बैंड, बाजा और भजन से राजनीति

Diggi
अपनी राजनीतिक बयानबाजी की वजह से कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह हमेशा सुर्खियों में रहे हैं। अपने गुरु अर्जुन सिंह की तरह उनका भी प्रिय शगल है संघ परिवार पर गाहे-बगाहे निशाना साधना। आश्चर्य नहीं कि वे हमेशा भगवा ताकतों के निशाने पर रहे हैं। उनकी छवि हमेशा हिन्दू विरोधी नेता की है।
पर बहुत कम लोगों को मालूम है कि वास्तविक जीवन में वे एक कट्टर धार्मिक व्यक्ति हैं, कर्मकांडी और पूजा-पाठी हिन्दू। जब वे दस वर्षों तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो अक्सर उनके बारे में मजाक चलता था कि मध्य प्रदेश की समस्त स्त्रियाँ मिलकर भी उतने उपवास नहीं रख सकतीं जितना अकेले दिग्विजय सिंह रखते हैं। मुन्नू को (यह घर में उनके दुलार का नाम था) धार्मिक संस्कार विरासत में उन्हें अपनी मां से मिले थे। उनके एक रिश्तेदार बताते हैं, ‘ब्रह्म मुहूर्त में तड़के उठाकर अपने राघोगढ़ किले में वे भजन प्रारम्भ कर देती थीं।Ó
विधि-विधान में जितने उपवास बताए गए हैं, लगभग सब के सब वे रखते हैं। लगभग हर साल वे वृन्दावन में गोवर्धन परिक्रमा करते हैं। मुख्यमंत्री रहते तो एक दफा वे पूरे मंत्रिमंडल को अपने साथ गोवर्धन परिक्रमा पर ले गए थे। 24 किलोमीटर पैदल चलने के बाद उनके कई सहयोगी पाँव में छालों की वजह से कई दिन तक लंगड़ाते रहे थे। छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित बमलेश्वरी मंदिर सहित ज्य़ादा से ज्य़ादा प्रमुख देवी मंदिरों तक नवरात्रि के दौरान पहुँचने की वे कोशिश करते हैं। वे अक्सर महाराष्ट्र के पंढरपुर की तीर्थ यात्रा पर जाया करते हैं।
30 सितम्बर को दशहरे के दिन से दिग्विजय सिंह एक और तीर्थ यात्रा पर निकले हैं। वे पैदल चलते हुए नर्मदा परिक्रमा कर रहे हैं, नदी के दोनों किनारों की 3,800 किलोमीटर की पदयात्रा।. सत्तर साल के दिग्विजय के लिए शायद उनके जीवन की यह सबसे विकट और विवादास्पद तीर्थयात्रा है। इस यात्रा के लिए उन्होंने राघोगढ़ किले में अपने खानदान का पारंपरिक दशहरा पूजन भी इस साल, शायद पहली दफा, नहीं किया। दिग्विजय राजपूत जागीरदार ठिकाने से आते हैं और इसके पहले अपने किले की पारंपरिक शस्त्र पूजा उन्होंने शायद ही कभी छोड़ी हो। इस यात्रा के लिए उन्होंने कांग्रेस के महासचिव पद से बाकायदा छह महीनों की लम्बी छुट्टी ली है। साथ में चल रही हैं, उनकी 45-वर्षीय पत्नी अमृता राय, जिन्होंने यात्रा पर जाने के लिए टीवी पत्रकार की अपनी नौकरी छोड़ दी।
राजा साहेब, जैसा कि उनके समर्थक उन्हें संबोधित करते हैं, इस बात से इंकार करते हैं कि इस बहुचर्चित तीर्थ यात्रा के पीछे कोई राजनीतिक मकसद है। वे इसे नितांत आध्यात्मिक और धार्मिक यात्रा बताते हैं। पर लोग इसे मानने को तैयार नहीं। ‘यह विशुध्द राजनीतिक यात्रा है,Ó पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने कहा। बीजेपी में होने के बावजूद गौर राजा साहेब के मित्रों में शुमार किये जाते हैं।
अध्यात्म एक व्यक्तिगत और निजी मामला है, पर दिग्विजय की यात्रा न व्यक्तिगत है, न ही निजी। उनके साथ अच्छी-खासी भीड़ चल रही है। बड़े-छोटे कांग्रेसी नेता जगह-जगह पर यात्रा में शामिल होकर उनका उत्साह बढ़ा रहे हैं। रास्ते में पडऩे वाले गांव-कस्बों और शहरों में उनका स्वागत हो रहा है।. पोस्टर और बैनर लगाये जा रहे हैं। वंदनवार सज रहे हैं। रंगोली बन रही है। औरतें आरती की थाली और सिर पर मंगलकलश लेकर स्वागत में खड़ी रहती हैं। कई जगह बैंड-बाजा और भजन पार्टियाँ साथ चलती हैं। खाने-पीने का इंतजाम रहता है।
स्वागत और हौसला अफजाई के लिए आ रही इस भीड़ में खासी तादाद कांग्रेसियों की है क्योंकि सफर पर निकलने के पहले दिग्विजय सिंह ने नर्मदा अंचल में अपने संपर्क सूत्रों को खबर की थी। जाहिर है उनमें से ज्य़ादातर कांग्रेसी थे। साल भर बाद मध्य प्रदेश में विधान सभा चुनाव होने जा रहे हैं। स्वागत के लिए आने वालों की भीड़ में काफी टिकटार्थी भी अपने समर्थकों के साथ शामिल हो रहे हैं।
दिग्विजय राजनीतिक सवालों पर चुप्पी ओढ़े रहते हैं। लेकिन खेत-खलिहानों और गांव-जवारों में मिलने वाले लोगों से, खासकर खेतिहर मजदूरों और किसानों से वे सुख-दु:ख की बातें करते हैं। कच्ची सड़कों, पगडंडियों और अक्सर घुटने-घुटने पानी से गुजरते हुए यह यात्रा उन इलाकों तक भी पहुँच रही है जहाँ नेता केवल वोट मांगते वक्त पहुँचते हैं। कई लोग उन्हें अपनी व्यक्तिगत या इलाके से सम्बंधित समस्याओं के बारे में दरखास्त थमाते देखे जा सकते हैं।
साथ में चल रही एक टीम मिनटों में यात्रा के फोटो और विडियो इन्टरनेट पर अपडेट करते रहती है। यह टीम इलाके की सामाजिक और आर्थिक स्थिति भी रिकॉर्ड इकठ्ठा कर रही है। मध्य प्रदेश के 110 और गुजरात के 20 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरते हुई यह यात्रा छह महीने बाद जब समाप्त होगी तो इस इलाके की अंदरूनी राजनीतिक स्थिति का पूरा खाका दिग्विजय सिंह के दिमाग में होगा। एक दिलचस्प पहलू यह है कि जब तक यह यात्रा गुजरात में प्रवेश करेगी, वहां चुनाव प्रचार शबाब पर होगा।
इस तीर्थ यात्रा के असली मकसद में झाँकने के लिए हमें राजनीति को खंगालना होगा। जिस वक्त दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस महासचिव के पद से छुट्टी के लिए दरखास्त दी थी, वह उनके जीवन के कठिनतम समयों में से एक था। उनका सितार अस्त हो रहा था। गोवा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के बावजूद पार्टी वहां सरकार नहीं बना पाई थी। राज्य के पार्टी प्रभारी के नाते उनकी थू-थू हो रही थी। सारे दुश्मन हावी होने लगे थे। उनके मित्रों को भी उनका राजनीतिक अस्त सामने दिख रहा था।
नर्मदा मैय्या ने उस हालत में से दिग्गी राजा को उबार लिया है।
यात्रा का एक और राजनीतिक पहलू है ….. नर्मदा के किनारे जन्मे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की हाल में संपन्न हुई 145-दिवसीय नर्मदा सेवा यात्रा। हालाँकि चौहान हेलीकाप्टर पर सवार होकर नर्मदा यात्रा पर निकले थे, पर उनकी यात्रा का मकसद भी राजनीतिक ही ज्य़ादा था। मध्य प्रदेश सरकार ने उस यात्रा पर 40 करोड़ रूपये खर्च किये। उस उत्सवधर्मी यात्रा में शिरकत कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और दलाई लामा से लेकर पीनाज मसानी और अनूप जलोटा जैसी तमाम हस्तियों ने उसे रंगारंग बनाया था। बाबूलाल गौर ने उसे ‘शाही यात्राÓ करार दिया था।
मध्य प्रदेश सरकार अपने 52 शहरों का मलजल अभी भी नर्मदा में बहा रही है, नदी का प्रदूषण वैसे ही है, बालू लूटा जा रहा है, अतिक्रमण से कैचमेंट सिकुड़ रहा है और पेड़ वैसे ही कट रहे हैं. पर नमामि देवी नर्मदे अभियान प्रारंभ कर शिवराज सिंह ने नर्मदा पुत्र होने की वाह-वाही जरूर लूट ली।
राजनीतिक विश्लेषकों का ख्याल है कि दिग्विजय सिंह की यात्रा ने सरकारी नर्मदा यात्रा का रंग फीका कर दिया है। इलाके के लोग कह रहे हैं कि किसान पुत्र शिवराज तो हेलीकाप्टर से उड़कर आये थे पर राजा साहब अपनी रानी के साथ पाँव-पाँव चलकर आ रहे है। चौहान के सलाहकार इस बात को नोट कर रहे हैं कि दिग्विजय की यात्रा उन्ही देहाती इलाकों से गुजर रही है जो शिवराज सिंह का वोट बैंक समझे जाते हैं। सरकार में बैठे लोग इस यात्रा को दिलचस्पी से देख रहे हैं क्योंकि वे इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि दिग्विजय सिंह पूरे राज्य में प्रभाव रखने वाले एकमात्र कांग्रेसी नेता हैं।
दिग्विजय की यात्रा का हौवा इस कदर छा गया है कि राज्य सरकार कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती। दो उदाहरण- दिग्विजय सिंह ने अपनी यात्रा के दौरान मांग की कि परिक्रमा के रास्ते में यात्री विश्रामालय बनाये जाने चाहिए। राज्य कैबिनेट ने अगली मीटिंग में ही 92 विश्रामालय और 190 घाट बनने की घोषणा कर दी। उदहारण, दो- शिवराज सिंह ने अपनी नमामी देवी नर्मदे पर फिल्मकार प्रकाश झा से एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनवाई थी। दो करोड़ रुपये की लागत से बनवाई गयी 45 मिनट की यह फिल्म अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में रिलीज होनी थी। उसका प्रेस नोट भी तैयार हो गया था, पर ऐन मौके पर फिल्म को इसलिए वापस डिब्बे में बंद कर दिया गया क्योंकिं मुख्यमंत्री के सलाहकारों का ख्याल था कि अभी रिलीज होने से दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा को और पब्लिसिटी मिल जाएगी। अब यह फिल्म देखने के लिए शायद अगले साल अप्रैल तक इन्तजार करना पड़े।
द्यद्गह्लह्लद्गह्म्ह्यञ्चह्लद्गद्धद्गद्यद्मड्ड.ष्शद्व

जिसके दर्शन मात्र से पाप कटते हैं
श्रद्धा और आस्था से ओत-प्रोत हजारों व्यक्ति हर साल नर्मदा जी की कठिन यात्रा पर निकलते हैं। वही नर्मदा जिसके बारे में हिन्दुओं में मान्यता है कि उसके दर्शन मात्र से पाप कट जाते हैं। नर्मदा परिक्रमा के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहलू को समझना हो तो साहित्यकार अमृतलाल वेगड़ को पढि़ए। 90 साल के वेगड़ 1977 से कई दफा नदी की परिक्रमा कर चुके हैं और इस विषय पर उन्होंने गुजराती और हिंदी में कई सुन्दर किताबें लिखी हैं। अपनी जिन्दगी का लगभग एक-चौथाई समय उन्होंने इसके किनारे की उबड़-खाबड़ पगडंडियों पर पैदल चलते हुए गुज़ारा हैं।
अगर वेगड़ के यात्रा वृतांत को पढने का आपके पास समय नहीं, तो कोई बात नहीं। आप यह छोटा सा किस्सा पढ़ लें। सचमुच का किस्सा।
मध्य प्रदेश के मालवा में कुछ जगहों के नाम इतने संगीतात्मक हैं कि मन में सितार की तरह बज उठते हैं…….. गंधर्वपुरी, तराना, ताल, सोनकच्छ। इन्ही में से एक है क्षिप्रा, इंदौर के पास का एक कस्बा। उस कस्बे के पास से गुजरते हुए पिछले दिनों एक पत्रकार मित्र को एक अनोखा नर्मदा यात्री मिला। भगवा कपड़े पहने उस यात्री की उम्र का अंदाज लगाना मुश्किल था। उसने एक टूटी साइकिल पर 2,600 किलोमीटर लम्बी परिक्रमा करने की ठानी थी। नितांत अकेले। उसकी सारी जमा-पूँजी के साथ-साथ उस साइकिल पर सवार था एक रोबीला जर्मन शेफर्ड कुत्ता। तमाम सामान से लदी फदी उस साइकिल को पैडल मारने में वह अनोखा तीर्थ यात्री भरी दोपहरी में हांफ रहा था। पर उसे यह गंवारा नहीं था कि अपने खास मित्र को वह पैदल चलने कहे।
नर्मदा की पवित्र यात्रा पर कुत्ता क्यों? ‘मेरे पीछे घर पर कौन उसे देखेगा,Ó उसका मासूम जवाब था।
इन दो अनोखे तीर्थ यात्रियों के किस्से से मालूम पड़ता है कि नर्मदा के किनारे बसने वाले लोगों के जीवन में इस नदी का और उसकी परिक्रमा का क्या महत्व हैं। वह कुत्ता और उसका मालिक घर-परिवार से दूर महीनों नर्मदा के किनारे गुजारेंगे। मांग कर खाएंगे। उपले और जलावन इकठ्ठा कर अपना खाना खुद पकाएंगे। जहाँ आश्रय मिला, सो जायेंगे और अगर जगह नहीं मिली तो तारों की छाँव है ही। और साथ में करेंगे नर्मदा मैय्या की पूजा।
नर्मदा की महत्ता इस इलाके में इसलिए है क्योंकि इसके आँचल में पलने वाले लाखों लोगों के लिए यह नदी सदियों से भरण-पोषण का जरिया रही है। इस इलाके की यह एकमात्र नदी है जो कभी सूखती नहीं है। मध्य प्रदेश में अमरकंटक की पहाडिय़ों से निकल कर 1,300 किलोमीटर का सफर तय कर नर्मदा जी जब भरुच (गुजरात) के पास अरब सागर में मिलती हैं तो रास्ते में जीवन बांटते चलती हैं। इसका पानी न केवल मनुष्यों और पशु-पक्षियों के पीने के काम आता है, बल्कि खेतों को सींचता है, कल-कारखाने चलाता है और बिजली पैदा करता है। हजारों मछुआरों के परिवार इसी नदी के सहारे पलते हैं। पूरे इलाके के असंख्य नदी-नाले, तालाब, कुंए और टूयुबवेल इसीकी बदौलत जिंदा रहते हैं।