रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म की हाल में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, बड़ी संख्या में लोग कोरोना वायरस महामारी, रूस के यूक्रेन पर आक्रमण और जीवन-यापन के संकट जैसी महत्त्वपूर्ण ख़बरों को देखने से चुनिंदा रूप से बच रहे हैं। भारत उन सात देशों में एक है, जहाँ समाचारों में लोगों का विश्वास बढ़ा है। यह तीन फ़ीसदी बढ़कर 41 फ़ीसदी हो गया है। फिनलैंड समाचार विश्वास के इस पैमाने पर 69 फ़ीसदी के साथ उच्चतम स्तर वाला देश है, जबकि अमेरिका में समाचार की विश्वसनीयता तीन फ़ीसदी और गिरकर सर्वेक्षण में सबसे कम 2.6 फ़ीसदी है।
यह ध्यान देने योग्य बात है कि समाचारों पर विश्वास आज भी कोरोना महामारी से पहले की तुलना में अधिक है। हालाँकि 2015 की तुलना में यह कम है। ये निष्कर्ष रॉयटर्स इंस्टीट्यूट डिजिटल न्यूज रिपोर्ट 2022 में निहित हैं, जिसे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म के राजनीति और अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध के हिस्से के रूप में दिखाया गया है। विभिन्न देशों में समाचारों का उपभोग कैसे किया जा रहा है, इसके ज़रिये इसे समझने में मदद मिलती है। यह रिसर्च यूगोव (ङ्घशह्वत्रश1) की तर$फ से जनवरी के आख़िर और फरवरी, 2022 की शुरुआत में एक ऑनलाइन प्रश्नावली का उपयोग करके शोध के ज़रिये की गयी।
भारत में सबसे अधिक उपयोग किये जाने वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में 53 फ़ीसदी उत्तरदाताओं का कहना है कि वे यूट्यूब का उपयोग करते हैं और 51 फ़ीसदी समाचार जानने के लिए व्हाट्स ऐप का उपयोग करते हैं। सर्वेक्षण में 12 प्रमुख देशों को शामिल करने वाले विश्लेषण में फेसबुक (30 फ़ीसदी) के लिए सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्क बना हुआ है।
इसके बाद यूट्यूब (19 फ़ीसदी) और व्हाट्स ऐप (15 फ़ीसदी) हैं। समाचारों तक पहुँचने के माध्यम के रूप में फेसबुक की लोकप्रियता में 2016 के बाद से 12 फ़ीसदी की गिरावट आयी है। अपेक्षाकृत युवा आबादी वाला भारत भी एक मज़बूत मोबाइल केंद्रित बाज़ार है, जहाँ स्मार्टफोन के माध्यम से 72 फ़ीसदी समाचार और कम्प्यूटर के माध्यम से केवल 35 फ़ीसदी तक पहुँच है। न्यूज एग्रीगेटर प्लेटफार्म और ऐप जैसे गूगल न्यूज (53 फ़ीसदी), डेली हंट (25 फ़ीसदी), इनशॉट्र्स (19 फ़ीसदी), और न्यूज प्वाइंट (17 फ़ीसदी) समाचारों तक पहुँचने के महत्त्वपूर्ण ज़रिये बन गये हैं और सुविधा के मामले में आगे हैं।
रिपोर्ट में यह भी दिखाया गया है कि भारत में सर्वेक्षण का जवाब देने वालों में से 84 फ़ीसदी ने सोशल मीडिया सहित ऑनलाइन समाचारों का उपयोग किया, जो दो फ़ीसदी की वृद्धि है, जबकि 63 फ़ीसदी ने सोशल नेटवर्क पर, 59 फ़ीसदी टेलीविजन पर और 49 फ़ीसदी प्रिंट से समाचार जाने।
डीडी न्यूज और ऑल इंडिया रेडियो जैसे सार्वजनिक प्रसारकों के साथ सबसे भरोसेमंद टाइम्स ऑफ इंडिया, इकोनॉमिक टाइम्स और हिन्दुस्तान टाइम्स जैसे प्रिंट ब्रांडों के साथ समाचार स्कोर में कुल भरोसा तीन फ़ीसदी बढ़कर 41 फ़ीसदी हो गया।
यह सर्वेक्षण एशिया में 11, दक्षिण अमेरिका में पाँच, अफ्रीका और उत्तरी अमेरिका में तीन और यूरोप में 24 सहित कुल 46 देशों में किया गया, जो दुनिया की आधी से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रत्येक देश में 2,000 से अधिक उत्तरदाता थे, जबकि सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश लोग नियमित रूप से समाचार का उपभोग करते हैं। इनमें से 38 फ़ीसदी ने कहा कि वे अक्सर या कभी-कभी समाचार देखने-पढऩे से बचते हैं, जो साल 2017 के 29 फ़ीसदी से ज़्यादा है। रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म ने अपनी वार्षिक डिजिटल समाचार रिपोर्ट में कहा कि लगभग 36 फ़ीसदी, विशेष रूप से 35 वर्ष से कम आयु के; लोगों का कहना है कि समाचार उनके मूड को कमज़ोर (ख़राब) करता है।
ख़बरों पर भरोसा भी कम हो रहा है। बड़ी संख्या में लोग मीडिया को अनुचित राजनीतिक प्रभाव के अधीन देखते हैं और केवल एक छोटे से वर्ग का मानना है कि अधिकांश समाचार संगठन अपने स्वयं के व्यावसायिक हित के मुक़ाबले समाज के हिट को आगे रखते हैं। रिपोर्ट में रॉयटर्स इंस्टीट्यूट के निदेशक रासमस क्लेस नीलसन लिखते हैं कि 46 बाज़ारों में किये गये 93,432 लोगों के ऑनलाइन सर्वेक्षण के आधार पर यह तथ्य सामने आया है।
रिपोर्ट में पाया गया कि युवा दर्शक टिकटॉक जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से समाचारों तक तेज़ी से पहुँच रहे हैं। हालाँकि समाचार ब्रांडों से उनका सम्बन्ध कमज़ोर है। हर हफ़्ते 18 से 24 साल के 78 फ़ीसदी बच्चे एग्रीगेटर्स, सर्च इंजन और सोशल मीडिया के ज़रिये ख़बरें जानते हैं। उस आयु वर्ग के 40 फ़ीसदी लोग हर हफ़्ते टिकटॉक का उपयोग करते हैं, जिसमें 15 फ़ीसदी कहते हैं कि वे इसका उपयोग समाचार खोजने, चर्चा करने या साझा करने के लिए करते हैं।
ऑनलाइन समाचारों के लिए भुगतान करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि का स्तर कम हो सकता है, क्योंकि डिजिटल सदस्यता का एक बड़ा हिस्सा कुछ राष्ट्रीय ब्रांडों के लिए जा रहा है। 20 देशों, जहाँ समाचार के लिए भुगतान व्यापक है; में सर्वेक्षण के उत्तरदाताओं में से 17 फ़ीसदी ने ऑनलाइन समाचार के लिए भुगतान किया, जो पिछले वर्ष के बराबर का ही आँकड़ा है। स्थानीय समाचारों के लिए भुगतान बाज़ारों में भिन्न होता है। द रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म को थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित किया जाता है, जो थॉमसन रॉयटर्स की बिना लाभ की शाखा है। पोल में त्रुटि (एरर) का मार्जिन 2-3 फ़ीसदी ऊपर या नीचे हो सकता है।
अध्ययन में एक और खोज पर रोशनी डाली गयी है, जो चुनिंदा समाचारों से बचने की संख्या में वृद्धि की है। इसके परिणामस्वरूप कई देशों में लोग समाचार से तेज़ी से डिस्कनेक्ट हो रहे हैं। अधिकांश असन्तुष्टों का कहना है कि समाचारों में बहुत अधिक राजनीति और कोरोना महामारी भरा है और उस समाचार का उनके मूड पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
रिपोर्ट की प्रस्तावना में रॉयटर्स इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर रासमस क्लेस नीलसन ने कहा कि बड़े अन्तर के बावजूद स्वतंत्र पेशेवर पत्रकारिता लोगों को व्यक्तिगत अनुभव से परे दुनिया को समझने में मदद कर सकती है। हम समाचारों में घटती रुचि, कम विश्वास, पिछले साल एक सकारात्मक टक्कर के बाद कुछ समूहों के बीच सक्रिय समाचार वाचन में वृद्धि देखते हैं।
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 30 वर्ष से कम उम्र के लोग सीधे समाचार मीडिया से जुडऩे में बहुत कम रुचि रखते हैं। पत्रकारिता को कैसा दिखना चाहिए? इस पर अलग-अलग विचार हैं, और अधिकांश के पास सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, मोबाइल एग्रीगेटर जैसे समाचार खोज ज़रिये हैं। युवा पीढ़ी के लिए टिकटॉक अब 40 फ़ीसदी हिस्से तक तक पहुँच गया है, और उनमें से 15 फ़ीसदी समाचार के लिए इस सामाजिक मंच का उपयोग करते हैं। अन्य विजुअल केंद्रित प्लेटफॉर्म जैसे इंस्टाग्राम और यूट्यूब भी इस समूह के भीतर समाचारों तक पहुँचने के लिए अधिक लोकप्रिय हुए हैं।
वास्तव में सर्वेक्षण के तहत आये सभी बाज़ारों के लिए इस वर्ष पहली बार प्रत्यक्ष पहुँच (23 फ़ीसदी) की तुलना में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (28 फ़ीसदी) के माध्यम से होने वाले समाचारों तक पहुँच को प्राथमिकता दी गयी। सन् 2018 के बाद से यह नौ अंक नीचे है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल की रिपोर्ट में एक स्पष्ट संकेत है। युवा समूहों की बदलती आदतें, विशेष रूप से 30 वर्ष से कम उम्र के लोगों तक पहुँचने के लिए समाचार संगठन अक्सर संघर्ष करते हैं। हमने पाया कि यह समूह जो सोशल मीडिया के साथ पला-बढ़ा है; न केवल अलग है, बल्कि पहले की तुलना में कहीं अधिक भिन्न है।