हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने एक सर्कुलर नंबर आरबीआई/2021-22/37, डीओआर.डीईए.आरईसी.सं. 16/30.01.002/2021-22 जारी किया था। सभी बैंकों को दिये गये आरबीआई के निर्देश ने जमाकर्ताओं के खातों में जमा राशि पर अदावी (दिये जाने वाले) ब्याज को प्रभावित करते हुए हज़ारों करोड़ रुपये के हेरफेर से ढक्कन हटा दिया है, जो कि बेदावा (लावारिस) पड़ा हुआ है और आरबीआई के जमाकर्ता शिक्षा और जागरूकता कोष (डीईएएफ) में स्थानांतरित कर दिया गया है।
इस ख़ुलासे के मुताबिक, क़रीब 82,025 करोड़ रुपये की एक भार-भरकम निवेशक धन राशि बेकार पड़ी हुई है। खातों में पड़े दावा न किये गये इस धन पर एक मज़बूत मामला बनाता है, जिसे बैंकों को पहले ही सार्वजनिक करना चाहिए था। परिवार के सदस्यों के साथ निवेश की जानकारी के आरबीआई के नियम के मुताबिक, यदि 10 साल तक की अवधि के लिए कोई बैंक खाता निष्क्रिय रहता है, तो उस पैसे को डीईएएफ को हस्तांतरित किया जा सकता है। बैंकिंग क़ानून अधिनियम-2012 (संशोधित), जिसमें धारा-26(ए) को सम्मिलित किया गया है; के मुताबिक, बैंकिंग विनियमन अधिनियम-1949 अनुभाग रिजर्व बैंक को सशक्त करता है कि बैंक जमाकर्ता की राशि को डीईएएफ में स्थानांतरित कर सकता है।
कितनी राशि कहाँ पड़ी बेदावा?
1. दावा न किये गये बैंक खातों में 18,381 करोड़ रुपये पड़े हैं।
2. बीमा कंपनियों के पास 15,167 करोड़ रुपये पड़े हैं।
3. निष्क्रिय म्यूचुअल फंड पॉलियों में 17,880 करोड़ रुपये पड़े हैं।
4. आईईपीएफ में 4,100 करोड़ रुपये का लाभांश पड़ा है।
5. भविष्य निधि खातों में 26,497 करोड़ रुपये पड़े हैं।
जीवन अनिश्चितताओं से भरा है और दुर्भाग्य कभी भी आ सकता है। हाल ही में कोरोना वायरस महामारी ने दिखा दिया कि जीवन कितना अप्रत्याशित है। हालाँकि आप बुरे समय की भविष्यवाणी नहीं कर सकते, फिर भी आप निश्चित रूप से अनुमान लगा सकते हैं। इसलिए निवेश के मामले में ऐसे क़दम उठाने चाहिए, ताकि किसी कठिन परिस्थिति से निपटने के लिए आपके क़रीबी आपकी की मदद कर सकें। किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर आपके द्वारा किये गये निवेश का पैसा आपके परिजनों को मिल सके, इसके लिए हमें सभी निवेशों का विवरण अपने परिजनों के साथ साझा करना चाहिए।
दरअसल आरबीआई के चीफ जनरल मैनेजर थॉमस मैथ्यू ने 11 मई, 2021 को सभी बैंकों को एक परिपत्र भेजा था। उन्होंने बैंकों को सलाह दी कि ब्याज वाली जमा राशियों पर देय ब्याज की गणना करें। आरबीआई को हस्तांतरित बैंकों की रिपोर्ट के मुताबिक, 30 जून, 2018 तक चार फ़ीसदी प्रति वर्ष की दर से; 01 जुलाई, 2018 से 10 मई, 2021 तक 3.5 फ़ीसदी और 11 मई, 2021 से तीन फ़ीसदी की दर से भुगतान पर खाताधारकों की दावेदारी बनती है। हालाँकि आरबीआई के आँकड़ों के मुताबिक, खातों में साल-दर-साल जमा होते गये दावा न किये गये धन पर ब्याज राशि में बढ़ोतरी हुई है, जो कि दावा न की गयी सालाना राशि के आधार पर क़रीब 28 फ़ीसदी की वृद्धि के साथ पिछले वर्ष तक 4,307.19 करोड़ रुपये से 18,379.52 करोड़ रुपये तक हो गयी है। आरबीआई के आँकड़ों से पता चलता है कि दावा न की गयी जमाराशियों में दिसंबर, 2019 के अन्त तक क़रीब 34 फ़ीसदी की वृद्धि हुई थी। यह राशि दिसंबर, 2018 के अन्त तक 4.79 करोड़ रुपये और दिसंबर, 2019 के अन्त तक 6.41 करोड़ रुपये थी।
दरअसल हम अपने परिवारों के साथ हमारी दिनचर्या से लेकर जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण निर्णयों तक सब कुछ साझा करते हैं। हम उनके विचार भी लेते हैं; जैसे कि हमें मासिक ख़रीदारी की योजना कब बनानी चाहिए? या छुट्टियाँ बिताने के लिए हमारी अगली यात्रा किस जगह के लिए होनी चाहिए? हालाँकि ज़्यादातर लोग इससे बचते हैं; लेकिन फिर भी अपने सबसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं में से अधिकतर में अपने परिवार को शामिल करते ही हैं।
कई बार कुछ लोग जीवन के काफ़ी अनसुलझे पहलुओं, जैसे- वित्त (धन सम्बन्धी) आदि विषयों पर, जिसमें वे पूरी तरह शामिल होते हैं, तो भी; परिजनों से बहुत गहराई से चर्चा नहीं करते हैं। ऐसे लोग परिवार के सदस्यों के साथ वित्तीय मामलों और निर्णयों पर चर्चा करने को अक्सर महत्त्वहीन और अनावश्यक मान लेते हैं और ऐसे ही लोगों के पैसे जगह-जगह फँसे रह जाते हैं। जैसे- बैंकों में, किसी को दिये क़र्ज़ के रूप में आदि-आदि। लेकिन यह ज़रूरी है कि हम अपने वित्त सम्बन्धी हर पहलू पर परिजनों या परिवार में किसी ख़ास को ज़रूर बताएँ; उसकी सलाह लें।
आपको अपने वित्तीय मामलों पर चर्चा करने की आवश्यकता को पहचानने में निम्नलिखित बिन्दुओं से मदद मिलेगी :-
प्रियजनों के हित में
वित्तीय नियोजन में हमें अपने जीवनसाथी को शामिल करना चाहिए। लेकिन हमारे देश में ज़्यादातर आर्थिक फ़ैसले पैसा कमाने वाले या परिवार का मुखिया ही लेते हैं। इस प्रक्रिया में जीवनसाथी (आमतौर पर पत्नी) के विचारों पर ध्यान में नहीं दिया जाता है।
हो सकता है कि पत्नी या पति के पास वित्तीय ज्ञान या उसमें रुचि न हो। हालाँकि यह अप्रासंगिक हो सकता है। लेकिन अपनी वित्तीय योजनाओं की योजना बनाते या समीक्षा करते समय आपको अपने जीवनसाथी को शामिल करना बेहद ज़रूरी होना चाहिए। क्योंकि हो सकता है कि वित्तीय योजना बनाते समय आपके जीवनसाथी द्वारा दी गयी जानकारी आपके लिए फ़ायदेमंद और आश्चर्यचकित कर देने वाली हो। क्योंकि आपके और आपके जीवनसाथी के अन्तिम लक्ष्य के रूप में बच्चों को शिक्षित करना, उनका करियर बनाना, उनके शादी-विवाह करना, उनके और अपने लिए सेवानिवृत्ति पर ख़र्च और आपात चिकित्सा स्थिति में ख़र्च के लिए बचत करना; यही विकल्प (सामान्य सोच के हिसाब से) होते हैं।
निवेश विवरण साझा करने से आपके जीवनसाथी को आपके द्वारा जमा किये गये धन बारे में पता रहता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि जीवनसाथी इस बारे में जागरूक रहे कि आपका कितना धन कहाँ पर है? इससे वह जमाकर्ता के दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में न रहने पर दस्तावेज़ों या बयानों के आधार पर उसके जमा अथवा किसी को दिये गये धन तक पहुँच सकता है। ऐसे में विकट परिस्थिति में आपकी अनुपस्थिति में जीवनसाथी को दूसरों से पैसे उधार नहीं लेने पड़ेंगे। चूँकि निवेशक या जमाकर्ता की पत्नी या पति की उसके निवेश विवरण तक पहुँच है, इसलिए संकट के समय (विशेषकर निवेशक की मृत्यु के बाद) यह निर्णय उसके परिजनों को संकट मोचक के रूप में मदद कर सकता है।
आपात चिकित्सा की स्थिति में
आपात चिकित्सा स्थिति के समय में निवेशक या उसके किसी प्रियजन की देखभाल और अस्पताल में इलाज के लिए उसके जीवनसाथी या परिजन द्वारा देखभाल करने के लिए बेहतर और प्रभावशाली स्थिति के लिए धन की ज़रूरत होती है। ऐसी स्थिति में उसके द्वारा निवेश किया गया वह धन, जिसकी उन्हें जानकारी है; काम आ सकता है।
अगर किसी ने कोई जीवन बीमा या स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी ले रखी है, तो वह भी चिकित्सा अथवा मृत्यु आदि के समय काम आ सकती है, जो आवश्यक काग़ज़ी कार्यवाही के बाद बीमा कम्पनी उसके द्वारा मनोनीत व्यक्ति (नॉमिनी) को प्रदान करती है।
यदि उसके पास चिकित्सा बीमा पॉलिसी नहीं है, तो उसका जीवनसाथी आसानी से तय कर सकता है कि वह उसके अथवा उसके द्वारा किये गये किन निवेशों से आपात या संकट की स्थिति में ज़रूरी ख़र्च कर सकता है।
नामांकन
नामांकन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें निवेशक किसी व्यक्ति (आमतौर पर परिवार के सदस्य) को नामांकित करता है; जो निवेशक की अनुपस्थिति में उसकी सम्पत्ति का सही दावा करने के लिए ज़रूरी है।
अपनी सभी सम्पत्तियों के लिए परिवार के किसी एक व्यक्ति या जीवनसाथी को नामांकित (नॉमिनेट) करने से आने वाली परेशानी में आसानी होगी। निवेशकर्ता की मृत्यु के मामले में उसके परिजनों या जीवनसाथी को उसके सभी बैंक खातों, निवेशों के बारे में जानकारी होने पर भौतिक सुख और लेन-देन में आसानी होती है। इससे जमाकर्ता के न होने पर उसके जीवनसाथी को किसी भी देनदार या लेनदार द्वारा कभी भी गुमराह नहीं किया जा सकता है।
नामांकन की स्थिति में अगर माता-पिता दोनों को कुछ होता है, तो पैसा निकालने, उसे ख़र्च करने, और चल-अचल सम्पत्ति को अपने नाम कराने या उस पर दावा प्रक्रिया में कोई दिक़्क़त नहीं होती है।
वित्तीय सुरक्षा और स्थिरता
बीमाधारक की मृत्यु के मामले में उसकी सावधि बीमा योजना (टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी) के तहत दावा प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए। अपने बीमा / बीमों का विवरण परिजनों के साथ साझा करने से बीमाधारक के जीवनसाथी और आश्रित परिवार को मज़बूत रखने में मदद मिलती है। इसलिए बिना किसी देरी के निवेशकर्ता को अपने परिजनों और ख़ासकर जीवनसाथी को वित्तीय सुरक्षा देने के लिए सभी निवेशों, बीमा योजनाओं की जानकारी दे देनी चाहिए।
इससे निवेशकर्ता के जीवनसाथी के नाम पर उसके न रहने पर या शारीरिक अपंगता के समय में उसके अपने निवेश को आसानी से स्थानांतरित कर दिया जाता है, ताकि वह उसका ज़रूरत पर उपयोग कर सके। इसके अलावा परिवार में स्थितरता लाने और उसे मज़बूत करने के लिए निवेश सूची का जीवनसाथी को पता होना उसके और परिवार के लिए एक बेहतर स्थिति साबित हो सकती है।
बच्चों में जागरूकता पैदा करें
आपमें से कई लोगों ने यह अनुभव किया होगा कि आज की पीढ़ी बहुत बुद्धिमान है और अपने जिज्ञासु कौशल के कारण तेजी से सीखने वाली है। आज स्कूल बच्चों को व्यक्तिगत वित्त के बारे में भी प्रशिक्षण दे रहे हैं और आपसे भी कह रहे हैं कि वित्तीय निवेश योजना लेते समय अपने बच्चों को शामिल करना अनिवार्य है। इसलिए आप परिवार के लिए निवेश करते समय लिए जा रहे निर्णयों में बच्चों को भी शामिल करें और उनके नाम से भी निवेश कुछ करें; चाहे आपकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो। क्योंकि बच्चों के सामने वित्तीय अथवा निवेश चर्चाएँ उनके मन में जिज्ञासा पैदा करेंगी, जिससे उनकी निवेश करने की जानकारी में वृद्धि होगी, जो संकट की स्थिति से निकलने में उनकी मदद करेगी।
माता-पिता के रूप में आप पहले वित्तीय योजनाएँ बनाते हैं। लेकिन अपने बच्चों के बीच जागरूकता लाने से भले ही वे शुरू-शुरू में कुछ ग़लतियाँ करेंगे, जहाँ आपको उनका मार्गदर्शन करना है; लेकिन बाद में वे निवेश और बचत के मामले में होशियार हो सकते हैं।
बच्चे किसी भी परिवार की सबसे बड़ी सम्पत्ति होते हैं। माता-पिता की अनुपस्थिति में वे उन्हीं सपनों को सजाने-सँवारने की कोशिश करते हैं, जो माता-पिता ने देखे होते हैं या जिन विषयों में बच्चों को वे पारंगत कर चुके होते हैं। लेकिन पर्याप्त वित्तीय सुरक्षा नहीं होने पर उनके जीवन की गाड़ी के पटरी से उतरने का जोखिम रहता है। जो लोग (दम्पति) जीवन के इस महत्त्व को समझते हैं और परिवार की ज़रूरतों को पहचानते हैं, वे सशक्त और एक सफल निवेश की ज़रूरत को महसूस करते हुए उपलब्ध संसाधनों के बेहतर उपयोग से अपने और बच्चों के भविष्य के लिए थोड़ी या ज़्यादा बचत ज़रूर करते हैं।
वित्तीय स्वतंत्रता
हालाँकि परिवार के सदस्यों को दिन-प्रतिदिन सँभालने के लिए केवल निवेश से ही काम नहीं चल सकता, इसके लिए उन्हें मासिक बजट और ख़र्च की भी ज़रूरत होती है। आपको अपने भी कुछ व्यक्तिगत ख़र्चों के लिए धन की ज़रूरत होती है और साथ ही जीवनसाथी को घर सँभालने तथा उसके और बच्चों के व्यक्तिगत ख़र्चों के लिए भी कुछ धन देना होगा, ताकि वे सब उसे ज़रूरत के हिसाब से ख़र्च कर सकें।
उदाहरण के लिए आप अपने जीवनसाथी को कुछ मासिक ख़र्चों का भुगतान करने दें। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं, तो आपका यह व्यवहार उसके अन्दर ऐसी भावना पैदा करेगा कि आप उसे परिवार की आर्थिक ख़र्चों की क्षमता को नहीं समझते और दीर्घकालिक रूप से परिजनों को आर्थिक रूप से स्वतंत्रा प्रदान करने में असमर्थ हैं; जो कि अच्छे रिश्तों के लिए बेहतर स्थिति नहीं है।
आज ज़्यादातर बच्चे मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा उन्हें दैनिक उपयोग के लिए जेब ख़र्चे की ज़रूरत होती है। इसलिए उन्हें एक बजट दें और उनके स्वयं के ख़र्चों का भुगतान करने दें। इससे उनमें आत्मबल, आत्मसम्मान बढ़ेगा, निर्णय लेने की क्षमता बढ़ेगी। लेकिन बच्चों को उस पैसे को कहाँ ख़र्च करना है, इसमें उनकी मदद करें। इससे उनमें फ़िज़ूलख़र्ची से बचने और बचत करने की आदत भी पड़ेगी।
सामूहिक कार्य (टीम वर्क)
आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि वित्तीय मामलों में कुछ भी निर्धारित (मासिक बजट में से बचत और ख़र्चों की समीक्षा) करने के लिए आप अपने जीवनसाथी और बच्चों के साथ बैठक कर रहे हैं। ऐसा करने के लिए आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों से अनुशासन में रहकर एक सफल प्रयास करना होगा, ताकि परिवार के आर्थिक लक्ष्य पूरे हो सकें।
इसके लिए आपको परिवार के सभी सदस्यों से अनावश्यक ख़र्च न करने की अपील के साथ उनकी फ़िज़ूख़र्ची पर अंकुश लगाने के लिए भी परस्पर प्रयास करने होंगे; यह समझाते या अहसास दिलाते हुए कि परिवार के वित्तीय उद्देश्य क्या हो सकते हैं या होने चाहिए? लेकिन सदस्यों के बीच सामूहिक प्रयास, मिलकर कार्य करने और मिलकर काम करे बिना शायद ये सपने और सभी इच्छाएँ पूरी न हों।
वित्तीय विवरण साझा करें
आकर्षित करने वाली और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पैसे के मामलों पर परिवार के साथ चर्चा करना कोई वर्जित या अनुचित विषय नहीं है। यदि आपने वित्तीय मामलों का ख़ुलासा अभी तक परिवार वालों से नहीं किया है, तो इससे पहले कि बहुत देर हो जाए और परिपक्वता के साथ तर्कसंगत रूप से परिजन इस पर चर्चा करें; यह ज़रूरी है कि आप उनके साथ सभी वित्तीय मुद्दों को साझा करना शुरू कर दें।
ऐसा एक मामला दर्ज किया गया, जब एक प्रमुख इक्विटी योजना के 25 वर्ष पूरे होने पर एक फंड हाउस (निवेशकर्ता कम्पनी) ने उन निवेशकों को लिखा, जो योजना में निवेश कर चुके थे। कुछ निवेशक निवेश को दो दशकों से अधिक समय होने के चलते उसे भूल गये थे। लेकिन बधाई-पत्र के कारण पूरी तरह से अप्रत्याशित परिणाम सामने आये; क्योंकि कम्पनी में निवेश करके भूले हुए निवेशक अगले कुछ हफ़्तों में वहाँ आने लगे और उनमें अपना पैसा प्राप्त करने की एक चौंकाने वाली हड़बड़ी देखी गयी।
यह एक ज्ञात तथ्य है कि भारत में निवेश योजनाएँ, जैसे- बैंक सावधि जमा, पीपीएफ, ईपीएफ और म्यूचुअल फंड सबसे लोकप्रिय बचत में से कुछ हैं। भले ही पिछले कुछ वर्षों में म्यूचुअल फंड में निवेश करने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है; लेकिन निवेशकों के बीच कुछ अन्य योजनाएँ भी लोकप्रिय हैं।
इन योजनाओं में लम्बे समय से निवेश करते हैं और कई खाताधारक अपनी धनराशि को इन निवेश मार्गों के ज़रिये कई खाते में भी रखते हैं। दरअसल लम्बे निवेश कार्यकाल के कारण या कई खाते होने के कारण बहुत-से लोग अपनी बचत और निवेश के बारे में भूल जाते हैं।
हालाँकि अधिकांश पैसा रखने वाली संस्थाओं का दावा है कि एक निश्चित अवधि के बाद वे खाताधारकों अथवा निवेशकों को सूचित कर देती हैं। लेकिन इसके लिए निवेशकों को स्वयं भी उनके सम्पर्क में रहना होगा। क्योंकि सम्पर्क न होने या कई ग्राहकों के फोन नंबर, ईमेल आईडी या पते बदलने या उनकी मृत्यु या मानसिक कमज़ोर होने (सम्पर्क न होने या नामांकित व्यक्ति के न होने) के कारण कम्पनियाँ, सस्थाएँ और बैंक उनसे सम्पर्क करने में असमर्थ रहते हैं। इसी के चलते निवेशकों अथवा जमाकर्ताओं का धन वहाँ रह जाता है; जो कि लावारिश धन के रूप में पड़ा रहता है।
इस लावारिस धन को समय की निश्चित अवधि एक अलग सरकारी कोष में स्थानांतरित कर दिया गया है। खाताधारक और पॉलिसीधारक दावा कर सकते हैं कि उनके इस निवेशों से उनका पैसा सीधे उन्हें या उनके परिजनों, ख़ासकर नामांकित व्यक्ति को दिया जाए।
जमाकर्ता द्वारा दावा न किया गया धन अवेयरनेस फंड (डीईएफ), लावारिस बीमा, पीपीएफ और ईपीएफ का पैसा बैंक सावधि जमा से शिक्षा में ले जाया जाता है। ऐसे 10 साल से दावा नहीं किये गये निवेश और जमा धनराशि को वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष (एससीडब्ल्यूएफ), म्यूचुअल फंड, प्रोटेक्शन फंड (आईईपीएफ) और निवेशक शिक्षा में स्थानांतरित कर दिया गया है। ऐसे धन को बैंक डीईएएफ में जमा कर दिया जाता है, जो 10 साल तक लावारिस रहा हो। किसी भी बैंक खाते से दावा नहीं किये गये धन, जो परिचालन में नहीं है; के उपयोग के लिए इस योजना को सन् 2014 में बनाया गया था।
जमाकर्ताओं के हितों और उनकी जागरूकता का समर्थन करने के लिए ऐसे धन को 10 वर्ष या उससे अधिक अवधि के लिए तीन महीने के अन्दर डीईएएफ योजना के तहत जमा कर दिया जाता है। निवेशक 10 साल की समाप्ति के बाद या उस धन के हस्तांतरित होने के बाद भी अपनी राशि का दावा कर सकते हैं।
इस मामले में बैंक खाताधारक को भुगतान करेगा, जो कि डीईएएफ द्वारा बैंक को वापस कर दिया जाएगा। एससीडब्ल्यू फंड, पीपीएफ, डाकघर बचत खातों, ईपीएफ आरडी खातों और इसी तरह के अन्य खातों से जमा को बैंक वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष में रखता है। यह कल्याण कोष सन् 2015 में बनाया गया था, ताकि समाज कल्याण में किसी कारण से बेकार पड़ी लावारिस निधियों का उपयोग हो सके।
उदाहरण के लिए बीमा राशि के मामले में यदि निवेश के पैसे पर निवेशक द्वारा 10 साल के अन्त में दावा नहीं किया गया हो, तो फिर इसे वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
क्या करें?
1. परिवार को अपने सभी वित्तीय मामलों की जानकारी देते रहें।
2. सभी जमाओं में हमेशा एक नामांकित व्यक्ति (नॉमिनी) बनाकर रखें।
3. आय, ख़र्च और जमा पूँजी की एक सूची बनाकर रखें।
4. जब भी कोई बदलाव हो, विवरण को अद्यतन (अपडेट) करते रहें।
5. अपनी जमा राशि एक शाखा में रखें। यदि आप धन को कई बैंक या शाखाओं में रखते हैं, तो आप दावा न कर पाने वाली जमा के लिए रास्ता बना रहे हैं।
6. अपने ट्रेडिंग (व्यापार) और डीमैट (शेयर) खाते एक या दो दलालों के पास ही रखें। सम्भव हो तो उसे एक खाते में स्थानांतरित कर लें। बीच-बीच में अपनी बैंक, शाखा या दलाल कार्यालय में जाएँ या सम्पर्क करें और अपने निवेश व उसके रखरखाव की जानकारी लेते रहें। साथ ही वित्तीय मामलों में अद्यतन जानकारी अपने परिवार अथवा परिवार के प्रमुख सदस्यों अथवा जीवनसाथी को सूचित करते रहें।
7. एक छोटे-से वेतन अथवा शुल्क पर किसी अच्छे सलाहकार की मदद लेते रहें। इससे आपके भूल जाने की स्थिति में वह आपको आपके निवेशों की जानकारी मुहैया कराता रहेगा। साथ ही निवेशकर्ता के गुज़र जाने पर उसके परिवार को निवेश की जानकारी देगा और उसे निकाले अथवा हस्तांतरित करने में मदद करेगा।