अफीम कहीं बेहतर है हेरोइन से। नशे से अपने युवा बच्चों को छुड़ाने की बजाए हम उनमें अफीम की लत पैदा कर रहे हैं।
‘अफीम कहीं बेहतर है हेरोइन से। यह सलाह दी है कांग्रेस के नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने। अपने इस बयान के चलते उन्होंने पंजाब में एक नया विवाद पैदा कर दिया है, और पंजाब में अफीम की फसल उगाने को बढ़ावा दे दिया है। उन्होंने सलाह दी है कि चूंकि अफीम हेरोइन से बेहतर है इसलिए इस पर लगी रोक हटाई जाए और पंजाब में इसका उत्पादन हो। जब सिद्धू ने यह कहा तो वहां पुलिस के महानिदेशक सुरेश अरोड़ा मौजूद थे।
विपक्ष जिटरी
इस बयान के तुरंत बाद ही हरियाणा के मंत्री अनिल विज ने सिद्धू के खिलाफ ‘मादक द्रव्यों’ के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के आरोप में आपराधिक मामला दर्ज कर गिरफ्तार करने की मांग की है। साथ ही अपने ही मंत्रिमंडल के एक साथी के खिलाफ ऐसा न कर पाने पर पद से इस्तीफा देने की मांग की है। क्योंकि उन्होंने ही पिछले साल ‘मादक द्रव्यों’ पर रोक लगाने के मुद्दे को बढ़ावा देते हुए उसे चुनावी मुद्दे बतौर लड़ा और जीत हासिल की।
अमरिंदर सिंह को अब सिद्धू के खिलाफ एफआईआर दर्ज करानी चाहिए क्योंकि उन्होंने एक मादक द्रव्य के प्रचलन को जायज ठहराया है। अकाली दल के प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा ने कहा, सिद्धू का बयान ही काफी है यह प्रमाणित करने के लिए कि राज्य सरकार मादक द्रव्यों के प्रचार-प्रसार को थामने में नाकाम रही।
मुख्यमंत्री ने जबकि चुनावों के दौरान दावा किया था कि वे गद्दी संभालने के एक महीने के अंदर युवाओं को मादक द्रव्यों से छुटकारा दिला देंगे। लेकिन अब उनके ही मंत्रिमंडल के एक सहयोगी यह मांग कर रहे हैं कि अफीम की खेती को कानूनी तौर पर वैध किया जाए। मुख्यमंत्री को यह बताना चाहिए कि कैसे अफीम की खेती और उसकी सहज उपलब्धता से कैसे नशे की लत खत्म होगी।
ऑन ए हाई
अभी हाल ‘ग्रामीण पंजाब में अफीम का प्रचलन और तौर तरीका’ विषय पर कराए गए सर्वे में यह जानकारी मिली थी कि ज़्यादातर लोग अफीम खाने के लती हैं। पंजाब के तीन जि़लों में कराए गए इस सर्वे से यह जानकारी हुई। जिन 1400 घरों को चुना गया उनमें 1276 को इस अध्ययन में शामिल किया गया। जिन लोगों से बातचीत की गई। उनमें ज़्यादातर की उम्र 15 साल से ऊपर की थी। इस सर्वे में 2064 पुरूष और 1536 महिलाएं थी। अफीम खाने वालों का फीसद महिलाओं की तुलना में कही ज़्यादा था।
पारंपरिक तौर पर पंजाब में अफगानिस्तान के पोस्त के पौधे (पॉपी) खेतों में उपजते हैं वह भी तालिबानी संरक्षण में । उनके लिए यह पैसा कमाने का एक बड़ा जरिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ में ड्रग्स एंड क्राइम के कार्यालय में मिली जानकारी के अनुसार अफगानिस्तान में जहां यह खेती होती है। उसका पूरा क्षेत्रफल 3,28000 हेक्टेयर 2017 में था। यानी यह पिछले साल से 63 फीसद ज़्यादा था। अनुमानित अफीम उत्पादन 2017 में 9000 टन ज़्यादा यानी 2016 से भी कहीं अधिक।
पंजाब में मादक द्रव्यों का अकेला यही स्त्रोत नहीं है बल्कि और सस्ती मादक दवाएं जो कथित फार्मास्यूटिकल फैक्टरियों में बनती हैं। फिर पाकिस्तानी सीमा से ढ़ेरों तरह की दवाएं पंजाब में आती हैं
मादक द्रव्यों के विक्रेता खुद भी नशे के आदी होते हैं। मादक द्रव्यों का यह लती ही पूरे डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क का बहुत अह्म व्यक्ति होता है। इस नेटवर्क में कोई सिपाही भी शामिल हो सकता है। पंजाब पुलिस के 100 से ज़्यादा लोगों को दवाओं की तस्करी या व्यापार करने के आरोपों में 2014 से अब तक गिरफ्तार किया गया है। इनमें 30 को तो पिछले साल मार्च में जीत कर आई अमरिंदर सिंह की कांगे्रस सरकार के राज में गिरफ्तार किया गया। सिर्फ सिपाही ही नहीं बल्कि प्रभावशाली राजनेता भी मादक द्रव्यों के प्रसार में सहायक नजऱ आते हैं। समय बीतने के साथ कई राजनेताओं का ब्यौरा पकड़ में आ रहा है जो मादक द्रव्यों के प्रसार में सक्रिय रहे हैं।
यह विवादास्पद बयान तब आया है जब मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने पंजाब में मादक द्रव्यों के खिलाफ अपनी लड़ाई को अहमियत दे रखी है। जाहिर है पंजाब के मुख्यमंत्री को ही सिद्धू के बयान पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया देनी चाहिए। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि किसी भी कीमत पर मादक द्रव्यों को पंजाब की धरती पर वैध नहीं होने देंगे। क्योंकि राज्य मादक द्रव्यों के खिलाफ लड़ रहा है।
खफा हैं मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज ज़रूरत इस बात की है कि राष्ट्रीय दवा नीति बने जिससे मादक द्रव्यों को थामा जा सके। जिसे मैं पहले भी कहता रहा हूं। यह ज़रूर अच्छी बात है कि अफीम की खेती का मामला व्यापक तौर पर उभरा है। एक राज्य जो अफीम जैसी दवा का उत्पादन करता है और उसे दूसरे राज्य में बेचता है इसे कतई मंजूर नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे युवा पीढिय़ों की बर्बादी हो रही है। आज ज़रूरी है कि हम इस मामले पर एक बार और हमेशा के लिए समझ-बूझ लेते हैं। उन्होंने कहा कि भारत की अपनी अलग दवा नीति है। इस पर कड़ाई से अमल किया जाना चाहिए। फार्मा उद्योग को जो कुछ चाहिए उसके लिए सरकार अलग नीति बनाए और अमल करे। सावधानी से नीति पर अमल होना चाहिए जिससे यह राज्यों को लीक न हो और पंजाब के बाजारों में न पहुंच पाए।
मुख्यमंत्री ने 18 जुलाई 2018 को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को एक पत्र लिख कर आग्रह किया था कि सरकार एक प्रभावशाली राष्ट्रीय दवा विरोधी नीति बनाए और समन्वित प्रयास करके पंजाब में मादक द्रव्यों का प्रसार रोका जा सके। उन्होंने पड़ोसी राज्यों हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान की सरकारों को लिखकर अपील की कि वे पंजाब में मादक द्रव्यों के खिलाफ चल रही लड़ाई में सहयोग करें। पंजाब को तस्करी न होने देें। उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री से यह भी अपील की कि सभी सरकारी कर्मचारियों और पुलिस के लोगों का ‘डोप टेस्ट’ कराने की छूट दी जाए। उन्होंने ऐसे कई कायदे-कानून भी जारी किए हैं जिससे राज्य के दवा कानून पर ईमानदारी से अमल हो। सभी को इस बात पर खासा अचंभा हुआ कि कैसे आप सांसद धर्मवीर गांधी ने सिद्धू को समर्थन दे दिया। उन्होंने भी पंजाब में अफीम की बिक्री और खेती की मांग को समर्थन दे दिया। सिद्धू ने कहा था कि मेरे काका को अस्पताल से बतौर दवा अफीम मिलती थी। यह कम से कम उस ‘चिट्टा’ (हेरोइन) से तो बेहतर है जिसके कारण मां-बाप को अपने बच्चों की लाशें देखनी पड़ती है।
उन्होंने गांधी की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने एक एनजीओ नोबल फाउंडेशन की ओर से मुक्तसर मंडी में हुए जलसे में अफीम की खेती की वकालत की थी और अफीम के डोडे(पॉपी) की बिक्री को उचित ठहराया था। इसी साल जुलाई में गांधी ने केंद्रीय गृहमंत्री को इस आशय का अपना प्रार्थना पत्र भी दिया था। आप के इस सांसद को पार्टी ने मुअत्तल कर दिया था।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदन सिंह ने सिद्धू को उनकी अपील के लिए आडे हाथों लिया। पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा,कि यह कितनेे तकलीफ की बात है कि ऐसी कोई मांग पंजाब में उठ रही है। यह हो सकता है कि राज्य में अफीम वितरण केंद्रो की व्यवस्था हो। लेकिन पंजाब में अफीम की वैधता का कोई सवाल ही नहीं उठता। पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के इस बयान से तो फिलहाल यही जान पड़ता है कि राज्य के युवाओं के लिए यह व्यवस्था हो कि वे स्वस्थ जीवनयापन कर सकें। क्या हम राज्य को नशाखोरों का अड्डा बनाने दें।