यह शायद ही कभी सुना गया कि सरकारें संसद में बिना बहस के बजट पास करा लेती हैं। लेकिन इसी महीने यह भारत की लोकसभा में हुआ। विधायिका का सबसे महत्वपूर्ण कागजात वित्तीय विधेयक होता है जिसमें पूरे साल भर देश की वित्तीय मार्गदर्शिका होती है जो बिना किसी बहस के लोकसभा में पास हो गई। किसी ने भी ‘डोंटÓ का न तो तकिया कलाम सुना और न ही इसके लिए तय ढर्रों और नजीरों को ही पलटा गया।
अभी हाल लोकसभा ने बिना किसी बहस के वित्तीय विधेयक 2018 को दोनों सदनों से पास करा लिया। इसी दौरान पहली अप्रैल से शुरू हो रहे अगले वित्त वर्ष में 89.25 लाख करोड़ के खर्च की योजना भी बहुमत से पास करा ली गई। न विपक्ष था, न कोई बहस। यह सब महज 25 मिनट में निपट गया। इस विधेयक के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से थे 2018-19 के कर प्रस्ताव वे भी बहुमत से पास हो गए। इसी तरह एप्रोप्रिशन बिल भी जिसमें 99 सरकारी मंत्रालयों और विभागों के खर्च का पूरा ब्यौरा था वह भी पास हो गया। तकनीकी तौर पर बजट पास तो हो गया लेकिन हाल के वर्षों में यह पहली बार ही हुआ है जब लोकसभा में उस पर न कोई चर्चा हुई और न मतदान। किसी एक मंत्रालय के लिए और ज़्यादा पैसों की मांग की भी कही कोई सुनवाई नहीं हुई।
राज्यसभा ने भी सारे एप्रोप्रिएशन बिल पास कर दिए। कई कट मोशन ज़रूर विपक्षी दलों से आए थे। उन्हें खारिज करते हुए ये पास हुए।
यह सब उस दौरान हुआ जब विपक्ष पंजाब नेशनल बैंक और दूसरे सरकारी बैंकों में हुए सबसे बड़े बैंक घोटालों के आरोपियों को देश से बाहर सुरक्षित तौर पर निकल भागने के आरोपों पर बहस के लिए ज़ोर दे रहा था। कावेरी जल विवाद और आंध्र प्रदेश को ‘स्पेशल पैकेजÓ की मांग भी विपक्ष ने उठा रखी थी लेकिन इसी दौरान सरकार ने बजट पेश करने का फैसला लिया और उसे बिना बहस मंजूर करा लिया। इसी के जरिए सांसदों, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, न्यायाधीशों आदि के वेतन भी खासे बढ़ाने पर मंजूरी भी हासिल कर ली गई। संसद सत्र अभी छह अप्रैल तक चलना है लेकिन संसद ठप्प हैं । विपक्ष चलने नहीं दे रहा। यह कहना है तीन चौथाई बहुमत पाने वाले दल के नेताओं का।
मुख्य विपक्षी दलों में कांग्रेस, एनसीपी, टीएमसी, सदन में वाकआउट करते हैं जबकि टीडीपी, टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस सदन के वेल में नारेबाजी करते हैं। लेकिन इन बातों का कोई असर वित्त विधेयक की मंजूरी पर लोकसभा में नहीं पड़ा जहां वित्त विधेयक बहुमत से पास हो गया। रिकार्ड के लिए यह हो गया कि 85,315 करोड़ रुपया उन राज्यों को मिलेगा जिन्हें जीएसटी लागू करने से नुकसान हुआ है।
भाजपा के नेतृत्व में केंद्र में सत्ता चला रही एनडीए का लोकसभा में पूर्ण बहुमत हैं। वित्त बिल और एप्रोप्रिएशन बिल के पास होने से बजट को मंजूर करने की प्रक्रिया पूरी हो गई। नियमों के अनुसार दोनों ही विधेयकों को राज्यसभा के हवाले कर दिया गया। चूंकि ये मनी बिल हैं यदि राज्य सभा इसे चौदह दिन में वापस नही करती तो से पास माने जाएंगे। बजट पर संसद की मुहर का लगना संवैधानिक दायित्व हैं जिसके बिना सरकार अपने कामकाज में एक भी पैसा खर्च नहीं कर सकती। इस कारण इस पर बहस होती है और आम राय से इसे पास किया जाता है लेकिन उस पूरी प्रक्रिया को इस बार नज़रअंदाज किया गया। बजट पास मान लिया गया।
मोदी सरकार का तर्क है कि जब विपक्ष सदन में हल्ला हंगामे में जुटा था तो कैसे बजट पर बहस कराई जाती। इसी कारण तय प्रक्रिया का अनुगमन नहीं किया गया। लेकिन सरकार के इस तर्क को कोई मानने को तैयार नहीं है सिवा सत्ता चला रही पार्टी के। अनुशासनहीनता की बातें तो संसद के गलियारे में दशकों से सुनाई देती रही हैं। लेकिन इस तरह बजट पास कराने की बात आम तौर पर सुनाई नहीं देती,ऐतिहासिक तौर पर सरकारें संसद के अधिकारों को सर्वोच्च मानती हैं और आम राय बनाने की कोशिश करती हैं। ऐसा शायद ही कभी हुआ है जैसा इस साल संसद में दिखा।
ज़रूरत है कि भाजपा सरकार लोगों का भरोसा संसद में जगाए । विधायिका के प्रति अविश्वास न बढ़ाए जैसा कि बजट को बिना बहस पास करा कर किया। सरकार को साथ लेते हुए अपनी भूमिका जतानी चाहिए थी।
विपक्षी दलों ने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को एक कड़ा पत्र भेजा जिसमें पूछा गया कि सरकार ने विपक्ष को बिना पूर्व सूचना दिए बगैर केंद्रीय बजट पर मतदान कैसे करा लिया। विपक्ष की मुख्य पार्टी कांग्रेस के अनुसार टीडीपी और एआईडी एमके का विरोध प्रदर्शन तो सरकार की ओर से कराया जाता रहा है। क्योंकि वे एनडीए में भी हैं। ऐसा इसलिए किया गया जिससे नीरव मोदी घोटाले पर से लोगों का ध्यान बांटा जा सके। यह पत्र सुमित्रा महाजन को सौंपा सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने जिसमें मल्लिकार्जुन खडगे, ज्योतिरादित्य सिंधिया, माकपा सांसद मोहम्मद सलीम, आर जेडी सांसद जेपी यादव आदि थे। विपक्षी एकता में दरार तब दिखी जब तृणमूल के सांसदों ने इस पत्र पर दस्तखत नहीं किए।
विपक्षी नेताओं का आरोप था कि पिछली बिजिनेस एडवाईजरी कमेटी की बैठक में सरकार ने छह मंत्रालयों जिनमें कृषि भी था उस पर बहस के लिए समय नियत करने की बात कही थी लेकिन बजट पर मतदान करने के लिए तारीख और समय तय नहीं हुआ था। इससे पता चलता है कि सरकार में कितना अंहकार और अहं है जिसके चलते तमाम वित्तीय मामलों पर संसद में बहस कराने की बजाए उससे बचने की कोशिश होती है।
विपक्षी दलों ने अध्यक्ष को यह भी याद दिलाया कि वे अभी हाल हुए नीरव मोदी द्वारा किए गए बैंकों में वित्तीय घोटालों पर बहस की मांग कर रहे हैं। सरकार इस मामले पर आगे नहीं आ रही है जिससे सदन की कार्रवाई सामान्य तौर पर चल सके। दूसरी ओर सरकार इस बात पर आमादा है कि पूरा बिल (केंंद्रीय बजट) बिना बहस के पास हो जाए।
लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे ने कहा कि टीडीपी और अन्नाद्रमुक, एआईए, डीएमके के विरोध प्रदर्शन तो एनडीए सरकार की ओर से चलाए जा रहे प्रदर्शन हैं जिससे बहस इस मुद्दे पर न हो कि कैसे नीरव मोदी ने सरकारी पंजाब नेशनल बैंक को 12,000 करोड़ से भी ज़्यादा का चूना लगा दिया। आखिर फिर संसद सत्र बुलाने की वजह ही क्या है जब बिना बहस मुबाहिसे के केंद्रीय बजट बहुमत से ही पास कराना है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि वह देश को गुमराह कर रही है कि विपक्ष ही सदन नहीं चलने दे रहा।
खडग़े ने कहा जब टीडीपी सांसद प्लेकार्ड लेकर आते हैं तो मिनटों में सदन स्थगित हो जाता है जबकि सस्पेंड होना चाहिए। प्रधानमंत्री भी कतई कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। यह संसदीय मामलों के मंत्री की जिम्मेदारी है कि वह भाजपा के सहयोगियों, भविष्य में बनने वाले सहयोगियों और समर्थकों को लेकर सदन सुचारू रूप से चलाएं।
लगभग इसी मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए माकपा सांसद मोहम्मद सलीम ने कहा, नियंत्रित लोकतंत्र का उदाहरण संसद होता है। बजट के लिए एक छोटा रास्ता अपनाना वर्तमान शासन की एक महत्वपूर्ण नजीर है।