‘तहलका’ की खोज से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल से लेकर नेपाल तक के बच्चों और किशोरों की देश के विभिन्न हिस्सों में कैसे तस्करी की जाती है। समाज की इस बेहद कड़वी सच्चाई को देखकर रूह काँप जाती है। सरकारों और प्रशासन की नाक तले नाबालिग़ों की खुली ख़रीद-फ़रोख़्त का इतना संगठित और विस्तृत धंधा अचम्भित करने वाला है। इस धंधे में बेबस नाबालिग़ों को पशुओं की तरह इस्तेमाल किया जाता है। उन बेचारों को तो यह भी पता नहीं होता कि जिस काम के बहाने चंद रुपये का लालच देकर उन्हें ले जाया जा रहा है, उसमें उनकी जान भी जा सकती है। लेकिन सामाजिक और आर्थिक बेबसी के शिकार ये लोग इस जाल में फँसकर मूक दास बन जाते हैं। तहलका एसआईटी की विस्तृत रिपोर्ट :-
‘यह मौत का कारण बन सकता है? यह निंदनीय है और जोखिम से भरा है। लेकिन फिर भी मैं नशीली दवाओं के परीक्षण के लिए पाँच नशा करने वालों की व्यवस्था कर सकता हूँ। दरअसल वे किसी काम के नहीं हैं और यहाँ तक कि उनके परिवारों ने उन्हें छोड़ भी दिया है। लेकिन मैं उन्हें यह नहीं बताऊँगा कि उनका इस्तेमाल दिल्ली में दवा परीक्षण के लिए किया जाएगा। इसके बजाय मैं उन्हें बताऊँगा कि उन्हें दिल्ली में 20,000 रुपये प्रति माह के तनख़्वाह वाली नौकरी मिलेगी। साथ ही आपके और मेरे बीच इन पाँच लोगों की आपूर्ति के लिए कोई काग़ज़ी कार्रवाई नहीं होगी। …और उनकी आपूर्ति के बाद न तो मैं तुम्हें जानता हूँ, न ही तुम मुझे जानते हो। चूँकि यह एक ग़ैर-क़ानूनी कार्य है, इसलिए मुझे इस कार्य के लिए पर्याप्त राशि की आवश्यकता है। आपको पाँच लोगों के लिए 2,00,000 रुपये देने होंगे।’ यह एक संजय मंडल नाम के व्यक्ति के शब्द हैं। संजय सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल का एक मानव तस्कर है।
संजय ने ‘तहलका’ को बताया कि वह दिल्ली में एक दवा फर्म द्वारा ड्रग ट्रायल से गुज़रने के लिए पाँच बेरोज़गार नशेबाज़ों का प्रबन्ध कैसे करेगा, जिन्हें उनके परिवारों ने छोड़ दिया है। संजय के मुताबिक, यह सब उन पाँच लोगों की सहमति के बिना होगा, जिन्हें पता भी नहीं होगा कि उन पर ड्रग ट्रायल किया जाएगा। उन्हें बस इतना पता होगा कि उन्हें दिल्ली में 20,000 रुपये प्रतिमाह की नौकरी मिलेगी। संजय का कहना है- ‘नौकरी का लालच उन्हें दिल्ली जाने के लिए मजबूर करेगा।’
संजय मंडल पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग स्थित बाग़डोगरा के रहने वाला है। वह एक टूर और ट्रैवल एजेंसी में कैब ड्राइवर के रूप में काम करता है। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने ख़ुद को एक ग्राहक के रूप में पेश किया, जिन्होंने दिल्ली में दवा परीक्षण और कई अन्य कार्यों के लिए कई नाबालिग़ों और आदमियों की ज़रूरत संजय को बतायी। रिपोर्टर ने संजय से सिलीगुड़ी में मिलकर मुलाक़ात की। यह मुलाक़ात एक अन्य टैक्सी चालक (तस्कर भी) गोपाल के ज़रिये हुई। संजय मंडल से मिलने पर ‘तहलका’ रिपोर्टर ने संजय से कहा कि हमें दिल्ली के लिए निर्माण और घरेलू काम समेत विभिन्न कामों के लिए मज़दूरों की ज़रूरत है। उससे कहा गया कि अधिकांश लोग, जिसमें लड़कियाँ भी शामिल होंगी; कम उम्र के होने चाहिए।
मंडल ने हमें बताया कि अभी तक उसने दिल्ली को कोई मज़दूर नहीं दिया है। लेकिन गंगटोक (सिक्किम) में उसके द्वारा सप्लाई किये गये छ: लडक़े एक होटल में काम करते हैं। संजय ने यह भी ख़ुलासा किया कि उसने अपने गृह क्षेत्र सिलीगुड़ी में श्रमिकों की आपूर्ति की थी।
रिपोर्टर : अभी तक दिल्ली में दिया आपने?
संजय : नहीं, दिल्ली में नहीं दिया। इधर अभी गंगटोक मैं छ: लडक़ा कर रहा है।
रिपोर्टर : आपने दिया है?
संजय : होटल में काम कर रहा है।
रिपोर्टर : होटल में, और कहाँ दिया है?
संजय : और इधर लोकल में रहता है।
मुलाक़ात के दौरान हमने संजय से कहा कि हमें दिल्ली में घरेलू काम के लिए नाबालिग़ लड़कियों की ज़रूरत है। संजय मान गया और हमसे कहा कि वह हमें 12, 14 और 15 साल की चार नाबालिग़ लड़कियाँ मुहैया कराएगा।
रिपोर्टर : लड़कियों की क्या उम्र बतायी आपने?
संजय : वो सर! 14 साल, 12 साल, 15 साल।
रिपोर्टर : कितनी लड़कियाँ हैं, जो हमारे साथ जाएँगी?
संजय : चार।
रिपोर्टर : जो दिल्ली जाएँगी न?
संजय : हाँ।
रिपोर्टर : जिनको तुम भेजोगे?
संजय : हाँ।
रिपोर्टर : घर का काम तो कर लेगी न, जैसा कहेंगे?
संजय : भारी काम तो नहीं? उम्र छोटा है। घर के काम, जैसे- झाड़ू है, पोंछा है।
रिपोर्टर : हर जगह लड़कियों को आप छोड़ आते हो या वो ही लेकर जाते हैं?
संजय : कहीं लोकल हुआ, तो छोड़ आते हैं। गंगटोक हुआ, तो जैसे मेरे पास इनोवा है। मैं ही लेकर चला जाता हूँ।
रिपोर्टर : हाँ, तो बस फिर आप ही लेकर जाना।
इसके बाद संजय मंडल ने हमें बताया कि वह नाबालिग़ कामगारों की आपूर्ति के लिए कितना चार्ज करेगा।
रिपोर्टर : आपका अभी तक का रेट क्या है, एक बच्चे का?
संजय : मेरा क्या महीने का 2,000 रुपये दीजिएगा।
रिपोर्टर : हर महीने 2,000?
संजय : जी।
रिपोर्टर : जैसे हमने 10 बच्चे लिए, तो महीने के 20,000 रुपये और बच्चों की तनख़्वाह (वेतन) अलग?
संजय अब बच्चों को काम पर भेजने में शामिल जोखिम के बारे में बताता है, ताकि वह सेवाओं के लिए माँग की जाने वाली राशि का औचित्य साबित कर सके।
संजय : ये सब काम के लिए भेजेंगे, ये सब पूरा रिस्क (जोखिम) मेरे पर रहता है। एक भी बच्चे के साथ कुछ हो गया तो मेरा…।
रिपोर्टर : नहीं-नहीं। …अभी तक आपने जो बच्चे भेजे हैं, वो सारा जोखिम आप पर रहा है?
संजय : हाँ।
रिपोर्टर : उनके साथ कुछ हुआ तो नहीं?
संजय : नहीं।
संजय ने अब हमारे लिए नाबालिग़ों को दिल्ली भेजने की अपनी योजना का ख़ुलासा किया। उसने कहा कि वह पहले लडक़ों को हमारे साथ दिल्ली भेजेगा। लडक़ों को नये परिवेश में ढलने के बाद ही लड़कियों को भेजा जाएगा।
संजय : ये आपको जो लेडीज था, चार जुगाड़ हुआ ठीक है। लेकिन हमारा नौ लडक़ा भी जा रहा है पहले लॉट में…, ठीक है।
रिपोर्टर : हमारे साथ?
संजय : आप लेकर जाएँगे साथ में?
रिपोर्टर : नहीं-नहीं; आप किसको भेजने की बात कर रहे हो? हमें या किसी और को? हमें देने की बात कर रहे हो?
संजय : जी।
रिपोर्टर : ठीक है बताएँ?
संजय : नौ लडक़ा जो जा रहा है, पहले लॉट (खेप) में। इनको 10 दिन काम करने दीजिए। वहाँ का हालत-सिचुएशन बताएगा, तो चार लेडीज और उनके साथ चार-पाँच लडक़ा और जाएगा।
रिपोर्टर : और बच्चे कितने जा रहे हैं?
संजय : अभी बच्चे जो जा रहे हैं, नौ बच्चे जा रहे हैं।
रिपोर्टर : कितनी उम्र के?
संजय : 20 के ऊपर नहीं हैं। सारा 20 के नीचे के हैं। और सबसे कम 14 साल।
रिपोर्टर : हमें दिखवा दोगे एक बार?
संजय : अभी दो-चार लडक़ा साइट पर काम कर रहा है। देखना चाहे, तो देख सकता है।
रिपोर्टर : अभी हमें सबसे कम उम्र के बच्चे जो दे रहे हैं आप, वो 14 साल के हैं?
संजय : जी।
रिपोर्टर : कितने हैं, वो 14 साल के?
संजय : दो लडक़े हैं। बाक़ी सब उसी के हैं, 14, 15, 18…20 के, ऊपर का नहीं है कोई।
हमें निर्माण और घरेलू काम के लिए लड़कियों और लडक़ों के रूप में नाबालिग़ बच्चे देने की बात करने के बाद संजय मंडल ने अब हमें बताया कि वह दिल्ली में ड्रग ट्रायल के लिए मज़दूरों का प्रबंधन कैसे करेगा।
रिपोर्टर : दवा (फार्मास्युटिकल) कम्पनी ने ट्रायल करना है। दवा कम्पनी को उसके लिए मज़दूर चाहिए।
संजय : जोखिम होता है।
रिपोर्टर : जोखिम तो होता है, पूरा होता है।
संजय : मौत तो नहीं हो जाती?
रिपोर्टर : अब वो तो दवा कम्पनी बताएगी। हम कैसे कह
सकते हैं।
संजय : इसके लिए भी आदमी देना पड़ेगा?
रिपोर्टर : आदमी-औरत चाहिए। जो दवाइयाँ दवा कम्पनी बनाती है, उसके लिए भी मज़दूर चाहिए। दवा का ट्रायल करना है।
संजय : ऐसा जानकर कोई जाना चाहेगा? जैसे आप मेरे को बताते हो। उसे बताकर काम नहीं किया जा सकता।
रिपोर्टर : अगर नहीं बताकर करना चाहते हैं, तो नहीं बताकर करते हैं?
संजय : जो भी है, आपके मेरे बीच में साफ़ होना चाहिए।
रिपोर्टर : मैंने तो क्लियर (स्पष्ट) कर दिया।
संजय : एक दो के साथ बोलोगे, तो दो चार लडक़ा राज़ी न हो तो? उसमें उसको दूसरा काम बोलकर कर सकते हैं। इस टाइप में लडक़ा हैं थोड़ा आवारा टाइप। घर से कोई लेना-देना नहीं है। है, ऐसा लडक़ा भी है न! गार्जियन (अभिभावक) उसको भाव नहीं देता है। थोड़ा आवारा टाइप का लडक़ा है। सर! ऐसा लडक़ा कोई काम का नहीं है। कहीं कोई काम में लग जाएँगे वो ही ठीक है…, इस प्रकार का लडक़ा को थोड़ा पैसे का लालाच-वालच देने से काम हो सकता है। …ये बात सीक्रेट ही रहे सर!
रिपोर्टर : तुम्हारे-हमारे बीच में रहे।
संजय : ये बहुत बड़ा कांड (स्कैंडल) है।
रिपोर्टर : हम नहीं बताएँगे।
क्योंकि इससे मौत भी हो सकती है। इसके बावजूद उन्होंने ड्रग ट्रायल के लिए हमें मज़दूर भी मुहैया कराने पर सहमति जतायी; लेकिन कुछ पूर्व शर्तों के साथ। संजय ने ख़ुलासा किया कि वह पाँच युवा लडक़ों को जानता है, जो नौकरी के लिए नशे के आदी हैं।
संजय : इसके लिए पाँच लडक़ा मिल जाएगा। ऐसा लडक़ा चलेगा, जो नशेड़ी (ड्रग एडिक्ट) हो?
रिपोर्टर : चल जाएगा।
संजय : ऐसा लडक़ा बहुत है। जो सच बात है, थोड़ा ड्रग एडिक्ट है। उन लोगों को थोड़ा पैसे का लालच देने से कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाएगा।
रिपोर्टर : ठीक है।
यह पूछे जाने पर कि वह पाँच नशा करने वालों को क्या नौकरी का प्रस्ताव देगा? संजय ने कहा कि वह उन्हें दिल्ली के एक बार में नौकरी की पेशकश करेगा।
रिपोर्टर : तो उसे क्या काम बताओगे?
संजय : बार-बूर का काम।
रिपोर्टर : बार का?
संजय : बार में दारू देने का।
संजय ने आगे ख़ुलासा किया कि वह पाँच नशा करने वालों के अभिभावकों को यह नहीं बताएगा कि वह उनके लडक़ों को दवा परीक्षण के लिए दिल्ली भेज रहा है। न ही उनके और हमारे बीच पाँचों युवकों की आपूर्ति के लिए कोई काग़ज़ी कार्रवाई होगी।
रिपोर्टर : जो दवा के परीक्षण में जाएँगे, उनका कोई हमारे साथ काग़ज़ी समझौता नहीं होगा?
संजय : नहीं होगा सर! मैं उनको भेजूँगा इस तरह कि उनके अभिभावक को न पता चले कि मैंने उनको भेजा है।
संजय के मुताबिक, वह सभी पाँचों सदस्यों को इस बारे में अँधेरे में रखेगा कि उन्हें दिल्ली क्यों भेजा जा रहा है?
रिपोर्टर : उनको तुम बताओगे नहीं कि उन पर दवा का ट्रायल (परीक्षण) होगा?
संजय : नहीं, बताने से नहीं भी जा सकता है।
संजय ने ‘तहलका’ से कहा कि वह दिल्ली भेजे जा रहे पाँच नशेडिय़ों से ड्रग ट्रायल की बात छिपाएगा, और उन्हें बताएगा कि उन्हें 20,000 प्रतिमाह वेतन के साथ नौकरी मिलेगी।
रिपोर्टर : उनका पैसा बताओ कितना लोगे?
संजय : उसको सैलरी बोलकर भेजना पड़ेगा।
रिपोर्टर : कितनी सैलरी?
संजय : उसे अच्छा सैलरी भेजना पड़ेगा। जब वो नशा करता है, चार-पाँच सौ तो वो फूँक ही देता है।
रिपोर्टर : कितनी सैलरी बताओ?
संजय : 20,000 बोलकर भेजा जाएगा।
रिपोर्टर : महीने का?
पाँच लडक़ों को ड्रग ट्रायल के लिए दिल्ली भेजने के लिए संजय ने अब अपने लिए एक बड़ी रक़म की माँग की।
रिपोर्टर : और आप कितना लोगे?
संजय : इसका तो एकदम क्लियर कट बात है। इसका तो आप ख़ुद सोचकर दीजिए। इसमें बहुत बड़ा जोखिम है।
रिपोर्टर : पैसे बताओ यार!
संजय : सेटिंग करके भेजना है। …सारा मेरी गारंटी है। कैसे हैंडल करके भेजना है पाँच लडक़ों को। क्या करना है उनको। …ख़र्चा-पानी। वो नशा करता है। …वो भी उसे ख़रीद कर दे देंगे। ये ग़द्दार काम है सर! इसमें मोटा अमाउंट दीजिए।
रिपोर्टर : कितना चाहिए, बताओ?
संजय : उसको तो जो 20,000 वेतन मिल जाएगा।
रिपोर्टर : 2,000?
संजय : 2,000 तो असली काम का है।
रिपोर्टर : कितना?
संजय : लाख हम्म…?
रिपोर्टर : दो लाख (2,00,000) पाँच लडक़ों का?
संजय : मैं मैनेज करके भेजूँगा।
संजय मंडल के बाद ‘तहलका’ ने नक्सलबाड़ी, सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल के एक अन्य तस्कर रंजीत टोपो से मुलाक़ात की। हमने रंजीत से कहा कि हमें सिलीगुड़ी, कोलकाता और दिल्ली के लिए 100-150 मज़दूरों की ज़रूरत है। नक़ली ग्राहक बनकर हमने रंजीत से कहा कि हमें अपने निर्माण कार्य और दिल्ली में हुक्का बार के लिए नाबालिग़ लड़कियों और लडक़ों की ज़रूरत है। रंजीत हमारे निर्माण स्थल और हुक्का बार के लिए लड़कियों सहित 25-30 नाबालिग़ बच्चों की आपूर्ति करने के लिए सहमत हो गया।
रिपोर्टर : एक बात बताओ, इसमें बच्चे कितने करवा दोगे लेबर (मज़दूर) के?
रंजीत : बच्चे?
रिपोर्टर : जेंट्स-लेडीज 100-150 लेबर में कितने करवा दोगे बच्चे? …16 साल से कम?
रंजीत : जब बच्चे जाना शुरू करेंगे न, …तभी। मोटा-मोटा 25-30 बच्चे करा देंगे।
रिपोर्टर : 25-30 बच्चे आप करवा दोगे?
रंजीत : हाँ।
रिपोर्टर : लडक़े-लड़कियाँ, दोनों 16 साल से कम?
रंजीत : जी।
रिपोर्टर : इसमें सिलीगुड़ी के होंगे बच्चे या नेपाल के होंगे?
रंजीत : सिलीगुड़ी के होंगे। नेपाल के भी होंगे।
रिपोर्टर : नेपाल के होंगे, ठीक है करवा दो। लडक़े-लड़कियाँ, …दोनों 16 साल से कम?
रंजीत : हम्म।
रिपोर्टर : 20 कह रहे हो न? 20 बच्चे करवा दो।
रंजीत : हाँ।
रंजीत टोपो ने अब समझाया कि कैसे वह चाय बाग़ानों में दिहाड़ी मज़दूरों को क़र्ज़ देकर बँधुआ मज़दूर बनाता है।
रंजीत : मान लीजिए किसी मज़दूर को पैसे की ज़रूरत लगी। वो अरेंज (व्यवस्था) नहीं कर पा रहे हैं। ठीक है दो-तीन महीने बाद अरेंज करेंगे। उसको 20,000 रुपये दे दिया। पाँच परसेंट (फ़ीसदी) के हिसाब से, चला ले घर को मेरे पैसे से…। उसके तीन महीने बाद या चार महीने बाद वो शादी वग़ैरह में चलाकर लोन दे दे।
रिपोर्टर : तब तक वो आपका…?
रंजीत : ब्याज (इंटरेस्ट) देगा।
रिपोर्टर : तब तक वो आपके खेत में काम करेगा। चाय बा$गान में काम करेगा। उससे पहले वो जा नहीं सकता है। ये होता है न तरीक़ा?
रंजीत : हाँ।
रंजीत टोपो ने ‘तहलका’ के सामने ख़ुलासा किया कि कैसे उसने बिल्डर से अधिक पैसा लिया और बेंगलूरु में मज़दूरों को कम भुगतान किया, जहाँ उसने 2012-13 में निर्माण स्थल के लिए श्रमिकों की आपूर्ति की थी।
रिपोर्टर : बेंगलूरु में कितना लिया था आपने?
रंजीत : सर! वो तो कमीशन था। वो लोगों का जितना पेमेंट होता था न सर! 400 का अरेंज किये थे वहाँ। 500 का अरेंज किये थे वहाँ। मान लीजिये 300 का हम देते थे, 200 का हम लेते थे।
रिपोर्टर : जैसे उनको 500 मिलता है।
रंजीत : हम यहाँ से बोलकर गये थे कि वहाँ दिहाड़ी 300 रुपये है। लेकिन हम वहाँ से 500 उठाते थे।
रिपोर्टर : अच्छा, आप मज़दूर को बोलकर लेकर गये थे कि आपको 500 रुपये मिलेंगे। मिलता था 300 रुपये?
रंजीत : नहीं, बोलकर नहीं गये थे हम। यहाँ बोल दिये कि वहाँ आपको 300 रुपये दिलाएँगे। उस समय दिहाड़ी (डेली वेजेज) भी कम देते थे। 200 रुपये था।
रिपोर्टर : लेकिन वो आपको 500 रुपये देता था न?
रंजीत : जी।
रिपोर्टर : 300 आप लेबर को देते थे न! 200 रुपये अपने पास रखते थे ?
रंजीत : हाँ।
रंजीत हमें नेपाल से मज़दूर देने को तैयार हो गया। 50-50 के अनुपात में। आधे नेपाल से और आधे सिलीगुड़ी से।
रिपोर्टर : वहाँ (नेपाल) के कितने मज़दूर दिलवा दोगे?
रंजीत : नेपाल का मान लीजिए ज़्यादा तो इधर का ही होगा। 50-50 कर लीजिए।
रिपोर्टर : 50-50; सिलीगुड़ी के 50 मज़दूर होंगे? 50 नेपाल के मज़दूर होंगे? चलिए ठीक है।
रंजीत : हम्म।
रंजीत ने अब हमें बताया कि वह हमसे लेबर सप्लाई (मज़दूर आपूर्ति) के लिए प्रति व्यक्ति 2,000 रुपये वसूल करेगा।
रंजीत : जैसे आज मान लीजिए 10 आदमी भेज दिये। कमीशन पा गये।
रिपोर्टर : मतलब आप कह रहे हैं, 10 को भेज दिया। 10 का कमीशन आप ले लोगे? कितना होगा?
रंजीत : जैसे पकड़ लीजिए एक आदमी का 2,000 रुपये।
रिपोर्टर : एक आदमी का 2,000 रुपये, कमीशन आपका लेबर (देने) का?
रंजीत : हाँ।
अब हम तीसरे तस्कर गोपाल से पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में मिले। गोपाल टैक्सी भी चलाता है। एक ग्राहक के रूप में हमने गोपाल से दिल्ली-एनसीआर में हमारे हुक्का बार के लिए 12, 13, 14, 15 साल आयु वर्ग के नाबालिग़ बच्चों की आपूर्ति करने की माँग की। गोपाल हमारी माँग को पूरा करने के लिए तैयार हो गया।
रिपोर्टर : आपने काम सुन ही लिया हमारा। एक तो हुक्का बार है दिल्ली-एनसीआर में। हुक्का होता है न, हुक्का जानते होंगे? तंबाकू वग़ैरह भरनी है बच्चों ने। गेस्ट को सप्लाई करना है।
गोपाल : अलग-अलग टाइप का लडक़ा लोग चाहिए? पहाड़ी नेपाल का मिलेगा।
रिपोर्टर : नेपाली मिल जाएगा न?
गोपाल : हाँ-हाँ; बार में काम करने के लिए मिल जाएगा।
रिपोर्टर : बार-वार में काम करने के लिए?
गोपाल : बार?
रिपोर्टर : मतलब हुक्का बार में काम करने के लिए बच्चे
मिल जाएँगे?
गोपाल : मिल जाएँगे।
गोपाल ने कहा कि वह हमें लेबर वर्क के लिए 50-60 बच्चों की आपूर्ति कर सकता है।
रिपोर्टर : टोटल कितने बच्चे सप्लाई कर सकते हैं आप?
गोपाल : 50-60 पकड़ लीजिए।
रिपोर्टर : 50-60 पक्का गारंटी दे रहे हो आप?
गोपाल : हाँ।
रिपोर्टर : एक बच्चे का वो ही, 500 रुपये दिन का।
गोपाल ने ख़ुलासा किया कि वह हमें केवल 12, 13, 14 और 15 वर्ष की आयु के नाबालिग़ बच्चे देगा।
रिपोर्टर : लेकिन हमें वही चाहिए, छोटे बच्चे।
गोपाल : हाँ।
रिपोर्टर : 12, 13, 14, 15 साल के?
गोपाल : मिल जाएँगे।
रिपोर्टर : हैं?
गोपाल : मिल जाएँगे।
रिपोर्टर : पक्का, फाइनल समझें फिर हम?
गोपाल : हाँ।
‘तहलका’ द्वारा उजागर किये गये उपरोक्त तीन चरित्र संकेत करते हैं कि भारत में मानव तस्करी एक गम्भीर समस्या है। वाणिज्यिक और यौन शोषण के उद्देश्य से पूरे भारत में लोगों का बेशर्मी और अवैध रूप से अवैध व्यापार किया जाता है और उन्हें जबरन / बँधुआ मज़दूरी में फँसाया जाता है। भारत में विभिन्न कारणों से पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की तस्करी की जाती है। व्यावसायिक या यौन शोषण के उद्देश्य से देश के भीतर महिलाओं और लड़कियों की तस्करी की जाती है और कभी-कभी उन्हें जबरन शादी में शामिल किया जाता है। श्रम के उद्देश्य से पुरुषों और लडक़ों की तस्करी की जाती है। बच्चों के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से को कारख़ाने के श्रमिकों, घरेलू नौकरों, भिखारियों और कृषि श्रमिकों के रूप में जबरन इस्तेमाल किया जाता है, और यहाँ तक कि कुछ आतंकवादी और विद्रोही गुट उन्हें सशस्त्र लड़ाकों के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं।
नेपाली बच्चों को भी विभिन्न क्षेत्रों में जबरन मज़दूरी के लिए भारत लाया जाता है। भारतीय महिलाओं को वाणिज्यिक और यौन शोषण के लिए मध्य पूर्व में तस्करी कर ले जाया जाता है। भारतीय निवासी जो हर साल स्वेच्छा से मध्य पूर्व और यूरोप में घरेलू नौकरों के रूप में काम करने के लिए और कम कुशल नौकरियों के लिए प्रवास करते हैं, कभी-कभी तस्करी के जाल में फँस जाते हैं। ऐसे मामलों में श्रमिकों को धोखाधड़ी के माध्यम से भर्ती किया गया हो सकता है, जो उन्हें सीधे ऋण बंधन (दास बनने) सहित मजबूर श्रम की स्थिति में ले जाता है।
आज के समय में उपयोग और शिक्षा दोनों में प्रौद्योगिकी में प्रगति के कारण तस्करी ऑनलाइन हो रही है। पहले के समय में यह इंसानों के माध्यम से पैसे के लिए या फिर डर के कारण होता था। इसके साथ ही लोगों ने बँधुआ मज़दूर या उच्च प्रमुखों के दास होने के लिए सहमति व्यक्त की। हमारी वर्तमान पीढ़ी में यह उन लोगों की सहमति के बिना होता है, जिन्हें पीडि़त माना जाता है।