बिक्री के लिए खबरें!

पेड खबरों की बात किसी से छिपी नहीं है। लेकिन पेड खबरों से लोगों, यहां तक कि निर्णयों को भी प्रभावित किया जाता है, यह बात बहुत गंभीर है। तहलका के इस बार के खुलासे से पता चलता है कि किस प्रकार पैसे के दम पर खबरें फैलाई जाती हैं, जिनके विक्रेता और मीडिया घराने मिलकर राजनीतिक दलों के हिसाब से चुनावी परिणामों में हेरफेर करने में उनकी मदद करते हैं। इसके अलावा प्रचार या प्रतिष्ठा चाहने वाले व्यक्तियों की छवि निर्माण में इस तरह की पेड खबरों के विक्रेता सेवाएं भी प्रदान करते हैं। तहलका एसआईटी की रिपोर्ट :-

पेड न्यूज या पेड कंटेंट से तात्पर्य समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रकाशित उन लेखों अथवा खबरों से है, जिनके लिए बाकायदा प्रकाशन के माध्यमों के लिए भुगतान किया जाता है। संस्थान खबरों को प्रकाशित-प्रसारित करने के लिए तय रकम देते हैं और मीडिया संस्थान उनके लिए उनके अनुकूल परिस्थितियां खबरों के माध्यम से तैयार करते हैं। ऐसी खबरें विज्ञापनों जैसी होती हैं, लेकिन विज्ञापन टैग के बिना। इस प्रकार के समाचार को लंबे समय से एक गंभीर कदाचार माना जाता रहा है, क्योंकि यह खबरें नागरिकों, पाठकों से सही तथ्यों को छिपाकर उन्हें धोखा देती हैं। खबरों के रूप में दिखाई देने वाली ये सामग्री वास्तव में एक विज्ञापन ही होती हैं। दूसरी बात इस तरह की खबरों के लिए किए जाने वाले भुगतान के तरीके अक्सर कर नियमों और चुनाव व्यय कानूनों का उल्लंघन करते हैं। इससे अधिक गंभीर बात यह है कि इससे चुनावी चिंताएं पैदा होती हैं, क्योंकि मीडिया सीधे तौर पर मतदाताओं को प्रभावित करता है। पेड न्यूज को भ्रष्टाचार का एक रूप माना जाता है और यह अक्सर चुनावों के दौरान देखा जाता है। इसका उपयोग किसी उम्मीदवार को अनुचित तरीके से लाभ पहुंचाने या नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता है।
नीरा राडिया टेप विवाद को कौन भूल सकता है? 2001 में स्थापित जनसंपर्क (पीआर) फर्म वैष्णवी कम्युनिकेशंस की प्रमुख नीरा राडिया देश के कुछ सबसे बड़े कॉर्पोरेट घरानों को अपने ग्राहकों में गिनती हैं, जिनमें टाटा और रिलायंस सबसे मूल्यवान हैं। राडिया को एक पीआर पेशेवर के रूप में कम और एक लॉबिस्ट के रूप में अधिक संदर्भित किया गया, जो कॉर्पोरेट घरानों, पत्रकारों, राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच संपर्क स्थापित करने में शामिल थी। राडिया टेपों के कारण कुछ पत्रकारों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठे। टेपों का सबसे चिंताजनक पहलू यह था कि पत्रकारों की राजनीतिक और कॉर्पोरेट सौदेबाजी में कथित संलिप्तता थी। रिपोर्ट्स से पता चला कि देश के कुछ शीर्ष पत्रकार राजनेताओं, पार्टियों और कॉर्पोरेट घरानों के लिए बिचौलियों का काम कर रहे थे। यह भी एक तरह की पेड न्यूज़ थी।
चूंकि पेड न्यूज का खेल लंबे समय से भारतीय समाज को प्रभावित और परेशान कर रहा है, विशेष रूप से चुनावी मौसम में। ऐसे में तहलका ने बिहार में चुनाव के दौरान और पश्चिम बंगाल सहित कई अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले देश में पहली बार इस भ्रष्टाचार की पड़ताल करने का निर्णय लिया।
‘मैंने तीन वर्तमान मुख्यमंत्रियों की मदद उनकी पेड न्यूज प्रकाशित करवाने में की है। मैंने उनके प्रोफाइल बनाए, उन्हें सोशल मीडिया पर अपलोड किया और पैसे के लिए उनका प्रचार किया। यह तो बस पेड न्यूज़ है।’ -एक प्रमुख डिजिटल ब्रांड के विनोद तिवारी (बदला हुआ नाम) ने कहा।
‘मैं खबर के रूप में पेड विज्ञापन प्रकाशित करूंगा, ताकि भारत का चुनाव आयोग यह पता न लगा सके कि यह भुगतान की गई खबर है या वास्तविक खबर है। पेड-न्यूज़ के कारोबार में चुनाव आयोग को धोखा देने का यह सबसे अच्छा तरीका है।’ -विनोद ने तहलका रिपोर्टर से कहा।
‘आप मुझे बताएं कि चुनाव के दौरान आप अपने उम्मीदवार की खबरें किस चैनल पर चाहते हैं और ऐसा हो जाएगा। मैं यह सेवा भी पैसे के लिए देता हूं।’ -उसने कहा।
‘मैं सब कुछ करूंगा। उम्मीदवारों के चित्र और वीडियो के साथ लेख प्रकाशित करवाऊंगा। यह सब पैसे से होगा। कोई न कोई उम्मीदवार के पक्ष में लेख लिखेगा। पेड न्यूज अखबारों और डिजिटल प्लेटफॉर्म दोनों पर दिखाई देगी और जो कुछ भी मैं आपको बता रहा हूं, वह सब पेड होगा।’ -ट्रेम्ट टेक्नोलॉजी के संस्थापक निदेशक रोहन मिश्रा ने कहा।
‘मैं देश के शीर्ष डिजिटल प्लेटफॉर्म पर एक सकारात्मक खबरें प्रकाशित करने के लिए 16,000 रुपए लेता हूं। यदि आप अपने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों के बारे में नकारात्मक स्टोरी चाहते हैं, तो दोगुनी कीमत देनी होगी। 16 हजार रुपए से 32 हजार रुपए प्रति लेख।’ -रोहन ने हमारे संवाददाता को बताया।
‘बिहार चुनाव में भारत के चुनाव आयोग को धोखा देने के लिए आपके पेड न्यूज को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया जाएगा। आपका लेख प्रत्येक चैनल पर प्रसारित होने वाले शीर्ष सौ खबरों में दिखाई देगा। इसे विज्ञापन की तरह नहीं, बल्कि खबर की तरह प्रस्तुत किया जाएगा, लेकिन इसके लिए आपको भुगतान करना होगा। 15-20 सेकंड के लिए टेलीविजन का शुल्क 35,000 रुपए है।’ -रोहन ने खुलासा किया।
‘मैं लंबे समय से पेड न्यूज का काम कर रहा हूं और कभी पकड़ा नहीं गया। अब पेड न्यूज विक्रेताओं के माध्यम से प्रकाशित की जाती है, इसलिए यह अखबारों में मौलिक रूप में दिखाई देगी। एक रिपोर्टर जाकर स्टोरी करेगा, लेकिन इसके लिए उसे भुगतान किया जाएगा। इसकी दर लगभग 60-65 हजार रुपए प्रति खबर है।’ -उसने आगे कहा।
‘मुझे पेड न्यूज के लिए सभी भुगतान नकद में किए जाएंगे। यदि मैं किसी खाते के माध्यम से कोई भुगतान लेता हूं, तो वह मेरी कंपनी के खाते में नहीं जाएगा; वह किसी अन्य खाते के माध्यम से भेजा जाएगा।’ -रोहन ने बताया।
विनोद कहते हैं कि पेड न्यूज का कारोबार अब अधिक संगठित हो गया है। यह प्रत्यक्ष मीडिया सौदों के बजाय विक्रेताओं के माध्यम से संचालित होने वाला बाजार है। ये विक्रेता राजनेताओं और मीडिया आउटलेट्स के बीच बिचौलियों के रूप में कार्य करते हैं, तथा विषय-वस्तु निर्माण से लेकर प्लेसमेंट तक सब कुछ प्रबंधित करते हैं। विनोद, जो दावा करते हैं कि उन्होंने तीन मुख्यमंत्रियों के साथ काम किया है, अपनी भूमिका को आश्चर्यजनक स्पष्टता के साथ समझाते हैं- ‘मैं उनकी प्रोफाइल बनाता हूँ, उन्हें सोशल मीडिया पर अपलोड करता हूं और उनका प्रचार करता हूं, और ये सब पैसे के लिए करता हूं। ये तो बस पेड न्यूज़ है।’ -उसने तहलका से कहा।
व्यवसाय से जुड़े एक अन्य विक्रेता रोहन मिश्रा ने भी विनोद की बातों को दोहराते हुए कहा कि चुनावों के दौरान ऐसी सेवाओं की मांग बढ़ जाती है। ‘स्थानीय विधायकों से लेकर बड़े नेताओं तक, हर कोई खबरों में छाये रहने के लिए मीडिया संस्थानों पर कब्जा करना चाहता है। हम ऐसा करते हैं।’ -उसने मुस्कुराते हुए कहा।
निम्नलिखित बातचीत में विनोद ने स्वीकार किया कि वह राजनेताओं के लिए संपूर्ण ब्रांडिंग उपलब्ध कराता है, जिसमें चुनावी पैकेज भी शामिल हैं, जो उम्मीदवारों की प्रोफाइल तैयार करते हैं और उनका प्रचार करते हैं। उनका कहना है कि उन्होंने पहले भी ऐसे प्रोफाइल बेचे हैं और डिजिटल तथा समाचार प्लेटफॉर्म पर प्रचार के लिए शुल्क लेते हैं। विनोद का कहना है कि इन वस्तुओं को समयबद्ध तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, ताकि चुनाव आयोग आसानी से यह न पहचान सके कि इन्हें भुगतान किया गया है।

रिपोर्टर : इसके अलावा आप ब्रांडिंग भी करते हैं- इंडिविजुअल, इलेक्शंस में, जैसे पॉलिटिशियंस हैं, इलेक्शन कॉन्टेस्ट करते हैं?
विनोद : हां।
रिपोर्टर : करते हैं आप?
विनोद : करते हैं, मैंने XXXX साहब की की है।
रिपोर्टर : XXXXXX की?
विनोद : हां, हां… XXXXXX की है, XXXXX के लिए काम किया है।
रिपोर्टर : इलेक्शंस में पेड न्यूज, …वो कैसे करोगे आप?
विनोद : इलेक्शंस के लिए मेरे पास पूरा एक पैकेज है, पैकेज के थ्रू मैं सारी चीजें कर सकता हूं।
रिपोर्टर : देखिए, दो चीजें होंगी, …एक तो नेताजी अपना प्रोफाइल बनाके आप को दे देंगे, वो आपको चलवाना है न्यूज पेपर्स में, अखबारों में उसको पब्लिश करवाना है। एक तरीका ये होगा कि नेताजी कहेंगे मेरी ब्रांडिंग करवानी है, टीम आपकी होगी। अब आप कैसे करेंगे? लेकिन होगा वो इलेक्शन अनाउंस होने के बाद ही, तो आपको ये देखना है कि इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया के सामने न पता चल पाए कि ये पेड न्यूज है।
विनोद : वो सब मैं करा लूंगा, वो कहीं किसी की नजरों में नहीं आने वाला, इलेक्शन कमीशन आल्सो नाउ कि यही टाइम होता है अपने को पुलिंग करवाने का, ये हर जगह होता है। ऐसे कोई दिक्कत वाली बात नहीं है।
रिपोर्टर : तो आप कर चुके हो पेड न्यूज इलेक्शन के टाइम में?
विनोद : हां।
रिपोर्टर : पक्का?
विनोद : हां, मैंने बताया ना इलेक्शन टाइम में मैंने इन लोगों की ऐसी-ऐसी प्रोफाइल बेची है सर!
रिपोर्टर : तो इसमें पेड न्यूज थोड़ी होगा XXXXXX एट्च में?
विनोद : बट मैंने उनका प्रोफाइल बनाया, उसको लोड भी किया। चार्जेज भी लिए, आलसो उन्होंने बोला मेरा ये वीडियो है, इसको प्रमोट करिए, या मैं ये चीज कर रहा हूं, आप इसको लिखवाइए, तो वो पेड ही तो हुआ सर!

जब बात पेड न्यूज की आती है, तो हम भारत के चुनाव आयोग से कैसे बच सकते हैं? इस सवाल के जवाब में विनोद ने हमें बताया कि वह भुगतान की गई सामग्री को सामान्य समाचार की तरह प्रस्तुत करता है, यह सामान्य रिपोर्टिंग की तरह दिखता है। लेकिन इसके लिए भुगतान किया जाता है, इसलिए ईसीआई इसे पहचान नहीं पाएगा। इस संक्षिप्त बातचीत में विनोद ने बताया कि किस तरह राजनीतिक खबरों को जनता तक पहुंचने से पहले उन्हें तैयार किया जाता है।
विनोद : मैं XXXXX के लिए काम करता हूं।
रिपोर्टर : किस टाइप की स्टोरीज लग सकती हैं?
विनोद : जैसे हमारे पास न अभी कुछ पॉलिटिकल स्टोरीज आ रही थी, जैसे हर पॉलिटिकल पार्टी ये चाहती है कि मेरे जो इंटरव्यू हैं, वो लोगों तक पहुंचे, कैसे पहुंचेगी? …जब आप उस स्टोरी को एक न्यूज वे में पेश करो। अगर आप सीधा-सीधा बोलोगे, तो सब लोग समझ जाएंगे कि ये पेड स्टोरी है।

विनोद ने स्वीकार किया कि वह भारत में किसी भी समाचार चैनल पर खबरें प्रकाशित करवाने का व्यवसाय करता है। उसने कहा कि उनके पास लोगों की स्टोरीज को समाचार प्लेटफार्मों पर प्रकाशित कराने में मदद करने के लिए पहुंच और संपर्क हैं। उसने बताया कि पार्टियां चाहती हैं कि उनके साक्षात्कार प्रायोजित लगे बिना लोगों तक पहुंचें। विनोद का कहना है कि असली तरकीब उन्हें खबरों के रूप में प्रस्तुत करने में है।
विनोद : कहने का मोटिव ये है कि मेरे पास चीजें सारी हैं, मेरे पास रीच है, चैनल्स हैं। आप जो कहेंगे, मेरे पास वो सारी चीजें हैं।
रिपोर्टर : चैनल्स में भी स्टोरी लग सकती है?
विनोद : आप बताओ कौन-सी है और किस चैनल में लगानी है आपको>
रिपोर्टर : अच्छा, ये भी सर्विस है आपके पास?
विनोद : ये भी हैं।

अब विनोद ने खुलासा किया कि कैसे एक बार भाजपा उम्मीदवार के प्रचार के लिए उसने जो सौदा किया था, वह विफल हो गया था। विनोद के अनुसार, विधानसभा चुनाव लड़ रही भाजपा की एक उम्मीदवार, जो पूर्व महापौर है; ने उसे फोन किया था और अपने निर्वाचन क्षेत्र के लगभग 1.5 से 2 लाख मतदाताओं के मतदाता पहचान पत्र और फोन नंबर दिए थे। विनोद को उन मतदाताओं को व्हाट्सएप संदेश भेजकर भाजपा उम्मीदवार को वोट देने के लिए कहना था। विनोद ने बताया कि सौदा आठ लाख रुपए में तय हुआ था। लेकिन जल्द ही भाजपा आईटी सेल को इसकी जानकारी हो गई और उन्होंने सौदा रद्द कर दिया। विनोद ने कहा कि यह सौदा इसलिए रद्द किया गया, क्योंकि भाजपा में सब कुछ केंद्रीकृत है, यहां तक कि प्रचार के लिए भी उम्मीदवार स्वतंत्र एजेंसियों को नियुक्त नहीं कर सकते। पार्टी ऐसे सभी काम स्वयं ही संभालती है।
विनोद : वो XXXXX हैं ना XXXX में, तो उनको  चांसेज थे टिकट मिलने के बीजेपी से, जब XXXXX इलेक्शन हुआ था।
रिपोर्टर : XXXXXX तो शायद मेयर भी रह चुकी हैं?
विनोद : हां, मेयर भी रह चुकी हैं। सो मैं उनके टच में आया था, तो पेड प्रमोशंस की बात चल रही थी, तो उस समय XXXXX चैनल फंडिंग कर रहा था, तो उन्होंने मेरे को बोला मेरे को व्हाट्सएप कैंपेनिंग करना है। व्हाट्सएप पर मैसेजेज भेजना था, मैंने बोला हो जाएगा। मेरे को दे दो।
विनोद (आगे) : मैंने कहा आप मेरे को मेंबर्स दे दो। उन्होंने बोला मैं अपनी कॉन्स्टीट्वेंसी से जो 1.5 लाख से 2 लाख तक मेंबर्स दूंगा, उसमें आपको भेजना है। मैंने बोला ठीक है। मैंने उनको कॉस्टिंग दी, सब चीज़ें फाइनल हो गयी, बट बीजेपी का क्या है सर कि उनका खुद का अपना एक पूरा चैनल है। सो दे सैड अगर आपको कोई भी प्रमोशन करनी है, तो उसे अवर इंटरनल चैनल्स ओनली।
विनोद (आगे) : तो XXXXX को पता चला कि ये ऐसे-ऐसा व्हाट्सएप पर प्रमोशन करवाना चाहती हैं, तो उन्होंने उस बंदे को इनसे कॉन्टेक्ट करवा दिया, तो मेरी डील समझिए आप साइन होते-होते रह गई।
रिपोर्टर : कितने की थी डील?
विनोद : वो मेरी डील थी 8 लाख के आसपास की थी।
रिपोर्टर : एक इलेक्शन की?
विनोद : हां, सिर्फ व्हाट्सएप कैंपेन।
रिपोर्टर : XXXXX इलेक्शन में?
विनोद : ये सर जो अभी XXXX में हुआ है, इसी इलेक्शन में।
रिपोर्टर : तो वोटर आईडी से ही सारे नंबर निकाल रहे होंगे?
विनोद : उन्होंने क्या किया था, वोटर आईडी की पूरी लिस्ट मेरे पास आ गई थी, जिसके अंदर मेरे को मैसेज सेंड करने थे।

विनोद के बाद तहलका रिपोर्टर ने रोहन मिश्रा से मुलाकात की, जो एक अन्य पेड न्यूज प्रकाशित-प्रसारित करने वाले हैं और ट्रेम्ट टेक्नोलॉजी के संस्थापक निदेशक हैं। रोहन ने तहलका के संवाददाता को यह भी बताया कि वह सब कुछ संभाल लेंगे, उम्मीदवारों की तस्वीरों और वीडियो के साथ लेख प्रकाशित करवाना। यह सब भुगतान किया जाएगा। रोहन के अनुसार, कोई व्यक्ति चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार के पक्ष में लेख लिखता था। उन्होंने कहा कि पेड न्यूज अखबारों और डिजिटल प्लेटफॉर्म दोनों पर दिखाई देगी और उन्होंने जो कुछ भी उल्लेख किया है, उसके लिए पेड न्यूज होगी।
रिपोर्टर : वो आप कैसे करेंगे, मतलब आर्टिकल पब्लिश करवाएंगे?
रोहन : आर्टिकल भी है, फोटो भी है, वीडियो शूटिंग भी होती है।
रिपोर्टर : अखबारों में आर्टिकल पब्लिश कराएंगे, पेड होंगे वो सारे?
रोहन : पेड होंगे, …जो आर्टिकल लिखे जाते हैं, जैसे बैनर होता है।
रिपोर्टर : मैं प्रिंट की बात कर रहा हूं. अखबार की; डिजिटल की नहीं।
रोहन : मैं दोनों की बात कर रहा हूं, आर्टिकल लिखे जाएंगे, किसी के थ्रू लिखे जाएंगे।
रिपोर्टर : पैसा देना पड़ेगा ना उसमें?
रोहन : जो भी चीज मैं बोल रहा हूं, सब चीज के पैसे हैं।



अब रोहन ने तहलका को बताया कि वह देश के शीर्ष डिजिटल प्लेटफॉर्म पर एक सकारात्मक कहानी प्रकाशित करने के लिए 16,000 रुपये लेते हैं। रोहन ने कहा कि यदि हम प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों के बारे में कोई नकारात्मक स्टोरी प्रकाशित करवाना चाहते हैं, तो शुल्क दोगुना हो जाएगा- 16,000 रुपये प्रति स्टोरी से बढ़कर 32,000 रुपये प्रति स्टोरी हो जाएगा। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि एक कहानी प्रकाशित होने में उन्हें सिर्फ एक घंटा लगता था।
रोहन : हम आर्टिकल भी करवाते हैं।
रिपोर्टर : आर्टिकल पब्लिश करवाते हो अखबारों में?
रोहन : हां, डिजिटल में भी करवाते हैं।
रिपोर्टर : क्या रेट है उसका?
रोहन : डिपेंड करता है कौन-सा है। XXXXX का हम देते हैं 16,000 रुपए में, XXXX है, XXXXX न्यूज है, XXXX न्यूज है, XXXX है, XXXX है, XXXXX….।
रिपोर्टर : सब डिजिटल हैं ये?
रोहन : हां।
रिपोर्टर : अखबार नहीं है कोई?
रोहन : अखबार नहीं है, अखबार का अलग होता है।
रिपोर्टर : इसमें पॉजिटिव स्टोरी करवाते हो या नेगेटिव?
रोहन : मेनली तो पॉजिटिव, उसका (नेगेटिव का) डबल लगता है, 15 का 32 हजार।
रोहन (आगे) : ठीक है, वो डबल लगेगा।
रिपोर्टर : नेगेटिव का हो जाएगा?
रोहन : हां।
रिपोर्टर : हो जाएगा, पर डबल लगेगा?
रोहन : पता होना चाहिए ना, क्या हा स्टोरी। किसके बारे में है? 16 का 32 लगेगा।
रिपोर्टर : पक्का छपवा दोगे?
रोहन : हां, एक घंटे में छपवा दूंगा।
रिपोर्टर : किसमें छपवा दोगे?
रोहन : XXXX में, सब पर छपवा दूंगा, XXX, XXXX….।
रिपोर्टर : एक घंटे में छपवा दोगे, पक्का?
रोहन : पक्का।
रिपोर्टर : पैसा बाद में दूंगा, मैं दे चुका हूं पहले आपको।
रोहन : ठीक है आधा-आधा करेंगे।
रिपोर्टर : 16 पहले, 16 बाद में?

अब रोहन ने बिहार चुनाव के दौरान पेड न्यूज कैसे काम करती है, इस पर विस्तार से चर्चा की। रोहन के अनुसार, हमारी पेड न्यूज को भारत के चुनाव आयोग को धोखा देने के लिए सही तरीके से प्रस्तुत किया जाएगा। यह प्रमुख टीवी चैनलों पर प्रसारित शीर्ष सौ खबरों में शामिल होगा, जिसे विज्ञापन के बजाय नियमित समाचार के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। लेकिन इसके लिए पूरा भुगतान किया जाएगा। रोहन ने तहलका रिपोर्टर को बताया कि 15 से 20 सेकंड के स्लॉट के लिए शुल्क 35,000 रुपए होगा।
रिपोर्टर : चुनाव आयोग की पकड़ में तो नहीं आ जाएंगे पेड एडवर्टीजमेंट?
रोहन : पेड एड पकड़ में तो आते हैं…, अच्छाई ये है, पेड एड इसलिए लोग ज्यादा नहीं कराते। उनको लगे ही न पेड है।
रिपोर्टर : कैसे करवाओगे फिर?
रोहन : जैसे XXXX है आपका, उसमें सुबह एक न्यूज आती है, फर्स्ट 1000 क्रेक एक न्यूज आती है सुबह, जिसमें 100 न्यूज बताते हैं 10 मिनट के अंदर उसमें 15 सेकंड की क्लिप जाती है, बाइट जाती है, सब लगाते हैं।
रोहन (आगे) : 35 के तक होता है, जैसे अगर मैं XXXX को दूंगा तो वो 35के में तो वो हमारा क्लिप लगा देगा टॉप 100 न्यूज में 15-20 सेकंड का मैक्सिमम, और XXXX जहां-जहां चलता है, वहां वो चलेगा। पेड एड में हम डाइमेंशन कंट्रोल कर सकते हैं, लेकिन जब ऑर्गेनिक एप चलाते हो ना, तो डाइमेंशन कंट्रोल नहीं कर सकते। और दूसरी बात जो ये फास्ट न्यूज चलते हैं ना, इसमें कोई पोड का सिस्टम नहीं होता, ये हमें डायरेक्टली करना होता है।
रिपोर्टर : डाइमेंशन कंट्रोल कर सकते हैं,…इसका क्या मतलब?
रोहन : जैसे हम काम कर रहे हैं और पेड न्यूज चलाते हैं हम लोग। जैसे अगर हमें बिहार में दिखाना है, तो बिहार में ही दिखेगा, बट जब ऑर्गेनिक दिखाते हो, उसमें कंट्रोल नहीं हो सकता, कि सिर्फ बिहार में दिखे, बिहार के बाहर न दिखे। जैसे XXXX चल रहा है, तो XXXXX लोग जहां-जहां देख रहे हैं, …चाहे इंडिया में या इंडिया के बाहर, तो उनको भी हमारा एड दिखेगा उस टाइम पर, बट ऑर्गेनिक होगा, और इसमें चुनाव आयोग कुछ नहीं कर पाएगी। …इसमें कुछ नहीं होगा ना व्हाइट मनी जाएगी आपकी। तो 15-20 सेकंड की बाइट जाएगी हर चैनल पर और हर चैनल का कास्ट है 35000 रुपए एक दिन का।
रिपोर्टर : 15 सेकंड की कॉस्ट है 35 थाउजेंड?
रोहन : हां, मतलब XXX का 15-20 सेकंड का 35के, XXXX न्यूज का जहां-जहां में चलवाना है।
रिपोर्टर : जो बिहार में है?
रोहन : जैसे XXXX का है बिहार XXXX, ऐसे बहुत सारे हैं, ये चुनाव आयोग के पकड़ में नहीं आता, क्योंकि ये ऑर्गेनिक है, इसलिए पेड एड में तो लिखा होता है ना प्रॉपर्टी ‘स्पॉन्सर्ड’ यहां लिखा नहीं होता।

यहां, रोहन पेड न्यूज पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यप्रणाली की पूरी झलक प्रस्तुत करते हैं – जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार प्रशंसक क्लबों के माध्यम से भुगतान को छिपाया जाता है, तथा किस प्रकार विज्ञापनों को ऑर्गेनिक कहानियों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। उन्होंने स्वीकार किया कि वे लंबे समय से पेड न्यूज के धंधे में हैं और कभी पकड़े नहीं गए। उनके अनुसार, अब पेड न्यूज विक्रेताओं के माध्यम से प्रसारित की जाती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि समाचार पत्रों में प्रकाशित होने पर यह ऑर्गेनिक लगे। रोहन ने कहा कि रिपोर्टर जाकर स्टोरी दर्ज कर सकता है, लेकिन उसे फिर भी भुगतान किया जाएगा – प्रति स्टोरी लगभग 60,000 से 65,000 रुपये की दर से। उन्होंने यह भी कहा कि कभी-कभी फैन क्लबों के माध्यम से पेड न्यूज चलाई जाती है, जहां उम्मीदवार के समर्थक – जो चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के अंतर्गत नहीं आते हैं – फैन पेजों के माध्यम से अपने उम्मीदवार के पक्ष में पेड कंटेंट चलाते हैं। टीवी पर चर्चा के बाद रोहन ने हमें समाचार पत्रों के लिए भुगतान की गई समाचार दरों के बारे में भी बताया।
रिपोर्टर : आप पेड न्यूज करा चुके हो पहले?
रोहन : हां, करा चुके हैं, ये कभी पकड़ में नहीं आएगा, ऑर्गेनिक वाला नहीं पकड़ में आता, XXXX वाला थोड़ी करेगा हम पैसे लेकर काम कर रहे हैं।
रोहन (आगे) : हमारा जो एड है ना, वो फैन क्लब से चलता है।
रिपोर्टर : मतलब?
रोहन : मान लीजिए जैसे पॉलिटिकल पार्टी को बैन होता है, तब फैन क्लब चलता है, मतलब लोग अपना पैसा लगा रहे हैं, ना कि कैंडिडेट अपना पैसा लगा रहा है। इसलिए हम कभी कैंडिडेट की प्रोफाइल से एड नहीं चलाते, अगर चलाते हैं, तो थर्ड पार्टी से।
रिपोर्टर : मतलब फैंन चलाते हैं?
रोहन : हां, फैंस चलाते हैं। मतलब हमको थोड़ी चुनाव आयोग मना करेगा, हम से क्वेश्चन कर भी ले चुनाव आयोग, हम कहेंगे हमारा कैंडीडेट जीते, और चुनाव के दायरे में हम आते ही नहीं किसी तरीके से।
रिपोर्टर : अगले साल और स्टेट्स में भी चुनाव हैं, वहां भी हो जाएगा पेड न्यूज?
रोहन : हां, पेड न्यूज सब जगह हो जाएगा, सबका सिस्टम एक ही है, चाहे हम चलाएं या कोई और।
वेंडर : सिस्टम एक ही होगा।
रिपोर्टर : आपका एप्रोच चैनल और न्यूजपेपर में डायरेक्ट है या वेंडर के थ्रू?
रोहन : हमारा खुद का पोर्टल है, हमने वेंडरशिप ले रखी है सबसे हमने, पेपर में ले रखी है, डिजिटल में ले रखी है, टीवी में है, साथ में बिलबोर्ड में भी।
रिपोर्टर : जो सड़कों में बिलबोर्ड लगते हैं?
रोहन : हां, बट वो मेरा दिल्ली-एनसीआर तक ही है, ….बिलबोर्ड का।
रिपोर्टर : आप जो काम कर रहे हो, थ्रू वेंडर के कर रहे हो?
रोहन : मतलब मैं सब वेंडर हूं, मान लीजिए आप।
रिपोर्टर : ये 35 थाउजेंड जो चैनल का है, इसमें सब इन्क्लूसिव है, आपका भी?
रोहन : हां।
रिपोर्टर : अखबार में?
रोहन : अखबार में जितना भी होगा, उसका 20 परसेंट हम चार्ज करते हैं।
रिपोर्टर : अखबार में कैसे करते हैं?
रोहन : दो तरीके हैं, एक तो हमने एड लगा लिया, दूसरा एडिटर जो लिखता है, या रिपोर्टर जाता है और लिखता है, वो ऑर्गेनिक होता है, तो वो चुनाव आयोग की नहीं पकड़ में आता है। अगर आप अखबार में बड़ा एड दिखाते हो, तो उसका बिल देना पड़ता है कि आपने लगाया था पैसा।
रिपोर्टर : आप कैसे करवाओगे?
रोहन : देखो, मैं कहूंगा 19-20 वाला करते हैं कुछ एड भी लगाते हैं, उसके साथ किसी एडिटर के साथ, मतलब प्रेस वालों से करवाएंगे। जैसे XXXX है, XXXX है, इनके रिपोर्टर आपके बारे में लेख लिखेंगे और आपका पिक्चर लगा देंगे, कि मैं गया, देखा और लिखा। जबकि बंदा खुद लिख रहा है, वो उसकी रिस्पॉन्सिबिलिटी है, जो लिख रहा है।
रिपोर्टर : उसका क्या चार्ज होगा?
रोहन : वो डिपेंड करता है कौन-सा पेपर है, कितना चार्ज करेगा? मतलब मान लीजिए 70 से 1.5 लाख तक जाता है।
रिपोर्टर : एक आर्टिकल का?
रोहन : बड़ा सा पेज पर जाएगा, उसका आधा पेज का होगा।
रिपोर्टर : XXXXX बड़ा अखबार है बिहार का?
रोहन : उसका अलग होगा, XXXX का अलग होगा। कम से कम 65-70 के जाएगा हाफ पेज का, ये मैं ऑर्गेनिक बता रहा हूं, एड का तो और ज्यादा जाएगा। वो तो 3-3.5 लाख है, आधे पेज का; क्यूंकि वो प्रॉपर्टी दिखता है उस पर लिखा होता है ‘स्पॉन्सर्ड’।

रोहन ने हमें बताया कि पेड न्यूज के लिए सभी भुगतान नकद में किए जाएंगे, बिना किसी बिल या जीएसटी के। उसने कहा कि यदि कोई भुगतान बैंक खाते के माध्यम से किया जाता है, तो वह उनकी कंपनी के खाते में नहीं जाएगा, बल्कि किसी अन्य खाते में जाएगा। रोहन ने आगे कहा कि उनकी पेड न्यूज सेवाएं अगले साल पश्चिम बंगाल, असम और अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के दौरान भी उपलब्ध रहेंगी।
रिपोर्टर : इसमें पेमेंट एडवांस होगा?
रोहन : पेमेंट एडवांस होगा और उसके साथ-साथ आपको मेरे किसी अकाउंट में ट्रांसफर करना होगा, मैं बताऊंगा आपको पेमेंट का। कंपनी में नहीं जाएगा।
रिपोर्टर : मतलब?
रोहन : मतलब इसका कोई जीएसटी बिल नहीं मिलेगा, मेरा ये मतलब है।
रिपोर्टर : बिल नहीं मिलेगा ना?
रोहन : हां, बिल नहीं मिलेगा।
रिपोर्टर : मतलब आप कैश पेमेंट लोगे ना?
रोहन : हां, कैश लेंगे या जिस भी अकाउंट में लेना होगा मुझे तो अकाउंट में जिसमें बोलूंगा, उसमें करेंगे। मैक्सिमम कैश रहेगा, जितना ज्यादा कैश दे पाएंगे, उतना अच्छा रहेगा। आपके लिए भी बेहतर है और हमारे लिए भी बेहतर है।
रिपोर्टर : मतलब सारे इलेक्शंस में ये हो जाएगी पेड न्यूज?
रोहन : हां, कोई भी हो। यही चल भी रहा है। हम देख रहे हैं बिहार में बहुत चल रहा है।

अब रोहन ने खुलासा किया कि कैसे वह अमेरिका के कैलिफोर्निया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वैज्ञानिक के रूप में काम कर रहे एक भारतीय को भारतीय मीडिया में सकारात्मक पेड न्यूज प्रकाशित करवाकर स्थायी निवास (पीआर) प्राप्त करने में मदद कर रहा है। रोहन बताता है कि सकारात्मक खबरों को किस प्रकार तैयार किया गया, भुगतान किया गया, और किस प्रकार ऐसी खबरों को ग्राहक की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए रणनीतिक रूप से विभिन्न प्लेटफार्मों पर रखा जाता है।
रोहन : एक क्लाइंट है, यूएस कैलिफोर्निया में, XXXX….।
रिपोर्टर : क्या नाम है …XXXX?
रोहन : XXXXXX
रिपोर्टर : बिजनेसमैन है ये?
रोहन : नहीं, इनका भी पॉजिटिव इमेज बनाना है, ताकि इनको परमानेंट पीआर मिले वहां।
रिपोर्टर : यूएस में?
रोहन : अभी अवार्ड भी दिलवा रहे हैं।
रिपोर्टर : किस सेक्टर में हैं ये?
रोहन : एआई में।
रिपोर्टर : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंडिया का बंदा है?
रोहन : इंडिया का है।
रिपोर्टर : इंडिया में कहां से?
रोहन : नोेएडा।
रिपोर्टर : तो ये इसलिए पॉजिटिव स्टोरी छपरा रहे हैं, ताकि इनका पीआर हो जाए?
रोहन : हां, पॉजिटिव बनाना है।
रिपोर्टर : तो वहां तक जाती हैं खबरें?
रोहन : धीरे-धीरे लगा देते हैं ना, जैसे XXXX है, सब में आएगी।
आगामी बातचीत में रोहन बताते हैं कि किस प्रकार वे लोगों को सरकारी पुरस्कार दिलाने में मदद करने के लिए अनुकूल मीडिया कवरेज तैयार करते हैं। उन्होंने बताया कि वह एक लड़के को भारतीय मीडिया में सकारात्मक खबर प्रकाशित करवाकर बच्चों के लिए भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार प्राप्त करने में मदद कर रहे हैं। ये पुरस्कार जनवरी में भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किये जाते हैं।
रोहन : आपने बाल पुरस्कार अवार्ड सुना है आपने?
रिपोर्टर : बाल पुरस्कार?
रोहन : पीएम देते हैं ये।
रिपोर्टर : कौन देते हैं?
रोहन : प्रधानमंत्री, पीएम देते हैं, …पीएम या प्रेसिडेंट।
रिपोर्टर : 26 जनवरी को?
रोहन : हां, रिपोर्टर वो तो नहीं है, जो बहादुरी वाले अवार्ड मिलते हैं बच्चों को?
रोहन : बच्चों को, हां, सोशल वर्क के लिए मिलता है।
रिपोर्टर : गैलेंट्री अवार्ड?
रोहन : तो इस बच्चे ने अप्लाई किया हुआ था अवार्ड के लिए, तो इसकी पॉजिटिव न्यूज बनाया था।
रिपोर्टर : अच्छा बच्चे का क्या नाम है?
रोहन : XXXX
रिपोर्टर : ये चाह रहा है मुझे गैलेंट्री अवार्ड मिल जाए?
रोहन : ये नहीं, इसकी मां, इसको पता नहीं कुछ; इसकी मदर कर रही है सब।
रिपोर्टर : इसने कोई गैलेन्ट्री वाला काम किया है?
रोहन : हां, इसने एक सॉफ्टवेयर बना रखा है, बच्चों को पढ़ाने के लिए, स्मार्ट गैजेट।
रिपोर्टर : बच्चे ने?
रोहन : हां तो इसको हम प्रमोट कर रहे हैं, इसका वेबसाइट भी है।

भारत में पेड न्यूज पर कार्रवाई में भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) शामिल है, जो जांच करता है और इसकी लागत को उम्मीदवार के खर्च में जोड़ता है और प्रिंट मीडिया के लिए भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) शामिल है, जो मीडिया घरानों की निंदा कर सकता है। प्रस्तावित विधायी कार्रवाई में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 के तहत पेड न्यूज को चुनावी अपराध बनाना शामिल है। हालांकि यह अभी भी सरकार की मंजूरी के लिए लंबित है।
विनोद और रोहन के बाद हमारी मुलाकात दीपक सिंह (बदला हुआ नाम) से हुई, जो पेड न्यूज का कारोबार करने वाले एक अन्य विक्रेता हैं। उन्होंने हमें यह भी आश्वासन दिया कि वे हमारी कहानी देश के किसी भी डिजिटल समाचार प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित करवा सकते हैं। इस स्टोरी को लिखते समय दीपक ने तहलका को कई अखिल भारतीय मीडिया घरानों की रेट लिस्ट भेजी थी, जो पैसे लेकर स्टोरी प्रकाशित करते हैं। उनके अनुसार, कुछ मीडिया संस्थान ऐसी सामग्री को प्रायोजित बताते हैं, जबकि अन्य ऐसा नहीं करते।
रोहन मिश्रा ने तहलका के साथ उन मीडिया संस्थानों की एक रेट कार्ड भी साझा किया है, जहां पेड न्यूज़ प्रकाशित की जा सकती है। उनकी सूची काफ़ी लंबी है, लेकिन कुछ अंश नीचे दिए गए हैं :-
एक प्रमुख समाचार चैनल – दिल्ली-एनसीआर में 1-टू-1 स्टूडियो साक्षात्कार : 75,000 रुपए (23 मिलियन ग्राहक)
एक प्रमुख समाचार चैनल – दिल्ली-एनसीआर में 1-टू-1 स्टूडियो साक्षात्कार : 75,000 रुपए (48 मिलियन ग्राहक)
एक प्रमुख प्रसारण मंच – दिल्ली-एनसीआर में 1-टू-1 स्टूडियो साक्षात्कार : 90,000 रुपए (43 मिलियन ग्राहक)

ये साक्षात्कार 30-40 मिनट तक चलते हैं और संबंधित चैनलों के डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रसारित किए जाते हैं। टेलीविजन के अलावा तहलका के पास पेड न्यूज में शामिल कई अखिल भारतीय समाचार पत्रों और समाचार एजेंसियों की रेट लिस्ट भी है। निष्कर्ष यह स्पष्ट करते हैं कि किस प्रकार वाणिज्य ने पत्रकारिता में चुपचाप घुसपैठ कर ली है, जहां राजनीतिक प्रभाव, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और लाभ एक दूसरे से मिलकर स्वतंत्र प्रेस के विचार को विकृत कर देते हैं।