यह दुखद है कि भगवान का अपना देस अभी हाल की प्रचंड बाढ़ में बर्बाद हुआ। अब इस पर धर्म के नाम पर निहायत गरीब प्रदेश ही बने रहने का दबाव है। यहां के लोगों को वोट की राजनीति के चलते जाति, वर्ग,लिंग और धर्म के आधार पर बांटने में तमाम राजनीतिक दल अपने वोट पाने की खातिर जुट गए हैं।
देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने देश में कभी सबसे ज़्यादा पढ़े-लिखे राज्य की आधी आबादी को सबरीमाला परिसर में जाने और मंदिर में दर्शन करने के आदेश दिए थे। अदालत ने चाहा था कि माहवरी में भी यदि महिला है और वह मंदिर जाना चाहे तो उसे जाने दिया जाए। सबरीमाला मंदिर के पुजारी चाहते हैं कि सदियों से चली आ रही परंपरा है कि किसी अशुद्ध महिला को मंदिर में प्रवेश न करने दिया जाए। यह कानून भगवान अय्यप्पा के नाम पर पुजारी कहते रहे हैं। उन्होंने इसके पीछे तर्कों का जो मसाला बनाया है, उसमें महिलाओं में धर्म के प्रति आस्था, विश्वास, तर्क, उनकी उर्वर क्षमता, धार्मिक पितृत्व निषेध, लिंगीय असमानता और जाति आदि तर्क हैं। इनके चलते जहां मीडिया में टीवी, अखबारों में सार्थक बहस नहीं दिखी वहीं प्रगतिशील विचारों की पार्टियों ने अपनी वोट राजनीति के चलते अपना मुंह नहीं खोला।
अदालत ने महिलाओं पर लगी पाबंदियों को खारिज कर दिया। उसके विरोध में ऊँची जातियों की महिलाएं और पुरूष सड़कों पर आ गए। जाहिर है उनके पीछे कोई ताकत है। इस हो हल्ले के कारण निचली जातियों में भी अब खासा विभाजन हो गया है। यही भाजपा-आरएसएस परिवार चाहता रहा है। जिससे एक दिन केरल प्रदेश में उनकी सरकार बने। एक देश,एक दल, एक राज की कामयाबी केरल से ही संभव है।
अदालत ने पाबंदी हटाने की वजहें गिनाते हुए कहा था कि शताब्दियों पुरानी परंपरा को श्रद्धा का हिस्सा नही माना जा सकता। इस लिंग भेद को आधार मान कर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कानून और संविधान के आधार पर सभी पक्षों की बातें सुनकर अपना फैसला लिया। सबसे बड़ा खतरा अब आस्था और धार्मिकता का है।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की सहयोगी संस्था स्वदेशी जागरण मंच के लोगों ने एपेक्स कोर्ट को यह कहते हुए चेताया कि केरल में पिछले दिनों आई बाढ़ की वजह भी अदालत का यह फैसला था कि सबरीमाला में दस से पचास साल की उम्र तक की किशोरियां और महिलाएं मंदिर में प्रवेश कर सकती हैं।
इसे सांप्रदाियक धार्मिक राजनीति या अंधविश्वास कहें, अदालत के फैसले के बाद राज्य में हुई घटनाओं को धर्म के अंध भक्तों ने जनता में गलत तरीके से प्रचारित किया। लेकिन राज्य में शासन संभाल रहीं वाम मोर्चा सरकार ने कुछ भी नहीं किया। कोल्लम जि़ले में एक मलयाली फिल्म अभिनेता और भाजपा सदस्य ने विरोध मार्च में शामिल एक महिला से कहा कि,’यदि मंदिर में प्रवेश किया तो दो हिस्सों में तुम्हें चीर देंगे। एक हिस्सा केरल के मुख्यमंत्री को भेज देंगे जो सबरीमाला रक्षा रैली में भाषण देता रहा है और दूसरा हिस्सा दिल्ली भेज देंगेÓ।
अय्यप्पा धर्म सेना के अध्यक्ष राहुल ईश्वर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से देव प्रतिमा की आत्मा की बेचैनी बढ़ गई है। त्रवणकोर देवासम बोर्ड जो मंदिर की देखरेख करता है उसके पूर्व अध्यक्ष गोपाल कृष्ण ने कहा कि यदि सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की लड़कियां और अधेड़ आने लगी तो यह थाईलैंड जैसा बन जाएगा। थाईलैंड कहने से उनका आशय क्या था यह तो वही साफ करें। लेकिन उन्होंने यह ज़रूर कहा कि मंदिर में महिला प्रवेश हुआ तो भगवान अय्यप्पा की ताकतें क्षीण हो जाएगी। सवाल है कि भगवान क्या इतने कमज़ोर हो सकते है? उन्होंने यह चेतावनी दी कि मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बीहड़ जंगल के बीच से जाता है। महिला भक्तों को बाघ या आदमी उठा ले जा सकता है। ये सारे वे बयान हैं जो भगवान अय्यप्पा और उनके भक्तों को अपमानित भी करते हैं। अभी हाल में शिवसेना की केरल इकाई ने चेतावनी दी कि यदि कोई युवा महिला मंदिर में जाने का दुस्साहस करेगी तो हमारे कार्यकर्ता आत्महत्या कर लेंगे। यह कहना था सेना के सदस्य पेरिंगमाला अजी का।
कंाग्रेस और भाजपा इस मुद्दे पर एकमत हैं कि युवा स्त्रियों को मंदिर में नहीं जाने दिया जाए। कांग्रेस उदार हिंदुत्व का अपना मुखौटा छोडऩा नहीं चाहती और भाजपा भक्तों में विभाजन करके धु्रवीकरण का हर संभव प्रयास कर रही है। उधर राज्य में सरकार चला रहे वामपंथियों के सामने आगामी चुनावों में वोट न गंवाने की चाह है।
केरल में हिंदू वोट गंवाने की हिम्मत अब वाममोर्चा में नहीं है। इसलिए वह बड़े संतुलित तरीके से चलने की कोशिश में है। जबकि भाजपा उसका संतुलन बिगाडऩे पर पूरी तरह आमादा है। जिससे मंदिर में हिंसा हो तो राज्य में उस पार्टी को बदनाम किया जा सके। भाजपा अदालत के फैसले को आधार बनाते हुए परंपरा, आस्था के नाम पर पुजारियों, बड़ी जातियों को साथ लेकर सबरीमाला मंदिर में जबरदस्त विवाद जारी रखने में कामयाब रही। अब उसे पूरी उम्मीद है कि राज्य के हिंदू उसके साथ हो जाए।
सबरीमाला मंदिर आंदोलन पूरी तौर पर अंधविश्वास और राजनीति का केंद्र बना हुआ दिखा। यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।