सार्वजनिक स्थलों पर, बाज़ारों में खाने-पीने की दुकानों के अन्दर या बाहर रखे कूड़ेदानों में सबसे अधिक कचरा अक्सर जो दिखायी देता है, उसमें चिप्स के रैपर, प्लास्टिक के स्ट्रा, कप, गिलास, तश्तरी आदि होते हैं। लेकिन अब 01 जुलाई से इनके इस्तेमाल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग चुका है। दरअसल 01 जुलाई से देश भर में एकल उपयोग प्लास्टिक से बनी 19 वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा है। इन 19 वस्तुओं की सूची में स्ट्रा (पाइप), कॉफी बैग, सोडा और पानी की बोतलें, ईयरबड्स, बोतलों के प्लास्टिक के ढक्कन, खाद्य पदार्थों के रैपर, ग़ुब्बारों, झण्डों, कैंडी, आइसक्रीम में लगने वाली प्लास्टिक स्टिक, थर्माकोल से बनी प्लेट, कप, गिलास, प्लास्टिक के चम्मच, कांटा, चाकू के अलावा मिठाई के डिब्बों, नियंत्रण पखें और सिगरेट के पैकेट की पैकिंग में इस्तेमाल होने वाली फ़िल्म व 100 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक बैग व पीवीसी बैनर भी शामिल हैं।
एकल उपयोग प्लास्टिक उसे कहते हैं, जिन प्लास्टिक उत्पादों को एक समय के इस्तेमाल के लिए डिजाइन व बनाया जाता है और फिर उसे फेंक दिया जाता है। ये डिस्पोजेबल आइटम भी कहलाते हैं। इनका इस्तेमाल करना आसान है। लेकिन इस्तेमाल करने वालों को यह भी पता होना चाहिए कि ऐसा प्लास्टिक पर्यावरण व इंसान दोनों के लिए हानिकारक है। इससे हानिकारक गैसें पैदा होती हैं, जिनके अपघटित होने यानी क्षरण में सैंकड़ों साल लगते हैं और मिट्टी को नुक़सान पहुँचता है। इस नुक़सान के दायरे में पर्यावरण, जानवरों, इंसानों, हरियाली, जीवों सहित पूरी धरा आ जाती है। क्या हम ऐसी ज़िन्दगी चाहते हैं? क्या हम ऐसी धरा चाहते हैं? बिलकुल नहीं। लेकिन इसके बावजूद हमने हालात ऐसे बना दिये हैं। बाज़ार की व्यवस्था ने हमारे खान-पान के तरीक़े इस क़दर बदल दिये कि वे हमारी ज़िन्दगी, पर्यावरण के लिए ख़तरा बन गये हैं। यही वजह है कि सरकारें इनके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने को विवश हो गयी हैं।
ग़ौरतलब है कि प्लास्टिक ने सस्ती और सुविधाजनक व क़िफ़ायती होने के कारण पैकेजिंग उद्योग से अन्य सभी वस्तुओं का स्थान ले लिया। लेकिन इसके साथ एक गम्भीर चुनौती यह भी है कि प्लास्टिक धीरे-धीरे विघटित होता है, जिसमें सदियाँ लग सकती हैं। और विघटन की प्रक्रिया में यह धीरे-धीरे ज़हरीले रसायन निकलते हैं, जो हमारे भोजन, पानी में प्रवेश कर जाते हैं। इससे जलीय जीवों के लिए भी ख़तरा है। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि प्लास्टिक कचरे का देश में प्रदूषण फैलाने में सबसे बड़ा योगदान है।
आँकड़े बताते हैं कि भारत में हर साल उत्पादित 9.46 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे में 43 फ़ीसदी एकल उपयोग प्लास्टिक है। पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय के अधिकारियों का मानना है कि इस तरह के प्लास्टिक की वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने के पीछे वजह उनके संग्रह में आने वाली दिक़्क़तें हैं व उसके चलते रीसाइकिलिंग में दिक़्क़तें आती हैं। इन वस्तुओं का चयन इसलिए किया गया, क्योंकि ये बहुत छोटी हैं। इसलिए इन्हें इकट्ठा करना कठिन काम है और ये चीज़ें सीधे वातावरण में ही फेंक दी जाती हैं। बड़ी चीज़ों की तरह इन्हें रीसाइकिलिंग के लिए इकट्ठा करना आसान नहीं है।
प्लास्टिक को लेकर सन् 2019 में टॉक्सिक लिंक का एक अध्ययन आया था, जिससे पता चला था कि देश की राजधानी दिल्ली में इस्तेमाल होने वाला ज़्यादातर एकल उपयोग प्लास्टिक कचरा रीसाइक्लिंग प्लांट की जगह अन्य जगहों पर पहुँचने वाले कचरे में जा रहा है। कई प्लास्टिक ऐसे हें, जिन्हें कोई लेने को तैयार ही नहीं हैं। इनमें खाने के सामानों के पैकेट, बिस्कुट और चिप्स के मल्टी लेयर पैकेट आदि शामिल हैं। विश्व में एकल उपयोग प्लास्टिक कचरे के सन्दर्भ में चीन व अमेरिका के बाद भारत तीसरे नंबर पर आता है। भारत एक ज़िम्मेदार राष्ट्र होने के नाते प्लास्टिक प्रदूषण को ख़त्म करने के लिए प्रयासरत है।
भारत ने 2016 में एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध को लेकर अपना पहला नियम लागू किया था। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम-2016 में नवीनतम संशोधन 11 मार्च, 2021 में किया गया था, जिसे प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम-2021 कहा जाता है। दरअसल केंद्र सरकार ने एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के लिए अगस्त, 2021 में एक अधिसूचना जारी की थी। इसमें एकल उपयोग प्लास्टिक की 19 चीज़ों पर पाबंदी लगाने को कहा गया था। उसके बाद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सभी सम्बन्धित पक्षों को एक नोटिस जारी करते हुए उन्हें 30 जून तक एकल उपयोग प्लास्टिक पर पाबंदी के लिए सारी तैयारी पूरी करने को कहा था। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सभी सम्बन्धित पक्षों को 30 जून तक अपना स्टॉक इस्तेमाल करने के निर्देश दिये थे, ताकि वे 01 जुलाई से उनके विकल्पों का इस्तेमाल करना शुरू कर दें। विकल्पों में काग़ज़, बांस, मिट्टी आदि से बनी वस्तुएँ हैं। एकल उपयोग प्लास्टिक से बनी वस्तुओं को बनाने वालों से लेकर इस्तेमाल करने वाली कम्पनियों की राय में विकल्प का इस्तेमाल करना महँगा पड़ेगा। इससे क़ीमतें बढ़ेगी और भारतीय उपभोक्ता जो पहले से ही महँगाई की मार सह रहा है, उसके लिए मुश्किलें बढ़ेंगी। यह सही है कि सस्ती होने की वजह से प्लास्टिक अधिक प्रचलन आयी और उसने काग़ज़ों, बांस व मिट्टी से बनने वाली वस्तुओं को बाज़ार से ही बाहर कर दिया। इधर ईको फ्रेंडली चीज़ें की लागत बढ़ गयी और सरकार की ओर से भी उन्हें पुनर्जीवित करने के प्रयास अधिक कारगर नतीजें नहीं ला सके।
अब सरकारों के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है कि वे इनके बदले पर्यावरणीय मैत्री विकल्प क़िफ़ायती क़ीमतों में कम्पनियों को मुहैया कराएँ। इस सन्दर्भ में यहाँ ज़िक्र करना ज़रूरी है कि 01 जुलाई से प्रतिबंध वाले आदेश से बेवरेज कम्पनियाँ विशेषतौर पर चिन्तित हैं। जूस व डेयरी प्रोडक्ट्स के छोटे पैक्स के साथ प्लास्टिक का स्ट्रा होता है। अब 01 जुलाई से प्लास्टिक का यह स्ट्रा नहीं मिल रहा है। ऐसा उत्पाद बनाने वाली व बेचने वाली अधिकतर कम्पनियों ने इसके वैकल्पिक स्रोत ग्राहकों को मुहैया कराने की अभी तक व्यवस्था नहीं की है। इन कम्पनियों ने अब प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें इस सन्दर्भ में छूट देने की गुहार लगायी है। अपने लिए और अधिक वक़्त माँगा है।
देश में पाँच रुपये से लेकर 30 रुपये तक की क़ीमत वाले डेयरी प्रोडक्ट्स बहुत-ही लोकप्रिय हैं। इधर कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) की राय में अभी एकल उपयोग प्लास्टिक बन्द होने पर पर्याप्त विकल्प उपलब्ध नहीं है। इस संस्था का यह मानना है कि जिस तरह से सरकार ने 01 जुलाई से इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध का ऐलान किया, उस अनुपात में बाज़ार में उनके विकल्प मुहैया नहीं कराये गये। ऐसे में अगर सरकार पूर्ण रूप से एकल उपयोग प्लास्टिक पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाती है, तो इससे व्यापार और उद्योग को भारी नुक़सान होगा। व्यापारिक संगठनों की ओर से सुनायी पडऩे वाली ये आवाज़ें फ़िलहाल सरकार की आधी-अधूरी तैयारी पर सवाल करती नज़र आती हैं। बहरहाल उपभोक्ताओं को प्लास्टिक की इन प्रतिबंधित वस्तुओं के विकल्प का इंतज़ार है। क्योंकि सरकार ने एकल उपयोग प्लास्टिक की जिन 19 वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया है, उनके विकल्प अभी बाज़ार में उतने बड़े स्तर पर नहीं हैं?
बहरहाल सरकार यही कह रही है कि उल्लंघन करने वालों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई होगी। नियमों का पालन कराने की ज़िम्मेदारी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दोनों की होगी। प्रतिबंध का उल्लंघन करने सम्बन्धित निगरानी दोनों बोर्ड करेंगे। प्रतिबंध का उल्लंघन करने वालों को वातावरण संरक्षण अधिनियम-1986 के तहत पाँच साल की सज़ा या एक लाख रुपये तक की ज़ुर्माना या दोनों हो सकते हैं। वैसे इससे पहले भी कई राज्यों ने एकल उपयोग प्लास्टिक की कई चीज़ों पर प्रतिबंध लगाया है। इसमें हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, उत्तराखण्ड शामिल हैं। यहाँ शत्-प्रतिशत सफलता तो नहीं मिली; लेकिन प्रयास जारी है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा समूचे देश में 01 जुलाई से एकल उपयोग प्लास्टिक के 19 आइटम्स पर प्रतिबंध लगाने के ऐलान से यह सन्देश भी राज्यों में गया है कि अब ढील नहीं दी जा सकती। क्योंकि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड को रिपोर्ट करना है। उसकी जबावदेही बढ़ गयी है। विकल्पों के अभाव को दूर करने के साथ-साथ राज्य सरकारों को इसके प्रति जागरूकता अभियान भी युद्ध स्तर पर शुरू करने होंगे। अमल करने वाली संस्थाओं पर भी इसकी सफलता बहुत हद तक निर्भर करेगी।