कुछ रहस्य ऐसे हैं जिन्हें सुलझाना मुश्किल है। जवाबों के अभाव इन परिग्रहों को अधिक पेचीदा बना देते हैं। यहाँ, हम कुछ प्रमुख मंदिरों पर नज़र डालते हैं और पता लगाते हैं कि उनके बीच क्या चीज साझी (एक जैसी) है?
पहले तो यह जान लिया जाए कि इन प्रमुख मंदिरों में कौन-कौन से मंदिर प्रमुख हैं? तो हम बता दें कि भारत में यूँ तो अनेक प्रसिद्ध और प्रमुख मंदिर हैं, लेकिन यहाँ हम आठ प्रमुख मंदिरों- केदारनाथ, कालाहस्ती, एकम्बरनाथ- कांची, तिरुवन्नामलाई, तिरुवनायकवल, चिदंबरम् नटराज, रामेश्वरम् और कालेश्वरम् (उत्तर-भारत) की बात करेंगे।
इन सभी प्रमुख मंदिरों के बीच क्या सामान्य है? आओ इसका अनुमान लगाएँ। यदि आपका उत्तर है कि वे सभी शिव मंदिर हैं, तो आप केवल आंशिक रूप से सही हैं। यह वास्तव में देशांतर है, जिसमें ये मंदिर स्थित हैं। वे सभी 79ए देशांतर में स्थित हैं। जो आश्चर्यजनक और बहुत शानदार बात है, वह यह है कि कैसे सैकड़ों किलोमीटर अलग-अलग स्थानों के इन मंदिरों के वास्तुकार बिना जीपीएस और उपकरणों के इतनी सटीक लोकेशंस के साथ सामने आये।
- केदारनाथ 79.0669ए
- कालाहस्ती 79.7037ए
- एकामरनाथा- कांची 79.7036ए
- तिरुवन्नामलाई 79.0747ए
- तिरुवनायकवल 78.7108ए
- चिदंबरम नटराज 79.6954ए
- रामेश्वरम् 79.3129ए
- कालेश्वरम् (उत्तर-भारत) 79.9067ए
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में ऐसे शिव मंदिर हैं, जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक एक सीधी रेखा में बने हैं। आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास क्या विज्ञान और तकनीक थी, जिसे हम आज तक नहीं समझ पाए? उत्तराखंड के केदारनाथ, तेलंगाना के कालेश्वरम्, आंध्र प्रदेश के कालाहस्ती, तमिलनाडु के आकाशेश्वर, चिदंबरम् और अन्त में रामेश्वरम मंदिर 79ए ई 41′ 54″ देशांतर के भौगोलिक सीधी रेखा में बनाये गये हैं।
ये सभी मंदिर प्रकृति के पाँच तत्त्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे हम आम भाषा में पञ्चतत्त्व कहते हैं। पञ्च तत्त्व यानी पाँच तत्त्व- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष। इन पाँच तत्त्वों के आधार पर इन पाँच शिव लिंगों को बनाया गया है। इनमें प्रत्येक मंदिर किसी-न-किसी तत्त्व का प्रतिनिधित्व करता है। जैसे- तिरुवन्नकवल मंदिर पानी का प्रतिनिधित्व करता है। तिरुवन्नामलाई में आग का प्रतिनिधित्व करता है। कालाहस्ती में हवा का प्रतिनिधित्व करता है। कांचीपुरम् में पृथ्वी और ठंड का प्रतिनिधित्व करता है और चिदंबरम मंदिर में अंतरिक्ष यानी आकाश का प्रतिनिधित्व करता है।
कुल मिलाकर ये पाँचों मंदिर वास्तु-विज्ञान-वेद के अद्भुत मेल का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इन मंदिरों में भौगोलिक रूप से भी एक विशेषता पायी जाती है। इन पाँचों मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था और एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण (एक रेखा) में रखा गया है।
निश्चित रूप से कोई विज्ञान होगा, जो मानव शरीर को प्रभावित करता होगा। इन मंदिरों का निर्माण लगभग 4,000 साल पहले किया गया था, जब उन स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह तकनीक उपलब्ध नहीं थी। सवाल यह है कि तो फिर पाँच मंदिरों की स्थापना इतनी सटीक कैसे हुई?
केदारनाथ और रामेश्वरम् के बीच 2383 किलोमीटर की दूरी है। लेकिन ये सभी मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में आते हैं। आिखरकार हज़ारों साल पहले जिस तकनीक के साथ इन मंदिरों को एक समानांतर रेखा में बनाया गया था, वह आज तक एक रहस्य है। श्रीकालाहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि यह वायु लिंग का प्रतिनिधित्व करता है।
तिरुवनिका मंदिर के भीतरी पठार में पानी का झरना जल-लिंग का प्रतिनिधित्व करता है। अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीपक अग्नि-लिंग का प्रतिनिधित्व करता है। कांचीपुरम में रेत का स्वयंभू लिंग धरती लिंग का प्रतिनिधित्व करता है और चिदंबरम का निराकार लिंग स्वर्ग (आकाश) अर्थात् ईश्वर के तत्त्व के रूप में प्रस्तुत होता है।
श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीप वायु-लिंग के श्वसन, तिरुवनयाकवल मंदिर के अन्तरतम गर्भगृह में पानी के झरने मंदिर के जल तत्त्व से रिश्ते को इंगित करते हैं। वार्षिक कार्तिक दीपम (अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीप का प्रज्ज्वलन) अन्नामलैयार के प्रकट होने को अग्नि के रूप में दर्शाता है। कांचीपुरम में रेत का स्वयंभू लिंग पृथ्वी के साथ शिव के जुड़ाव को दर्शाता है; जबकि चिदंबरम् में निराकार स्थान (आकाश) स्वामी के निराकार या कुछ नहीं के साथ सम्बन्ध को दर्शाता है।
अब और अधिक आश्चर्य की बात यह है कि ब्रह्मांड के पाँच तत्त्वों का प्रतिनिधित्व करने वाले पाँच लिंगों को एक समान पंक्ति में सदियों पहले स्थापित किया गया था। वास्तव में हमें अपने पूर्वजों के ज्ञान और बुद्धिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास वह उन्नत विज्ञान और तकनीक थी, जिसे आधुनिक विज्ञान भी अभी तक प्राप्त नहीं कर पाया है। यह माना जाता है कि यह केवल पाँच मंदिर ही नहीं हैं, बल्कि इस पंक्ति के कई और मंदिर भी हैं, जो केदारनाथ से रामेश्वरम् तक सीधी रेखा में स्थित हैं। इस लाइन को ‘शिव शक्ति आकाश रेखा’ भी कहा जाता है। ऐसा लगता है कि कैलाश के पूरे मंदिर को 81.3119ए ई क्षेत्र में आने वाले क्षेत्रों में निर्मित किया गया है! हालाँकि इसका सही उत्तर तो केवल ब्रह्माण्ड ही जानता है…
क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि महाकाल और शिव ज्योतिॄलगम् के बीच क्या सम्बन्ध है?
उज्जैन से शेष ज्योतिॄलगों की दूरी भी दिलचस्प है। देखिए-
उज्जैन से ओंकारेश्वर 111 किमी
उज्जैन से त्र्यंबकेश्वर 555 किमी
उज्जैन से नौसेश्वरा 555 किमी
उज्जैन से भीमाशंकर 666 किमी
उज्जैन से सोमनाथ 777 किमी
उज्जैन से केदारनाथ 888 किमी
उज्जैन से काशी विश्वनाथ 999 किमी
उज्जैन से मल्लिकार्जुन 999 किमी
उज्जैन से बैजनाथ 999 किमी
उज्जैन से रामेश्वरम् 1999 किमी
कैसे लोगों ने लगभग एक ही देशांतर पर हज़ारों मील दूर (केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच 2383 किलोमीटर की दूरी पर) मंदिरों का निर्माण किया है? एक रहस्य बना हुआ है। बिना किसी कारण सनातन धर्म (अब जिसे हिन्दू धर्म कहते हैं) में कुछ भी नहीं था। उज्जैन को पृथ्वी का केंद्र माना जाता है। सनातन धर्म में हज़ारों वर्षों से केंद्र के रूप में, उज्जैन में सूर्य और ज्योतिष की गणना के लिए एक मानव निर्मित उपकरण भी लगभग 2050 साल पहले निर्मित किया गया है। …और जब लगभग 100 साल पहले ब्रिटिश वैज्ञानिक ने पृथ्वी की काल्पनिक रेखा का निर्माण किया था, तो उसका मध्य भाग उज्जैन ही था। आज भी वैज्ञानिक सूरज और अंतरिक्ष के बारे में जानने के लिए उज्जैन आते हैं। वास्तव में कुछ रहस्य ऐसे होते हैं, जिन्हें हल करना मुश्किल होता है और उत्तरों की कमी इन बातों को और पेचीदा बना देती है!