जो उपचुनाव उत्तराखंड भाजपा के लिए एक बड़ा अवसर साबित हो सकता है, उसमें पार्टी की ताकत का ज्यादातर हिस्सा मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को चुनौती देने के बजाय अपना खेमा बचाने में खर्च हो रहा है. मनोज रावत की रिपोर्ट.
उत्तराखंड के सितारगंज विधानसभा उपचुनाव में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के सामने चुनौती पेश कर रही भाजपा की असली ताकत आक्रामक रुख अपनाने के बजाय अपने विधायकों को पार्टी में बनाए रखने की रक्षात्मक रणनीति में चुक गई दिखती है. गौरतलब है कि सितारगंज से भाजपा के ही विधायक किरन मंडल ने मुख्यमंत्री बहुगुणा के लिए सीट छोड़ते हुए अपनी पार्टी को बड़ा झटका दिया था. चुनाव प्रचार में कुछ ही दिन बाकी हैं, मगर एक के बाद एक विधायकों के पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने की खबरों के कारण भाजपा का चुनाव अभियान अब तक रफ्तार नहीं पकड़ पाया है.
दूसरी ओर 13 जून को चुनाव अधिसूचना जारी होने के दिन ही मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने नामांकन करवाकर चुनाव अभियान शुरू कर दिया था और इस लिहाज से भाजपा पर रणनीतिक और मनोवैज्ञानिक बढ़त बना ली थी. उनके नामांकन में उनकी कैबिनेट के अधिकांश मंत्री व सांसदों के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री हरीश रावत भी शामिल हुए. दूसरी ओर, भाजपा जब तक मंडल के दलबदल के झटके से उबर कर सितारगंज चुनाव की रणनीति बनाना शुरू करती तब तक देहरादून में घनसाली से भाजपा विधायक भीम लाल आर्य की भी भाजपा के हाथों से फिसलने की अफवाह उड़ने लगी. भीमलाल की भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं से मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के विरुद्ध उम्मीदवार न उतारने की अपील वाली चिट्ठी सार्वजनिक होना उत्तर प्रदेश के कन्नौज में प्रत्याशी न उतार पाने से फजीहत झेल रही भाजपा के लिए बड़ा झटका था. चिट्ठी सार्वजनिक होने के अगले दिन यानी 16 जून को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके स्वीकारा कि भीमलाल वास्तव में उनके हाथ से निकल कर कांग्रेस के पाले में बैठ गए हैं. मंडल और भीम लाल प्रकरण से खीजी भाजपा ने कांग्रेस द्वारा विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप की पुष्टि कराने के लिए सितारगंज के एक प्रधान किशोर राय को पेश करके उनसे रहस्योद्घाटन कराया कि किरन मंडल को कांग्रेस ने 10 करोड़ रुपये में खरीदा है. हालांकि आरोप लगाने वाले राय कोई सबूत पेश नहीं कर पाए. अजय भट्ट ने बाद में मुख्य चुनाव आयुक्त को इन आरोपों की सीडी ही सबूत के रूप में सौंपी और मुख्यमंत्री के नामांकन को निरस्त करने की मांग की.
नेता प्रतिपक्ष के द्वारा भीमलाल के पार्टी छोड़कर जाने की स्वीकारोक्ति के दो दिन बाद हुए बड़े उलटफेर में अचानक भीमलाल ने देहरादून में प्रकट होकर स्वयं को भाजपा का सच्चा सिपाही बताया. मुख्यमंत्री के विरुद्ध प्रत्याशी खड़े न करने की अपील को उन्होंने किसी के द्वारा धोखे में लिखवाई चिट्ठी बताया. कांग्रेस में जाने की अफवाह को भी उन्होंने बेबुनियाद बताया. लेकिन सूत्रों के अनुसार दाल में कुछ काला तो था ही. उनके वापस आने से भाजपा को भले ही सुकून मिला हो परंतु तब तक भाजपा को बड़ा राजनीतिक नुकसान हो गया था. चुनाव अभियान के शुरुआती दिनों में भाजपा को चुनावी रणनीति बनाने के बजाय सारा समय भीमलाल बचाओ अभियान पर लगाना पड़ा. लंबी जद्दोजहद और मंथन के बाद किसी तरह 19 जून को सितारगंज से भाजपा प्रत्याशी के रूप में प्रकाश पंत का नाम तय हो पाया. पंत नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन यानी 20 जून को नामांकन कर पाए. पंत के नामांकन में पूर्व मुख्यमंत्री खंडूड़ी और निशंक की गैरमौजूदगी भाजपा कार्यकर्ताओं को खटक रही थी. एक भाजपा कार्यकर्ता दबी जुबान में कहते हैं, ‘भले ही सितारगंज में उपचुनाव हो रहा हो लेकिन इस चुनाव से राज्य के मुख्यमंत्री का भविष्य तय होना था और भाजपा के पास कांग्रेस द्वारा कराए गए किरन मंडल के दलबदल का सही अवसर भी था. इसलिए दिग्गजों की उपस्थिति से न केवल कार्यकर्ताओं में उत्साह आता बल्कि संकट के क्षणों में पार्टी की एकजुटता भी दिखती.’ मंडल और भीमलाल एपिसोड के बाद हुई राज्य भाजपा मुख्यालय की बैठक में विधायकों ने राज्य नेतृत्व पर संगठित होकर रणनीति न बनाने के आरोप तक जड़े. सूत्रों के मुताबिक विधायकों का बैठक में यहां तक कहना था कि हमारे नेता चाहते हैं कि हम दूसरी पार्टी के हाथों बिक जाएं.
सितारगंज में मुख्यमंत्री बहुगुणा और प्रकाश पंत के अलावा और चार उम्मीदवार हैं. मतदान 8 जुलाई को होना है. सरकार में सहयोगी दल बसपा और उक्रांद के अलावा सपा ने भी अपना उम्मीदवार उतारने के बजाय कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया है. इस तरह चुनावी मुकाबला सीधा-सीधा कांग्रेस और भाजपा के बीच में है. सितारगंज विधानसभा में कुल 91,247 मतदाता हैं. लैंड ग्रांट एक्ट में मिले पट्टों को भूमिधरी में बदलने का शासनादेश जारी करने के बाद कांग्रेस 29 प्रतिशत बंगाली मतदाताओं का झुकाव अपनी ओर मान रही है. कोई सशक्त मुस्लिम उम्मीदवार न होने के कारण सितारगंज के 22 प्रतिशत मुसलिम मतदाताओं के बड़े हिस्से का भी कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने का भरोसा कांग्रेस के रणनीतिकारों को है. इसके अलावा 10 प्रतिशत सिख व पंजाबी, 10 प्रतिशत थारु और 5 प्रतिशत शहरी क्षेत्र के कारोबारी मतदाता हैं. प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य का दावा है कि उन्हें हर वर्ग के मतदाताओं का समर्थन मिल रहा है. कांग्रेस का चुनाव अभियान खुद मुख्यमंत्री बहुगुणा और प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य ने संभाल रखा है. प्रदेश कांग्रेस ने भितरघात की आशंका को समाप्त करने के लिए बिना अनुमति के कांग्रेसियों के सितारगंज आने पर रोक लगाई है.
सूत्रों के मुताबिक भाजपा विधायकों का बैठक में यहां तक कहना था कि हमारे नेता चाहते हैं कि हम दूसरी पार्टी के हाथों बिक जाएं
सितारगंज के मुसलिम बहुल गांव सिसैया में बहुगुणा लोगों से अपील करते हुए कहते हैं, ‘आज तक सितारगंज को कोई जानता नहीं था. अब प्रदेश में होने वाला हर विकास कार्य सितार गंज से शुरू होगा.’ बारी गांव में मुख्यमंत्री की सभा में मौजूद मोहम्मद इमरान कहते हैं कि इस चुनाव में मुद्दा केवल विकास है. स्नातक इमरान की पीड़ा यह है कि कंप्यूटर में डिप्लोमा करने के बाद भी उन्हें सितारगंज के औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार नहीं मिल पाया है. वे बताते हैं कि यहां की औद्योगिक इकाइयों में स्थानीय पढ़े-लिखे, व्यावसायिक शिक्षा पाए बेरोजगारों के बजाय बाहरी राज्यों के युवकों को नौकरी दी जाती है. पास के गांव कल्याणपुर के ग्रामीणों की शिकायत है कि गांव के दो ट्यूब वेलों से सिंचाई का पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है. मुख्यमंत्री हर मांग पर कहते हैं कि आचार संहिता तक उनके ओंठ सिले हैं पर बाद में हर परेशानी का हल निकलेगा.
पैतृक क्षेत्र पौड़ी और लोकसभा क्षेत्र टिहरी की किसी सीट के बजाय सितारगंज से चुनाव लड़ने की वजह पूछने पर बहुगुणा तहलका से कहते हैं, ‘मेरे लिए सारा राज्य ही अपना क्षेत्र है. यह पिछड़ा क्षेत्र था. कई चुनौतियां थी. इसे भी आगे बढ़ाना था.’ हम उनसे पूछते हैं कि भाजपा विधायकों की खरीद-फरोख्त और लोकतंत्र की हत्या को मुद्दा बना रही है, तो उनका जवाब आता है, ‘बेबुनियाद आरोप हैं. कांग्रेस सरकार की लोकप्रियता से घबरा कर और उपचुनाव में निश्चित हार से ध्यान बटाने के लिए भाजपा स्तरहीन आरोप लगा रही है. सच तो यह है कि राज्य भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की गुटबाजी से परेशान भाजपा के विधायकों का वहां दम घुट रहा है और वे और ठिकानों की तलाश में हैं.’ उधर, भाजपा प्रत्याशी प्रकाश पंत जनसभाओं के अलावा घर-घर जाकर संपर्क कर रहे हैं. वे स्वयं को मिल रहे समर्थन से संतुष्ट हैं. भाजपा प्रवक्ता और युवा मोर्चे के पूर्व अध्यक्ष गजराज सिंह का दावा है कि पार्टी एकजुट होकर कड़ी टक्कर दे रही है. प्रचार में पार्टी के बड़े नामों की गैरमौजूदगी पर वे बताते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष चुफाल और प्रभारी थावर चंद गहलोत प्रचार करके जा चुके हैं .वे कहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री खंडूड़ी और निशंक भी सितारगंज में चुनाव प्रचार के लिए समय देंगे. वे बताते हैं, ‘सितारगंज में भाजपा जल्दी ही हेमामालिनी, वरुण, सिद्वू सहित 36 स्टार प्रचारकों को प्रचार में उतारने वाली है.’ उधमसिंह नगर के नौ विधायकों में से 7 भाजपा के हैं. भाजपा इन विधायकों के अलावा राज्य के अन्य विधायकों को भी सितारगंज चुनाव में झोंकने की रणनीति पर काम कर रही है. पंत अलग राज्य बनने के बाद बनी पहली अंतरिम सरकार में विधानसभा अध्यक्ष और पिछली भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं. हाल के आम विधानसभा चुनावों में वे अपनी परंपरागत सीट पिथौरागढ़ से चुनाव हार गए थे. तहलका से बातचीत में वे कहते हैं, ‘सितारगंज चुनाव में लोकतंत्र की हत्या, भ्रष्टाचार और कांग्रेस सरकार की असफलता के 100 दिन प्रमुख मुद्दे हैं.
पूर्व विधायक किरन मंडल पर उनके नजदीकी रिश्तेदार ने ही बिकने का आरोप लगाया है.’ लेकिन मंडल तो कहते हैं कि उन्होंने भूमिधरी और विकास के लिए विधायकी का बलिदान किया. इस पर पंत कहते हैं, ‘कांग्रेस का भूमिधरी का वादा झूठ का पुलिंदा है. 30 मई को इस संबंध में जारी शासनादेश प्रचलित कानूनों और विधियों के विपरीत है. फिर 4 जून को मुख्य राजस्व आयुक्त का आदेश पहले के सभी आदेशों को समाप्त करता है. हमने भूमिधरी के मामले में कांग्रेस से चार प्रश्न पूछे हैं, कांग्रेस को उनके जवाब सार्वजनिक रुप से देने चाहिए.’ उनका आरोप है कि सितारगंज में राज्य बनने के बाद 10 साल से बसपा विधायक रहे और कांग्रेस के सांसद. उनकी निष्क्रियता से विकास रुक गया. पंत कहते हैं, ‘हम जनता से पांच साल मांग रहे हैं. हम क्षेत्र की सूरत बदल देंगे.’ किरन मंडल के भांजे और भाजपा नेता दीपक विश्वास का दावा है कि बंगालियों को किए जा रहे भूमिधरी के दावे में दम नहीं है. वे कहते हैं, ‘बंगालियों को भूमिधरी वाले शासनादेश की हकीकत पता चल गई है इसलिए वे कांग्रेस के छलावे में नहीं आएंगे.’ उनके अनुसार यहां का बंगाली मतदाता भाजपा का मतदाता रहा है और इस चुनाव में भी भाजपा के साथ रहेगा. भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का भी दावा है कि कुछ दिनों में स्थितियां उलट हो जाएंगी. सूत्र बताते हैं कि भाजपा को कांग्रेस के एक खेमे द्वारा मुख्यमंत्री के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान का भी भरोसा है. वे भी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार संगमा की तरह किसी चमत्कार की आशा में हैं.