कांग्रेस का उदय फिर से हो रहा है। हिंदी भाषी तीन राज्यों में पार्टी की जीत और 224 लोकसभा क्षेत्रों में कांग्रेस का दूसरे स्थान पर रहना भाजपा के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। उस समयमोदी लहर के बावजूद जबकि भाजपा ने बड़ी सफलता हासिल की, ध्यान देने की बात है कि भाजपा को केवल 31 फीसद वोट मिले थे। 224 सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी। इसमें कोई संदेहनहीं कि 11 अप्रैल से 19 मई 2019 तक चलने वाली चुनावी प्रक्रिया में कांग्रेस भाजपा से ज़्यादा पीछे नहीं बल्कि साथ-साथ चलेगी।
224 सीटों का गणित उन राज्यों पर आधारित है जहां 2014 में कांग्रेस ने टॉप दो स्थान हासिल किए और अभी भी मज़बूत होती जा रही है। गुजरात, कर्नाटक, केरल और मध्यप्रदेश समेत देश के10 बड़े राज्यों में जिनमे 224 संसदीय सीटें हैं, वहां 183 सीटों पर कांग्रेस पहले दो स्थानों पर थी। इसके अलावा 16 छोटे राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों जहां लोकसभा की 28 सीटें हैं वहां कांग्रेस 27में पहले दो स्थानों पर रही। ध्यान रहे कि महाराष्ट्र और केरल में कांग्रेस का क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन था। 2014 के चुनावों में कांग्रेस ने केवल 44 सीटें जीती और 224 में वह दूसरे नंबर पररही। इस तरह 643 में से 268 सीटों पर उसका दावा बहुत मज़बूत है।
भाजपा नेताओं को इस बात की खुशी है कि 1984 के बाद पहली बार केंद्र में एक पार्टी के बहुमत वाली सरकार बनी और वह पार्टी है भाजपा। कांग्रेस ने आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनावोंमें भी इतनी बुरी हार नहीं खाई थी जो 2014 में खाई है। इस चुनाव में कांग्रेस को 44 सीटें और 19 फीसद मत मिले। हिंदी भाषी क्षेत्र में पार्टी केवल सात सीटें ही जीत सकी। जबकि 1977 में उसेइस क्षेत्र में 12 सीटें मिली थीं। उस समय कांग्रेस का मुकाबला समूचे विपक्ष को लेकर बनी पार्टी जनता पार्टी से था। 1977 में कांग्रेस दक्षिण भारत में खुद को बनाए रखने में सफल रही थी औरउसे 27 फीसद वोट मिले थे। 2014 में कांग्रेस को पूर्ण नुकसान हुआ। 2014 के चुनाव में 484 दलों ने चुनाव लड़ा जो कि 2009 की तुलना में 121 अधिक है। यह गिनती 2004 के चुनावों से तोदुगनी है।
भाजपा को समझना चाहिए कि वोट शेयर के मामले में 31 फीसद वोटों साथ बहुमत लेना अब तक का सबसे कम आंकड़ा है। इसका अर्थ है जिन 66.4 फीसद लोगों ने मतदान किया उसका 31फीसद है या 1395 लाख वोटरों का। इस का यह मतलब भी है कि देश की मतदान अधिकार प्राप्त जनसंख्या का यह 17 फीसद है।
ध्यान रहे कि 2019 के चुनाव 2014 के चुनाव नहीं हैं जब ‘अच्छे दिन’ का नारा प्रभावी था और मनमोहन सिंह के खिलाफ 10 साल का सत्ता विरोधी रूझान था। यह चुनाव उस समय हो रहे हैं जबकांग्रेस हिंदी भाषी तीन बड़े राज्यों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में अपनी सरकार बना चुकी है। इसमें संदेह नहीं कि 2014 में उत्तरप्रदेश में भाजपा ने सभी को हैरान कर दिया था। यहांभाजपा ने 80 में से 71 सीटें जीती थी। बहुजन समाज पार्टी पहली बार यहां से एक भी सीट नहीं जीत पाई। यहां भाजपा का मतदान 17.5 फीसद से सीधा 42.34 फीसद पहुंच गया। जबकिकंाग्रेस 7.48 फीसद पर लुढक़ गई। उस समय बहुजन समाजपार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (एसपी) एक दूजे के खिलाफ खड़े थे, आज दोनों एक साथ हैं। इसके अलावा कांग्रेस में भीजान पड़ गई है।
राजनीतिक गणित भी कभी-कभी बहुत रोचक होता है। मिसाल के तौर पर हिंदी भाषी क्षेत्र में भाजपा ने 45 फीसद वोट लेकर 86 फीसद सीटें जीती जबकि कांग्रेस को 19.5 फीसद वोटों के साथतीन फीसद सीटें मिलीं। इस कारण गणित के नंबर काफी भ्रामक हो सकते हैं। इस कारण भाजपा को इस तर्क से सतर्क रहना चाहिए।
1720 लाख वोटों में से भाजपा को 31 फीसद या लगभग एक तिहाई वोट मिले। जबकि कांग्रेस को 19.3 फीसद मत मिले। देखें केवल 31 फीसद मतों का अर्थ है भाजपा की भारी जीत। 1999 मेंअटल बिहारी वाजपेयी को 866 लाख वोट मिले थे कांग्रेस से 170 लाख वोट कम। उसका वोट शेयर था 24 फीसद पर वह सरकार बनाने में सफल रही। एक बात यह भी देखी गई कि कांग्रेस केखिलाफ वोट स्विंग इतना ज़्यादा नहीं था जितना वोट शेयर भाजपा के हक में गया।
असल में ज़्यादा वोटों का मिलना चुनाव में सफलता की गारंटी नहीं है। उत्तरपद्रेश में बहुजन समाजपार्टी 19.6 फीसद वोट लेकर और तमिलनाडु में डीएमके 23.6 फीसद वोट लेकर एक भीसीट नहीं जीत सके। कांग्रेस की तुलना में भाजपा वोटों को सीटों में बदलने में बेहतर साबित हुई। भाजपा को एक सीट जीतने के लिए छह लाख से ज़्यादा वोटों की ज़रूरत रही जब कि कांग्रेसको एक सीट जीतने के लिए 24 लाख वोटों की ज़रूरत थी।
2009 में विजेता दल को उतने ही अतिरिक्त वोट मिले जितने का नुकसान कांग्रेस को हुआ। भाजपा ने अकेली पार्टी के तौर पर 282 सीटें जीती जोकि सर्वाधिक हैं। कांग्रेस ने 1991 में 244 और2009 में 206 सीटें जीतीं थी। भाजपा को जो सीटें मिली हैं वे उसे पिछले चुनावों में मिली सीटों के योग से भी ज़्यादा है। भाजपा ने रिकार्ड सीटें जीती पर 1977 में जो 295 सीटें जनता पार्टी ने जीतीथी वह उससे पीछे रह गई।
2014 में भाजपा को सबसे बड़ी जीत उत्तरप्रदेश में मिली जाहां उसने 71 सीटें जीती। इससे पूर्व 1984 में कांग्रेस यहां 85 में से 83 सीटें जीतने में सफल रही थी। इसक अलावा भाजपा ने ओडीसामें अपना वोट शेयर 22 फीसद और पश्चिम बंगाल में 17 फीसद तक पहुंचा दिया। देश में केरल एकमात्र ऐसा बड़ा राज्य है जहां से भाजपा का कोई सांसद नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस का गुजरात,हिमाचल प्रदेश, झारखंड, दिल्ली, ओडीसा, राजस्थान और तमिलनाडु से कोई सांसद नहीं है।
जिन राज्यों में भाजपा का विकास हुआ वहां इसने खुद को और मज़बूत बना लिया। उसने कांग्रेस को गुजरात, राजस्थान से तो एक तरह बाहर कर दिया। तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश के बीचकांग्रेस ने 37 सीटें खोई। ये वे दो राज्य हैं जहां 2009 में कांग्रेस ने काफी अच्छा किया था।
भाजपा के दो सहयोगियों शिवसेना और टीडीपी ने भी अच्छा प्रदर्शन किया पर पंजाब में अकाली दल विफल रहा। वह उसका स्थान आम आदमी पार्टी ने ले लिया। राज्य में कांग्रेस ने 13 में सेचार सीटें जीती। उधर 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने आराम से अपनी सरकार बना ली।
अब कांग्रेस के लिए मुख्य मुकाबला 10 राज्यों में हैं। ये राज्य हैं – असाम, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और राजस्थान। इन राज्यों में लोकसभा की543 में से 224 सीटें हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने यहां केवल 29 सीटें जीती थी। इन 10 राज्यों में महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस ने एनसीपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा और मुख्य शेयरअपने हिस्से लिया । कांग्रेस ने 48 में से 26 सीटों पर चुनाव लड़ा जबकि एनसीपी ने 22 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए। सिक्किम को छोड़ कर कांग्रेस हर स्थान पर पहले दो में रही।
नौ राज्यों में कांग्रेस कमज़ोर है। इनमें उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल यहां क्षेत्रीय दल बढ़त पर है। इन राज्यों में 291 सीटें हैं जो लोकसभा की कुल सीटों के आधे से भी ज़्यादा है। यहां 2014 मेंकांग्रेस ने 10 सीटें जीती थी और 48 में दूसरा स्थान हासिल किया था। इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों के हाथ में कमान है और यहां जाति आधारित राजनीति चलती है। यही कांग्रेस के लिए एक बड़ीचुनौती है। अब कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है, वह वैसे भी 44 सीटों पर बैठी हैं उधर भाजपा का ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का सपना कहीं सच होती नहीं दिखता बल्कि उसे कांग्रेस से सतर्करहने की ज़रूरत है। अकेले ‘राष्ट्रवाद’ या हवाई हमलों और सेना को महत्व देकर 2019 में मोदी की हवा बनती दिखाई नहीं देती। भाजपा को केवल मोदी के कद बुत का ही लाभ मिल सकता है।