विविधता में एकता भारत को अद्वितीय बनाती है। इसी तरह देश के नृत्यों के बारे में भी राय है, जिनको प्राचीनकाल से पेश किया जाता रहा है। जब हम मध्य प्रदेश के भीमबेटका की गुफाओं में उतारे गये चित्रों को निहारते हैं, तो नृत्य कला का आभास होता है, जो मूर्तियाँ सिंधु घाटी सभ्यता में मिलती हैं, उनमें भी नृत्य के सबूत मिले हैं। भारत में नृत्य की उत्पत्ति से सम्बन्धित पाठ नाट्य शास्त्र में मिलता है, जिसे ऋषि भरत ने लिखा था।
वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर पर देश में मान्यता प्राप्त शास्त्रीय नृत्यों के छ: रूप हैं। ये प्रमुख नृत्य हैं- भरतनाट्यम, कथक, कथकली, मणिपुरी, कुचिपुड़ी और ओडिसी हैं।
भरतनाट्यम : कर्नाटक संगीत की खगोलीय धुनों पर प्रस्तुति, भरतनाट्यम का ताल्लुक तमिलनाडु से है। इसकी उत्पत्ति 1000 ईसा पूर्व से माना जाता है। प्राचीन काल में महिलाओं की प्रस्तुति के रूप प्राचीन मंदिरों से प्राप्त हुए हैं।
कथकली : यह भी परम्परागत नृत्य है, जिसमें कथा सुनायी जाती है। इसका सम्बन्ध दक्षिण के केरल राज्य से है। इसको सर्वाधिक स्थापित और धार्मिक नृत्य माना जाता है। इसकी उत्पत्ति रामायण और शिव की कहानियों के सुनाने के साथ हुई थी।
कथक : इसकी उत्पत्ति कथा शब्द से हुई है, जिसकी जड़ें उत्तर प्रदेश में हैं। इसे प्रेम का नृत्य कहा जाता है; जिमसें महिला और पुरुष दोनों साथ मिलकर खास अंदाज़ में प्रस्तुति देते हैं।
मणिपुरी : पूर्वोत्तर में हिन्दू देवताओं राधा और कृष्ण के बीच रोमांटिक रिश्ते को बयान करने के लिए मणिपुरी नृत्य किया जाता है, जिसे रासलीला कहा जाता है। यह कला रूप पारम्परिक मणिपुरी वेशभूषा और शृंगार के साथ एक टीम के ज़रिये दर्शाया जाता है।
कुचिपुड़ी : इसे सिर्फ आंध्र प्रदेश का नृत्य नहीं माना जाता है, बल्कि इसकी भगवान को समर्पित एक पूरी धार्मिक प्रक्रिया है, जिसमें पवित्र जल छिडक़ने, अगरबत्ती जलाने और भगवान से प्रार्थना करने जैसे कुछ अनुष्ठान शामिल हैं। इसमें नृत्य के साथ गायन भी शामिल होता है।
ओडिसी : ओडिशा में एक लोकप्रिय नृत्य है, जिसमें इशारों और आंदोलनों (मुद्रा) को दर्शाया जाता है। यह नृत्य प्राचीन मंदिरों से सम्बन्धित मूर्तिकारों और मूर्तियों से प्रेरित हैं।
छाउ : छाउ पश्चिम बंगाल का प्रसिद्ध नृत्य है। हालाँकि यह नृत्य ओडिशा एवं झारखंड में भी प्रसिद्ध है।
इसके अलावा भारत में और भी लोक परम्परा के नृत्य हैं, जो काफी प्रसिद्ध हैं। कई नृत्यों को भारतीय िफल्मों में भी जगह मिलती रही है।