बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अकेले पड़ गए हैं और एनडीए को भी जबरदस्त झटका लगा है। आरएलडी और कांग्रेस गठबंधन के सीटों का बंटवारा करने के एक दिन बाद एनडीए के प्रमुख घटक रामविलास पासवान और उनके बेटे चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (एलजीपी) ने नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक एलजेपी ने इस समय जारी अपने संसदीय बोर्ड की बैठक में अकेले चुनाव में जाने और चुनाव के बाद ‘भाजपा-एलजेपी की सरकार’ बनाने का प्रस्ताव पास किया है। एलजेपी के इस फैसले से भाजपा के ‘पर्दे के पीछे के रोल’ पर सवाल खड़े हो गए हैं।
इस तरह चुनाव से ऐन पहले बिहार में आरएलडी-कांग्रेस (यूपीए) महागठबंधन के सामने एनडीए गठबंधन को बड़ा झटका लगा है। संसदीय बोर्ड की बैठक में चिराग पासवान की पार्टी ने साफ़ कर दिया है कि वह नीतीश के नेतृत्व में किसी सूरत में चुनाव में नहीं उतरेगी। उसने 125 से ज्यादा सीटों पर प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है और वह नीतीश की जेडीयू के खिलाफ प्रत्याशी उतारेगी।
दिलचस्प यह है कि एलजेपी भाजपा के खिलाफ एक भी प्रत्याशी नहीं उतारेगी जिससे जाहिर होता है कि भाजपा की एलजेपी नेतृत्व को इस रणनीति के लिए ‘मौन सहमति’ है। ऐसे में कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने ही गठबंधन में अकेले पड़ गए हैं।
सूत्रों ने ‘तहलका’ को बताया कि भाजपा और एलजेपी की राय है कि नीतीश के खिलाफ जनता में नाराजगी है और इसका नुक्सान पूरी एनडीए को भुगतना पड़ सकता है। ऐसे में यह सारा तमाशा रचा गया है। वैसे एलजेपी पहले से नीतीश से नाराज और उनकी विरोधी रही है। अब यह नाराजगी खुलकर सामने आ गयी है।
संसदीय बोर्ड की बैठक में एलजेपी के नेताओं ने खुलकर अपनी राय रखी। सूत्रों के मुताबिक ज्यादातर की राय थी कि नीतीश के चुनाव में जाना नुकसानदेह होगा क्योंकि ‘जनता में उनके खिलाफ नाराजगी है’।
अभी एलजेपी ने आधिकारिक रूप से संसदीय बोर्ड के फैसले की जानकारी सार्वजनिक नहीं की है। कुछ देर के बाद चिराग पासवान प्रेस कांफ्रेंस करके इसकी जानकारी दे सकते हैं। एलजेपी का यह फैसला तब आया है जब उसके नेता रामविलास पासवान स्वास्थ्य खराब होने के बाद अस्पताल में भर्ती हैं। चिराग ने कहा है कि ‘शायद 50 साल में पहली बार राम विलास पासवान इस चुनाव में शामिल नहीं हो पाएंगे’। इस तरह एलजेपी का पूरा दारोमदार खुद चिराग के करिश्मे और साथी भाजपा के प्रमुख नेता पीएम मोदी पर रहेगा।
वैसे भाजपा के लिए चुनाव प्रचार में दिक्कत आएगी। चुनाव में वर्चुअल रैली ही होंगी लेकिन इसके बावजूद जनता में इससे एनडीए को लेकर खराब संदेश तो जाएगा ही। बिहार में एनडीए इस जंग का महागठबंधन को फायदा हो सकता है। वैसे वहां दो अन्य मोर्चे भी चुनाव में हैं, लेकिन असली मुकाबला महागठबंधन और एनडीए गठबंधन में होगा।
एलजेपी अब मोदी के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव में लड़ेगी। अब तक के घटनाक्रम से जो बात जाहिर हो रही है उससे लग रहा है कि भाजपा ने अंदरखाते नीतीश कुमार से किनारा कर लिया है। उसकी नजर चुनाव बाद अपनी सत्ता और अपना मुख्यमंत्री पर है। पिछले कई के बाद भाजपा बिहार में अपनी सरकार बनाकर खोई इज्जत हासिल करना चाहती है।
अब यह देखना होगा कि भाजपा नीतीश के बिनाउसके सहयोह से मिलने वाले वोट कैसे हासिल करेगी। महागठबंधन एनडीए की इस लड़ाई से खुश है। उसके नेता मान रहे हैं कि लॉक डाउन के बीच जो खराब चीजें हुई हैं उससे एनडीए, खासकर भाजपा और नीतीश कुमार को नुक्सान होगा। जानकारों का कहना है कि बिना भाजपा के टॉप नेतृत्व की सहमति के एलजीपी इतना बड़ा फैसला कर ही नहीं सकती थी।