निर्देशक अब्बास मस्तान
कलाकार अभिषेक बच्चन, बिपाशा बसु, बॉबी देओल, सोनम कपूर, नील नितिन मुकेश
शीर्षक के गहरे अर्थ निकालने की कोशिश कृपया न करें क्योंकि यह फिल्म का एक गाना है और वहां इसका कोई खास इस्तेमाल नहीं हो सका इसलिए हमने इसे यहां फिट करने की कोशिश की.
खैर, ‘प्लेयर्स’ के बारे में ऐसा कुछ नया नहीं है, जो आपको मालूम न हो. यह सोना लूटने की कहानी है जिसमें कई ट्विस्ट हैं और ‘रेस’ की तरह कई धोखे हैं. इस तरह की फिल्मों की अब्बास-मस्तान की अपनी शैली है जिसमें वे हर बार इमोशनल मेलोड्रामा नहीं डालते, जो इस बार भर दिया है. उसका सारा जिम्मा विनोद खन्ना के कन्धों पर डाल दिया गया है जिन्होंने इतनी ओवरएक्टिंग की है कि जब वे फिल्म में मरते हैं तो हैप्पी-हैप्पी लगता है. ऐसे दृश्यों के लिए डायलॉग भी इतने नाटकीय लिखे गए हैं कि कुछ देर तो आप फिल्म की गंभीर बातों को भी मजाक में लेते रहते हैं. और मजाक तो ऐसा है कि उस पर माथा पीटना ही आपकी नियति है.
ऐसी फिल्मों में तर्क से ज्यादा जोर त्वचा दिखाने पर दिया जाता है और बिपाशा बसु ने इसमें काफी सराहनीय योगदान दिया है. इसके लिए उन्हें लंबे समय तक याद रखा जाएगा. सोनम कपूर को ज्यादा समय उसी जबरदस्ती के मेलोड्रामा का हिस्सा बनना पड़ा है और आखिर में उनका दिल रखने के लिए किसी पुरुष को रिझाने वाला कम कपड़ों का एक गाना उनके हिस्से भी आया है. ऐसी फिल्में इस तरह की समानता और न्याय का ध्यान कहानी से ज्यादा रखती हैं कि सब सितारों को अपने नाम के अनुसार फुटेज मिले. इस बात का भी खास ध्यान कि फिल्म में सितारे या उनके बेटे बेटियां ही हों, एक्टर नहीं. जॉनी लीवर भी जबरन आते हैं और सिर नोचने की हद तक पकाते हैं. जॉनी लीवर और अब्बास-मस्तान का हास्यबोध शायद एक जैसा ही है. ओमी वैद्य एक पंजाबी युवक बने हैं जो किसी अज्ञात कारण से अपने ‘चतुर’ वाले लहजे में हिन्दी बोलता है, बीच बीच में ‘ओ तेरी’ से अपने पंजाबी होने की रस्म निभाता हुआ. रेलगाड़ी की लूट का लंबा दृश्य है, लंबे हवाई शॉट और गाड़ियों की रेस के और टूटने के वीडियोगेम जैसे लंबे दृश्य भी और आपका पैसा इस तरह से वसूल होता हो तो कुछ हो ही जाएगा. फिल्म अधिकांश समय आपकी परवाह किए बिना चलती है, और अपनी भी. आखिर तक आते-आते लगता है कि अभिषेक बच्चन ही फिल्म को गंभीरता से ले रहे हैं और बाकी सब नौकरी जैसा कुछ कर रहे हैं.लेकिन कुछ होता है कि फिल्म के अंत तक आते आते आप उसी के स्तर पर आ जाते हैं और हीरो के पक्ष के सारे हीरो-हीरोइन-साइडहीरो आदि विलेन को पुराने फिल्मी अंदाज में मारते हैं तो अच्छा लगता है. आप चाहते हैं कि एक विकल्प हो, जिसमें आप भी स्क्रीन के अन्दर घुस जाएं और उसे मारें. मौका मिले तो उन्हीं में से किसी की रिवॉल्वर निकालकर एकाध किरदार को भी टपका दें, जिससे सीक्वल बनने की संभावना कुछ तो कम हो.
गौरव सोलंकी