दो साल से कैंसर की बीमारी ये जूझ रहे कर्म सिंह ने तब तक प्राण नहीं त्यागे जब तक उनके पुत्र तेजिंदर पाल सिंह तूर ने एशियन खेलों में नए कीर्तिमान स्थापित करते हुए स्वर्ण पदक नहीं जीत लिया। एक पिता के लिए इससे बड़ा सपना क्या हो सकता था। पर उनके भाग्य में उस पुत्र को गले में पदक डाले देखने का समय नहीं बचा था। तेजिंदर पाल ने अपना यह पदक अपने पिता को समर्पित किया।
अपनी अंतिम ‘थ्रो’ में 20.75 मीटर तक गोला फेंक कर 23 वर्षीय तेजिंदर पाल सिंह तूर ने न केवल स्वर्ण पदक जीता बल्कि एशियाई और राष्ट्रीय रिकार्ड भी ध्वस्त कर दिए। उस समय तेजिंदर ने कहा,”मेरे परिवार और मेरे दोस्तों ने मेरे लिए बहुत बलिदान किए है। आज मैंने उनकी तमन्ना पूरी कर दी। अब मैं अपने पिता से मिलूंगा, पर मैं वहां मात्र दो दिन ही रह सकूंगा।’’
तेजिंदर पाल को अपने पिता की बीमारी के बारे में पूरी जानकारी थी। वह खेलों में व्यस्त था, पर उसकी योजना थी कि वह भारत पहुंच कर मोगा (पंजाब) जाएगा और पिता से मिलेगा।
पर होनी को कुछ और ही मंजूर था। रात को वह एयरपोर्ट पर उतरा और सवेरे ही भारतीय एथलेटिक फेडरेशन को तूर के पिता के देहांत का दुखद समाचार मिला। जब उसे यह समाचार मिला तब वह मोगा के पास अपने गांव खोसा पांडो जा रहा था। उसने एक बेटे के तौर पर बहुत कोशिश की कि वह अपना स्वर्ण पदक अपने पिता के हाथ में दे दे जो उनकी अंतिम इच्छा थी, पर यह नही हो सका।
तेजिंदर को याद है कि उसके पिता और परिवार ने उसे एक सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनाने के लिए कितना संघर्ष किया था। उसके पिता दिल्ली के सैनिक अस्पताल में भर्ती रहे। वहां उनकी हालत बिगड़ी। राष्ट्रमंडल खेलों में तेजिंदर पाल आठवां स्थान ही ले पाया। पिता की बीमारी उसके इस बुरे प्रदर्शन का एक बड़ा कारण थी। राष्ट्रमंडल खेलों के बाद अप्रैल में उसके पिता की हालत बिगड़ती गई।
तेजिंदर के लिए यह सबसे कठिन समय यही था। उसे हर शनिवार को पटियाला में अपनी ट्रेनिंग छोड़ कर पिता को मिलने दिल्ली जाना पड़ता था। इस बात ने उसके कोच एमएस ढिल्लों को गहरी चिंता में डाल दिया था। ढिल्लों ने एएफआई से निवेदन किया कि तेजिंदर की ट्रेनिंग का स्थान धर्मशाला कर दिया जाए ताकि वह अपनी ट्रेनिंग पर पूरा ध्यान दे सके। ऐसा ही किया गया। इसका परिणाम यह निकला कि उसने एशिया रिकार्ड तोड़ कर स्वर्ण पदक जीत लिया।