छत्तीसगढ़ में झीरम घाटी को पिछले साल मई के माओवादी हमले के बाद कौन भुला सकता है. इसमें कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल सहित पार्टी के कई नेताओं की मौत हो गई थी. यह ऐसी घटना थी जिसने सुरक्षा बलों से लेकर राजनीतिक स्तर तक ऐसा हड़कंप मचाया कि ऐसा लगा जैसे अब ये हमले अतीत की बात हो जाएंगे. लेकिन इस घटना को एक साल भी पूरा नहीं हुआ और एक बार फिर माओवादियों ने झीरम घाटी में सुरक्षा बलों के 15 जवानों को निशाना बनाकर मौत के घाट उतार दिया. नक्सलियों के हमले में एक ग्रामीण की भी मौत हुई है. यह महज एक बड़े माओवादी हमले का दोहराव भर नहीं है. राजनीतिक प्रतिक्रिया से लेकर घटना के पहले खुफिया सूचनाएं मिलना और उन पर अमल न होना, इस घटना में भी पहले की तरह ही हुआ है.
ताजा माओवादी हमले की पृष्ठभूमि भी पूर्व में हुए कई हमलों की तरह रही. 11 मार्च को केंद्रीय रिजर्व सुरक्षा बल की 80 बटालियन के 44 जवान जगदलपुर और सुकमा के बीच में स्थित तोंगपाल में बन रही सड़क को सुरक्षा देने के लिए सर्चिंग पर निकले थे. सर्चिंग करके जब ये जवान लौट रहे थे तब नक्सलियों ने घात लगाकर इन पर हमला कर दिया. हमले में जहां 15 जवान शहीद हो गए, वहीं तीन जवान घायल भी हुए हैं. जवानों के मुताबिक हमला करने वाले नक्सलियों की संख्या 300 के करीब थी.
आरंभिक जांच और सूचनाओं से पता चल रहा है कि ओडिशा से आए माओवादियों ने यह हमला सुनियोजित तरीके से किया था. नक्सलियों ने पहले बारूदी सुरंग में विस्फोट करके जवानों का रास्ता बाधित किया. इसके बाद जवानों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर उन्हें संभलने का मौका नहीं दिया. नक्सलियों ने आस-पास के गांववालों को हमले से पहले ही सतर्क कर दिया था. यही वजह रही कि घटना स्थल के पास स्थित टाहकवाड़ा स्कूल में मंगलवार (घटना वाले दिन) को शिक्षक तो पहुंचे पर विद्यार्थी एक भी नहीं आया.
पुलिस का खुफिया तंत्र भले ही कमजोर हो लेकिन नक्सलियों को इस बात की पूरी जानकारी थी कि तोंगपाल थाने से कितने जवान निकले हैं. उनके पास कौन-से हथियार हैं. वे बुलेटप्रूफ जैकेट पहने हैं या नहीं और उनका मूवमेंट क्या होगा. यही कारण है कि माओवादियों ने ‘एरो हेड फॉर्मेशन’ के आकार का एंबुश (घात लगाकर हमला करने की रणनीति जिसमें आक्रमणकारी तीर की नोक वाली आकृति में तैनात होते हैं) लगाया. इसमें जवानों पर चारों तरफ से ताबड़तोड़ हमला किया जा सकता है. गंभीर बात यह थी कि अधिकांश जवानों ने बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं पहने थे.
झीरम घाटी में दोनों हमलों से जुड़ी सबसे हैरान करने वाली समानता यह रही कि इस बार भी पुलिस मुख्यालय के पास नक्सलियों के मूवमेंट की सटीक सूचनाएं थीं. लेकिन वे सूचनाएं इस्तेमाल में नहीं लाई जा सकीं और नक्सली अपने इरादों में सफल हो गए. पुलिस मुख्यालय से आम तौर पर रोजाना दो अलर्ट जारी किए जाते हैं. हालांकि अब तक के अनुभव बताते हैं कि इसे जिले के पुलिस अधीक्षक उतनी गंभीरता से नहीं लेते. इसका एक कारण यह भी है कि पुलिस मुख्यालय केवल अलर्ट भेजकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है. अलर्ट के साथ ऐसे कोई दिशानिर्देश नहीं होते कि किस प्रकार की सावधानी बरती जानी चाहिए या सुरक्षाबलों का मूवमेंट कैसा रखा जाना चाहिए.
हमले के बाद प्रतिक्रिया देने की बारी आई तो अपना चार दिवसीय दिल्ली दौरा रद्द करके रायपुर पहुंचे मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी माना कि पुलिस विभाग को मिली गुप्तचर सूचनाएं सही थीं. मुख्यमंत्री का यह भी कहना था कि बस्तर में जारी विकास कार्यों की सुरक्षा में तैनात सुरक्षा बलों की आवाजाही से नक्सली दबाव महसूस कर रहे हैं. यह घटना उसी दबाव की प्रतिक्रिया में हुई है. रमन सिंह ने यह भी कहा कि केंद्र ने लोकसभा चुनाव संपन्न करवाने के लिए 65 कंपनियां देने की बात कही है जबकि राज्य को इससे चार गुना ज्यादा फोर्स की जरूरत है. मुख्यमंत्री ने सीएम हाउस में राज्य के अफसरों की बैठक लेकर घटना की दंडाधिकारी जांच के आदेश दिए हैं. इसके साथ ही अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (नक्सल ऑपरेशन) आरके विज भी घटना की अलग से जांच करेंगे.
घटना के दूसरे दिन छत्तीसगढ़ पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने जगदलपुर में कहा कि नक्सलियों से जवानों की शहादत का बदला लिया जाएगा. उनका यह भी कहना था कि नक्सली कमजोर हो रहे हैं इसलिए ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. केंद्र और राज्य सरकार ज्वाइंट ऑपरेशन चलाकर नक्सलियों का सफाया करेगी. लोकसभा चुनाव की तारीख नहीं बदली जाएगी. गृहमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमलों की जांच एनआईए करेगा. इसको लेकर मुख्यमंत्री रमन सिंह से सहमति ले ली गई है. शिंदे ने रायपुर और जगदलपुर में मुख्यमंत्री रमन सिंह, मुख्य सचिव विवेक ढांड, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) एएन उपाध्याय समेत प्रदेश के आला अफसरों के साथ बैठकें भी लीं.
इसी बीच कांग्रेस ने 14 मार्च को छत्तीसगढ़ बंद का एलान करते हुए प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने मुख्यमंत्री रमन सिंह से इस्तीफे की मांग कर डाली. कांग्रेस के नेताओं ने घटना के लिए मुख्यमंत्री को नैतिक रूप से जिम्मेदार बताया. साथ ही नक्सली हमले को राज्य सरकार की विफलता करार दिया.
वहीं प्रदेश के नवनियुक्त डीजीपी एएन उपाध्याय ने नक्सल हमले के बाद वही रटा-रटाया बयान दिया जो उनसे पहले के अधिकारी देते रहे हैं, ‘हम इस नक्सल हमले से सबक ले रहे हैं. हम सीखेंगे कि हमसे भूल कहां हुई है.’ हालांकि इस बात को कोई खुलेआम नहीं कह रहा, लेकिन राज्य में पिछले दिनों खाली पड़े पुलिस महानिदेशक पद के लिए जो खींचतान चली उससे सरकार की प्रशासन को लेकर गंभीरता पर सवाल तो उठे ही हैं.
एएन उपाध्याय (1985 बैच) को हाल ही में पुलिस महानिदेशक बनाया गया है. उपाध्याय पिछले पांच साल से मंत्रालय में पदस्थ थे. भले ही उनकी नियुक्ति गृह विभाग में ही थी लेकिन उनकी फील्ड की प्रैक्टिस लंबे समय तक छूटी हुई थी. राज्य सरकार ने केंद्र के कार्मिक मंत्रालय से विशेष अनुमति लेकर उन्हें समय से पहले पदोन्नत करते हुए डीजीपी बनाया है. पहले राज्य सरकार आईबी में एडिशनल डायरेक्टर के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे मध्य प्रदेश काडर के आईपीएस अधिकारी आनंद कुमार (1981 बैच) को छत्तीसगढ़ लाना चाह रही थी. लेकिन विरोध के चलते ऐसा नहीं हो पाया.
इन सबके बीच गिरधारी नायक (1983 बैच) (डीजी जेल) पीछे ही छूट गए. जबकि नायक को न केवल नक्सल ऑपरेशन का लंबा अनुभव है, बल्कि उन्हें एक सख्त, ईमानदार और अनुशासित अधिकारी के रूप में भी देखा जाता है. डीजीपी का पद भी पुलिस मुख्यालय में लंबे समय से चल रही राजनीति का शिकार हो गया. राज्य सरकार पीएचक्यू को एक अदद डीजीपी भी नहीं दे पाई है. जबकि राज्य के लिए यह बेहद संवेदनशील मुद्दा है.
इस पूरी घटना के संदर्भ में यह बात भी ध्यान देने लायक है कि इसके दो दिन पहले से कांकेर जिले में सुरक्षा बलों ने नक्सलियों की तलाश में बड़ा ऑपरेशन चला रखा था. बीएसएफ और जिला पुलिस बल के जवान संयुक्त रूप से दो दिन से दुर्ग और राजनांदगांव की सीमा से लगे इलाकों में माओवादियों की तलाश कर रहे थे. यह इलाका महाराष्ट्र से सटा हुआ है. इसी बीच नक्सलियों ने झीरम घाटी में वारदात को अंजाम दे दिया. पुलिस मुख्यालय (पीएचक्यू) के एक वरिष्ठ अफसर की मानें तो यह नक्सलियों की पुरानी रणनीति है. वे दूसरी तरफ ध्यान खींचने के लिए हमले करते हैं.
पुलिस को थी नक्सलियों के मूवमेंट की जानकारी
झीरम घाटी और आस-पास के इलाके में नक्सलियों के मूवमेंट की सूचना पुलिस को पांच मार्च से ही मिलनी शुरू हो गई थी. इसे सीआरपीएफ के आला अफसरों से भी शेयर किया गया था. इंटेलीजेंस ब्यूरो ने भी राज्य सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में सात मार्च को एक बड़े नक्सल हमले की आशंका जताई थी. पीएचक्यू की मानें तो पांच मार्च को ही जगदलपुर एसपी अजय यादव और सुकमा एसपी अभिषेक शांडिल्य को नक्सलियों के मूवमेंट की सूचना भेज दी गई थी. सूचना में पुलिस अफसरों को अलर्ट किया गया था कि ओडीशा सीमा से नक्सलियों का दल झीरम घाटी और उससे लगे क्षेत्रों में घुसा है. दूसरा अलर्ट छह मार्च को जारी किया गया. इसमें पुलिस इंटेलीजेंस ने बताया था कि माओवादी भगत उर्फ पंकज उर्फ गगन्ना अपने साथियों के साथ उनागुर, कालेंग, गुप्तेश्वर इलाकों में घूमता हुआ देखा गया है. इस दौरान तोंगपाल के प्रतापिगिरी में माओवादी सुखराम और उसके साथियों को देखा गया था. नक्सली कमांडर जगदीश उइके को भी सुकमा और कटेकल्याण इलाके में देखा गया था. पुलिस के सूचना तंत्र ने पहले ही बता दिया था कि नक्सली झीरम घाटी के पास चल रहे सड़क निर्माण के कार्य पर नजर रख रहे हैं. नौ मार्च को पीएचक्यू ने फिर से दोनों जिलों के पुलिस अधीक्षकों को सूचना भेजकर सतर्क रहने के निर्देश दिए थे. यह अलर्ट भी किया गया था कि भगत उर्फ गगन्ना 150 से अधिक साथियों के साथ तोंगपाल में देखा गया है और ये लोग सुरक्षा बलों पर हमला कर सकते हैं. कहा जा रहा है कि इस घटना को अंजाम देने के लिए माओवादियों के मलकानगिरी (ओडीशा) से छत्तीसगढ़ पहुंचने की सूचना भी पुलिस मुख्यालय को पहले ही मिल चुकी थी.
फिलहाल इस घटना की जांच भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) करेगी. लेकिन जब पिछली जांचों के सबक ही अब तक लागू नहीं हो पाए उस स्थिति में यह कहना मुश्किल होगा कि इन नतीजों से सुरक्षा बलों को वास्तव कितनी सुरक्षा मिल पाएगी.
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बीते 10 साल में 2,129 लोगों की मौत
इंस्टीट्यूट ऑफ कॉनफ्लिक्ट मैनेजमेंट के आंकड़े बताते हैं कि पिछले दस साल में छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा में 2,129 लोग मारे गए हैं. इनमें सुरक्षा बल के जवानों और आम नागरिकों की मौत का आंकड़ा 1,447 है. पिछले चार साल मे नक्सली हमलों में तेजी आई है. वर्ष 2011 के बाद माओवादियों ने अपने पुराने मिथक तोड़ते हुए बीते चाल साल में राजनेताओं और आम लोगों को भी अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया है. 2011 से लेकर 2014 तक माओवादियों ने कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया है. वहीं साउथ एशिया टैरोरिज्म पोर्टल से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक माओवादी हिंसा के कारण 2005 से 2012 के बीच छत्तीसगढ़ में कुल 1,855 मौतें हुई हैं. इनमें 569 आम नागरिकों, सुरक्षा बलों के 693 जवान और 593 माओवादियों की मौत शामिल है.
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