छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कामकाज संभालते ही अपने घोषणापत्र को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है. चूंकि वे खुद वित्तमंत्री का दायित्व भी निभाएंगे, ऐसे में बतौर वित्तमंत्री उनके लिए नई घोषणाओं के लिए फंड जुटाना बड़ी चुनौती होगी. संभावना जताई जा रही है कि राज्य में वित्तीय वर्ष 2013-14 के लिए 44,169 करोड़ रुपये का जो बजट अनुमान था वह 2014-15 में बढ़कर करीब 48 हजार करोड़ रुपये के पार पहुंच जाएगा.
रमन सिंह ने शपथ लेते ही निर्देश जारी कर दिए हैं कि 1 जनवरी, 2014 से 47 लाख परिवारों को एक रुपए प्रति किलो की दर से चावल दिया जाए. घोषणा पत्र के अपने वादे को पूरा करते हुए समर्थन मूल्य पर धान बेचने वाले किसानों को प्रति क्विंटल 300 रुपये बोनस देने का आदेश भी दे दिया गया है. साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस यानी 25 दिसंबर, 2013 से अटल बीमा योजना लागू करने के निर्देश भी जारी कर दिए गए हैं. इसके तहत प्रदेश के लगभग 17 लाख खेतिहर मजदूरों का जीवन व दुर्घटना बीमा किया जाएगा. आदिवासियों और वनवासियों के लिए तेंदूपत्ता की तर्ज पर इमली, चिरौंजी, महुआ, लाख और कोसा को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने का फरमान भी जारी कर दिया गया. यह सब देखने-सुनने में सुखद जरूर लग सकता है लेकिन राज्य सरकार को इसके लिए मोटी कीमत चुकानी होगी. सरकार को पहले से जारी योजनाओं के लिए भी वित्त की पूर्ति करनी है, ऐसे में इन नई रियायतों के लिए राजकोष पर चार से पांच हजार करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ने का अनुमान है.
रमन सिंह के अपने तीसरे कार्यकाल के पहले ही दिन लोकलुभावन योजनाओं के क्रियान्वयन की लंबी सूची को आम लोग भले ही सुशासन से जोड़कर देख रहे हैं लेकिन इसके लिए राज्य सरकार को बड़ी रकम जुटानी होगी जो अपने आप में एक बड़ी चुनौती है.
राज्य सरकार पर नई घोषणाओं को अमली जामा पहनाने में पड़ने वाले वित्तीय भार को हम पिछले बजट से समझ सकते हैं. वित्तीय वर्ष 2013-14 के लिए 44,169 करोड़ रुपये का बजट अनुमान प्रस्तुत किया गया था. इसमें खाद्यान्न सुरक्षा अधिनियम के तहत लगभग 42 लाख गरीब परिवारों को दो और तीन रुपये प्रति किलो की रियायती दर पर तथा आठ लाख सामान्य परिवारों को ए.पी.एल. (गरीबी रेखा से ऊपर) दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराने का प्रावधान था. इस पर लगभग 2,000 करोड़ रुपये का खर्च अनुमानित था अब नए निर्देशों के तहत प्रति परिवार 1 रुपए किलो की दर से चावल उपलब्ध करवाया जाना है यानि योजना पर खर्च तकरीबन दोगुना हो जाएगा.
वहीं वर्ष 2012-13 में खरीदे गए 70 लाख मीट्रिक टन धान के बदले 270 रुपये प्रति क्विंटल की दर से अकेले बोनस देने के लिए 17,50 करोड़ का प्रावधान किया गया था. अब नई घोषणा के तहत सरकार को प्रति क्विंटल 300 रुपये बोनस देना है यानी इस मद पर भी राशि में बढो़तरी होनी है. इसका एक कारण यह है कि हर साल धान खरीद का आंकड़ा बढ़ रहा है. राज्य सरकार ने वर्ष 2010-11 में ही 51 लाख मीट्रिक टन धान खरीद कर किसानों को 5,000 करोड़ रुपये धान की कीमत और बोनस के रूप में दिए थे. जबकि 2013 में धान खरीद का आंकड़ा 70 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया है.
इस मसले पर मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते हैं, ‘अपनी घोषणाओं को हम हर हाल में पूरा करेंगे. जहां तक बजट का सवाल है हम अपने वित्तीय अनुशासन से इसकी पूर्ति करेंगे.’ लेकिन मुख्यमंत्री यह नहीं बताते कि वे किस तरह के वित्तीय अनुशासन की बात कर रहे हैं.
वर्ष 2013-14 में बजट पेश करते हुए मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा था, ‘राज्य की कुल प्राप्तियां 43,977 करोड़ रुपये तथा कुल व्यय 44,169 करोड़ रुपये अनुमानित की गयी हैं. इन वित्तीय प्राप्ति और व्यय में अंतर के कारण 192 करोड़ रुपये का घाटा अनुमानित है. साथ ही वर्ष 2012-13 के संभावित घाटे 1,485 करोड़ रुपये को शामिल करते हुए कुल बजटीय घाटा 1,677 करोड़ रुपये अनुमानित है. इस घाटे की पूर्ति वित्तीय अनुशासन तथा अतिरिक्त आय के संसाधन जुटाकर की जाएगी.’ इस हिसाब से देखा जाए तो 2013-14 में ही एक हजार 677 करोड़ रुपये का घाटा अनुमानित था.
प्रदेश के पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता रामचंद्र सिंहदेव बताते हैं, ‘राज्य सरकार तो कंगाल हो चुकी है. पिछले ही साल सरकार ने कामकाज चलाने के लिए अब तक का सबसे बड़ा लोन यानी साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये राष्ट्रीयकृत बैंकों से लिया था. इससे ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सरकारी खजाना बिल्कुल खाली हो चुका है. अब कैसे योजनाओं को पूरा किया जाएगा यह तो मुख्यमंत्री ही जानें.’
वर्ष 2000 में जब छत्तीसगढ़ का गठन हुआ था तब अविभाजित मध्य प्रदेश के हिस्से के रूप में राज्य के भौगोलिक क्षेत्र के लिए कुल बजट प्रावधान केवल पांच हजार 704 करोड़ रुपये था. यह अलग राज्य बनने के बाद क्रमशः बढ़ता गया और अब 13 साल में 40 हजार करोड़ रुपये से अधिक हो गया है.
हालांकि सूबे के मुखिया को अपने घोषणा पत्र में किए गए वादों को पूरा करने की जल्दी शायद इसलिए भी है कि लोकसभा चुनाव सामने हैं या फिर रमन सिंह अपनी हैट्रिक से गदगद हैं और जनता का अहसान चुकाना चाहते हैं. हालांकि योजनाओं को लागू करने की जल्दबाजी चाहे किसी भी कारण से हो पर इस त्वरित क्रियान्वयन में मुख्यमंत्री एक बात भूल रहे हैं कि इन योजनाओं को लागू करने के लिए राज्य पर पड़ने वाले वित्तीय भार से वे कैसे निपटेंगे. सरकार का खर्च तो हर साल बढ़ रहा है लेकिन आय कैसे बढ़ेगी इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है.