एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स के 5 और 6 फरवरी को जारी किये गये विश्लेषण के अनुसार, चुनावी चंदा हासिल करने के मामले में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दूसरे नम्बर पर रही। उसे इस पिछले वित्त वर्ष के दौरान 43 करोड़ रुपये या सभी राजनीतिक दलों को मिले चंदे का 17.09 फीसदी था।
दोनों प्रमुख पार्टियों के अलावा अन्य 12 दलों को कुल मिलाकर 108.30 करोड़ रुपये चंदे के तौर पर मिले। प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ने वित्तीय वर्ष 2017-18 में 154.30 करोड़ रुपये, 2018-19 के दौरान भाजपा को 67.25 करोड़ रुपये का चंदा दिया। एबी जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट ने अपनी कुल आय में से 28 करोड़ रुपये भाजपा को दान किया। जनहित इलेक्टोरल ट्रस्ट ने भाजपा को 2.5 करोड़ रुपये का राजनीतिक चंदा दिया।
प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ने 11 राजनीतिक दलों (जिनमें भाजपा, कांग्रेस, राकांपा, आप, बीजद और वाईएसआर-सी जैसे प्रमुख दल शामिल हैं) को चंदा दिया, जबकि इससे पहले 2017-18 के दौरान सिर्फ तीन राजनीतिक दलों को ही पैसे दिये थे। एबी जनरल, समाज और प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट से सभी दलों को प्राप्त कुल दान में से कांग्रेस पार्टी को 43 करोड़ रुपये या 17.09 फीसदी हिस्सा मिला।
भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में चुनावी ट्रस्टों के दान किये जाने वाले चंदे को लेकर दिशा-निर्देश जारी किये थे। इसमें किसी भी पार्टी को दिये जाने वाले चंदे के बारे में पूरी जानकारी देने के साथ ही पूरी पारदर्शिता बरते जाने के निर्देश थे। सबसे पहले ये दिशा-निर्देश 7 इलेक्टोरल ट्रस्टों को जारी किये गये थे, जिनमें सत्य-इलेक्टोरल ट्रस्ट, प्रतिनिधि इलेक्टोरल ट्रस्ट, पीपुल्स इलेक्टोरल ट्रस्ट, प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट, जनहित इलेक्टोरल ट्रस्ट, बजाज इलेक्टोरल ट्रस्ट और जनजागृति इलेक्टोरल ट्रस्ट शामिल थे। इसके बाद, इन दिशा-निर्देशों को ईसीआई ने सभी चुनावी ट्रस्टों पर लागू किया। सीबीडीटी में पंजीकृत 21 इलेक्टोरल ट्रस्टों में से 15 ने 2018-19 के दौरान राजनीतिक पार्टियों को दिए चंदे का विवरण ईसीआई को दिया है, इनमें से सिर्फ 5 ने यह घोषणा की है कि इस दौरान उन्होंने चंदा हासिल किया है। इलेक्टोरल ट्रस्ट्स स्कीम, 2013 के क्लॉज 5 (ओ) के अनुसार, एक पंजीकृत इलेक्टोरल ट्रस्ट को दी गयी मंज़ूरी उस वित्तीय वर्ष के लिए वैध है, जो आकलन वर्ष के लिए मान्य होगी। इसमें एक और वर्ष की अवधि, जो कि लगातार तीन वर्षों से अधिक न हो; के लिए मंज़ूरी लेनी ज़रूरी होती है। 11 इलेक्टोरल ट्रस्ट्स ने ट्रस्टों के नवीनीकरण के लिए सीबीडीटी में आवेदन किया।
रिपोर्ट के आधार पर पता चलता है कि 21 पंजीकृत चुनावी ट्रस्टों में से 15 ट्रस्ट अपने पंजीकरण के बाद से लगातार चुनाव आयोग को चंदा देने वाली रिपोर्ट की प्रतियाँ प्रदान कर रहे हैं। सत्या / प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ही दो ऐसे ट्रस्ट हैं, जिन्होंने वित्तीय वर्ष 2013-14 से 2018-19 तक हर साल अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। 8 ऐसे पंजीकृत इलेक्टोरल ट्रस्ट ऐसे हैं, जिन्होंने किसी भी तरह के चंदा देने या लेने के बारे में खुलासा नहीं किया है।
डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स के एसोसिएशन ने ईसीआई से आरटीआई के ज़रिये यह जानना चाहा था कि इलेक्टोरल ट्रस्टों द्वारा मिलने वाले चंदे का हिसाब-किताब प्रदान किया जाए। इस पर ईसीआई ने 2 दिसंबर, 2019 को जवाब दिया कि सीबीडीटी के साथ कुल 21 इलेक्टोरल ट्रस्ट पंजीकृत हैं। 4 इलेक्टोरल ट्रस्ट्स-बजाज इलेक्टोरल ट्रस्ट, गौरी वेलफेयर एसोसिएशन इलेक्टोरल ट्रस्ट, प्रतिनिधि इलेक्टोरल ट्रस्ट और भारतीय समाजवादी रिपब्लिकन इलेक्टोरल ट्रस्ट एसोसिएशन के पंजीकरण का नवीनीकरण नहीं किया गया था, जिनमें से 15 ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इनमें से केवल 5 ट्रस्टों ने ही विभिन्न कॉर्पोरेट घरानों और लोगों से मिली रकम के बारे में जानकारी दी थी।
केंद्र सरकार के तय नियमों के अनुसार, इलेक्टोरल ट्रस्ट को वित्तीय वर्ष के दौरान प्राप्त कुल अंशदान का कम-से-कम 95 फीसदी वितरित किया जाना ज़रूरी है, जबकि अधिशेष वित्तीय वर्ष से 31 मार्च से पहले योग्य राजनीतिक दलों को देना होता है। वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान जिन 5 चुनावी ट्रस्टों ने, जिन्होंने चंदा पाने के बारे में जानकारी दी है; इसमें बताया गया कि किन-किन कॉर्पोरेट्स और व्यक्तियों से कुल 252.0065 करोड़ रुपये मिले और किन-किन राजनीतिक दलों को 251.554 करोड़ रुपये (99.82 फीसदी) वितरित किये हैं।
जीएमआर हैदराबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड ने चुनावी ट्रस्टों को दान देने वालों में सबसे ज़्यादा 25 करोड़ रुपये दिये। इसके बाद अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड ने 23 करोड़ रुपये और भारती एयरटेल लिमिटेड ने विभिन्न ट्रस्टों को 21.17 करोड़ रुपये दिये। केवल दो व्यक्तियों सुष्मिता कचोलिया (प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट को 50 लाख रुपये) और आशीष कचोलिया (प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट को 11 लाख रुपये) ने 2018-19 में चुनावी ट्रस्टों में योगदान दिया है। शीर्ष 10 दानदाताओं ने चुनावी ट्रस्टों को 161.42 करोड़ रुपये दिये जो 2018-19 के दौरान ट्रस्टों को मिले कुल चंदे का 64 फीसदी है।
एडीआर के विश्लेषण के मुताबिक, केंद्र सरकार द्वारा चुनावी ट्रस्टों में दान देने वालों को लेकर पारदर्शिता लाने को नियम लागू किये। 6 इलेक्टोरल ट्रस्ट ने राष्ट्रीय दलों को 2004-05 से लेकर 2011-12 तक 105 करोड़ रुपये का चंदा दिया था। इलेक्टोरल ट्रस्ट ने 2014-15 के दौरान 7 राजनीतिक दलों को 131.65 करोड़ रुपये दिये। बता दें कि इससे पहले ऐसा नियम नहीं था, जिससे इन्हें चंदा देने वालों का खुलासा किया जाए। ये 6 इलेक्टोरल ट्रस्ट- जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट, इलेक्टोरल ट्रस्ट, हार्मनी इलेक्टोरल ट्रस्ट, कॉर्पोरेट इलेक्टोरल ट्रस्ट, भारती इलेक्टोरल ट्रस्ट और सत्य-इलेक्टोरल ट्रस्ट ने पारदर्शिता नियमों का पालन करना ज़रूरी नहीं है; साथ ही चंदा देने वालों के नामों की घोषणा भी अनिवार्य नहीं है, यानी इनको एक तरह से छूट मिली हुई है।
2018-19 के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाले 15 चुनावी ट्रस्टों में से केवल 10 यानी 66.67 फीसदी ने घोषणा की कि उन्हें इस दौरान उन्होंने एक भी पैसा हासिल नहीं किया। 2013-14 और 2018-19 के बीच 6 इलेक्टोरल ट्रस्टों ने घोषणा की है कि उन्हें अपने पंजीकरण के वर्ष के बाद से कोई दान नहीं मिला है; जबकि 6 इलेक्टोरल ट्रस्टों ने पंजीकृत होने के बाद से केवल एक बार योगदान प्राप्त करने का ऐलान किया है। ऐसे में यह सवाल उठाता है कि चुनावी ट्रस्टों के पंजीकरण के बाद भी उनको मिलने वाला पैसा और योगदान न होने के बाद भी कैसे इन इलेक्ट्रोरल ट्रस्ट का पंजीकरण आगे जारी रहता है।
21 पंजीकृत इलेक्टोरल ट्रस्टों में से 6 ने 2018-19 के दौरान की अपनी सालाना रिपोर्ट ईसीआई की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं करायी है। इन ट्रस्टों में ट्रायम्फ इलेक्टोरल ट्रस्ट, हार्मनी इलेक्टोरल ट्रस्ट, कल्याण ई.टी., जनशक्ति ई.टी., प्रोग्रेसिव ई.टी. और छोटे दान ई.टी शामिल हैं। कल्याण इलेक्टोरल ट्रस्ट के सितंबर, 2016 में पंजीकरण के बाद से किसी भी तरह के चंदा लेने या देने की कोई जानकारी ईसीआई की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं करायी। 6 इलेक्टोरल ट्रस्टों को दानदाताओं का विवरण अज्ञात रहता है, जिनके बारे में यह भी कहा जाता है कि ये ट्रस्ट सिर्फ दान छूट हासिल करने के लिए साधन के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा देश में टैक्स से बचने के लिए काले धन को सफेद करने का यह एक तरीका भी हो सकता है।
एडीआर ने माँग की है कि सीबीडीटी नियमों के अस्तित्व में आने से पहले जो चुनावी ट्रस्ट बने हैं, उनके दानदाताओं के विवरण का भी खुलासा किया जाना चाहिए। साथ ही, उन पर भी वही नियम लगाये जाने चाहिए, जो 31 जनवरी, 2013 के बाद गठित ट्रस्टों पर लागू होते हैं। इससे सभी ट्रस्टों पर भी लागू करने से बेहतर पारदर्शिता होगी।
इलेक्टोरल ट्रस्ट स्कीम के क्लॉज 8 (1) में अनुमोदन को वापस लेने की प्रक्रिया की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि सीबीडीटी इस योजना के तहत दी गयी छूट वापस ले सकता है- अगर इससे संतुष्ट हो कि चुनावी ट्रस्ट अपनी गतिविधियों को बन्द कर चुका है या उसकी गतिविधियाँ जारी नहीं या योजना के तहत रखी गयी सभी शर्तों का पालन नहीं किया जा रहा।
इस प्रकार 3 इलेक्टोरल ट्रस्ट (स्वदेशी, जय हिन्द और पीपुल्स इलेक्टोरल ट्रस्ट) की मंज़ूरी, जिनके पंजीकरण के बाद कभी कोई चंदा नहीं मिला, उन्हें समाप्त कर दिया जाना चाहिए। वर्तमान में इलेक्टोरल ट्रस्ट्स कम्पनी / कम्पनी के समूह के नाम नहीं बताते हैं, जो ट्रस्ट की स्थापना करते हैं। राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले कॉरपोरेट्स के विवरण के बारे में अधिक पारदर्शिता रखने के लिए, चुनावी ट्रस्ट के नाम पर मूल कम्पनी का नाम शामिल किया जाना चाहिए। एडीआर का सुझाव है कि उन इलेक्टोरल ट्रस्टों, जिन्होंने ईसीआई द्वारा प्रसारित दिशा-निर्देशों का जवाब नहीं दिया है साथ ही उनका पालन न कर रहे हों, तो उन्हें ईसीआई द्वारा ट्रस्टों को जारी अधिसूचना में दर्शाया जाना चाहिए।
इसी तरह, सभी कॉरपोरेट्स को राजनीति में पारदर्शिता के लिए अपनी वेबसाइटों के माध्यम से और अपनी वार्षिक रिपोर्ट में अपने पार्टियों के दिये गये चंदे का विवरण सार्वजनिक डोमेन पर उपलब्ध कराना चाहिए।