पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने रोड शो (14 मई) किया। यह अद्भुत था। इसमें एक स्टेज पर ओडिसी नृत्य हो रहा था। दूसरे स्टेज पर सजे-संवरे राधाकृष्ण। तीसरे पर दिल्ली, असम, उत्तरपूर्व राज्यों से आए भाजपा और गठबंधन के नेता थे। चौथे पर भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह चुनाव में मुकाबला कर रहे भाजपा उम्मीदवार और भाजपा के राज्य अध्यक्ष। कई सौ किलो गेंदे और गुलाब की पंखुडिय़ां दर्शकों पर बिखेरते हुए, अमित शाह की शोभायात्रा निकल रही थीं। इस यात्रा में सबसे आगे थे युवा लड़के-लड़कियां श्रीराम धुन पर मगन थिरकते हुए और उनके पीछे थे रामायण के पात्रों के विभिन्न अवतार बने किशोर और बच्चे। इन सबके पीछे कई सौ थे भाजपा -संघ परिवार के कार्यकर्ता जो दूसरे प्रदेशों से आए थेे।
ढलती सांझ में विद्यासागर कालेज में मंगलवार (14 मई)को हुई हिंसा और आगजनी से पूरा प्रदेश और देश स्तब्ध है। यही नहीं ईश्वर चंद्र विद्यासागर के पड़पोते आज भी सदमे में हैं। भाजपा की रैली में पैदल चल रहे भाजपा व संघ परिवार समर्थक कार्यकर्ता राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की पुष्पों से सुंसज्जित गाड़ी के काफी पीछे चल रहे थे। फुटपाथ पर हाथों में भाजपा विरोधी पोस्टर लेकर खड़े तृणमूल के कार्यकताओं को देखकर अचानक वे भड़क उठे। फिर हुआ जमकर पथराव, लाठीबाजी और आगजनी। विद्यासागर कालेज के ताले को तोड़कर नोच कर फेंक दिया गया। परिसर के अंदर घुस कर तो इन लोागों ने कोहराम मचा दिया। दरवाजा तोड़ कर ये अंदर गए और शीशे में रखी ईश्वर चंद विद्यासागर की मूर्ति को लाठी मार कर नीचे गिरा दिया। और उसे तोड़ दिया। इन्ही लोगों ने दो मोटर साइकिलें और एक साइकिल भी आग के हवाले कर दी।
बांग्ला समाज में उपयोगी बांग्ला वर्णमाला और सांस्कृतिक पुनर्जागरण लाने वाले सुधारकों में प्रमुख ईश्वर चंद्र विद्यासागर के पड़पोते डा. प्रतीप बनर्जी ने कहा,’ मंगलवार की शाम कालेज में जो हिंसक कार्रवाई हुई उसकी हम निंदा करते हैं। पूरा देश ईश्वर चंद्र विद्यासागर के अवदान को नहीं भूला पाता है। मेरे पास शब्द नहीं हैं यह बता पाने को यह सब बंगाल की धरती पर क्यों हुआ।
मशहूर डाक्टर बनर्जी ने कहा, ‘इस घटना से मुझे काफी सदमा पहुंचा है। विद्यासागर एक दिग्गज व्यक्तित्व थे। मुझे भरोसा नहीं होता कि उनकी काफी पुरानी मूर्ति के साथ यह बर्ताव किया जाएगा। मेरे पिता डा. प्रशांत बनर्जी जब उस कालेज में पढ़ते थे तब भी यह मूर्ति वहीं थी। विद्यासागर पूरे देश के थे और हम चाहेंगे कि इस कांड के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
पश्चिम मिदनापुर जिले के बीरसिंह गांव में 26 सितंबर 1820 को जन्मे ईश्वर चंद्र एक दार्शनिक, शिक्षाविद, विद्वान, लेखक, अनुवादक, मुद्रक- प्रकाशक, समाज सुधारक और नेतृत्ववादी थे। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह कानून भी पास करवाया था।
ईश्वर चंद्र विद्यासागर के कृतित्व पर शोध करने वाले मशहूर गोविदो दोलई ने कहा, बंगाल में यह दिन काला दिवस बतौर मनाया जाना चाहिए। जिन लोगों ने यह तोडफ़ोड़ की क्या उन्हें यह अंदाज था कि वे क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं। बंगाल की यह संस्कृति कभी नहीं रही है। बीरसिंह गांव के भगवती विद्यालय में पुस्तकालय अध्यक्ष के तौर पर दोलई काम करते हैं।
बांग्ला भाषा संस्कृति का विरोध
महत्वपूर्ण अब यह नहीं है कि मूर्ति तोड़ी किसने। लेकिन शहर कोलकाता में रैली (भव्य शोभायात्रा) तो भाजपा ने निकाली थी। जिस हिंदू बहुल देश में बड़ी मुश्किल से उनकी कुछ पहचान बनी है वह भी बाहर से आए लोगों के कारण। इन बाहरी लोगों में उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड से आए लोगों में अपने साहित्य- संस्कृति -समाज के प्रति कोई चेतना जान नहीं पड़ती। ऐसे में वे बांग्ला साहित्य और बांग्ला भद्रलोक और बांग्ला फुटबाल का महत्व क्या जानें। ये तो लाठी भांजने, बंदूक का थोड़ा दबाने वाले और अपने चेहरे छिपाकर भाग जाने वाले लोग हैं।
इन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि रसगुल्ला बंगाल में सबसे पहले कहां बना। इनको संदेश में सिर्फ मिठास से मोह है। ये बांग्ला सुंदरियों को ऐसे मुह खोलकर देखता है जैसे उनको लील जाएगा। ऐसे लोग अब बंगाल में सरकार बनाने का सपना देख रहे हैं। इसलिए इनके नेता बार-बार बंगाल को कंगाल कहता है और कहता है बड़ा पंच धातु का मूर्ति बनवा देंगे। इनको फिर तोड़ा क्यों? पुराना था। इनको इससे मतलब नहीं है कि दो सौ साल पुराना धरोहर टूटा। ये तो हर चीज़ का नुकसान कर मुआवजा देकर मुंह बंद करने की सोचता है।
इनको इस बात से कोई लेना देना नहीं कि बंगाल में बच्चा जब सरस्वती पूजा के लिए कालीघाट के काली मंदिर जाता है तो उसके हाथ में जो वर्ण परिचय पुस्तिका होती है उसे ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने ही तैयार किया था। बंगाल में शिक्षा का और उसके प्रचार-प्रसार में उनका योगदान था। उन्होंने 19वीं सदी में बंगाल में पुनर्जागरण आंदोलन किया था। विद्यासागर कालेज से न जानें कितने हिंदी-बंाग्ला -ईसाई-मुस्लिम-सिख छात्र निकले जो समाज में विभिन्न क्षेत्रों में योगदान करने के लिए आज भी जाने जाते हैं। आपने उस कालेज का संस्थापक की मूर्ति तोड़ को दिया।
भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाले और बंगाल में तोड़-फोड़, आगजनी करने वाले यह नहीं जानते कि बांग्ला भाषा -संस्कृति क्या है। उन्होंने विनाश करके बंगाल में खुद के प्रति उदासीनता का माहौल सब कहीं भर दिया है।
बंग संस्कृति में एक से बढ़ कर एक मिट्टी की बड़ी-बड़ी मूर्ति मां दुर्गा, मां काली, कार्तिकेय, मां सरस्वती, मां शारदा आदि की बनती हैं। जब पूजा-पाठ हो जाता है तो सम्मान से उसे जल में प्रवाहित करते हैं। मूर्ति तोडऩे की संस्कृति बंग समाज में नहीं है। यहां सभी धर्मों का सम्मान है।
अब हर बंगाली सोचेगा कि बाहरी लोगों से सावधान रहना ज़्यादा ज़रूरी है। क्योंकि सोनार बांग्ला को यहीं के कुछ लोगों के साथ मिलकर फिर लूटने की साजिश रची जा रही है। ऐसे में सावधान, बंग समाज।