बेटियों के ख़ून से रंगे अपनों के हाथ

हाल में पंजाब के जालंधर ज़िले के कहनपुर नामक गाँव में मज़दूरी करने वाले एक दम्पति ने अपनी तीन बेटियों को दूध में ज़हर मिलाकर दिया। तीनों बच्चियों ने तड़प-तड़पकर दम तोड़ दिया। जिनकी हत्या कर दी गयी, उन बच्चियों के नाम अमृता कुमारी (9), साक्षी (7) और कंचन (4)थे। सुशील मंडल व उसकी पत्नी मंजू देवी बिहार से पंजाब मज़दूरी करके अपने परिवार का पेट पालने आये; लेकिन ग़रीबी ने उनका पीछा यहाँ भी नहीं छोड़ा। आरोपी पिता सुशील मंडल के पाँच बच्चे थे, जिसमें एक लड़की व एक लड़का अभी जीवित हैं।

ख़बरों के मुताबिक, माता-पिता ने अपनी बच्चियों की हत्या करने की मुख्य वजह ग़रीबी बताया पर इसके अलावा पिता को शराब की भी लत है। ऐसे समय में जब ख़ासतौर पर संसद व विधायकों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण नारी वंदन शक्ति पारित होने के बाद भाजपा के द्वारा इसे एक राजनीतिक पर्व में तब्दील करने की पुरज़ोर कोशिशों के दरमियान इन बच्चियों की हत्या समाज व बालिका संरक्षण, उत्थान सम्बन्धी नीतियों के बाबत सोचने को विवश करती है।

भारत विश्व की पाँचवीं अर्थव्यवस्था है। प्रधानमंत्री मोदी का दावा है कि आने वाले वर्षों में देश तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। लेकिन देश में अमीरी व ग़रीबी के बीच फ़ासला गहराता जा रहा है। इस गम्भीर संकट पर सरकार अक्सर चुप रहती है या आँकड़ों को अपने हिसाब से पेश करती है। अमेरिकी मार्केटिंग एनालिसिस फर्म मर्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि भारत में 2003-2023 यानी 20 वर्षों में अमीरों की दौलत 16 गुना और ग़रीबों की महज़ 1.4 प्रतिशत बढ़ी है। तरक़्क़ी के मामले में ग़रीब वहीं-के-वहीं हैं। देश की 80 प्रतिशत दौलत सिर्फ़ दो लाख परिवारों के पास है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, आर्थिक विकास से आया 80 प्रतिशत धन सिर्फ़ 20 कम्पनियों के खाते में जा रहा है। अमीरी व ग़रीबी के बीच असमानता साफ़ दिखायी देती है और सरकार के पास इसे पाटने के लिए कोई ठोस आर्थिक कार्यक्रम नज़र नहीं आते। इन आँकड़ों का ज़िक्र करना यहाँ इसलिए प्रासगिंक लगा, क्योंकि अपने देश में ग़रीबी, पैसों की क़िल्लत लिंग भेदभाव का एक मुख्य कारण है। ग़रीबी एक कड़वी सच्चाई है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि माता-पिता बच्चों, विशेषकर बेटियों की हत्या कर दें या उनके प्रति कठोर रुख़ अख़्तियार कर लें। सरकार भी बच्च्यिों के पालन-पोशण व पढ़ाई के लिए कई योजनाएँ व कार्यक्रम चलाती है।

इस दुर्भाग्यपूर्ण हादसे के बाद पंजाब राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष कंवरदीप सिंह ने इस हादसे पर दु:ख प्रकट किया और कहा कि मासूम छोटी बच्चियों की हत्या एक क्रूर अपराध है और अपराधियों को कठोरतम सज़ा मिलनी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई ऐसा अपराध करने की जुर्रत न करे। उन्होंने यह भी बताया कि जो अभिभावक आर्थिक क़िल्लत के चलते अपने बच्चों का पालन-पोषण करने में ख़ुद को असमर्थ पाते हैं, वे अपने बच्चों को बाल कल्याण समितियों को सौंप सकते हैं। इसके अलावा बाल हेल्पलाइन नंबर 1098 पर फोन करके अपनी समस्या बता सकते हैं। बाल कल्याण समितियाँ अभिभावकों को दो माह का वक़्त देती हैं। अगर अभिभावक उसके बाद भी अपना $फैसला नहीं बदलते, तो छ: साल से कम आयु के बच्चों को उन अभिभावकों को सौंप दिया जाता है, जो बच्चों को गोद लेने के इच्छुक होते हैं। इसके लिए गोद लेने के बनी सरकारी गोद प्रक्रिया का अनुपालन किया जाता है। बाल कल्याण समितियों के अलावा हर ज़िले में बाल संरक्षण इकाई का भी गठन किया गया है। पंजाब बाल अधिकार संरक्षण के अध्यक्ष ही दावा कर रहे हैं कि राज्य के हर ज़िले में बाल संरक्षण इकाई है, तो कानपुर वाला हादसा क्यों हुआ? क्या ऐसी इकाइयाँ ग्रामीण स्तर पर जागरूकता अभियान नहीं चलातीं? क्या वो यह नहीं बतातीं कि अगर कोई अपनी संतान को आर्थिक कमी के चलते पालने में असमर्थ है, तो उसे मदद के लिए कहाँ जाना चाहिए?

छत्तीसगढ़ के पुत्रीखेरा गाँव में भी एक मज़दूर की 12 साल की बेटी ने समय पर खाना नहीं बनाया, तो उसकी माँ ने बेटी को कुल्हाड़ी से काट डाला। दरअसल हमारे समाज का नज़रिया लड़कियों के प्रति संकीर्ण है। बेशक महिला वैज्ञानिक, महिला खिलाड़ी अपनी उपलब्धियों से देश का सम्मान बढ़ा रही हैं; लेकिन क्या वजह है कि आज भी देश में बाल लिंगानुपात सिकुड़ा हुआ है।

वहीं कभी दहेज़ के नाम पर, तो कभी जाति से बाहर प्रेम विवाह करने पर लड़कियों की हत्या कर दी जाती है।