बिहार में जीत के बाद, NDA अब पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु पर निगाहें टिकाए हुए है

बिहार के इतिहास में पहली बार महिला मतदाताओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक रही—महिलाओं का मतदान प्रतिशत 71.6%, जबकि पुरुषों का 62.8% था। यह आंकड़ा सिर्फ़ रिकॉर्ड नहीं था, बल्कि उसने चुनाव का रुख़ पलट दिया।

बिहार के 2025 विधानसभा चुनाव ने भारतीय राजनीति की किताब में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। लंबे समय से चली आ रही सत्ता-विरोधी लहर को पीछे छोड़ते हुए नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा-नीत NDA ने वह जीत हासिल की है, जिसकी बहुत कम लोगों ने कल्पना की थी। यह चुनाव एक कांटे की टक्कर माना जा रहा था, लेकिन ‘महागठबंधन’ अपनी अंदरूनी कलह, कमजोर रणनीति और अधूरे वादों के बोझ तले ढह गया। लेकिन असली गेम-चेंजर वह ताकत बनी, जिसकी ओर राजनीतिक दल अक्सर आख़िरी में देखते हैं वह है महिला मतदाता।

Tehelka की कवर स्टोरी “NDA Scripts Historic Win in Bihar” में Vibha Sharma बताती हैं कि कैसे भाजपा-नीत NDA ने कांग्रेस–RJD गठबंधन को पछाड़ते हुए बिहार में ऐतिहासिक जीत दर्ज की, और इसमें निर्णायक भूमिका महिलाओं की रही। बिहार के इतिहास में पहली बार महिला मतदाताओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक रही—महिलाओं का मतदान प्रतिशत 71.6%, जबकि पुरुषों का 62.8% था। यह आंकड़ा सिर्फ़ रिकॉर्ड नहीं था, बल्कि उसने चुनाव का रुख़ पलट दिया। महिलाओं ने NDA को उसके वास्तविक लाभ देने वाले कामों के लिए पुरस्कृत किया जैसे “दस हज़ारी” योजना, जिसके तहत 1.2 करोड़ से अधिक महिलाओं को 10,000 रुपये का प्रत्यक्ष लाभ मिला।

दूसरी ओर, विपक्ष केवल वादे करता रहा। NDA की जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय लोकप्रियता और नीतीश कुमार के शासन मॉडल की उस विश्वसनीयता को भी जाता है, जिसे “डबल इंजन सरकार” के रूप में पेश किया गया। मतदाताओं ने स्थिरता, विकास और कल्याण की राजनीति को चुना, जबकि विपक्ष का जातिगत समीकरण और विभाजनकारी भाषण असर खो बैठा।

तेजस्वी यादव की RJD, लगातार कोशिशों के बावजूद, “जंगल राज” की छवि से पीछा नहीं छुड़ा पाई। उनके प्रयास कि वे लालू प्रसाद यादव की विरासत से खुद को अलग दिखाएँ, जनता के बीच ज्यादा असरदार नहीं हुए। महागठबंधन की आंतरिक खींचतान ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। कांग्रेस केवल 6 सीटें जीत पाई, और राहुल गांधी के चुनाव-प्रचार से दूर रहने ने विपक्ष की एकता पर सवाल खड़े कर दिए। वहीं, प्रशांत किशोर का जन सुराज अभियान विपक्षी वोटों में और दरार डाल गया।

इन परिणामों ने बिहार की राजनीति को एक नया समीकरण दे दिया है। महिलाएँ अब एक निर्णायक राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरकर सामने आई हैं, और यह संकेत है कि राज्य की राजनीति परंपरागत जातीय ढाँचों से आगे बढ़ रही है। विपक्ष के लिए यह स्पष्ट संदेश है कि NDA जैसी मज़बूत चुनौती देने के लिए केवल जोश नहीं, बल्कि एकता, विश्वसनीय नेतृत्व और स्पष्ट कल्याणकारी एजेंडा ज़रूरी है।

महागठबंधन के लिए बिहार की जनता कह रही है “सिर्फ़ वादे नहीं, काम करके दिखाइए।” NDA की इस जीत के साथ अब भाजपा की नजर पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल पर है—जहाँ महिला मतदाताओं की इसी नई उभरती शक्ति के आधार पर आने वाले चुनावों की दिशा बदल सकती है।

अपनी इसी खोजी परंपरा को जारी रखते हुए, Tehelka की विशेष जांच टीम ने एक और बड़ा खुलासा किया है—कैसे मीडिया संस्थान राजनीतिक दलों के साथ मिलकर ‘पेड न्यूज़’ के ज़रिए चुनावी नैरेटिव को प्रभावित करते हैं। अखबारों, मैगज़ीनों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इस तरह की खबरें विज्ञापन जैसी दिखती हैं, पर विज्ञापन का टैग नहीं होता। समाज को लंबे समय से प्रभावित कर रहे इस ‘पेड न्यूज़’ उद्योग की तह तक जाने के लिए Tehelka ने गहन जांच की—जिसका नतीजा है हमारी विशेष रिपोर्ट: “द पेड न्यूज़ फ़ाइल्स।”