बिहार का चुनाव पूरे देश की राजनीति को दशा और दिशा तय करने में मदद करता है। देश भर में बिहार के लोग बसते हैं और इस बार बिहार के पिछड़ेपन के लगे ठप्पे को मिटाने के लिए अगले पाँच साल के लिए नयी सरकार चुनने का मौका है। तीन चरणों में चुनाव के बाद 243 सीटों के सस्पेंस से परदा 10 नवंबर को हट जाएगा। कोरोना महामारी में पहली बार हो रहा यह मुकाबला बेहद अहम है। ऐसे दौर में लोकतंत्र में विधानसभा चुनाव का होना ही दिलचस्प हैं, जिसमें 7.29 करोड़ मतदाता अपने जनप्रतिनिधि चुनेंगे। बिहार में पहले चरण में ही चुनाव प्रचार के दौरान रैलियों में उमड़ती भीड़ ने कोरोना वायरस फैलने के खतरे को फिलहाल एक तरह से नकार दिया है। महामारी के बीच चुनाव आयोग ने मतदान के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
दुर्भाग्य से ज़्यादातर राजनेता दशकों से मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के वादे करते हैं, पर राज्य में पर्याप्त शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की कमी, प्रति व्यक्ति आय कम होना साथ ही औद्योगिक रूप से राज्य के पिछड़ेपन व गरीबी के साथ ही लोगों में निरक्षरता का 50 फीसदी से ज़्यादा होने से खास बदलाव नहीं दिखा है। लोगों के पास काम या नौकरी के मौके न होने के चलते कुशल और अकुशल दोनों तरह के लोगों को बिहार छोडऩे के लिए मजबूर होना पड़ता है। सियासी दल के तौर पर देखें तो यह चुनाव सत्ताधारी पार्टी जदयू से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्ष के राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव के लिए अस्तित्व की लड़ाई भी बन गया है।
नीतीश कुमार ने पिछले तीन कार्यकाल से मुख्यमंत्री का महत्त्वपूर्ण पद सँभाला है और एंटी इनकंबेसी के बावजूद सरकार बनाने में सफल रहे हैं। फिलहाल बिहार में जदयू एनडीए का हिस्सा है, जिसमें भाजपा, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और बॉलीवुड सेट डिजाइनर से राजनेता बने मुकेश साहनी की विकासशील इन्सान पार्टी (वीआईपी) शामिल हैं। भाजपा 110 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और उसने अपने कोटे से 11 सीटें सहयोगी पार्टी वीआईपी को दी हैं। जदयू 115 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और उसने अपने कोटे से 7 सीटें हम को दी हैं।
राज्य में मुख्य मुकाबला एनडीए का महागठबंधन से हैं। महागठबंधन में राजद के अलावा कांग्रेस और वामदल शामिल हैं। राजद 144 सीटों पर तो कांग्रेस 70 व वामदल 29 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अलावा तीसरा मोर्चा भी मैदान में है, जिसमें मायावती की बसपा, उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा और हैदराबाद के सांसद की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-एत्तेहाद मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) जैसी छोटी पार्टियों ने मिलकर कुशवाहा को अपना मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश किया है। कुशवाहा 2018 तक भाजपा में एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं। इसके अलावा बिहार की लोक जनशक्ति पार्टी की भूमिका बेहद दिलचस्प हो गयी है। लोजपा नेता चिराग पासवान ने बिहार में चुनाव लडऩे के लिए खुद को एनडीए से अलग कर लिया है और बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर किसी भी सूरत में वे नीतीश कुमार को देखना नहीं चाहते हैं। इसके अलावा उन्होंने भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारे हैं; जबकि जदयू उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी खड़े किये हैं। हाल ही में लोजपा संस्थापक रामविलास पासवान के निधन से राज्य में सहानुभूति वोट मिलने की उम्मीद की जा रही है।
लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान खुला ऐलान कर चुके हैं कि वह नीतीश को अगला मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहते; अगर वह फिर से मुख्यमंत्री बनते हैं, तो यह बिहार की जनता की हार होगी। वह एक साक्षात्कार में कह चुके हैं कि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान हूँ। इस बीच भाजपा के नेता लोजपा को वोट-कटवा पार्टी कह चुके हैं। वहीं नीतीश पर निशाना साधते हुए तेजस्वी यादव चिराग के प्रति नरम दिखे हैं। चिराग को उम्मीद है कि परिणामों के बाद भाजपा और लोजपा की मिलकर प्रदेश में सरकार बनेगी। इसीलिए उन्होंने चुन-चुनकर जदयू उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी खड़े किये हैं। भाजपा ने दावा किया है कि जदयू नेता नीतीश ही एनडीए के मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन दोनों दलों के बीच लम्बे समय से चली आ रही खींचतान से आगे कुछ भी सम्भव हो सकता है। इतना ही नहीं, राजनीतिक हलकों में अटकलें ये भी लगायी जा रही हैं कि अगर मौका मिला और हालात ऐसे हुए तो लोजपा महागठबंधन में शामिल हो सकती है।
केंद्र की एनडीए सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे रामविलास पासवान कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में भी कैबिनेट मंत्री रहे हैं। रामविलास को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था, अब स्वाभाविक है कि उनके बेटे चिराग भी उन्हीं के पद-चिह्नों पर चलेंगे। शायद यही वजह है कि रामविलास के निधन के बाद केंद्र में खाली हुई सीट फिलहाल भरी नहीं गयी है और लोजपा एनडीए का हिस्सा रहेगी या नहीं? यह सम्भवत: बिहार चुनाव के नतीजे ही तय करेंगे। दिलचस्प यह भी है कि महाराष्ट्र की दो पार्टियों, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं। हालाँकि बिहार में इनकी अहमियत बहुत ज़्यादा नहीं है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके बेटे व मंत्री आदित्य ठाकरे शिवसेना के स्टार प्रचारक हैं और राज्य में पार्टी ने 50 सीटों पर वर्चुअल रैलियों की तैयारी की है। शिवसेना की ओर से संजय राउत और राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी भी प्रचार कर सकती हैं। राकांपा प्रमुख शरद पवार, उनकी बेटी सुप्रिया सुले, महाराष्ट्र के बारामती से सांसद प्रफुल्ल पटेल अपनी पार्टी के 150 उम्मीदवारों के लिए प्रचार करेंगे।
अगर चुनाव नतीजों में एनडीए जीतती है, तो राजद और कांग्रेस के गठबंधन का भविष्य 2025 तक बनाये रखना तेजस्वी और राहुल दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। पर महागठबंधन जीतता है, तो वह घटक दलों को केंद्र की मोदी सरकार और और पश्चिम बंगाल में भाजपा का मुकाबला करने के लिए एक समान मोर्चा बनाने का रास्ता खोल सकता है। पश्चिम बंगाल में 2021 में विधानसभा चुनाव होंगे।
सियासी जानकार बताते हैं कि 2020 के बिहार चुनावों में कोरोना संक्रमण के चलते केंद्र सरकार के अचानक लॉकडाउन से लाखों मज़दूरों के बिहार वापसी के लिए मजबूर होने को लेकर बड़ा गुस्सा है। तमाम दु:खद परिस्थितियों में वे अपने गाँव लौटने को मजबूर हुए। यह गुस्सा नीतीश कुमार सरकार के खिलाफ भी है, जिस पर बड़ी संख्या में ऐसे प्रवासी कामगार सरकार को जवाब देने को खुलकर बोल भी रहे हैं।
विपक्ष को उम्मीद है कि प्रवासियों के बीच यह गुस्सा उसके पक्ष में हवा बनाने में मददगार होगा और चुनाव प्रचार में इसका ज़िक्र भी बार-बार किया गया। इसके अलावा विपक्ष भी इस मुद्दे पर हमलावर है। चुनाव प्रचार के पहले चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राहुल गाँधी के साथ तेजस्वी यादव ने रैलियों को सम्बोधित कर अपना-अपना विजन को सामने रखा। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने मोदी की खिंचाई करते हुए कहा कि बिहार आकर वह मज़दूरों के सामने सिर झुकाते हैं; लेकिन जब वास्तव में उसकी आवश्यकता होती है, तो कुछ नहीं करते हैं। आप हज़ारों किलोमीटर तक पैदल चले, प्यासे और भूखे रहते हैं; लेकिन मोदी ने आपको ट्रेन नहीं दी। बल्कि सरकार की ओर से कहा जाता है कि जो मरता है, मर जाए। नवादा की रैली में राहुल ने कहा कि बिहार की जनता नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी को सही जवाब देगी। तेजस्वी यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री ने प्रवासियों की अनदेखी की। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री आवास में 144 दिनों तक घर में ही बन्द रहे। लेकिन अब वह आवास से बाहर निकले हैं। क्यों? तब भी कोरोनो वायरस था और अब भी है। लेकिन अब उन्हें आपका वोट चाहिए, इसलिए निकले हैं।
हालाँकि प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष के इस हमले पर कहा कि मुख्यमंत्री ने महामारी से निपटने में अच्छा काम किया है। सासाराम में मोदी ने एक साझा रैली को सम्बोधित करते हुए कहा कि अगर बिहार ने तेज़ी से कार्रवाई नहीं की होती, तो महामारी बहुत-से लोगों की जान ले चुकी होती और क्या हालात होते इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन आज कोविड-19 के बावजूद बिहार में लोकतंत्र के पर्व को अंजाम दिया जा रहा है।
2015 के राज्य और 2019 के आम चुनाव
पिछले 2015 के विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद के साथ अपनी पुरानी प्रतिद्वंद्विता को छोड़ राजद-जदयू-कांग्रेस महागठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़ा था। सामाजिक समीकरणों के ज़रिये महागठबंधन ने 243 में से 178 सीटें जीतकर एनडीए का सफाया कर दिया था। सन् 2015 के चुनाव में भाजपा ने 53, लोजपा ने 2, हम ने एक और रालोसपा दो सीटें जीती थीं। महागठबंधन में राजद 80 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, इसके बावजूद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने पर सहमति दी थी। जदयू ने 71 सीटें जीती थीं। हालाँकि करीब डेढ़ साल बाद जदयू और राजद में मतभेद के बाद राजद नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा। इसी बीच 2017 में नीतीश कुमार ने गठबंधन से अलग होकर भाजपा के साथ हाथ मिलाकर सरकार बना ली। भाजपा नेताओं का दावा है कि इस बार जातिगत समीकरण एनडीए का पक्षधर है, जो ओबीसी, महादलित और उच्च जाति के वोट बैंक का प्रतिनिधित्व करता है। महागठबंधन को राजद के पारम्परिक यादव, मुस्लिम और ओबीसी वोट बैंक और कांग्रेस के ऊपरी जाति के वोटों के अलावा वाम दलों का समर्थन करने वाले वगों से भी फायदा होने की उम्मीद है।
यह भी अहम है कि बिहार विधानसभा चुनाव से एक साल पहले हुए लोकसभा के 2019 के आम चुनावों में राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटें जीती थीं। भाजपा ने 17 लोकसभा सीटें जीती और सहयोगी जदयू को 16, इसके बावजूद केंद्रीय कैबिनेट में उसे एक भी मंत्री पद नहीं मिला।
जदयू दो कैबिनेट मंत्री पद की माँग कर रहा था, पर उसे एक की पेशकश की गयी। लोकसभा 2019 के चुनाव में भाजपा, जदयू और लोजपा के बीच 17-17-6 सीटों का बँटवारा किया गया था। हालाँकि राष्ट्रीय और राज्य चुनावों में मतदान का पैटर्न आमतौर पर अलग-अलग होता है, लेकिन यह देखा जाना बाकी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव की बढ़त को एनडीए बरकरार रख पायेगा? इसी तरह, 2020 के राज्य चुनाव यह तय करेंगे कि राजद और कांग्रेस पिछले साल के आम चुनाव में खो चुकी चमक को कितना वापस ला पाते हैं।
प्रचार अभियान के तरीके
एनडीए और महागठबंधन के नेता एक-दूसरे पर आरोपों की बौछार के साथ वोटरों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे कर रहे हैं। एनडीए नेता जहाँ राजद के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के 15 साल के कुशासन और भ्रष्टाचार को निशाना बना रहे हैं। वहीं महागठबंधन के नेता पिछले 15 वर्षों के दौरान विकास थमने के लिए नीतीश सरकार को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। बिहार चुनाव अभियान की एक और विशेषता यह है कि जहाँ एनडीए मोदी सरकार की पिछले छ: साल में शुरू की गयीं विकास योजनाओं का गुणगान कर रहा है। वहीं महागठबंधन जदयू-भाजपा की सरकारों के दौरान बेरोजगारी, आर्थिक मंदी, खराब स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली और प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा के मुद्दे उछालकर घेर रहा है। एनडीए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की डबल इंजन की सरकार बता रहे हैं और यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि लालू शासन के 15 साल की तुलना में पिछले 15 साल में विकास हुआ है। जबकि लालू के शासन में वह बिहार में सामाजिक न्याय का चेहरा बने; लेकिन राज्य को बदहाली की ओर ले जाने के आरोप लगाये गये।
चुनाव प्रचार के दौरान विपक्ष को करिश्माई लालू प्रसाद यादव की याद आ रही है, जो चारा घोटाला मामले में जेल में हैं और जमानत होने पर भी अभी रिहा नहीं हुए हैं। फिलहाल उनका रांची के राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में इलाज चल रहा है। राजद के अभियान का नेतृत्व उनके बेटे तेजस्वी यादव कर रहे हैं, जो 2015 में नीतीश कुमार के डिप्टी थे। सन् 1990 के दशक से सन् 2005 तक, जब नीतीश कुमार राज्य के लोकप्रिय ओबीसी नेता के रूप में उभरे। इससे पहले तक राजद के संस्थापक लालू प्रसाद यादव, दलित और मुस्लिम वोट बैंक को सफलतापूर्वक साधते रहे ओर चुनाव जीतने में कामयाब रहे। सन् 2015 के चुनावों में लालू प्रसाद ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के विवादास्पद बयान आरक्षण नीति की समीक्षा किये जाने की बात का चुनाव प्रचार में जमकर इस्तेमाल किया था, और एनडी को पिछड़ा वर्ग विरोधी बताया था।
इस बार महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी अपने अभियान में युवाओं के लिए रोज़गार सृजन के वादे पर ज़ोर दे रहे हैं। उनकी रैलियों में उमड़ती भीड़ ने उनके उत्साह को बढ़ा दिया है। वह यह साबित करने पर तुले हैं कि राज्य की जनता खासकर युवा नीतीश सरकार से खफा है। तेजस्वी ने महागठबंधन की ओर से जारी घोषणा-पत्र में कहा है कि मैं एक विशुद्ध बिहारी हूँ। मेरा डीएनए शुद्ध है। अगर हमारी सरकार बनती हैं, तो पहली कैबिनेट में 10 लाख युवाओं को नौकरी देंगे। वे बार-बार दोहराते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शारीरिक और मानसिक रूप से अब थक गये हैं। नीतीश के 15 साल के शासन के बाद अब तेजस्वी से पूछ रहे हैं कि नौकरी के लिए पैसा कहाँ है? 30 हज़ार करोड़ रुपये के बजट की भरपाई कैसे करेंगे? तेजस्वी कहते हैं कि उनके कार्यकाल में 60 घोटाले किये गये। उनकी जल-जीवन-हरियाली नीति के लिए 24,000 करोड़ रुपये दिये गये, यह सब पैसा भ्रष्टाचार में जा रहा है। विज्ञापनों में अपना चेहरा चमकाने के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च किये। तेजस्वी कहते हैं कि इतना सब करने वाला कहे कि पैसा कहाँ से आएगा? इस पर हँसी आती है।
नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि बिहार के पास कोई समुद्र नहीं है, इसलिए कोई उद्योग और कारखाने नहीं हैं। तेजस्वी ने कहा कि जीत और हार खेल का हिस्सा हैं; लेकिन लगता है कि मुख्यमंत्री ने अपना संतुलन खो दिया है। बजट में 4.5 लाख नौकरियों के लिए अभी व्यवस्था है। साथ ही देश के औसत से देखें, तो नीति आयोग के अनुसार, बिहार की प्रगति के लिए और 5.5 लाख नौकरियों की आवश्यकता है। अगर आपमें इच्छाशक्ति हो तो यह बिल्कुल सम्भव है। इस बार राजद के साथ ही कांग्रेस के लिए भी ज़्यादा मौका है, जिसने 2015 के चुनावों में 27 सीटें जीती थीं। इस बार वह 70 सीटों पर हाथ आजमा रही है। कांग्रेस का बोले बिहार बदले सरकार नारे के साथ चुनावी मैदान में हैं। शिक्षा, बेरोज़गारी, बढ़ते भ्रष्टाचार, अनियंत्रित अपराध और राज्य सरकार की विफलता को उसने मुद्दा बनाया है। महागठबंधन के लिए कांग्रेस से राहुल गाँधी के अलावा पार्टी प्रमुख सोनिया गाँधी, प्रियंका गाँधी वाड्रा, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गुलाम नबी आज़ाद, सचिन पायलट, पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, शत्रुघ्न सिन्हा, कीर्ति आज़ाद, मीरा कुमार, रणदीप सुरजेवाला और राज बब्बर चुनाव प्रचार कर रहे हैं।
तेजस्वी यादव के 10 लाख नौकरियों के वादे का मुकाबला करने के लिए भाजपा ने 19 लाख नौकरियों के विकल्प का वादा किया है। इसके अलावा बिहार के सभी लोगों के लिए कोरोना वैक्सीन मुफ्त देने का वादा भी किया है। हालाँकि इसकी सभी दलों ने कड़ी आलोचना की है। कांग्रेस ने भाजपा के घोषणा-पत्र को एक और जुमला करार दिया और बिहार को विशेष दर्जा देने की लम्बे समय से लम्बित माँग पर भगवा दल की चुप्पी पर सवाल उठाये। एनडीए के लिए एक कठिन चुनाव है। भाजपा ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कट्टर हिन्दुत्ववादी नेता की छवि को भुनाने के लिए बिहार में प्रचार कराने को उतारा है। सन् 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाने का उल्लेख उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री मोदी दोनों को बार-बार करना पड़ रहा है।
पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा विवाद भी बिहार चुनाव का हिस्सा बन गया है। 15 जून को चीन के सैनिकों के साथ हुई झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गये थे। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि बिहार के जाँबाज़ों ने गलवान घाटी में अपनी शहादत दे दी; लेकिन देश का सिर ऊँचा रखा। चीन सीमा और पुलवामा में शहीद बिहार के जवानों को मैं नमन करता हूँ।
चुनाव आयोग की भूमिका
चुनाव आयोग ने दिशा-निर्देश जारी किये हैं और राज्य में चुनाव प्रचार, नामांकन, मतदान और मतगणना के लिए कैसी व्यवस्था हो। इसके साथ ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक रणनीति तैयार करने के लिए अपनी टीम बिहार भेजी, ताकि कोरोना वायरस का संक्रमण को फैलने से रोकने में मदद मिले। मतदान से सभी वोटरों की थर्मल स्कैनिंग की व्यवस्था की गयी। मतदान सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक होगा यानी एक घंटे का अतिरिक्त समय मिलेगा। हालाँकि नक्सल प्रभावित इलाकों में शाम 5 बजे तक ही मतदान होगा। कोरोना वायरस के मरीज़ भी स्वास्थ्य अधिकारियों की देखरेख में मतदान करेंगे। इसके अलावा 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों या विकलांग व्यक्ति डाक मतपत्र का विकल्प चुन सकते हैं। मतदान में 7.43 करोड़ एक बार उपयोग वाले दस्ताने, 46 लाख मास्क, 7.6 लाख फेस शील्ड, 7 लाख यूनिट हैंड सैनिटाइजर और छ: लाख पीपीई किट की व्यवस्था की गयी है। सभी मतदाता दस्ताने, मास्क पहनेंगे और हैंड सैनिटाइजर का उपयोग करेंगे। कंटेनमेंट जोन में दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करना होगा।
चुनाव आयोग ने प्रसारण और टेलीकास्ट के समय को दोगुना कर दिया है। कोरोना संक्रमण को देखते हुए दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर बिहार में राजनीतिक दलों के लिए समय आवंटित किया गया है। इसके अलावा सोशल मीडिया जैसे ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब के ज़रिये भी बड़े पैमाने पर प्रचार किया जा रहा है। उम्मीदवारों से उनका सोशल मीडिया अकाउंट की जानकारी भी माँगी गयी है।
किस दल में कितने दागी दावेदार
जब बिहार में चुनाव होते हैं, तो कोई भी दल यह दावा नहीं कर सकता है कि उसके उम्मीदवार बेदाग हैं। हर दल में ऐसे दावेदार हैं, जिन पर गम्भीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। चुनावी हलफनामे के आधार पर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स के अनुसार, राजद ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 73 फीसदी और भाजपा ने 72 फीसदी उम्मीदवारों को टिकट दिया है। लोजपा के 49 फीसदी, कांग्रेस के 57 फीसदी, जदयू के 43 फीसदी और बसपा के 31 फीसदी प्रत्याशी दागी हैं।
ओपीनियन पोल में किसकी सरकार
विभिन्न ओपीनियन पोल की मानें तो बिहार में एनडीए को बहुमत मिल रहा है। लेकिन विपक्ष ने इसे नकार दिया और इनको बिका हुआ करार दिया है।
इंडिया टुडे-लोकनीति-सीएसडीएस
एनडीए 138 सीटें
महागठबंधन 93 सीटें
अन्य 12 सीटें
टाइम्स नाउ-सीवोटर
एनडीए 160 सीटें
महागठबंधन 76 सीटें
एबीपी-सी वोटर
एनडीए 151 सीटें
महागठबंधन 74 सीटें
अन्य 18 सीटें