इस साल बुन्देलखण्ड में सूखा पडने की आहट को देखते ही किसानों में मायूसी के बादल छाने लगे है। बताते चले बुन्देलखण्ड सूखा के नाम से ही जाना है। यहां पर साल दर साल कम वर्षा होने के कारण लोगों को पानी की समस्या से जूझना ही पड रहा है।आलम ये है कि जुलाई का आधा महीना बीत गया है ।वर्षा ना के बराबर हुई है। मानसून विशेषज्ञों का कहना है कि अगर वर्षा में और विलम्ब हुआ तो, किसानों को वुबाई में काफी दिक्कत होगी। वैसे ही यहां का किसान मौजूदा वक्त में कोरोना काल में काफी परेशान है । ऐसे में अगर मानसून दगा देता है, तो स्थिति और भी भयावह हो सकती है। किसान प्रेमबाबू का कहना है कि बुन्देलखण्ड का इतिहास ही यही रहा है कि एक साल अगर अच्छी वर्षा हो जाये तो अगले साल जरूर वर्षा काफी कम होगी। क्योंकि सन् 2019 में यहां पर जमकर वर्षा हुई थी । जिसके कारण यहां के किसानों की जिन्दगी में काफी राहत रही है, पर लगता है कि इस साल बारिश चकमा देने के मूढ में है।
बुन्देलखण्ड के जिला महोबा के किसानों जुगल और लखनपाल का कहना है कि जुलाई के महीने में अनुमानित वर्षा काफी कम हुई है, जो सूखा पडने का संकेत है। पर उम्मीद है कि आगामी दिनों में और अगस्त में अगर सही बारिश हो जाती है तो किसानों को काफी राहत होगी।बांदा और झांसी जिले में भी यही हाल है । सबसे चौकानें वाली बात ये है कि मौसम विभाग के आंकडों पर गौर करें तो झांसी जिले में औसत 800 से 900 मिमी यानि की 31 से 35 इंच बारिश होती है।
जबकि 15 जुलाई तक 70.64 ममी ही बारिश दर्ज की गई है यानि की 8.33 इंच कम है।इसी तरह के बुन्देलखण्ड के अन्य जिलों की स्थिति है। किसानों का साफ कहना है कि अगर बारिश ने रफ्तार ना पकडी तो सूखे के हालात ही पैदा ना होगे बल्कि किसानों को कोरोना काल में काफी दिक्कतों से जूझने को मजबूर होना पडेगा। मूंगफली की बुवाई करने वाले किसान रतन का कहना है कि देश में जब भी कोई समस्या आती है तो किसानों को सबसे पहले ही सामना करना होता है। जैसे कोरोना काल में किसानों को अपनी फसल को बेचने के लिये काफी दिक्कत का सामना करना पडा और फसल के दाम भी सही नहीं मिलें।अब किसानों को मंहगे दामों में डीजल को खरीदना पड रहा है। अगर बारिश ना हुई तो आगे भी बुवाई के लिये खेतों में पानी के डीजल से ही सिंचाई करनी होगी जो गरीब किसानों को और कमजोर कर देगीं।