मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा है कि देश में लोक सभा चुनाव के साथ ११ राज्यों में विधानसभा चुनाव कराना संभव नहीं है क्योंकि आयोग के पास उतनी वीवीपैट नहीं हैं। आयोग के इस रुख से भाजपा को तगड़ा झटका लगा है जो लगातार एक साथ चुनाव की वकालत कर रही है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह एक रोज पहले ही विधि आयोग को एक साथ चुनाव की वकालत वाला पत्र लिख चुके हैं।
आयोग प्रमुख रावत ने एक निजी टीवी चैनल के साथ इंटरव्यू में कहा कि यदि एक साथ चुनाव करवाने हों तो इसके लिए एक-दो महीने के भीतर ज्यादा वीवीपैट के लिए ऑर्डर करना होगा। रावत ने कहा – ”हमारे पास २०१९ में एक साथ लोक सभा और ११ राज्यों में चुनाव करवाने लायक वीवीपैट मशीनें नहीं हैं। यदि ऐसा करना है तो इसके लिए ज्यादा वीवीपैट मशीनों की ज़रुरत रहेगी और इसके लिए भी एक-दो महीने के भीतर आर्डर करना होगा”।
गौरतलब है कि कांग्रेस भाजपा के एक साथ चुनाव की इन कोशिशों का विरोध कर रही है। उसका आरोप है कि देश में लगातार अपनी बढ़ती अलोकप्रियता के चलते भाजपा इस तरह की कोशिश कर रही है। विधि आयोग के सामने गोवा फारवर्ड पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, द्रमुक, तेलुगुदेशम, माकपा, भाकपा, फारवर्ड ब्लॉक और जनता दल (एस) ने भी एक साथ चुनाव कराने का विरोध किया है।
याद रहे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सोमवार को ही विधि आयोग को अपने सुझावों के साथ लिखे पत्र में कहा था कि एक साथ चुनाव कराने से देश में चुनाव पर होने वाले बेतहाशा खर्च पर लगाम कसने का रास्ता साफ़ होगा और इससे संघीय ढांचे को मजबूत करने में मदद मिलेगी। भाजपा के एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को विधि आयोग में जाकर देश में एक साथ चुनाव कराए जाने को लेकर अपना पक्ष रखा था। भाजपा प्रतिनिधिमंडल में केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे, महासचिव भूपेंद्र यादव और सांसद अनिल बलूनी शामिल थे। पार्टी का प्रस्तुतीकरण देने के साथ इन नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का पत्र भी विधि आयोग को सौंपा था।
शाह ने अपने पत्र में कहा है कि 1952 से 1967 तक देश में एक साथ चुनाव होते रहे थे। 1970 के बाद चुनाव का चक्र बिगड़ा। इसके बाद निर्वाचन आयोग ने 1983 व विधि आयोग ने 1999 में और संसदीय समिति ने 2015 में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी अपने संबोधनों में इस विचार को रख चुके हैं। शाह ने कहा है कि इससे चुनाव पर सरकारी खर्च में कमी आएगी और आचार सहिंता से विकास कार्य रुक जाने से प्रगति में होने वाली बाधा को भी दूर किया जा सकेगा। शाह ने उदाहरण देते हुए कहा कि बीते समय में महाराष्ट्र में संसदीय विधानसभा, स्थानीय निकाय के लगातार चुनाव होने से राज्य में 365 दिनों में से 307 दिन आचार सहिंता लागू रही। शिरोमणि अकाली दल, अन्नाद्रमुक, सपा और टीआरएस हालाँकि एक साथ चुनाव कराने के हक़ में हैं।