हाल ही में उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राज्य का बजट पेश किया. हालांकि राज्य में चुनाव अभी बहुत दूर हैं, लेकिन अखिलेश का बजट बिल्कुल लोकलुभावन है. उनके बजट में लोगों की सबसे ज्यादा निगाह उस बेरोजगारी भत्ते की ओर थी जिसकी हाल में सबसे ज्यादा चर्चा रही थी. अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद 15 मार्च को जो सबसे पहली मीटिंग बुलाई थी उसमें ही युवाओं को बेरोजगारी भत्ता दिए जाने की संस्तुति कर दी गई थी. इसके तहत राज्य के बेरोजगार युवाओं 1,000 रुपये प्रति महीना भत्ता मिलेगा. सपा की इस लोकलुभावन राजनीति का बोझ राज्य के कोष पर पड़ना है. इस योजना के लागू होने की सूरत में प्रतिवर्ष 2,000 रुपये का अतिरिक्त बोझ राजकोष पर बढ़ जाएगा. जबकि 31 मार्च को समाप्त हुए पिछले वित्त वर्ष में राज्य पर कुल दो लाख करोड़ रुपये का कर्ज पहले से ही है. मुख्यमंत्री अपने फैसले का बचाव इस तर्क के आधार पर करते हैं कि अगर पिछली बसपा सरकार हजारो करोड़ रुपये पार्कों, स्मारकों आदि पर बर्बाद कर सकती है तो उनकी सरकार राज्य के बेकाम युवाओं पर कुछ हजार करोड़ रुपये क्यों नहीं खर्च कर सकती. इससे बेरोजगारों को राहत मिलेगी. इसके अलावा वे कहते हैं कि उन्होंने चुनावी अभियान के दौरान ही यह वादा जनता से किया था इसलिए इसे पूरा करना उनकी जिम्मेदारी है.
इस योजना की घोषणा होते ही रोजगार कार्यालयों के बाहर बेरोजगार युवाओं का हुजूम उमड़ पड़ा. हर युवा खुद को बेरोजगार कार्यालय में दर्ज करवा लेना चाहता था ताकि वह भत्ता पाने का हकदार बन सके. सपा की तरह ही भाजपा ने भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में बेरोजगारी भत्ते की घोषणा की थी, हालांकि उसने हर महीने 2,000 रुपये देने का वादा किया था. लेकिन मुख्यमंत्री इस मसले को जितना सीधा बता रहे हैं यह मसला उतना सीधा है नहीं. जानकार बताते हैं कि राजकोष पर इतना भारी अतिरिक्त बोझ डालने से बेहतर होता कि वे पूरे राज्य के विभिन्न विभागों में खाली पड़े लगभग पांच लाख सरकारी पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू करते. इससे एक तो बेरोजगारी खत्म होती दूसरे सरकारी विभागों के काम-काज का स्तर सुधरता. सरकारी आंकड़े ही बता रहे हैं कि राज्य के पुलिस विभाग में 2.18 लाख पद खाली हैं. शिक्षकों के 2.78 लाख पद रिक्त हैं. 6,000 से ज्यादा डॉक्टरों की कमी है, सरकारी अस्पतालों में एक हजार के करीब पैरामेडिक स्टाफ की जरूरत है.
राज्य के गृह और पुलिस विभाग के अधिकारी बताते हैं कि पुलिस विभाग को नई नियुक्तियों और प्रशिक्षण सुविधाओं की सख्त जरूरत है
वित्त विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘खाली पदों पर नियुक्ति से भी कोष पर बोझ तो पड़ेगा पर यह ऐसा बोझ है जिसके बारे में आपको पता है कि यह पड़ना ही है. सबको मालूम है कि कोई व्यक्ति नौकरी पर लगता है तो उसे वेतन और भत्ते दिए जाते हैं. जबकि बेरोजगारी भत्ता निश्चित रूप से राज्य के करदाताओं पर अतिरिक्त बोझ है. पर यह राजनीतिक फैसला है और हमारा काम है इस फैसले को लागू करना.’ ‘राजनीतिक फैसला’ शायद वह शब्द है जिसके बाद तर्क बेमानी हो जाते हैं. नहीं तो पुलिस जैसे महत्वपूर्ण विभाग में स्टाफ की कमी को कैसे अनदेखा किया जा सकता है? मानक कहता है कि प्रति लाख जनसंख्या पर 191 पुलिसकर्मी होने चाहिए. लेकिन हैं सिर्फ 75. यानी 116 पद रिक्त हैं. पूरे प्रदेश में हेड कॉन्सटेबल के 58, 794 पद स्वीकृत हैं जबकि 44,177 पद खाली पड़े हैं. इसी तरह कॉन्सटेबल के 2.5 लाख पद हैं लेकिन 1.65 लाख रिक्त हैं. स्पेशल टास्क फोर्स और एंटी टेररिस्ट स्क्वाड जैसे महत्वपूर्ण दस्ते भी स्टाफ की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं.
स्वास्थ्य विभाग की भी यही दशा है. पूरे राज्य में 14,103 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं पर 5,621 पदों ने आज तक डॉक्टरों का मुंह ही नहीं देखा. इसी तरह मेडिकल स्टाफ की भी तंगी है. 7,000 के करीब नर्स, मिडवाइफ, फार्मासिस्ट, लैब टेक्नीशियन और एक्स-रे टेक्नीशियन की जरूरत है. राज्य के गृह और पुलिस विभाग के अधिकारी बताते हंै कि पुलिस विभाग को नई नियुक्तियों और प्रशिक्षण सुविधाओं की सख्त जरूरत है. गृह विभाग के मुख्य सचिव आरएम श्रीवास्तव कहते हैं, ‘नियुक्ति, सेवानिवृत्ति और मुकदमेबाजी साथ-साथ चलने वाली चीजें हैं. हम एक योजना बना रहे हैं कि नई नियुक्तियों के लिए प्रक्रिया में ज्यादा समय न लगे. प्रशिक्षण सुविधाओं में सुधार एक और चुनौती है. हमारे मौजूदा पांच प्रशिक्षण केंद्रों में फिलहाल हर साल 8,000 पुलिसकर्मी प्रशिक्षित किए जा सकते हैं.’
राज्य के कैबिनेट ने पहले ही बेरोजगारों को भत्ता दिए जाने के फैसले पर अपनी सैद्धांतिक सहमति दे दी थी. अब मसला अटका है इसकी बारीकियों का निर्धारण करने में. मसलन इसके लिए अधिकतम और न्यूनतम उम्र क्या होगी, लाभान्वितों की संख्या क्या होगी, लाभार्थियों की अर्हता क्या होगी आदि. श्रम विभाग के मुख्य सचिव शैलेश कृष्ण कहते हैं, ‘फिलहाल तो आयु सीमा 35 वर्ष सोची जा रही है. लेकिन यह इससे ज्यादा भी हो सकती है. आयु सीमा से ही फैसला होगा कि इस योजना से कितने लोगों को फायदा होगा. अभी माना जा रहा है कि यह आंकड़ा करीब दस लाख होगा. ‘ उत्तर प्रदेश के रोजगार कार्यालय जो श्रम मंत्रालय के अधीन आते हंै, उन सभी लोगों का पंजीकरण करते हैं जिनकी उम्र 14 साल से ऊपर हो. हालांकि ऐसे लोग 18 साल की अवस्था के बाद रोजगार के लिए योग्य होते हैं. पंजीकृत लोगों में अशिक्षित, डिग्रीधारी और तकनीकी शिक्षा प्राप्त सभी तरह के लोग होते हैं.
आयु सीमा और पारिवारिक आय जैसे मानकों के अलावा सरकार लाभान्वितों से कुछ स्वैच्छिक काम कराने के बारे में भी सोच रही है. ‘हमारी सोच है कि बेरोजगारों को कुछ कामकाज का अनुभव दिया जाय जिससे सरकार को फायदा हो. लाभान्वितों को जो काम दिया जाएगा वह अस्थायी और व्यक्ति की योग्यता के हिसाब से होगा, ‘गृह विभाग के एक अन्य अधिकारी कहते हैं. इसके तहत आंकड़े इकट्ठा करना, आंकड़ों की एंट्री करना आदि शामिल है. 15 मार्च को कैबिनेट की संस्तुति के बाद यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि बजट के दौरान इस योजना की हवा निकल सकती है. फिलहाल सरकार ने इस मद में 1,100 करोड़ रुपये का प्रावधान करके इस योजना को आगे बढ़ाने का मार्ग खोल दिया है. इस बीच सरकार की इस लोकलुभावन योजना का काफी विरोध भी हुआ है. विपक्ष का आरोप है कि मुख्यमंत्री जनता को लॉलीपॉप थमा कर भरमा रहे हैं. उनका ध्यान सिर्फ 2014 के लोकसभा चुनाव पर टिका है. बेरोजगारी की समस्या की जड़ में जाने की न तो उनकी योजना है और न ही समय. तमाम विरोधों और आलोचनाओं के बावजूद राज्य के युवा मुख्यमंत्री अपने घोषणा पत्र में किए गए वादे को पूरा करने के लिए दृढ़संकल्प हैं. अखिलेश कहते हैं, ‘हमारी सोच स्पष्ट है. बेरोजगारों की सहायता करके हम लोकलुभावन राजनीति नहीं कर रहे. बेरोजगारी की समस्या हमारी कल्पना से कहीं ज्यादा गंभीर बन गई है.’ अपनी बात रखते समय वे यह कहना नहीं भूलते कि बेरोजगारी भत्ता देने का यह अर्थ नहीं है कि वे खाली पड़े पदों को भरने की दिशा में नहीं सोच रहे. वे कहते हैं, ‘राज्य में डॉक्टरों, शिक्षकों और पुलिसकर्मियों की भर्ती शुरू करने की प्रक्रिया पहले से ही शुरू कर दी गई है.’