कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की कैलाश मानसरोवर यात्रा के बीच भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी २०१९ के चुनाव के लिए देश की राजधानी में मंथन कर रही है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, जिनका कार्यकाल अगले साल जनवरी में – यानी लोक सभा चुनाव से दो-चार महीने पहले – ख़त्म होना है को लेकर संकेत यह है कि भाजपा संगठन के राष्ट्रीय और प्रादेशिक दोनों चुनाव कुछ माह के लिए टालकर शाह के ही नेतृत्व में चुनाव में उतरेगी। यानी कांग्रेस (राहुल गांधी) को मात देने के लिए भाजपा शाह की चतुर रणनीति से चुनाव तक वंचित नहीं होना चाहती !
इस चुनाव के लिए भाजपा ने दो नारे तैयार किये हैं। एक – ”अजय भाजपा” और दूसरा – ”हमारे पास दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता मोदी”। भाजपा के एक बड़े नेता के मुताबिक पार्टी चुनाव में मोदी को दोबारा अपने ”ब्रांड लीडर” के रूप में सामने कर और बूथ स्तर तक मजबूत टीम बनाकर मैदान में उतरेगी। रविवार को पीएम नरेंद्र मोदी कार्यकारिणी में भाषण देंगे। वे सरकार की उपलब्धियों पर बात कर सकते हैं लेकिन इसके बावजूद पार्टी अपनी नैया पार करने के लिए ”मोदी की व्यक्तिगत छवि” को उभार कर कार्यकर्ताओं में जोश भरेगी।
भाजपा की अंदरूनी स्थिति का आकलन करने से साफ़ जाहिर हो जाता है कि आम रैलियों में जिस तरह कांग्रेस पांच साल विकास की बात करते-करते चुनावों में पूरी तरह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की व्यक्तिगत छवि पर निर्भर होकर मैदान में जाती थी, भाजपा भी वही करने जा रही है। भाजपा ने २००४ में ऐसा अटल बिहारी वाजपेयी की छवि को लेकर भी किया था।
दिलचस्प समानता यह दिख रही है कि २००४ में जिस तरह भाजपा ने ”इंडिया शाइनिंग” का नारा भी अटल की छवि के साथ उछाला था, उसी तरह इस समय भी भाजपा ”न्यू इंडिया” की बात कर रही है जिसमें वह यह सन्देश देने की कोशिश कर रही है कि मोदी के नेतृत्व में देश में ”आशातीत” विकास हुआ है और देश ”शाइन” कर रहा है। सच तो यह है की भाजपा पिछले चार-साढ़े चार साल में यही कहती रही है कि कांग्रेस के राज में देश ”डूब” गया था और पीएम मोदी ने इसे उससे ”बाहर निकाल दिया” है।
भाजपा नेता भले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का उनकी कैलाश मानसरोवर यात्रा से लेकर दूसरी हर बात के लिए मखौल उड़ाने में लगे हों, पार्टी के भीतर इसके विपरीत सोच है। एक बड़े भाजपा नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि पार्टी मानती है कि राहुल धीरे-धीरे मोदी के सामने एक चुनौती के रूप में खड़े हो रहे हैं।
दरअसल राहुल का मजाक उड़ाना भाजपा की रणनीति का बड़ा हिस्सा हैं। भाजपा ”थिंक टैंक” का मानना है कि राहुल की छवि देश की जनता के सामने एक ”कमजोर नेता” के रूप में पेश करना भाजपा के लिए ज़रूरी है। भाजपा देश में यह सन्देश देते रहना चाहती है कि मोदी देश की ज़रुरत हैं क्योंकि उनके मुकाबले कोई नहीं – राहुल गांधी भी नहीं। इस नेता ने स्वीकार किया कि जिस दिन जनता के मन में यह बैठ जाएगा कि राहुल वास्तव में वैसे कमजोर नहीं जैसा भाजपा प्रचारित करती है, उसी दिन राहुल मोदी के सामने एक बड़ी चुनौती के रूप में होंगे। भाजपा इससे हर हालत में बचना चाहती है।
कांग्रेस में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सक्रियता और कमोवेश नियमित रूप से मोदी सरकार के खिलाफ उनकी बयानबाजी भी दिलचस्पी पैदा करती है। चुनाव के ऐन मौके पर या नतीजे आने पर किसी ज़रुरत में कांग्रेस मनमोहन का नाम आगे कर सकती है। गठबंधन उनके नाम से अस्वीकार नहीं कर पायेगा। कांग्रेस के भीतर कुछ जानकार यह मानते हैं कि राहुल वास्तव में २०१९ नहीं २०२४ के लिए कांग्रेस को तैयार कर रहे हैं !
भाजपा २००४ में मिली हार को भी सबक के रूप में रखना चाहती है जब चीजें भाजपा के खिलाफ ज्यादा नहीं थीं। अटल जैसा नेतृत्व उसके पास था। सरकार का काम भी बुरा नहीं रहा था। पोखरण विस्फोट करके देशभक्ति को भुनाने की कोशिश भी भाजपा ने की थी। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना भी सफल थी। महंगाई पर भी कमोवेश अंकुश रहा था। लेकिन भाजपा हार गयी थी और सोनिया गांधी के अघोषित नेतृत्व में कांग्रेस २०६ सीटें जीत गयी थी।
भाजपा के लिए चिंता दूसरी भी है। बतौर अध्यक्ष और भाजपा रणनीतिकार अमित शाह अपराजेय नहीं रहे हैं। कर्नाटक में मिली हार और गुजरात के विधानसभा चुनाव में मुश्किल से मिली जीत इसका सबूत हैं। इसी तरह मोदी का चेहरा ”हर चुनाव जीता सकता है” इसकी गारंटी उत्तर प्रदेश और बिहार आदि के उपचुनावों में छिन-भिन्न हुई है। वहां झटका योगी आदित्यनाथ को भी लगा है जिन्हें मीडिया का एक वर्ग मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में कभी-कभी पेश करने की कोशिश करता रहा है।
भाजपा २०१९ के चुनाव पास आते-आते मुद्दों की दिशा से भटकती भी दिख रही है। राम मंदिर, हिन्दू-मुसलमान फिर इसके नेताओं के भाषणों के केंद्र में आ चुके हैं। यह इस बात का संकेत है कि किसी एक छवि या मुद्दे के सहारे वह खुद को बहुत मजबूत धरातल पर खड़ा नहीं महसूस करती। आने वाले महीनों में भाजपा को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़, तेलंगाना आदि के विधानसभा चुनाव झेलने हैं जहाँ अपनी स्थिति खुद भाजपा के नेता मजबूत नहीं मान रहे। भाजपा का बस चलता तो वह इन चुनावों को लोक सभा चुनाव के साथ ही करवाना चाहती ताकि २०१९ के लोक सभा के चुनाव से पहले ”हार” का मनोविज्ञानिक दवाब लेकर मैदान में न उतरना पड़े।
अब बात भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिन की इस मंथन बैठक में भाजपा फिलहाल कार्यकर्ताओं और प्रादेशिक नेताओं में जोश भरने की कोशिश कर रही है। भाजपा का चुनाव के लिए चेहरा मोदी के रूप में सामने है ही। गठबंधन के लिए उसके सहयोगी भी कमोवेश सामने ही हैं। हो सकता है लोक सभा चुनाव से पहले एक-दो उससे छिटकें। लिहाजा भाजपा की इस बैठक का मकसद एक ही है – कार्यकर्ताओं के दिल में यह बैठाये रखना कि २०१९ में पार्टी ही जीतकर सरकार बनाने वाली है। शाह ने बैठक के पहले दिन इसी मनोविज्ञानिक तरीके का सहारा लिया और कहा – ”भाजपा लोक सभा चुनाव प्रचंड बहुमत से जीतेगी”।
शनिवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी ने उद्घाटन सत्र में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए डटने का संकल्प लिया। शाह ने एससी-एसटी क़ानून को लेकर विपकस्ग के हमलों को ”भ्रम फैलाने की साजिश” बताकर वर्कर्स को इसका मुकाबला करने की घुट्टी पिलाई। यह मुद्दा भाजपा के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। शाह ने ”जीत के संकल्प” को मन में रखने की सलाह कार्यकर्ताओं को दी। तेलंगाना, ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों पर फोकस और साल के अंत तक मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान सहित पांच सूबों के विधानसभा चुनाव में जीत के लिए पूरी ताकत झौंक देने को कहा।
राफेल डील, पेट्रोल-डीजल की कीमतों में उछाल और रूपये के लगातार चिंताजनक स्तर पर अवमूल्यन जैसे मुद्दी भाजपा के लिए बड़ी चिंता के रूप में सामने हैं। जम्मू कश्मीर में पीडीपी से रिश्ता तोड़कर भाजपा ने जिस अच्छे की उम्मीद की थी हुआ उसके बिलकुल विपरीत है। वहां हालात बहुत खराब हैं। यह भाजपा के लिए बहुत चिंता की बात है। रविवार को पीएम मोदी का भाषण है। जाहिर है भाजपा इसे पार्टी के बीच बड़ा जोश भरने के रूप में इस्तेमाल करेगी।