अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि राबर्ट लाइटीजर ने कहा कि अमेरिका का इरादा है कि भारत और तुर्की को जीपीएस कार्यक्रम के तहत लाभ पाने वाले देशों की सूची से निकाल दिया जाए क्योंकि ये देश वैधानिक योग्यता पूरी नहीं करते। भारत को इसलिए इस सूची से हटाया जा रहा है क्योंकि इसने आश्वासन दिया था कि यह अमेरिका को भारतीय बाजारों में अपने विभिन्न क्षेत्रों के उत्पाद के साथ पहुंचने देगा। लेकिन यह सुविधा उसने प्रदान नहीं की। इसी तरह तुर्की को जो सैन्य समझौते से अमेरिका का सहयोगी है उसे सजा इसलिए दी जा रही है क्योंकि यह अलग हो कर सीरीया में रूस के साथ सहयोगी हो गया है।
ट्रंप प्रशासन ने यह सूचना दी है कि भारत को जीरो आयात ड्यूटी कार्यक्रम से अलग किया जा रहा है। क्योंकि यह अमेरिकी उत्पादकों को अपने देश के बाजार में उचित मौका नहीं दे रहा है।
भारत को कैसे मिला था लाभ?
भारत को ही इस योजना का सबसे ज्य़ादा लाभ मिलता था जब उसे और 120 देशों को कुछ साल पर जीरो टैरिफ प्रणाली की सुविधा हासिल थी। अमेरिका को इसने डालर 5.6 बिलियन का 2017 में इसे योजना के तहत भेजा था। अमेरिका को 2017 में हुए निर्यात में यह तब 11 फीसद ज्य़ादा था जो 48.6 बिलियन था।
भारत का यह निर्यात अमेरिका के मूल निर्यात 48.6 विलियम डालर की कुल कीमत से 11 फीसद ज्य़ादा था। भारत इस कार्यक्रम में सबसे ज्य़ादा लाभ कमाता था क्योंकि कुछ चीजों पर इसे जीरो-टैरिफ की सुविधा थी। इसने अमेरिका को अनुमोनित 5.6 बिलियन डालर कीमत का माल भेजा।
अब साठ दिन का नोटिस की अवधि में भारत चाहे तो अमेरिका को प्रेरित कर ले कि वह इसे प्राथमिकता के ही दर्जे पर रखे। यह तब संभव होगा जब भारत अमेरिकी मांगों को मान ले। भारत में होने वाले आम चुनावों को ध्यान में रखते हुए यह नीतिगत बदलाव संभव नहीं दिखता। क्या ट्रंप प्रशासन का यह फैसला जल्दबाजी का फैसला है?
क्या भारत अब अमेरिका से यह अनुरोध करेगा कि यह अपने फैसले पर फिर विचार कर ले। भारत पहली अप्रैल से अमेरिका से आयात होने वाले 29 तरह के माल पर ड्यूटी बढ़ाने जा रहा है। इससे भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता ठीक करने पर जो बातचीत चल रही थी उस पर उल्टा असर पड़ेगा। जिन वस्तुओं पर ड्यूटी बढ़ेगी उनमें अमेरिकी अखरोट, चिक पीज़ लेंटिल, बेसिक एसिड आदि हैं। इन पर डालर 290 बिलियन मात्र का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। इस नए आयात कर अखरोट पर 120 फीसद होगा। जबकि चिकपीज, संगाल चना, मसूर की दाल पर 30 फीसद से बढ़ कर 40 फीसद हो जाएगा।