उत्तराखण्ड और केरल में जान-माल का विकट नुक़सान, कई अन्य राज्यों में भी बारिश
प्रकृति इंसानों के साथ-साथ सभी प्राणियों को अपनी गोद में बच्चों की तरह पालती है। लेकिन जब वह रूठती है, तो आपदाओं के ज़रिये तबाही भी मचा देती है। यूँ तो धरती पर आपदाओं का आना कोई नयी बात नहीं है; लेकिन अब इनमें लगातार होती बढ़ोतरी ने दुनिया भर के भूविज्ञानियों, भूसंरक्षकों, खगोलशास्त्रियों और इंसानों व प्राणियों की रक्षा के निहितार्थ काम करने वालों को चिन्ता में डाल दिया है। भारत भी इस चिन्ता से बाहर नहीं है। भारत में प्राकृतिक आपदाओं का बार-बार आना इस चिन्ता को लगातार बढ़ा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में तरह-तरह की छोटी-बड़ी सैकड़ों आपदाएँ दस्तक दे चुकी हैं। भारत के सबसे ज़्यादा तबाही वाले क्षेत्रों में समुद्र तटीय क्षेत्र और पहाड़ी क्षेत्र हैं।
पिछले कई दिनों तक हुई दोनों ही क्षेत्रों में भारी बारिश से तबाही हुई है। इन दोनों तरह के क्षेत्रों यानी राज्यों में समुद्र तटीय क्षेत्र केरल और पहाड़ी क्षेत्र उत्तराखण्ड हैं, जहाँ लेख लिखे जाने तक क़रीब 100 लोगों की मौत हो गयी और क़रीब तीन दर्ज़न लोग लापता हो गये। इनमें उत्तराखण्ड में सबसे अधिक 60 से ज़्यादा लोगों के मारे जाने और क़रीब 9-10 लोगों के लापता होने की ख़बरें मिलीं उत्तराखण्ड में मारे गये लोगों में उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग भी शामिल हैं। वहीं केरल में क़रीब 27 लोगों के मारे गये और क़रीब आठ लोगों के लापता होने की ख़बरें सामने आयीं। इसके अलावा दोनों ही राज्यों में सैकड़ों पशुओं के मारे जाने और सैकड़ों मकानों के छतिग्रसत होने और कुछ के पानी में बह जाने की ख़बरें सामने आयीं।
केरल में भारी बारिश के चलते भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने 10 बाँधों के लिए रेड अलर्ट, आठ बाँधों के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया। इसके अलावा क़रीब 20 ज़िलों के लिए ऑरेंज अलर्ट और पाँच ज़िलों में येलो अलर्ट जारी किया गया, जबकि रेड अलर्ट वाले क्षेत्र क़रीब-क़रीब ख़ाली करा लिये गये। ख़तरे को देखते हुए काकी डैम से 200 क्यूमेक्स पानी छोडऩे का निर्णय लेते हुए उसके दो शटर खोलने पड़े, जिससे आसपास के इलाक़ों में पानी का प्रवाह बढ़ गया और बाढ़ आ गयी। रेड अलर्ट वाले 10 बाँध काकी, शोलयार, मातुपट्टी, मूझियार, कुंडाला, पीची, पतनमथिट्टा, इडुकी और त्रिशूर ज़िले में स्थित हैं।
भारी बारिश और भूस्खलन के चलते सबरीमाला में भगवान अयप्पा मंदिर बन्द करना पड़ा है। पम्पा नदी के तटों पर से 2,000 से अधिक लोगों को सुरक्षित कैम्पों में ले जाया गया है। राज्य के अधिकतर भागों में बारिश हुई और लक्षद्वीप के भी कुछ स्थानों पर बारिश दर्ज की गयी। दक्षिणी केरल में 1 से 19 अक्टूबर तक 90 फ़ीसदी अधिक 192.7 मिमी बारिश हो चुकी थी, जो कि सामान्य से 135 फ़ीसदी अधिक थी, जो कि बाद में 453.5 मिमी तक पहुँच गयी। आईएमडी की मानें तो अक्टूबर-दिसंबर के दौरान उत्तर-पूर्वी मानसून के माध्यम से राज्य में औसतन 16.8 फ़ीसदी (491.6 मिमी) बारिश होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को हर सम्भव मदद का आश्वासन दिया है। इधर तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा ने केरल की विभीषिका पर दु:ख जताया है। उन्होंने केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को पत्र लिखकर कहा है कि इस आपदा में जिन परिवारों ने अपने प्रियजनों को खोया है और जो प्रभावित हुए हैं, उनके प्रति मैं अपनी संवेदना प्रकट करता हूँ। मुझे मालूम है कि राज्य सरकार और सम्बन्धित निकाय अपने स्तर पर ज़रूरतमंदों की मदद के लिए प्रयास कर रहे हैं। मैं अपनी सहानुभूति प्रकट करने के लिए दलाईलामा ट्रस्ट की ओर से मदद करना चाहता हूँ।
इधर उत्तराखण्ड में भी भारी बारिश से तबाही मची। यहाँ चारों धामों और उन तक जाने वाले रास्तों को, शिक्षा संस्थानों के साथ-साथ अन्य संस्थानों को बन्द कर दिया गया। मौसम विभाग ने राज्य के 13 ज़िलों में भारी बारिश, ओले पडऩे, बिजली गिरने और क़रीब 70 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से आँधी चलने का पूर्वानुमान व्यक्त करते हुए रेड अलर्ट जारी किया। इस साल अब तक बारिश का सालाना औसत 1580 मिलीमीटर से कहीं ज्यादा 1684 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट से फोन पर राज्य में आपदा और राहत बचाव कार्यों की जानकारी ली और हर सम्भव मदद का आश्वासन देते हुए केंद्रीय एजेंसियों को अलर्ट पर रहने के निर्देश दिये।
मुख्यमंत्री धामी ने राज्य आपदा नियंत्रण कक्ष में जाकर मौसम से जानकारी लेने के साथ-साथ सडक़ों और राजमार्गों का जायज़ा लिया और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से बात की। अमित शाह ने राज्य को हर सम्भव मदद का आश्वासन दिया है। राज्य के कई क्षेत्रों में 400 मिली ले अधिक बारिश होने, बादल फटने और भूस्खलन से भारी तबाही हुई है। यह तबाही क्वारब, कैंची धाम, बोहराघाट, ज्योलिकोट, अल्मोड़ा, चंपावत, पिथौरागढ़, बागेश्वर, बाजपुर से लेकर नैनीताल, तल्लीताल और नीचे तराई वाले क्षेत्रों से लेकर उत्तर प्रदेश तक हुई है। दोनों ही राज्यों में सेना के जवानों और समाजसेवी संगठनों ने बड़ी संख्या में लोगों को बचाने में कामयाबी हासिल की है।
कई राज्यों में बारिश
उत्तराखण्ड और केरल के अलावा देश के कई राज्यों में भारी बारिश हुई है। अक्टूबर के महीने में क़रीब 20 राज्यों में बारिश होने का अनुमान मौसम विभाग ने जताया था। बारिश से इस बार पश्चिमी विक्षोभ के पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र ख़ासतौर पर जम्मू-कश्मीर, लद्दाख़, हिमाचल प्रदेश, गिलगित-बाल्टिस्तान और मुज़फ़्फ़राबाद प्रभावित हुए।। इसके अलावा उत्तर-पूर्व के सभी राज्य, उत्तर भारत और दक्षिण भारत के अधिकांश राज्यों में बारिश होगी। दिल्ली में सन् 1960 के बाद इस साल अक्टूबर में सबसे अधिक 94.6 मिलीमीटर बारिश हुई थी।
तबाही की यादें
उत्तराखण्ड में सन् 2003 में, उसके बाद सन् 2013 में बारिश से भारी तबाही हो चुकी है और अब 2021 में फिर तबाही मच रही है। इसके अलावा इसी साल ग्लेशियर फटने से उत्तराखण्ड में भारी तबाही मची थी। यहाँ हर साल बारिश के मौसम में वहाँ जान-माल का नुक़सान होना तो अब आम बात है। इसी तरह केरल में भी साल में एक-दो बार तबाही की वजह भारी बारिश बनती है। यहाँ सन् 2018 में इस साल से भी ज़्यादा तबाही हुई थी। इसके अलावा केरल और महाराष्ट्र में हर साल बारिश के मौसम में तबाही होना आम बात है।
तबाही के कारण
समुद्री और पहाड़ी क्षेत्रों पर तबाही के कई कारण समान हैं, तो कई कारण अलग-अलग हैं। अगर समान कारणों की बात करें, तो इनमें जलवायु परिवर्तन, ऊष्णता का बढऩा, ओजोन परत का कमज़ोर होना, जंगलों का कम होना और समुद्री जल स्तर का बढऩा है। वहीं अगर पहाड़ी क्षेत्रों की बात करें, तो वहाँ नित नये निर्माण, विकास की योजनाएँ, सडक़ों का चौड़ीकरण, रेल और सडक़ों के लिए सुरंगें बनना, जंगलों के क्षेत्रफल में कमी, जनसंख्या घनत्व, हिमालय पर बढ़ता कचरा, ग्लेशियर पहाड़ों का पिघलना आदि कई कारण हैं। वहीं समुद्री क्षेत्रों में तबाही के मुख्य कारण समुद्रों में बढ़ रही गन्दगी, गर्मी, बढ़ता जलस्तर, समुद्र किनारे बढ़ता अतिक्रमण, घटते पेड़ आदि हैं।
बचाव के उपाय
प्रकृति है, तो तबाही भी होगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या इन तबाहियों से निजात पायी जा सकती है? इस सवाल का जवाब ढूँढने के लिए दुनिया भर के हर क्षेत्र के वैज्ञानिक और विद्वान सदियों से हर सम्भव कोशिश कर रहे हैं; लेकिन यह मुमकिन नहीं हो सका है कि इंसानों के साथ-साथ दूसरे सभी प्राणियों की सुरक्षा करने के पुख़्ता इंतज़ाम हो सकें। वजह, यह सम्भव ही नहीं है। लेकिन यह सच है कि इंसान इन तबाहियों को कम कर सकता है। क्योंकि तबाहियों को बढ़ाने में उसकी ही अहम भूमिका है। कई बार वैज्ञानिक चेतावनी दे चुके हैं कि इंसान और दूसरे प्राणी तभी बचेंगे, जब पृथ्वी बचेगी और पृथ्वी तब बचेगी, जब वातावरण सन्तुलित रह सकेगा। इसके लिए वन क्षेत्र को बढ़ाना होगा, प्रदूषण फैलाने वाले यंत्रों, उद्योगों और चीज़ें को प्रतिबन्धित करना होगा और विकास की होड़ से पीछे हटते हुए आदिवासियों की तरह प्रकृति की गोद में जीवन जीने की प्रक्रिया को अपनाना होगा। अन्यथा तबाहियाँ बढ़ती रहेंगी और जब-तब कीड़े-मकोड़ों की तरह इंसान भी मरते रहेंगे।