हाथरस की चंदपा सहकारी समिति के एक कर्मचारी द्वारा वहाँ के किसानों को डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) न देने पर किसानों ने उसे बन्धक बना लिया। बाद में पुलिस ने सहकारी समिति के कर्मचारी को मुक्त कराकर डीएपी का वितरण कराया। हाथरस की दूसरी सहकारी समितियों और खाद की दुकानों पर भी किसानों को खाद न मिलने से पूरे ज़िले में जगह-जगह हंगामा हो रहा है। ज़िलाधिकारी रमेश रंजन ने स्थिति को भाँपते हुए कृषि विभाग के अधिकारियों से डीएपी और दूसरी उर्वरक खादों की दुकानों का निरीक्षण करवाकर किसानों को उनकी उपलब्धता सुनिश्चित की।
इसके अलावा इलाहाबाद के मानधाता में साधन सहकारी समिति से 2 नवंबर को लुटेरों ने चौकीदार को बन्धक बनाकर तमंचे की नोक पर 80 बोरी लूट लीं। चौकीदार ने बताया कि लुटेरे किसान नहीं थे। क्षेत्र के किसानों को वह पहचानता है। इससे पहले अक्टूबर में हरियाणा के नारनौल के मंडी अटेली में डीएपी के 100 कट्टे लूटने का मामला सामने आया था। डीएपी की इस लूट का वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें पुरुष ही नहीं महिलाएँ भी सिर पर कट्टे लेकर भागती दिखी। हालाँकि पुलिस ने दिनदिहाड़े हुई इस डीएपी लूट में आशंका जतायी थी कि किसानों में अराजक तत्त्व भी शामिल थे, जो शासन-प्रशासन की छवि बिगाडऩे के लिए ऐसे काम कर रहे हैं। हरियाणा के इसी शहर में खाद से भरा एक ट्रक लूटने का प्रयास भी भीड़ द्वारा किया गया। उत्तर प्रदेश के बस्ती से ऐसी भी ख़बरें सामने आयी हैं कि सहकारी समितियों में ताले लटक रहे हैं और उनके सचिव व अन्य कर्मचारी छुट्टी पर चले गये। जब इन गोदामों केताले खुलवाये गये, तो खाद की कोई कमी नहीं थी। किसानों को खाद न देने की आख़िर यह किसकी साज़िश होगी? कौन खाद की कालाबाज़ारी करना चाहता है?
इन घटनाओं से इस बात को समझा जा सकता है कि देश में डीएपी खाद की कितनी क़िल्लत है। भारत सरकार कह रही है कि डीएपी की आपूर्ति की जा रही है, मगर राज्य सरकारें और खाद वितरण केंद्र कुछ और ही कह रहे हैं। देश के कई ज़िलों में किसान डीएपी न मिलने को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं।
जबरन दिया जा रहा सल्फर
डीएपी की क़िल्लत के बाद किसानों को सल्फर ख़रीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। यह बात संयुक्त किसान मोर्चा और हरियाणा के किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर कही है। चढ़ूनी ने इस पत्र में कहा है कि हरियाणा में किसानों को डीएपी और यूरिया के साथ सल्फर ख़रीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इसलिए वे उर्वरक कम्पनियों पर कार्रवाई करें। चढ़ूनी ने पत्र पर लिखा है कि अभी देश में तीन कृषि क़ानून लागू भी नहीं हुए हैं और खाद कम्पनियों ने कालाबाज़ारी व किसानों के साथ जबरदस्ती शुरू भी कर दी।
उन्होंने कहा कि देश में तीनों कृषि क़ानूनों के विरोध में किसानों का आन्दोलन जारी है और खाद कम्पनियों की कालाबाज़ारी को लेकर हरियाणा प्रदेश में किसानों की दुर्दशा दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। उन्होंने कहा कि जबसे रबी की फ़सलों की बुवाई शुरू हुई है, तबसे राज्य में डीएपी की भारी कमी बनी हुई है। ऊपर से खाद कम्पनियाँ किसानों को यूरिया के साथ जबरन सल्फर दे रहीं हैं। विदित हो कि अधिक सल्फर फ़सलों में लगाने से फ़सलों को नुक़सान पहुँचाता ही है, ज़मीन भी ख़राब होती है।
वैश्विक स्तर पर कमी
भारत सरकार की मानें तो डीएपी की वैश्विक स्तर पर कमी है, जिससे निपटने के लिए देश के उर्वरक विभाग का वार रूम 24 घंटे काम कर रहा है। सरकारी सूत्र बताते हैं कि अक्टूबर महीने में राज्यों को 18.06 लाख टन डीएपी भेजी गयी थी, जबकि उर्वरक कम्पनियों ने छ: लाख टन डीएपी का आयात भी किया है, जिसमें से 4.5 लाख टन डीएपी बंदरगाहों पर पहुँच चुकी है। भारत सरकार की मानें तो देश में 2.8 लाख डीलर, 940 रैक प्वाइंट, 21 बंदरगाह और 40 संयंत्रों के द्वारा उर्वरकों की मानिटरिंग और प्लानिंग की जा रही है। सरकारी सूत्र यह भी बताते हैं कि पिछले साल के मुताबिक, इस साल 30 सितंबर को देश में डीएपी और एमओपी का स्टॉक आधे से भी कम था। वहीं कुछ राज्यों का कहना है कि उन्हें भारत सरकार द्वारा 40 फ़ीसदी आपूर्ति ही की गयी है, जिससे डीएपी की क़िल्लत बनी हुई है। डीएपी की क़िल्लत तब है, जब रबी की फ़सलों में डीएपी की आपूर्ति के लिए भारत सरकार ने उर्वरक कम्पनियों को 28,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी है।
माँग और आपूर्ति
उर्वरक विभाग की मानें तो 2021-22 के रबी फ़सलों के मौसम के लिए अक्टूबर से मार्च, 2022 तक 58.68 लाख टन डीएपी की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त इतने समय की आपूर्ति के लिए 60.84 लाख टन नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश (एनपीके) और सल्फर के विभिन्न ग्रेड की कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की भी आवश्यकता है।
रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया का कहना है कि उन्होंने अपने मंत्रालय में विस्तार से खाद की कमी को लेकर अध्ययन किया है। इसी नवंबर में डीएपी खाद की सभी राज्यों की 17 लाख मैट्रिक टन की माँग की तुलना में 18 लाख मैट्रिक टन आपूर्ति का लक्ष्य उन्होंने बनाया है। इसी प्रकार सभी राज्यों की 41 लाख टन यूरिया की माँग की तुलना में 76 लाख मीट्रिक टन यूरिया की आपूर्ति करने का लक्ष्य बनाया गया है। इसके अतिरिक्त एनपीके की राज्यों की 15 लाख मीट्रिक टन की माँग की तुलना में 20 लाख मीट्रिक टन एनपीके आपूर्ति का लक्ष्य रखा है।
विदित हो कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान समेत देश के कई राज्यों में डीएपी व अन्य उर्वरक खादों की क़िल्लत लगातार बनी हुई है, जिसके चलते किसानों की रबी की फ़सल ख़राब हो रही है। अगर किसानों को समय रहते उर्वरक खादें किसानों को नहीं मिलीं, तो रबी की फ़सलों की पैदाबार बहुत कम हो जाएगी।
महँगी हुईं उर्वरक खादें
डीएपी के बाद एनपीके की भी देश में भारी क़िल्लत है, जिसके चलते एनपीके का बैग 500 रुपये महँगा हो गया है। एनपीके ही नहीं, कई अन्य कॉम्पलेक्स उर्वरकों के दामों में भी आपूर्ति में कमी के चलते उछाल आया है। हालाँकि भारत सरकार ने किसानों को आश्वस्त कर रही है कि उर्वरक खादों के दाम नहीं बढ़ेंगे। कहा जा रहा है कि महँगी खाद प्राइवेट खाद विक्रेता बेच रहे हैं। उत्तर प्रदेश में महँगी खाद बेचने की शिकायतों के बाद कुछ अधिकारियों ने महँगी खाद बेचने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की बात कही है। अधिकारियों का कहना है कि अभी तक उनके संज्ञान में महँगी खाद बेचने का मामला नहीं आया है, कुछ लोगों ने शिकायतें ज़रूर की हैं।
नक़ली और मिलावटी खाद
देश के कई राज्यों में सहकारी समितियों पर लम्बी-लम्बी लाइनों के बाद भी डीएपी और दूसरी उर्वरक खादें न मिलने पर किसान जहाँ से भी ये खादें मिल रही हैं, वहाँ से ख़रीदने को मजबूर हो रहे हैं। इसके चलते मिलावटख़ोर सक्रिय हो गये हैं, जो मिलावटी उर्वरक खादों को बेचने के अलावा नक़ली खादों की बिक्री भी महँगे दामों में किसानों को कर रहे हैं। यह बात कृषि विभाग की टीमों द्वारा राज्यों में की जगह-जगह की गयी छापेमारी के बाद सामने आयी है।
सरकार ने बढ़ायी सब्सिडी
एक सच यह भी है कि उत्तर प्रदेश में अब इफको की एनपीके का 50 किलो की बोरी 1450 रुपये में मिलेगी। केवल पुराना भण्डारण पुरानी क़ीमत 1185 रुपये के हिसाब से बेचा जाएगा। विदित हो कि मई, 2021 में भारत सरकार ने 500 रुपये प्रति बोरी डीएपी की सब्सिडी बढ़ायी थी। उस समय तक डीएपी की एक बोरी 1700 रुपये में मिलती थी, जिस पर सरकार 500 की सब्सिडी देती थी और किसानों को उर्वरक कम्पनियाँ 1200 रुपये में बेचती थीं। बाद में वैश्विक बाज़ार में फॉस्फोरिक एसिड, अमोनिया की क़ीमतें बढऩे के समाचार आने के बाद उर्वरक कम्पनियों ने ख़रीफ़ की बुवाई के दौरान डीएपी की बोरी 1900 का कर दिया, जिस पर काफ़ी हंगामा हुआ। लेकिन भारत सरकार ने उर्वरक कम्पनियों पर डीएपी के भाव कम करने का दबाव बनाये बग़ैर उसे 2400 रुपये का कर दिया और कहा कि हर बोरी पर वह 1200 रुपये सब्सिडी देगी; जबकि कम्पनियाँ किसानों से 1200 रुपये ही लेंगी। लेकिन यह भाव कम्पनियों की अपनी आकांक्षा से भी 500 रुपये अधिक था। बावजूद इसके अब अगली छमाही रबी की फ़सल की बुवाई में ही कम्पनियों ने फिर डीएपी की आपूर्ति कम कर दी और दाम बढ़ाने का उनका मक़सद फिर हल होता दिखायी दे रहा है। क्योंकि अब सरकार उर्वरक कम्पनियों को डीएपी के एक बोरी पर 1200 की जगह 1650 रुपये सब्सिडी देगी।
एक तरफ़ सरकार कह रही है कि किसानों को डीएपी की बोरी 1200 रुपये में ही मिलेगी, वहीं दूसरी तरफ़ इफको डीएपी के नये भण्डार (स्टाक) को महँगा करके बेचने की बात कह चुकी है। सरकार कम्पनियों पर उर्वरक खादों के भाव कम करने का दबाव बनाने की जगह चुपचाप सब्सिडी बढ़ाती जा रही है, जिससे कम्पनियों का मनोबल बढ़ा हुआ है। कहीं ऐसा न हो सरकार रसोई गैस सिलेंडर की सब्सिडी की तरह ही उर्वरक खादों पर दी जाने वाली सब्सिडी भी एक दिन अचानक ख़त्म कर दे और किसानों को 1200 रुपये का डीएपी की बोरी 3000 के आसपास ख़रीदनी पड़े।
क्या करें किसान?
किसान और खेती बाड़ी के अच्छे जानकार मंगल सिंह का कहना है कि महँगी उर्वरक खादों से बचने के लिए किसानों के पास एक ही रास्ता है और वह है- जैविक खेती करना। अगर किसान अपने पूर्वजों की तरह जैविक खेती करने लगें, तो खाद्यानों में बढ़ता ज़हर भी ख़त्म होगा और किसानों को महँगी खादों की ख़रीदारी भी नहीं करनी पड़ेगी। मंगल सिंह का कहना है कि अगर देश भर के किसान पशुधन से प्राप्त गोबर, मूत्र, फ़सलों के अवशेष का इस्तेमाल खाद के रूप में करें, तो उर्वरक कम्पनियों का दिमाग़ भी ठिकाने आ जाएगा और सरकार द्वारा उन्हें दी जा रही मोटी सब्सिडी भी बचेगी, जिसे सरकार चाहे तो सीधे तौर पर किसानों को दे सकती है। हालाँकि इसके लिए पूरे देश के किसानों को दृढ़ संकल्प लेना होगा।