भाजपा-जदयू-अन्य के गठबंधन ने बिहार की सत्ता में फिर वापसी कर ली है। चुनाव आयोग की तरफ से देर रात घोषित नतीज़ों के मुताबिक एनडीए ने चुनाव में 125 सीटें जीती हैं जिनमें भाजपा की सबसे ज्यादा 74 सीटें हैं। हालांकि, सरकार नहीं बना सकने के बावजूद तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी ने भाजपा से भी ज्यादा 75 सीटें जीती हैं और इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। यूपीए को 110 सीटें मिली हैं।
संभावना है कि नीतीश कुमार बुधवार (आज) राज्यपाल फागू चौहान को अपना इस्तीफा पेश करेंगे। नीतीश कुमार बुधवार या गुरुवार को राज्यपाल से मिलकर नई सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे। यदि ऐसा हुआ तो वो चौथी बार बिहार के मुख्यमंत्री बनेंगे। भाजपा नेता और उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने मंगलवार देर रात साफ़ कर दिया है कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे।
आरजेडी-कांग्रेस-वामपंथी गठबंधन को तमाम एग्जिट पोल ने बड़े बहुमत से चुनाव जीतते हुए दिखाया था लेकिन नतीजे उसके बिलकुल विपरीत रहे। हालांकि, कोरोना के कारण इस बार सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाने के लिए ज्यादा ईवीएम का इस्तेमाल किया गया जिससे नतीजों में बहुत ज्यादा वक्त लगा। इसके लिए चुनाव आयोग ने दो बार प्रेस कांफ्रेंस की।
इस चुनाव में जदयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गयी है हालांकि यह उसका सौभाग्य ही है कि उसके नेता नीतीश कुमार दोबारा मुख्यमंत्री बनने की स्थिति में दिख रहे हैं। हालांकि, यह भी साफ़ है कि नीतीश नई सरकार में अपनी पार्टी की कमजोर संख्या के कारण अब उतने ताकतवर मुख्यमंत्री शायद नहीं रह पाएंगे। यह कहा जाता है कि भाजपा भी चुनाव से पहले यही चाहती थी। यह गौर करने लायक बात है कि चुनाव नतीजों पर अभी तक नीतीश कुमार की तरफ से एक भी ब्यान नहीं आया है।
वोटों की गिनती के बीच यह खबर भी आई थी कि नीतीश की पार्टी आरजेडी को समर्थन दे या उससे समर्थन ले सकती है, क्योंकि उनकी पार्टी जदयू के बहुत से नेता खुद को भाजपा के हाथों अपमानित होता महसूस कर रहे थे। लेकिन भाजपा ने समय रहते उन्हें संभाल लिया। अमित शाह ने दिल्ली से उनसे फोन पर बातचीत की जबकि पटना में सुशील मोदी सहित कुछ बड़े नेता घंटों उनके पास बैठे रहे।
इस चुनाव में जिस पार्टी को अवसर होने के बावजूद सबसे बड़ा नुक्सान सहना पड़ा वो कांग्रेस है। उसे पिछली बार 27 सीटें मिली थीं लेकिन इस बार 19 ही मिल पाईं। इसके मुकाबले सीपीआई (माले) ने कहीं बेहतर प्रदर्शन करते हुए पिछली बार से तीन ज्यादा 11 सीटें जीत लीं। आरजेडी सहयोगी वामपंथियों को कुल 16 सीटें मिली हैं। कांग्रेस को उम्मीद से कहीं कम सीटें मिलने का भी आरजेडी गठबंधन को बड़ा नुक्सान हुआ क्योंकि यदि कांग्रेस 30 तक सीटें जीत जाती, जिसकी उम्मीद उसे और आरजेडी दोनों को थी, तो आरजेडी सत्ता में आ सकती थी। हालांकि, यह भी सच है कि करीब 20 सीटें ऐसी थीं जहां उसका ज्यादा आधार नहीं होते हुए भी उसे गठबंधन ने मुकाबले में उतारा था।
एलजेपी ने चिराग पासवान के नेतृत्व में नीतीश कुमार को हराने के लिए चुनाव लड़ा था। लेकिन यदि अब नीतीश दुबारा भाजपा की मदद से सीएम बन जाते हैं तो एलजेपी को अपनी इस ‘कुर्बानी’ की बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी क्योंकि उसे एक ही सीट मिल पाई है। हालांकि, यह अब साफ़ लगता है कि चिराग भाजपा के उस गेमप्लान का हिस्सा थे, जिसमें वह नीतीश की पार्टी को 50 से नीचे रखना चाहती थी।
चुनाव में ओवैसी की पार्टी एआईएआईएम भी 5 सीटें मिली हैं। इस चुनाव में सबसे चौंकाने वाला नतीजा वीआईपी के लिए रहा जिसने 4 सीटें जीती हैं। ‘हम’ पार्टी ने भी 4 सीटें जीती हैं। यह दोनों दल भाजपा-जदयू गठबंधन के साथी हैं। अन्य को 7 सीटें मिली हैं।