आज विश्व भर में जो अराजकता फैली हुई है। लोग एक-दूसरे के दुश्मन बने बैठे हैं, उसकी एक बड़ी वजह यह है कि लोगों ने धर्मों (मज़हबों) को पढ़ा नहीं है; और अगर कुछेक ने पढ़ा है, तो उनमें से अधिकतर ने उस पर अमल नहीं किया। क्योंकि जो धर्म को पढ़ते हैं, वो लोगों के धर्म-गुरु कहलाते हैं। अर्थात् ये लोग लोगों को धर्म के रास्ते पर आगे लेकर बढ़ते हैं। लेकिन हमारे इन धर्म-गुरुओं ने न केवल धर्म में वर्णित अच्छी शिक्षाओं को और धर्म के सत्य को हमसे छुपाया है, बल्कि हमें सत्य के मार्ग पर जाने से रोककर लगातार हमें भटकाया है।
इतना ही नहीं, जिन धर्मगुरुओं ने हमें सत्य का मार्ग दिखाया है, उन्हें भी इन स्वार्थी तथाकथित धर्मगुरुओं ने हमारे सामने अधर्मी और ग़लत सिद्ध करने का निरंतर प्रयास किया है। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि ईश्वर से मिलने का सच्चा मार्ग बताने वालों को ऐसे लोगों ने मृत्युदण्ड तक दिया है।
इसीलिए मैं कहता हूँ कि ये ईश्वर को बाँटने वाले धर्म के ठेकेदार धर्मगुरु नहीं हो सकते। लोगों को जितनी जल्दी हो सके, ऐसे अधर्मियों-पाखण्डियों से दूरी बना लेनी चाहिए, जो भाषाओं और धर्म-ग्रन्थों का सहारा लेकर ईश्वर को बाँटने की मूर्खता करने की आड़ में उसके पुत्रों को बाँट रहे हैं। क्योंकि ईश्वर तो एक है। और दुनिया के किसी भी इंसान में वह ताक़त नहीं, जो ईश्वर को बाँटना तो दूर, उसकी किसी अनश्वर संरचना को भी बाँट सके या उसके टुकड़े कर सके।
लोग मूर्खता और भ्रम-वश एक ही ईश्वर को अलग-अलग समझते हैं। लेकिन क्या इससे सत्य बदल जाएगा? कभी नहीं। रही धर्म-ग्रन्थों की बात, तो हर धर्म-ग्रन्थ इस बात की पुष्टि करता है कि ईश्वर एक है और हर इंसान समान है।
ऋग्वेद के खण्ड पाँच (5) के 60वें सूक्त का पाँचवाँ मंत्र कहता है – ‘अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते संभ्रातरो वावृधु: सौभाग्य।‘-(ऋ ग्वेद 5/60/5)
अर्थात् ईश्वर कहते हैं कि ‘हे संसार के लोगो! न तो तुममें कोई बड़ा है और न छोटा। तुम सब भाई-भाई हो। इसलिए सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मिलकर आगे बढ़ो।‘
अथर्ववेद के तीसरे काण्ड के 30वें सूक्त के पहले मंत्र में कहा गया है – ‘सह्रदयं सांमनस्यमविद्वेषं कृणोमि व: ।
अन्यो अन्यमभि हर्यत वत्सं जातमिवाघ्न्या।।‘ -(अथर्व0 3/30/1) अर्थात् ‘मैं तुम्हारे लिए एकहृदयता, एकमनता और निर्वेरता करता हूँ। एक-दूसरे को तुम सब और प्रेम से चाहो, जैसे न मारने योग्य गाय उत्पन्न हुए अपने बछड़े को प्रेम करती है।‘
इसी तरह क़ुरआन में कहा गया है कि ‘अल्लाह एक है। ऐ ईमान वालो! तुम इंसाफ़ की निगरानी करने वाले बनो। ऐसा न हो कि किसी गिरोह की शत्रुता तुम्हें इस बात को मजबूर कर दे कि तुम इंसाफ़ करना छोड़ दो। इंसाफ़ करो। यही मज़हब से अधिक निकट है। अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह को उसकी ख़बर है। -(सूरह 8:5) तुम यतीम पर सितम मत करना। -(सूरह 93:9)माँगने वालों को झिड़क मत देना। -(सूरह 93:10) अपने परवरदिगार की नेअमतों का जि़क्र करते रहना। -(सूरह 93:11) भलाई और बुराई समान नहीं है। तुम बुरे आचरण और बुराई को अच्छे-से-अच्छे आचरण के द्वारा दूर करो। फिर क्या देखोगे कि वही व्यक्ति, जिसे तुम बैरी समझ रहे थे; वह तुम्हारा वह कोई घनिष्ठ मित्र है।‘ -(सूरह 41:34)
इसी तरह ईसाई और यहूदी धर्म एक ईश्वर, आपसी प्रेम और पाप से दूर रहने पर ज़ोर देते हैं। भारत में दुनिया के सर्वाधिक धर्मों के लोग रहते हैं। लेकिन सभी धर्मों का मूल यही है कि ईश्वर एक है। सभी से प्रेम करो और पाप मत करो। इसके बावजूद लोगों में अगर खटास पड़ी हुई है, तो उसके पीछे वे धर्मगुरु हैं, जो धर्म संसद लगाकर आपस में तो एक साथ बैठते-उठते हैं। एकता की चर्चा करते हैं। आपस में एक साथ भोजन भी करते हैं। लेकिन जब अपने-अपने धर्मों के लोगों को शिक्षाएँ देते हैं, तो यह नहीं सिखाते कि दूसरे धर्म के लोग आपके ही भाई हैं। क्योंकि हम सबका ईश्वर एक है, जिसे न वे बाँट सकते हैं और न हम। ये धर्म गुरु अपने अनुयायियों से यह नहीं कहते कि किसी भी प्राणी के प्रति मन में बैर पालने से तुमसे ईश्वर नाराज़ हो जाएगा; बल्कि कई तो यह सिखाते हैं कि तुम अगर दूसरे धर्म के व्यक्ति को अपने धर्म में शामिल कर लोगे, और अगर वह ऐसा नहीं करता है, तो उसे मार दोगे, तो तुम्हारा ईश्वर तुमसे ख़ुश होगा, तुम्हें स्वर्ग प्रदान करेगा। इन मूर्खों से कोई यह कभी नहीं पूछता कि जिस ईश्वर ने सभी को जीवन दिया है, उसका जीवन ले लेने से वह परमपिता हमसे कैसे ख़ुश हो सकता है?
मेरा मानना है कि जब कोई व्यक्ति एक निष्पाप या निर्दोष शरीर की केवल इसलिए हत्या करता है कि वह शरीर उसके धर्म को नहीं मानता, तो वह केवल उस शरीर की हत्या नहीं करता, बल्कि अपने अन्दर की इंसानियत की हत्या करता है। ईश्वर की रचना की हत्या करता है। सत्य की हत्या करता है। एक सहोदर की हत्या करता है; और अपने अन्दर एक महापाप को जन्म देता है, जिससे वह कभी मुक्त नहीं हो सकता। ईश्वर की नज़र में वह अपराध कर चुका है। दुनिया में कितने ही लोगों ने धर्म के नाम पर ऐसी हत्याएँ की हैं।
हज़ारों साल से कई धर्मों के बीच ऐसे युद्ध होते आये हैं, जिनसे सिवाय मानव क्षति के और कुछ हासिल नहीं हुआ है। लेकिन धर्म के नाम पर लडऩे-कटने वाले अपनी एक धार्मिक किताब को छोड़कर आज तक यह नहीं बता पाये कि उनका वास्तविक धर्म क्या है? क्योंकि ये धर्म से भटके हुए लोग हैं।