उत्तर प्रदेश की सियासत में उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुन्देलखण्ड की सियासत का अपना अलग ही मिजाज़ है। इस लिहाज़ से बुन्देलखण्ड की राजनीति को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। बताते चलें कि बुन्देलखण्ड में 19 विधानसभा सीटें हैं। सन् 2017 में वहाँ की सभी 19 सीटों पर भाजपा ने ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार 2022 के चुनाव में भाजपा को 19 में से 16 सीटों पर ही जीत मिली है। तीन सीटें इस बार समाजवादी पार्टी (सपा) ने भाजपा से छीन लीं।
दरअसल बुन्देलखण्ड की राजनीति में जातीय और धार्मिक समीकरण के बनने-बिगडऩे में देर नहीं लगती है। ऐसा ही इस बार हुआ है। जो तीन सीटें भाजपा से छिटककर सपा में चली गयीं, उसकी वजह जातीय और धार्मिक समीकरणों का ही मामला है। उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुन्देलखण्ड में सात ज़िले झाँसी, ललितपुर, जालौन, बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट और महोबा हैं।
झाँसी ज़िले में चार विधानसभा सीटें हैं, जिनमें झाँसी विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी रवि शर्मा, गरौठा विधानसभा सीट से भी भाजपा प्रत्याशी जवाहर सिंह राजपूत, बबीना विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी राजीव सिंह पारीक्षा और मऊरानीपुर सुरक्षित सीट से भाजपा की गठबंधन पार्टी अपना दल की प्रत्याशी डॉ. रश्मि आर्या ने जीत हासिल की है। ललितपुर ज़िले में दो विधान सभा सीटें हैं, जिनमें ललितपुर विधानसभा सीट से भाजपा के प्रत्याशी रामरतन कुशवाहा और महरौनी विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी मनोहर लाल पंथ ने जीत हासिल की है। हमीरपुर ज़िले की दोनों सीटों पर भाजपा का दबदबा क़ायम रहा है। इनमें हमीरपुर विधानसभा सीट से भाजपा के मनोज प्रजापति और राठ विधानसभा सीट से भाजपा की मनीषा अनुरागी ने जीत हासिल की है। महोबा ज़िले में दो विधानसभा सीटें हैं, जिनमें महोबा सीट से भाजपा प्रत्याशी राकेश गोस्वामी और चरखारी विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी बृजभूषण राजपूत ने जीत हासिल की है। जालौन ज़िले में तीन विधानसभा सीटें हैं- उरई, माधौगढ़ और कालपी। इनमें माधौगढ़ और उरई में तो भाजपा के प्रत्याशी मूलचंद्र निरंजन और गौरी शंकर वर्मा ने जीत हासिल की है। जबकि कालपी में सपा के प्रत्याशी विनोद चतुर्वेदी ने जीत हासिल की है। इसी तरह बाँदा में चार विधानसभा सीटें हैं। बाँदा से भाजपा के प्रत्याशी प्रकाश द्विवेदी, नरैनी से भाजपा प्रत्याशी ओममणि वर्मा तिन्दवारी से भाजपा प्रत्याशी रामकेश निषाद ने जीत हासिल की है। वहीं बबेरू विधानसभा सीट से सपा प्रत्याशी विशंभर सिंह यादव ने जीत हासिल की है। चित्रकूट ज़िले में दो सीटें हैं। इनमें चित्रकूट विधानसभा सीट से सपा के प्रत्याशी अनिल प्रधान ने जीत हासिल की है, जबकि मानिकपुर विधानसभा सीट से अविनाश चन्द्र द्विवेदी ने अपना दल-भाजपा गठबंधन से जीत हासिल की है।
बुन्देलखण्ड के लोगों ने बताया कि चुनाव के पूर्व जो भाजपा और सपा के बीच काँटे का मुक़ाबला दिखाये जाने का जो माहौल बनाया गया था, वह सिर्फ़ माहौल था; धरातल पर कुछ नहीं था। क्योंकि भाजपा अपनी राजनीति अपने तरीक़े से कर रही थी। भाजपा यह मानती थी कि कुछ सीटों पर हार हो सकती है। लेकिन ज़्यादातर सीटों पर जीत उसी की होगी और भाजपा ही सरकार बनाएगी। भाजपा अपने परम्परागत वोटों को साधने में लगी रही और कामयाब भी हुई है। जबकि सपा का जो परम्परागत वोट बैंक है, वही वोट बैंक बसपा और कांग्रेस का भी रहा है। इधर सपा से वोट कटकर बसपा और कांग्रेस में भी गया है। मामूली स्तर पर ओवैसी ने भी सपा का वोट काटा। इसी का लाभ भाजपा को बड़ी आसानी से मिल गया।
बुन्देलखण्ड में एम-वाई फैक्टर भाजपा और सपा के बीच जमकर चला है। यहाँ पर सपा के लिए एम-वाई का मतलब मुस्लिम और यादव था, तो भाजपा के लिए मोदी और योगी था। बुन्देलखण्ड की राजनीति के जानकार जे.के. द्विवेदी ने बताया कि चुनाव के पूर्व जो माहौल बनाया गया था, उसकी हक़ीक़त को सपा जान नहीं पायी। क्योंकि कुछ नेता जो सपा के स्थानीय स्तर के बड़े नेता हैं, वे भाजपा में चुनाव से 2-4 दिन पहले शामिल हो रहे थे। जो सपा का वोट काटने में सक्षम थे। वहीं भाजपा के राष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय नेता एक मिशन के तहत काम कर रहे थे और परिवारवाद की राजनीति के विरोध में माहौल बना रहे थे, जबकि सपा के नेता इस भ्रम थे। उनको लगा कि जनता ख़ुद प्रदेश में बदलाब के मूड में थी कि भाजपा का विकल्प ही सपा है, सो सपा जीतेगी। यानी अत्याधिक आत्मविश्वास सपा के हारने का कारण बना है। दूसरा सपा के मुखिया अखिलेश यादव ही चुनाव प्रचार की कमान अकेले साधे हुए थे, सो वह जनता के बीच ज़्यादा प्रचार नहीं कर पाये। वहीं भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कई केंद्रीय मंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्रियों, विधायकों सहित कई राज्यों के मुख्यमंत्री भाजपा के लिए वोट माँग रहे थे। इसका सीधा लाभ भाजपा को हुआ है। सपा के वरिष्ठ नेता रामखिलावन यादव का कहना है कि बुन्देलखण्ड में भाजपा ने इस बार दो सीटों पर अपना दल से गठबंधन किया है। इसमें मऊरानीपुर और मानिकपुर विधानसभा सीटें हैं। इन दोनों सीटों पर भाजपा-अपना दल के गठबंधन का काफ़ी असर पड़ा है। क्योंकि अपना दल का पटेलों का जो वोट बैंक है, वो पूरा-का-पूरा भाजपा में गया है। पिछले चुनावों में यह वोट सपा और बसपा में चला जाता था। मऊरानीपुर सुरक्षित सीट से अपना दल की प्रत्याशी डॉ. रश्मि आर्या थीं। उन्होंने सपा के प्रत्याशी तिलकचंद्र अहिरवार को लगभग 59,000 वोटों से पराजित किया है। वहीं मानिकपुर सामान्य सीट पर अपना दल के प्रत्याशी अविनाशचन्द्र द्विवेदी ने सपा के प्रत्याशी वीर सिंह पटेल को पराजित किया है। इस बार भाजपा और अपना दल गठबंधन का लाभ भाजपा को मिला है।
प्रदेश और बुन्देलखण्ड की राजनीति के जानकार रामदास पटेल का कहना है कि चुनाव के पहले तो लग रहा था कि इस बार सपा काफ़ी बढ़त लेगी, क्योंकि सपा ने रालोद और ओमप्रकाश राजभर की पार्टी से गठबंधन किया है। लेकिन जनता के बीच यह सन्देश भी गया था कि अंतत: सरकार भाजपा की ही बनेगी। इस वजह से भी रातोंरात मतदाताओं की सोच में जो बदलाव देखने को मिला, उससे ही लगने लगा था कि चुनाव परिणाम चौंकाने वाले ही साबित होंगे। भाजपा ने चुनाव पूर्व जो सर्वे कराया था, उसके आधार पर तैयारी भी की। वहीं उसने ऐसे प्रत्याशियों पर दाँव नहीं लगाया, जिनकी पहले ही हार दिख रही थी। इधर सपा ने कई सिफ़ारिशी प्रत्याशियों को टिकट दे दिया, जिसके कारण सपा को हार का सामना करना पड़ा। रामदास पटेल का कहना है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उन प्रत्याशियों को टिकट दिये, जिनका जनता से कोई सीधा सम्पर्क नहीं था। इनमें से ज़्यादातर प्रत्याशी मुलायम सिंह यादव के ज़माने से ही टिकट पाते आ रहे थे।
कुल मिलाकर बुन्देलखण्ड के चुनावी नतीजों ने बता दिया है कि अब भाजपा की एकतरफ़ा जीत आसान नहीं है, क्योंकि 2017 वाला दबदबा 2022 में नहीं दिखा। ऐसे में आने वाले समय में सपा फिर बुन्देलखण्ड ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश में विकल्प बन सकती है, क्योंकि उसके बहुत प्रत्याशियों की मामूली वोटों से हार हुई है।