झारखण्ड की एक बच्ची द्वारा माँ को पढ़ाने से प्रेरित हुए ग्रामीण
बच्चों ने एक साल में क़रीब 16,000 बुज़ुर्गों को बनाया साक्षर
पढ़ाई को बचपन से जोड़ा गया है। लेकिन इसकी कोई उम्र नहीं होती। प्राचीन ग्रन्थों को देखें, तो गर्भावस्था में भी शिक्षा मिलती थी। सुभद्रा के गर्भ में रहकर अभिमन्यु ने चक्रव्यूह-भेदन की कला सीख ली थी। हाल ही में सिने अभिनेता अभिषेक बच्चन की एक फ़िल्म दसवीं पास। इस फ़िल्म में दिखाया गया है कि अभिषेक एक क़द्दावर नेता और प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उन्हें भ्रष्टाचार में जेल होती है। वहाँ वह 10वीं पास करने की ठान लेते हैं। वह जेल से ही 10वीं की पढ़ाई करके परीक्षा पास करते हैं। बाद में मंत्री बनकर शिक्षा का प्रचार करते हैं और कहते हैं कि पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती है। इससे ज्ञान बढ़ता है। सोचने की शक्ति बढ़ती है। जीवन स्तर बदलता है।
यह फ़िल्म की बात है; पर यह एक सच्चाई भी है। झारखण्ड की बात करें, तो शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो को मंत्री बनने के बाद ताना सुनना पड़ा कि वह केवल 10वीं पास हैं। जगरनाथ महतो पारिवारिक परेशानी के कारण आगे नहीं पढ़ पाये थे। महतो 10वीं पास के ताने से इतने आहत हुए कि अपनी पुरानी ख़्वाहिश को पूरा करने में जुट गये। मंत्री बनने के बाद उन्होंने पहला काम किया 11वीं में कॉलेज में नामांकन लिया। वह परीक्षा भी दे रहे हैं।
यह सही है कि पढ़ाई के लिए सबसे अच्छा बचपन माना गया है। लेकिन कई ऐसे लोग हैं, जो कारणवश पढ़ाई के सपने को पूरा नहीं कर पाते हैं। समाज में इस तरह के लोग उम्र के एक पड़ाव पर जाकर शिक्षा हासिल करते हैं। केरल के कोल्लम में रहने वाली 105 साल की भागीरथी अम्मा ने राज्य साक्षरता मिशन के तहत चौथी कक्षा के बराबर की परीक्षा पास करके मिसाल क़ायम कर दी। पढ़ाई करना उनकी बचपन की ख़्वाहिश थी।
देहरादून के निवासी मोहनलाल ओनएनजीसी से उप महाप्रबंधक के पद से रिटायर हुए। उन्होंने अपने सपनों को साकार करने के लिए रिटायरमेंट के बाद दोबारा पढ़ाई शुरू की। दो साल पहले इग्नू से मास्टर इन टूरिज्म में डिग्री हासिल की। इस तरह के कई उदाहरण हमारे देश में भरे पड़े हैं। ऐसा ही कुछ पढ़ाई का सिलसिला इन दिनों झारखण्ड के लातेहार में चल रहा है। $खास बात यह है कि इस शिक्षा की अलख जगा रहे बच्चे अपने माँ-बाप के साथ-साथ आसपास के लोगों को भी साक्षर बना रहे हैं।
प्रौढ़ शिक्षा का नाम बदला
केंद्र सरकार ने प्रौढ़ शिक्षा को एक बार फिर नये सिरे से शुरू करते हुए इसका नाम न्यू इंडिया साक्षरता कार्यक्रम (नव भारत साक्षरता कार्यक्रम) रखा था। अब सरकार ने इसका नाम भी बदलकर ‘सभी के लिए शिक्षा’ रखा है। वित्त वर्ष 2022-2027 की अवधि में शिक्षा को एक नये रूप में लेकर आने की योजना है। इस योजना का उद्देश्य न केवल आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता प्रदान करना है, बल्कि 21वीं सदी के नागरिक के लिए आवश्यक अन्य घटकों को भी शामिल करना है।
झारखण्ड की साक्षरता दर
झारखण्ड की भौगोलिक स्थिति, यहाँ के रहन-सहन, परिवेश, ग़रीबी आदि के कारण साक्षरता दर काफ़ी कम रही है। हालाँकि बीते कुछ वर्षों में इसमें सुधार आया है; लेकिन अभी और सुधार की ज़रूरत है। राज्य में सन् 1961 में केवल 21.14 साक्षरता दर थी। उस वक़्त महिलाओं का केवल 6.11 फ़ीसदी हिस्सेदारी थी। सन् 1991 में साक्षरता दर 41.59 फ़ीसदी पर पहुँची। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार साक्षरता दर 66.41 फ़ीसदी थी। राज्य के शिक्षा विभाग के आँकड़ों के मुताबिक, सन् 2018 में साक्षरता दर 73.20 फ़ीसदी थी। लेकिन कोरोना वायरस के कारण साक्षरता कार्यक्रम पर बुरा असर पड़ा। हालाँकि एक बार फिर इस अभियान को शुरू किया गया है।
नक्सली इलाक़े में शिक्षा की अलख
झारखण्ड की राजधानी रांची से लगभग 125 किलोमीटर की दूरी पर 3,622 वर्ग किलोमीटर में फैला लातेहार ज़िला है। इसकी आबादी लगभग 7.26 लाख है। इसमें 3.69 लाख पुरुष और 3.57 लाख महिलाएँ हैं। कुल आबादी में 66 फ़ीसदी से अधिक अनुसूचित जाति (लगभग 45.54 फ़ीसदी) और बाक़ी अनुसूचित जनजाति के लोग हैं।
लातेहार अपनी समृद्ध प्राकृतिक सुंदरता, वन, वन उत्पादों और खनिज के लिए जाना जाता है। यह ज़िला कभी घोर नक्सल प्रभावित था। गोलियों की आवाज़ इलाक़े में गूँजा करती थी। पिछले कुछ वर्षों में नक्सल प्रभाव कम हुआ, तो इलाक़े में बदलाव आने लगा। अब कई जगहों पर गोलियों की जगह ककहरा (वर्णमाला पढऩे) की आवाज़ आने लगी है।
पढ़ रहे बुज़ुर्ग
लातेहार में बच्चों द्वारा बुज़ुर्गों को पढ़ाने की घटना खेल-खेल में ही शुरू हुई। स्थानीय लोगों का कहना है कि ज़िले के सुदूर इलाक़े में एक गाँव है, जहाँ के आठवीं कक्षा में एक बच्ची पढ़ती थी। एक दिन उसकी माँ बच्ची के साथ किसी काम से स्कूल जाना पड़ा। वहाँ अध्यापक ने बच्चों को मिलने वाली सुविधा से सम्बन्धित किसी काग़ज़ पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा। बच्ची की माँ अनपढ़ थी, वह न ही काग़ज़ पर लिखा समझ सकी और न हस्ताक्षर कर सकी।
शिक्षक और बेटी द्वारा काग़ज़ पर लिखी बातें बताने पर उन्होंने अँगूठा लगाया। इस पूरे घटनाक्रम ने बच्ची को शर्मिंदा किया। उसने माँ को कहा कि वह उसे पढऩा-लिखना सिखाएगी। बच्ची रोज़ाना स्कूल से आने के बाद माँ को पढ़ाने-लिखाने लगी। धीरे-धीरे वह महिला पूरा-पूरा वाक्य पढऩे लगी और कुछ-कुछ लिखने भी लगी। आस-पड़ोस की महिलाओं को यह देख अच्छा लगा। वे भी फ़ुरसत के समय बच्ची से पढऩे लगीं। इस तरह क्षेत्र में बुज़ुर्गों की पहली पाठशाला की शुरुआत हुई। धीरे-धीरे क्रम बढ़ता गया, और एक गाँव से दूसरे गाँव होते हुए यह सिलसिला लातेहार के कई गाँवों तक पहुँच गया।
प्रशासन का लक्ष्य
लातेहार ज़िले की जनसंख्या 7.26 लाख है। यहाँ की साक्षरता दर 2011 की जनगणना के अनुसार 59.51 फ़ीसदी थी। मौज़ूदा में साक्षरता दर का आँकड़ा थोड़ा बढ़ गया है। स्थानीय प्रशासन पूर्ण साक्षर ज़िला बनाने के लिए प्रयासरत है। इसके तहत प्रौढ़ शिक्षा (सभी के लिए शिक्षा) योजना पर काम शुरू किया गया है। स्थानीय प्रशासन ने पिछले दिनों अनुभव कि किया बच्चों की मदद से प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा मिल सकता है।
खेल-खेल में शुरू की गयी पाठशाला का नतीजा सफल साबित हुआ है। इसे देखकर प्रशासन भी बच्चों की मदद लेने की तैयारी में है। स्थानीय बच्चों का कहना है कि स्कूल के शिक्षक ने उन्हें अपने माता-पिता और आसपास के लोगों को पढ़ाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उन्हें भी बुज़ुर्गों को पढ़ाने में बहुत आनन्द आता है। ज़िले के शिक्षा विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पिछले एक वर्ष में लगभग 16 हज़ार बुज़ुर्गों को बच्चों ने साक्षर बनाया है। यह आँकड़ा मार्च, 2022 तक का है। नये वित्तीय वर्ष में इसे संगठित रूप दे कर आगे बढऩे की योजना पर काम चल रहा है। ज़िले में 772 गाँव हैं। हर गाँव से निरक्षर लोगों का आँकड़ा लिया जा रहा है। इस महीने के अन्त तक ज़िले के विभिन्न गाँव में एक बार फिर बुज़ुर्गों के लिए बच्चों की पाठशाला शुरू हो जाएँगे। इस बार रात्रि पाठशाला भी शुरू करने की योजना है, क्योंकि दिन में महिलाएँ तो समय निकाल लेती हैं; लेकिन पुरुष समय नहीं निकाल पाते। रात्रि पाठशाला से पुरुषों को लाभ होगा।
“ज़िला के उपायुक्त के नेतृत्व में साक्षरता कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जा रहा है। बच्चों ने खेल-खेल में जिस तरह से अपने माता-पिता, परिवार और आस-पड़ोस को साक्षर बनाया वह सराहनीय है। आने वाले दिनों में साक्षरता कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए बच्चों की भी मदद लेने की योजना है। इस वित्तीय वर्ष में ज़िले के एक लाख लोगों को साक्षर बनाने का लक्ष्य है। इसलिए लातेहार में भले ही अभी केवल साक्षर बनाने की योजना पर काम शुरू हुआ हो; लेकिन सम्भव है कि कुछ बुज़ुर्ग महिला-पुरुष केरल की भागीरथी अम्मा की तरह चौथी कक्षा या इससे आगे की पढ़ाई भी कर लें।’’
निर्मला कुमारी बरेलिया
ज़िला शिक्षा अधीक्षक, लातेहार