साल 2024 के आम चुनाव से पहले दक्षिणी राज्यों में पैठ बनाने की कोशिश में भाजपा
हैदराबाद में जुलाई के शुरू में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के अपने संकल्प वाले प्रस्ताव में भाजपा ने कहा- ‘पार्टी जल्द ही तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में अपनी सरकारें बनाएगी।’
इसके एक हफ़्ते के भीतर केंद्र सरकार ने केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से चार हस्तियों को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया। भाजपा उत्तर भारत और उत्तर-पूर्व में पैर जमाने के बाद अब दक्षिण में अपनी ताक़त बढ़ाने की तैयारी में जुट गयी है। हैदराबाद में प्रधानमंत्री मोदी का भाषण और भाजपा के राजनीतिक प्रस्ताव ज़ाहिर करते हैं कि दक्षिण की राजनीति में अपनी अनुपस्थिति से भाजपा अब बेचैनी महसूस करने लगी है। भाजपा को लगता है कि अगर दक्षिण में पैर जमते हैं, तो उसके लिए 2024 की राह आसान होगी। हालाँकि दक्षिण में उसकी दस्तक कितनी मज़बूत रहेगी, इसे लेकर अभी काफ़ी पेच हैं।
दक्षिण भारत में राजनीतिक रूप से पाँच बड़े राज्य हैं- आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और तेलंगाना। इन राज्यों में लोकसभा की 129 सीटें हैं। सन् 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें, तो भाजपा (एनडीए) ने पूरे दक्षिण की 131 सीटों में से महज़ 30 सीटें जीती थीं, जिसमें 25 अकेले कर्नाटक से थीं। तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में उसका खाता भी नहीं खुला था।
तमिलनाडु में एआईडीएमके ने सन् 2014 में 39 में से 37 सीटें जीती थीं, जिससे भाजपा अब गठबंधन कर चुकी है। लेकिन 2019 में पास पलट गया था। डीएमके को इस चुनाव में 16, कांग्रेस को 10, पीएमके को 5, वामपंथी दलों को चार (सीपीआई और सीपीएम को 2-2) व एमडीएमके को चार सीटें मिली थीं।
माना जाता है कि भाजपा वहाँ पनीरसेल्वम वाले धड़े को भाजपा से जोडऩे की क़वायद में जुटी हुई है। भाजपा ने तमिलनाडु में एक सीट जीती थी। तमिलनाडु में मुख्य विपक्षी पार्टी एआईडीएमके में वैसे भी वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। पार्टी के संयोजक और पूर्व मुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम ने मद्रास उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की हुई है, जिसमें वे पार्टी में अपने प्रतिद्वंद्वी पार्टी कोषाध्यक्ष एडप्पादी पलानीस्वामी के ख़िलाफ़ क़ानून लड़ाई लड़ रहे हैं। अब चूँकि राज्य में डीएमके सत्ता में है। एआईडीएमके और भाजपा के लिए रास्ता आसान नहीं है। डीएमके कांग्रेस की सहयोगी है।
बहुत दिलचस्प बात है कि तमिलनाडु विधानसभा में भाजपा विधायक दल के नेता नैनार नागेंद्रन ने हाल में तमिलनाडु को विभाजित करने का सुझाव दिया है। उनका यह बयान तब आया, जब डीएमके नेता ए. राजा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से तमिलनाडु को स्वायत्तता प्रदान करने का आग्रह किया था। राजा ने यह आग्रह करते हुए कहा था- ‘उम्मीद है कि हमें एक स्वतंत्र तमिल देश की माँग करने के लिए बाध्य नहीं किया जाए।’
क्यों चुना हैदराबाद?
भाजपा ने हैदराबाद को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के लिए सोच-समझकर ही चुना। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पहले से ही भाजपा के लिए दक्षिण राज्यों में ज़मीन तैयार करने में जुटा है। वहाँ प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह हैदराबाद को भाग्य नगर का नाम दिया, उससे लगता है कि भाजपा तेलंगाना को दक्षिण में अपने प्रवेश के भाग्य द्वार के रूप में देखने की कल्पना कर रही है। तेलंगाना में दिसंबर, 2023 में विधानसभा के चुनाव हैं। इसके कुछ महीने बाद अप्रैल, 2024 में आंध्र प्रदेश विधानसभा के चुनाव हैं, जब लोकसभा के चुनाव भी होंगे।
हैदराबाद के ज़रिये भाजपा तेलंगाना में तो पैठ बढ़ाना ही चाहती है, आंध्र प्रदेश में भी दस्तक देना चाहती है; क्योंकि फ़िलहाल उसका कोई आधार है नहीं। हाल में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने कोटे से (केंद्र सरकार ने) जिन चार हस्तियों को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया था, उनमें आंध्र प्रदेश के के.वी. विजयेंद्र प्रसाद भी शामिल हैं। अन्य तीन पीटी उषा (केरल), इलैयाराजा (तमिलनाडु) और वीरेंद्र हेगड़े (कर्नाटक) भी दक्षिण राज्यों के ही हैं।
भले भाजपा पर मुसलमानों के फायर ब्रांड नेता और एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी को अन्य राज्यों में अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने के आरोप लगते हों, तेलंगाना में ओवैसी का गढ़ होने के कारण भाजपा को उसे घेरने के लिए आक्रामक रणनीति पर काम करना पड़ेगा। भाजपा तमाम कोशिशों के बाद भी हाल के वर्षों में दक्षिण में कर्नाटक को छोड़कर अन्य किसी राज्य में पैर पसारने में नाकाम रही है।
दिलचस्प यह है कि भाजपा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर फोकस करके ध्रुवीकरण की रणनीति पर काम कर रही है। हैदराबाद में ओवैसी की उपस्थिति से भाजपा के लिए काम आसान रहेगा। मई में जब गृहमंत्री अमित शाह तेलंगाना के दौरे पर गये थे, तो उन्होंने कहा था- ‘हम तेलंगाना को बंगाल नहीं बनने देंगे।’ समझा जा सकता है कि भाजपा किस रास्ते से अपनी ज़मीन तलाश करना चाहती है। भाजपा की नयी रणनीति यह है कि उसने तेलंगाना के लिए अपने फायर ब्रांड नेताओं की टीम बना ली है जो जल्द ही वहाँ के धुआँधार दौरे करेंगे। भाजपा के बड़े नेता अब दक्षिण के दौरों पर दिखेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपनी सरकार के 8 साल पूरे होने पर चेन्नई और हैदराबाद में बड़ी रैली की थी। भाजपा अपनी रैलियों को बहुत नियोजित तरीके से करती है और यह ख़ास ख़याल रखती है कि इसमें भीड़ जुटाने का हर इंतज़ाम किया जाए, ताकि सन्देश दिया जा सके कि जनता उसके साथ है। हाल में भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने त्रिपुरा में पार्टी की जीत के बड़े किरदार राष्ट्रीय मंत्री सुनील देवधर को आंध्र प्रदेश का सह प्रभारी जबकि संघ की पृष्ठभूमि वाले विदेश राज्यमंत्री वी. मुरलीधरन को प्रभारी तैनात किया है।
उधर तेलंगाना में यह ज़िम्मा राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुग को दिया गया है। भाजपा के संगठन महामंत्री बी.एल. सन्तोष तो हैं ही कर्नाटक से। उन पर पार्टी भरोसा कर रही है। यह माना जाता है कि पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हैदराबाद में करवाने के पीछे दिमाग सन्तोष का ही था। उन्होंने ही हैदराबाद में बैठक स्थल का चयन किया था।
भाजपा ज़मीन पर अपने मिशन दक्षिण को पूरा करने के लिए किस स्तर पर जुट चुकी है, यह इस तथ्य से ज़ाहिर हो जाता है कि हैदराबाद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आंध्र प्रदेश के भीमावरम में स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी कल्याण के लिए काम करने वाले अल्लूरी सीताराम राजू की 30 फीट की कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया। ख़ास बात यह रही कि अपने सम्बोधन के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पसाला कृष्णमूर्ति के परिवार से मुलाक़ात की जो आंध्र प्रदेश के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे।
प्रधानमंत्री ने कृष्णमूर्ति की बेटी 90 वर्षीय पसाला कृष्ण भारती से मुलाक़ात करते हुए उनके चरण स्पर्श किये और उनका आशीर्वाद लिया। जनता के बीच होते हुए मोदी इस बात का ख़ास ख़याल रखते हैं कि कुछ ऐसा करें, जिससे उनकी छवि एक नम्र प्रधानमंत्री जैसी दिखे। प्रधानमंत्री ने स्वाधीनता सेनानी की बहन और भतीजी से भी मुलाक़ात की। अल्लूरी सीताराम को अपनी श्रद्धांजलि में मोदी ने कहा कि उन्होंने आदिवासी कल्याण और देश के लिए ख़ुद को समर्पित कर दिया और वह भारत की संस्कृति, आदिवासी पहचान और मूल्यों के प्रतीक थे।
आदिवासी भी अब भाजपा की सूची में काफ़ी ऊपर हैं। द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर देश के वृहद आदिवासी वोट वर्ग पर नज़र जमायी है। अल्लूरी सीताराम राजू बड़े आदिवासी नेता थे, जिन्होंने सशत्र राम्पा आन्दोलन में आदिवासियों का नेतृत्व किया था। हाल के महीनों में भाजपा ने अपनी रणनीति में आदिवासियों पर ख़ास फोकस किया है और दक्षिण राज्यों के आदिवासी इलाक़ों पर वह ज़्यादा ध्यान दे रही है।
भाजपा की रणनीति का अध्ययन करने से ज़ाहिर होता है कि देश भर के 73,000 कमज़ोर बूथों पर पार्टी को मज़बूत करने और जनाधार बढ़ाने के लिए उसने जो कार्यक्रम शुरू किया है, उसमें दक्षिण भारत राज्यों पर ज़्यादा फोकस है। यदि इतिहास पर नज़र दौड़ाएँ तो कर्नाटक में भाजपा अपने अस्तित्व में आने के सिर्फ़ चार साल बाद ही (2004 में) उपस्थिति दर्ज करवाने में सफल रही थी। हालाँकि बाक़ी दक्षिणी राज्यों में भाजपा को जनता का समर्थन नहीं मिल पाया।
कर्नाटक की 2004 की बात करें, तो उसने विधानसभा चुनाव में जबरदस्त प्रदर्शन किया और सन् 2006 में धर्म सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिराकर जनता दल (एस) के एच.डी. कुमारस्वामी के नेतृत्व में साझा सरकार बना ली। उसके बाद भाजपा कर्नाटक में एक राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित हो गयी। फ़िलहाल कर्नाटक में भाजपा की वर्तमान सरकार भी कांग्रेस की सरकार गिराकर ही बनी थी।
एक समय था, जब सत्तारुढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के साथ भाजपा का गठबंधन था। लेकिन वर्तमान में टीआरएस नेता और मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव भाजपा के कट्टर विरोधी दिखते हैं। साफ़ दिख रहा है कि भाजपा ने तेलंगाना में पूरी ताक़त झोंकी हुई है। प्रधानमंत्री मोदी, वरिष्ठ पार्टी नेता अमित शाह और जे.पी. नड्डा टीआरएस और मुख्यमंत्री राव पर वैसे ही परिवारवाद को लेकर हमला कर रहे हैं, जैसा वह कांग्रेस और गाँधी परिवार पर करते रहे हैं। नड्डा ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तो कहा कि जहाँ से परिवारवादी पार्टियाँ साफ़ हो जाती हैं, वहीं तेज़ी से विकास होता है।
भाजपा का दक्षिण के लिए नेरेटिव उत्तर भारत से अलग है। वहाँ पार्टी के सामने विचारधारा से जुड़ी गम्भीर चुनौतियाँ हैं। भाजपा का फीडबैक है कि तेलंगाना में वह उभर सकती है। क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में वह राज्य की कुल 17 लोकसभा सीटों में से चार जीतने में सफल रही थी। ख़ुद भाजपा इस नतीजे से हैरानी में थी, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में उसे महज़ एक सीट से सन्तोष करना पड़ा था। भाजपा का फोकस शहरी क्षेत्रों पर ज़्यादा है।
दक्षिण पर ज़ोर क्यों?
क्या दक्षिण भाजपा की एक अधूरी ख़्वाहिश भर है या उसकी ज़रूरत भी? यह एक बड़ा सवाल है। दरअसल भाजपा के थिंक टैंक का अनुमान है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अतिरिक्त सीटों की ज़रूरत पड़ सकती है। पार्टी को लगता है कि दक्षिण में मज़बूत रही कांग्रेस के कमज़ोर होने का लाभ भाजपा को मिल सकता है।
यदि भाजपा यह नहीं करती है, तो क्षेत्रीय दल और मज़बूत होंगे या जनता भविष्य में दोबारा कांग्रेस की तरफ़ लौट सकती है। भाजपा के थिंक टैंक ने दक्षिण में पैठ के लिए जो रणनीति तैयार की है, उसमें तीन-सी का फार्मूला रखा गया है। इनमें पहला है सांस्कृतिक राष्ट्रवाद (कल्चरल नेशनलिज्म), दूसरा है भ्रष्टाचार पर मार (ज़ीरो टालरेंस ऑन करप्शन) और तीसरा है दक्षिण में अपनी विश्वसनीयता (क्रेडिबिलिटी) को उच्च स्तर पर ले जाना। भाजपा नेतृत्व को लगता है कि पार्टी इससे जनता अपनी पैठ बना सकती है। यदि वह इसमें सफल रहती है, तो 2024 के चुनाव में उसे इसका बहुत लाभ होगा।
भाजपा मानती है कि प्रधानमंत्री मोदी के रूप में तुरुप का पत्ता उसके पास है ही, जो जनता को अपने भाषण से आकर्षित कर लेते हैं। दक्षिण पर भाजपा की नज़र का एक और बड़ा कारण है। पार्टी नेतृत्व महसूस करता है कि उस पर उत्तर भारत की पार्टी होने का जो ठप्पा लगा है, उससे मुक्ति पानी चाहिए। सन् 2014 में मोदी के केंद्रीय सत्ता में आने के बाद भले उत्तर-पूरब-पश्चिम तक भाजपा का विस्तार हुआ हो, दक्षिण जीतने का उसका सपना अभी भी सपना ही है। भाजपा महसूस करती है कि चूँकि पिछले लगातार दो लोकसभा चुनावों में पार्टी को उत्तर भारत में व्यापक जनसमर्थन मिला है। यदि यहाँ किसी कारण कुछ या ज़्यादा एंटी इनकम्बेंसी उभरती है, तो उसकी भरपाई की रणनीति पहले से बनानी ज़रूरी है। इसके लिए दक्षिण में ख़ुद को मज़बूत करना पड़ेगा। कर्नाटक और पुडुचेरी में पहले से उसकी राज्य सरकारें हैं। पुडुचेरी की इकलौती लोकसभा सीट तो कांग्रेस के पास है; लेकिन कर्नाटक की 25 में से 24 सीटें भाजपा के पास हैं। हाल में कांग्रेस के कुछ नेता दक्षिण के राज्यों में भी भाजपा या अन्य दलों में गये हैं। हालाँकि इनकी संख्या बहुत ज़्यादा नहीं है। फिर भी भाजपा को लगता है कि कांग्रेस का वोट पार्टी की तरफ़ खिसक सकता है। तमिलनाडु में तो जयललिता के समय मज़बूत ताक़त रही एआईडीएमके बिखराव जैसी स्थिति झेल रही है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई एआईडीएमके में ही पार्टी का आधार देख रहे हैं। हो सकता है कि आने वाले समय में एआईडीएमके का एक बड़ा धड़ा भाजपा में चला जाए। वहाँ हाल के पंचायत चुनाव में जनता ने भाजपा में दिलचस्पी दिखायी है।
भाजपा कार्यकारिणी के संकल्प
पार्टी ने बैठक में कई प्रस्ताव पारित किये। वरिष्ठ नेता अमित शाह ने राजनीतिक संकल्प के प्रस्ताव पर कहा कि अगले 30 से 40 साल में भाजपा का युग होगा और भारत विश्व गुरु बन जाएगा। पैगंबर मोहम्मद पर विवादास्पद टिप्पणियों और उदयपुर और अमरावती में हत्याओं पर शाह ने कहा कि तुष्टिकरण की राजनीति ख़त्म होने के बाद साम्प्रदायिकता भी ख़त्म हो जाएगी। हाल की चुनावी जीत पर अमित शाह ने कहा कि पिछले चुनावों और उपचुनावों में भाजपा की जीत ने पार्टी के विकास और प्रदर्शन की राजनीति के लिए लोगों की स्वीकृति को रेखांकित किया है।
उनके मुताबिक, यह नतीजे परिवार का शासन, जातिवाद और तुष्टिकरण की राजनीति को ख़त्म करने के लिए हैं। अमित शाह ने कहा कि भाजपा तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में पारिवारिक शासन समाप्त करेगी और आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और ओडिशा सहित अन्य राज्यों में सत्ता में आएगी।
बैठक में शाह ने 2002 के गुजरात दंगों के मामले में आये सर्वोच्च न्यायालय के $फैसले को ऐतिहासिक बताया, जिसमें ज़किया जाफ़री की याचिका ख़ारिज़ कर दी गयी थी। शाह ने कहा- ‘दंगों में अपनी कथित भूमिका को लेकर जाँच का सामना करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने चुप्पी साध ली और भगवान शिव की तरह ज़हर पीकर संविधान में अपना विश्वास बनाये रखा।’