अंतत: बिहार में मुज़फ्फरपुर जि़ले में पुलिस ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते अपराधों को रोकने के लिए प्रधानमंत्री को एक खुला पत्र भेजने के लिए बुद्दिजीवियों के खिलाफ दर्ज मामले को बंद करके अच्छा काम किया है। हालांकि सवाल बरकरार है कि विचारों को व्यक्ति करने के लिए व्यक्ति कब तक रूढि़वादिता के निशाने पर रहेगा।
फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल और मणिरत्नम और गयिका शुभा मुदगल सहित 49 बुद्धिजीवियों जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘मॉब लिचिंग’ और अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते घृणा के अपराध पर चिंता व्यक्त करते हुए खुला पत्र लिखा था। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करना एक धमकी से कम नहीं है। हालांकि बाद में किन्ही कारणों से इस एफआईआर को रद्द कर दिया गया पर जो नुकसान होना था वह तो हो चुका। इससे देश में अभिव्यक्ति के अधिकार पर तो एक प्रश्न चिन्ह लग ही गया। इस तरह यह देश में बढ़ती असहिष्णुता की गंभीर याद दिलाता है। समाज को इस तरह से ध्रुवीकृत किया गया है इसका अंदाजा इस बात से लग जाता है कि जैसे ही यह पत्र मीडिया में जारी किया गया उसके तुरंत बाद ही शास्त्रीय नर्तकी और राज्यसभा सांसद सोनल मानसिंह, अभिनेत्री कंगना रानौत, गीतकार प्रसुन जोशी सहित 61 हस्तियों ने संप्रदायवादी धारा के खिलाफ अपने विचार व्यक्त किए। अब बिहार के मुज़फ्फरपुर पुलिस स्टेशन में एक एफआईआर दर्ज होने के साथ ही वे सब कटघरे में है जिन्होंने याद दिलाया कि असहमति के बिना लोकतंत्र संभव नहीं है। ये सभी बुद्धिजीवी अपने अपने क्षेत्र में बहुत सम्मानित हैं। उन पर लगाए राजद्रोह के आरोप, एक सार्वजनिक उपद्रव उत्पन्न कर रहे हंै और धार्मिक भावनाओं को आहत कर रहे हैं।
किसी भी तर्कसंगत बात को दबाने के लिए किया गया कोई भी प्रयास लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है। स्वाभाविक तौर पर प्रधानमंत्री को पत्र लिखने को लेकर केस दर्ज होने से नाराजग़ी हुई है। श्याम बेनेगल, अदूर गोपालकृष्णन, कोंकणा सेन शर्मा, अपर्णा सेन और रामचंद्र गुहा जैसी हस्तियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई सार्वजनिक चिंता के मामले में पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए असहिष्णुता का बदसूरत चेहरा दिखाती है।
जनमत के लिए अपराधिक उपेक्षा और राजद्रोह के प्रावधान का स्पष्ट उपयोग अनेकवाद और सहिष्णुता के साथ नही है।
विवाद में एक और मोड आया जब इतिहासकार रोमिला थापर, लेखक के सच्चिदानंदन, अभिनेता नसीरूद्दीन शाह और लेखक सबा दीवान सहित 185 हस्तियों ने उन 40 बुद्धिजीवियों को अपना समर्थन दिया जिन्होंने भारत में बढ़ती असहिष्णुता पर चिंता व्यक्त करते और लोकतंत्र की रक्षा के लिए मतभेद व्यक्त करने की इज़ाज़त मांगते हुए पत्र लिखा था। यह पत्र याद दिलाता है कि प्रधानमंत्री संसद में मॉब लिंचिंग की आलोचना करते हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। इस तरह के अपराधों को गैर-जमानती घोषित करने की आवश्यकता है, और कठोर सज़ा तेजी से और निश्चित रूप से दी जानी चाहिए। पत्र को आपत्तिजनक पाते हुए एक वकील सुधीर कुमार ओझा ने धारा 124ए (देशद्रोह) 153बी और आईपीसी की धारा 160,190, 290, 297 और 504 के तहत सदर पुलिस स्टेशन में 49 बुद्धिजीवियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। पिछले दिनों ओझा ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी अरविंद केजरीवाल आदि नेताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी। एफआईआर तर्कपूर्ण आवाज को दबाने की कोशिश है और सभी समझदार लोगों को इस पर नाराजग़ी होनी चाहिए, क्योंकि विचार व्यक्त करने के अधिकार के बिना लोकतंत्र संभव नहीं हो सकता ।