एक दौर था जब उत्तर –प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों और क्षत्रियों का बोलबाला रहा है। इन दोनों जातियों के नेताओं की कांग्रेस में अच्छी पकड भी रही है । कांग्रेस में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय में ब्राह्मणों और क्षत्रियों का वोट एक मुश्त कांग्रेस में जाता रहा है। फिर समय ने ऐसी करवट ली कि 1990 में भाजपा के उदय होने से और 1992 में राममंदिर आंदोलन के दौरान ब्राह्मणों और क्षत्रियों का सीधा झुकाव भाजपा की ओर आ गया ।बताते चले उत्तर –प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के आने के बाद ब्राह्मणों के वोटों का बंटबारा इस कदर हो गया कि ब्राह्मण मतदाता उपेक्षित माना जाना लगा। मुलायम सिंह यादव जरूर समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया को मानते रहे है। उनके साथी रहे जो छोटे लोहिया के नाम से जाने जाते रहे जनेश्वर मिश्रा को मानते रहे और उनके नाम पर ही ब्राह्मणों को मान –सम्मान देते रहे है। लेकिन समाजवादी पार्टी में ब्राह्मणों का कोई खास वर्चस्व नहीं रहा है। लेकिन आज की राजनीति में हिदुत्व की राजनीति का जो खेल -खेला जा रहा है । उसमें कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं रहना चाहता है। जानकारों का कहना है उत्तर – प्रदेश में ब्राह्मण 17 से 18 प्रतिशत है । जो किसी भी राजनीतिक दल के निर्णोयक हो सकते है। ऐसे में अब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ब्राह्मणों को अपने पक्ष में लुभाने के लिये ब्राह्मणों को साधने का दांव चला है। इसी क्रम में अखिलेश यादव ने भगवान परशुराम की 108 फुट ऊंची प्रतिमा लगवाने की घोषणा की है।ऐसा नहीं है कि बहुजन समाज पार्टी ने ब्राह्मणों को साथ लेकर राजनीति ना की हो ,बसपा प्रमुख मायावती ने 2007 के उत्तर – प्रदेश के विधान सभा चुनाव में बसपा में मायावती के बाद अगर कोई हैसियत रखता है तो सतीश मिश्रा के साथ मिलकर ब्राह्मण और दलित गठजोड कर पूर्ण बहुमत के साथ 2007 में मायावती उत्तर – प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थी। लेकिन 2012 आते ही उत्तर – प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण मतदाता बसपा से खिसक गया था। 2012 में सपा की सरकार बनी और प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बन गये थे।फिर देश की राजनीति एक नया बदलाब 2014 के लोकसभा के चुनाव में देखने को मिला।भाजपा ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बने ।भाजपा ने ये मैसेज दिया कि भाजपा को अन्य जातियों के साथ – साथ ब्राह्मणों का शत-प्रतिशत वोट मिला। फिर 2017 के उत्तर –प्रदेश के चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज कर योगी आदित्य नाथ की सरकार बना कर ये मैसेज दिया है कि भाजपा के साथ ब्राह्मण मतदाता आज भी गर्व के साथ जुडा है और जुडा रहेगा।
उत्तर –प्रदेश की राजनीति के जानकार विनोद शुक्ला का कहना है कि उत्तर –प्रदेश का इतिहास रहा है कि यहां पर किसी भी पार्टी की सरकार रही हो पर अगले चुनाव तक यहां का मतदाता किसी भी पार्टी या जाति का हो पर वो परिवर्तन के नाम पर खिसक जाता है। अब रहा सवाल ब्राह्मणों के वोट बैंक में सेंध लगाने का तो ये तो आने वाला ही समय बताएगा कि ब्राह्मण मतदाता एक मुश्त किस पार्टी के साथ जाता ये बंटता है फिलहाल उत्तर –प्रदेश के विधानसभा चुनाव में 2022 में है।