वामपंथी हमेशा किताबों में आज के मसलों का हल ढूंढने के लिए जाने जाते हैं। बंगाल, त्रिपुरा में पराज्य के बाद अब केरल में वे भाजपा के हावी होने की राह बनाने में जुटे हैं। सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का भाजपा-आरएसएस ने रणनीति बना कर इस्तेमाल किया। उसका साथ कांग्रेस ने दिया जो उदार हिंदुत्व और धर्म-निरपेक्षता का मुखौटा साथ-साथ लेकर अब चलती है। माकपा और वाममोर्चा के घटकों ने दो कदम पीछे और चार कदम आगे की अपनी ही नीति को नज़रअंदाज किया। वामपंथी दलों की महिला शाखाएं वहां भाजपा-आरएसएस परिवार के बाहुबलियों के खिलाफ मंदिर में दीवार बन कर सक्रिय हो सकती थीं। वे भी पितृसत्ता, परंपरा और राजनीतिक पहल के चलते पीछे रह गईं और भाजपा-आरएसएस परिवार को अब केरल ही नहीं दक्षिण भारत में धर्म के जरिए पनपने की राह ज़रूर मिल गई।
तेलंगाना में मुख्यमंत्री केसीआर और उनकी पार्टी भाजपा के समर्थन में ही रहे हैं। आम चुनाव के पहले दोनों पार्टियों में सीटों पर तालमेल नहीं होता तो भी केरल में सबरीमाला मंदिर के जरिए हासिल जीत से भाजपा-आरएसएस परिवार तेलंगाना में इस बार जीत हासिल करने को है। पुलिस, प्रशासन में अपनी जडें जमा कर अपना दायरा बढ़ाने वाली भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को तैनात कर सबरीमाला में लगाताार पांच दिन तक केरल की पुलिस और प्रशासन को नाकारा बताते हुए हिम्मत करके सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने का प्रयास करने वाली नौ महिलाओं को बिना दर्शन के वापस लौटने पर मजबूर कर दिया। मीडिया कर्मियों के साथ बदसलूकी हुई। सुप्रीमकोर्ट के आदेश की अवमानना खुलेआम पुलिस-प्रशासन ने की। राज्य सरकार और राज चला रही पार्टी और उसके नेता भी इसमें लाचार ही दिखे। कांग्रेस और वामपंथियों ने वोट-राजनीति के चलते यह भी ठीक वह भी ठीक को अपनाया। देव दर्शन को आई महिला श्रद्धालु बिना दर्शन लौट गईं। पुलिस और प्रशासन पूरी तौर पर नाकाम रहा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना होती रही।
सुप्रीमकोर्ट ने फैसला दिया था मंदिर के उस पारंपरिक नियम के खिलाफ जिसके तहत 10 साल से ऊपर और 60 से नीचे तक की महिलाएं मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकतीं। इस नियम का केरल में महिलाएं पालन करती हैं। मंदिर के पुजारी और मंदिर चलाने वाला बोर्ड कथित नियम में बदलाव का विरोधी है। यानी कोई भी महिला यदि उसे मासिक स्राव होता है और वह दस साल से ऊपर और 60 साल से नीचे है तो वह इस मंदिर में नहीं जा सकती। केरल के पुलिस प्रशासन और राज्य सरकार ने मंदिर में नर-नारी समान अधिकार के तहत सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनसुनी की। कम तादाद में मंदिर में पुलिस की मौजूदगी, किसी भी कार्रवाई से प्रशासन अधिकारियों में हिचक और राज्य सरकार की मायूमी 21वीं सदी के भारत के विकास की असलियत बयान करते हैं।
राज्य के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन बार बार यह ज़रूर कहते रहे कि जो महिलाएं देवदर्शन को जाना चाहती हैं उन्हें पुलिस पूरी सुरक्षा देगी। लेकिन पुलिस के अधिकारी कतई तैयार नहीं थे कि वह लाठीचार्ज करें या नारेबाजी कर रहे, छींटाकसी कर रहे और भद्दे इशारे कर रही उत्तेजित भीड़ को हटा सकें। मंदिर में प्रवेश करने वाली महिलाओं को पूरी सुरक्षा प्रदान कर सकें। पांच दिन खुले मंदिर मेें नौ महिलाओं ने पुलिस सुरक्षा में कोशिश की। लेकिन शोर-शराबे और धमकियों के चलते वे लौटती रहीं।
अभी हाल में राज्य में आई बारिश और बांधों को खोल देने से हुई बाढ़ में केरल में बड़े पैमाने पर बर्बादी हुई। इस भयानक त्रासदी को भगवान का प्रकोप बना कर भाजपा-आरएसएस परिवार के समर्थकों ने सबरीमाला में महिलाओं के सुप्रीमकोर्ट के प्रवेश के आदेश को भी संभावित विपदा की वजह बताते हुए खूब प्रचारित किया। जिस पर केरल के आधे घर यानी लड़कियों और महिलाओं ने भरोसा कर लिया।
मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के लिए इस आंदोलन को हल करने की बजाए ‘नव केरलÓ निर्माण के लिए खाड़ी के देशों में काम कर रहे भारतीयों लोगों से धनराशि की व्यवस्था करनी ज्य़ादा ज़रूरी थी। उन्होंने उद्योगमंत्री ईपी जयराजन को ज़रूर इस बड़ी जिम्मेदारी से निपटने का मौका सौंपा। यह फैसला खासा चुनौती भरा था। उद्योगमंत्री उसमें नाकाम रहे। वजह माकपा के आला पदाधिकारियों की वोटों की
राजनीति। केरल की भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस नेताओं ने सुप्रीमकोर्ट के फैसले का विरोध अपनी प्रचार रैलियों में किया। देश मेें आज भी केरल ऐसा प्रमुख राज्य है जहां सबसे ज्य़ादा दहेज की मांग होती है। कहा जाता है कि यहां मातृसत्तात्मक समाज है। लेकिन देश की आज़ादी के बाद ऐसा लगा नहीं। कांग्रेस और माकपा ने महिलाओं की परंपरावादी सोच को बदलने के लिए प्रेरित नहीं किया।
सुप्रीमकोर्ट ने चार साल की सुनवाई के दौरान राज्य की तमाम राजनीतिक, धार्मिक-सांस्कृतिक सामाजिक संगठनों से मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर बात की थी। लेकिन अब उसके ही फैसले को ताक पर रख कर भाजपा-आरएसएस ने यह भांपा कि इस विवाद से तो राज्य में हिंदुत्व जगाया जा सकता है। साथ ही पूरे दक्षिण भारत में जमा जा सकता है।
भाजपा के महासचिव के सुरेंद्रन ने कहा, ‘पुलिस या कोई भी पार्टी इस मंदिर प्रवेश के महिलाओं के अभियान को समर्थन नहीं दे सकती। हमारी पार्टी मूक दर्शक नहीं।’ यह पूरा मामला पारंपरिक धार्मिक विश्वास का है।
समाचारों के अनुसार कांगे्रस के राज्य अध्यक्ष के सुधाकरण ने तो प्रदर्शनकारियों का पूरा साथ दिया। नीलाकल में वे तमाम विरोध प्रदर्शनों में रहे जिनमें हिंसा भी हुई।
ऐसा लगता है कि राज्य सरकार ने मंत्री, नौकरशाह और पुलिस को सख्ती न बरतने की हिदायत थी। यह यदि मान भी लें कि प्रशासन मंदिर परिसर में लाठीचार्ज, आंसूगैस, फायरिंग से बच रहा था जिससे जनता में व्यापक विरोध न हो तो दूसरी राजनीतिक पार्टियां मसलन कांगे्रस और भाजपा ने उसे सहयोग क्यों नहीं दिया।
बहरहाल, राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार एक लंबे अर्से से भाजपा को केरल में एक ऐसे मुद्दे की तलाश भी थी जिसके जरिए वह राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण हो। सबरीमाला से उसे एक मौका मिल गया। इसमें राज्य के मंदिरों के पुरोहितों, बड़ी जातियों, महिलाओं और संघ परिवार के लोगों ने सक्रिय भूमिका निभाई।
एक आकलन के अनुसार केरल में कांग्रेस के पिछले राज से ही पांच हज़ार शाखाएं नियमित लगती हैं। केंद्र में भाजपा सरकार के आने के बाद यह संख्या और बढ़ी है। राज्य की वाम मोर्चा सरकार या माकपा ने इसके समानांतर शिक्षा-सुरक्षा-अनुशासन केंद्र न तो खोले हैं और न कोई योजना है। ऐसी हालत में प्रतिरोध के अभाव में केरल से भाजपा सांसदों की जीत की संभावना ही बढ़ रही है।
जानकार सूत्र यह संकेत देते हैं कि दक्षिण भारत में भाजपा ने अपना पांव प्रसारने के लिए नैय्यर समुदाय को साथ लिया है। केरल में नैय्यर बारह फीसद हैं जबकि ईझावा 21 फीसद हैं। भाजपा के इशारे पर भारत धर्म जनसेना नाम से ईझावा समुदाय के वेल्लापल्ली नटेशन ने एक दल बना लिया है। भाजपा का वोट शेयर जो 2011 विधानसभा चुनावों में मात्र 6.1 फीसद था। वह 2016 में बढ़ कर 15.3 फीसद हो गया। यानी पहले कांग्रेस, वामपंथियों में ऊंची जातियों और नैय्यर समुदाय के जो वोट बंटा करते थे वे अब भाजपा की ओर जा रहे हैं। जिसमें ईझावा भी सबरीमाला में भक्त विवाद के बाद से दिलचस्पी लेने लगे हैं।
देश में कभी सबसे ज्य़ादा शिक्षित, सुसंस्कृत और प्राकृतिक तौर पर सुंदर माना जाने वाला केरल अब दूसरे राज्यों की ही तरह अभी हाल के प्रलय के बाद तो अविकास, अशिक्षा, कुपोषण का राज्य बनता जा रहा है। यहां भी अब 21वीं सदी में ईश्वरीय ताकतों में जनता का भरोसा बढ़ाया जा रहा है। मंदिर में स्त्री-
पुरु ष समान तौर पर न जा सकें जैसे रूढि़वादी कायदे-कानून लोगों के दिमाग में ठूंसे जा रहे हैं क्योंकि इससे राजनीतिक लाभ भाजपा-आरएसएस परिवार और कांग्रेस को आने वाले दिनों में मिलता रहेगा। जनता को स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के वादों के साथ लोकतंत्र में आस्था रखने और अपना प्रतिनिधि चुनने के लुभावने अवसर दिए जाते रहेंगे।