असम के धुवरी ज़िले के बागरीबाड़ी पुलिस स्टेशन के बाहर 17 साल की युवा महिला नगीना (बदला हुआ नाम) पुलिस वैन में बेठे अपने पति को पुलिस से छुड़ाने के लिए वैन के पीछे भागती है और अपने पति को बाहर निकालने के लिए उसे खींचती है; लेकिन वैन की रफ़्तार जीत जाती है। नगीना ने बीते महीने ही अपने पहले बच्चे को जन्म दिया है। असम की ही एक विधवा मुस्लिम महिला ने इसलिए ख़ुदकुशी कर ली, क्योंकि 2012 में जब उसका निकाह हुआ, तब वह नाबालिग़ थी; और उसे डर था कि कहीं असम पुलिस उसके पिता को बाल विवाह कराने के जुर्म में जेल में न डाल दे। इस महिला ने दो साल पहले ही कोरोना के कारण अपने पति को खोया था। इस महिला के भी दो बच्चे हैं।
असम में महिलाएँ सरकार की बाल विवाह रोकने के लिए चलायी गयी मौज़ूदा क्रूर कार्रवाई का विरोध कर रही हैं। उन्होंने 4 और 5 फरवरी को असम के कई पुलिस स्टेशनों का घेराव भी किया था। पीडि़त महिलाओं की माँग है कि उनके पतियों को जेल से बाहर निकाला जाए। उन्होंने कहा कि हमें सरकारी योजनाओं के लाभ नहीं चाहिए। हमें हमारे पति चाहिए।
दरअसल असम में इन दिनों सरकार के ख़िलाफ़ हंगामा हो रहा है। इस हंगामे के पीछे असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा का राज्य में बाल विवाह रोकथाम के प्रति अपनाया जा रहा कड़ा रुख़ है। इस नयी व्यवस्था में बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई को ख़त्म करने के लिए जिस तरह का सरकारी नज़रिया है और सोच झलकती है, उससे लोगों के मन में भय पैदा हो रहा है। जबकि साक्ष्य बोलते हैं कि इस समस्या का समाधान करने में क़ानून का पालन मददगार तो होता है; लेकिन ऐसे धरपकड़ से कोई लाभ नहीं होने वाला। लड़कियों के लिए शिक्षा, रोज़गार, सशक्तिकरण के अन्य उपायों पर फोकस करने से बाल विवाह को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। लेकिन मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के सिर पर एक सनक सवार हो गयी है। उन्होंने हाल ही में कहा कि बाल विवाह के ख़िलाफ़ अभियान 2026 में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव तक जारी रहेगा।
ग़ौरतलब है कि बीते माह 23 जनवरी को असम सरकार ने कैबिनेट में बाल विवाह के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का फ़ैसला सुनाकर सबका सहयोग माँगा था। इसमें यह फ़ैसला लिया गया कि राज्य में 14 साल से कम आयु की लड़कियों से शादी करने वालों के ख़िलाफ़ पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। साथ ही यह भी साफ़ कर दिया गया कि अगर लडक़े की आयु 14 साल से कम है, तो उसे सुधार गृह भेजा जाएगा; क्योंकि क़ानूनन नाबालिग़ौं को अदालत में पेश नहीं किया जाता है। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि 14 से लेकर 18 साल से कम आयु की लड़कियों से शादी रचाने वालों के ख़िलाफ़ बाल विवाह निषेध अधिनियम-2006 के तहत कार्रवाई की जाएगी। उन्हें गिरफ़्तार किया जाएगा और विवाह को अवैध करार दिया जाएगा।
इस अभियान के तहत बाल विवाह कराने वाले पुजारियों और मुस्लिम मौलोवियों के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई होगी। यही नहीं, ऐसा विवाह कराने वाले पिता व परिवार के अन्य पुरुषों को भी नहीं बख़्शा जाएगा। ऐसे फ़ैसलों का असम की पुलिस कड़ाई से पालन कर रही है। पुलिस ने बाल विवाह निषेध अधिनियम का उल्लघंन करने वाले 8,000 आरोपियों की सूची बनायी है और इसमें से 4,000 से अधिक के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज कर ली है। लेख लिखे जाने तक 2,500 आरोपियों को पुलिस ने गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया है। आरोपियों को पकडऩे के लिए पुलिस कभी उनके घर रात के 2:00 बजे दस्तक देती है, तो कभी सुबह। पुलिस की कहना है कि यह कार्रवाई 2020, 2021 व 2022 में सम्पन्न बाल विवाह के मामलों में की जा रही है; लेकिन लोगों का कहना है कि सात साले पुराने मामलों में भी पुलिस कड़ा रुख़ अपनाये हुए है। अब सवाल यह है कि असम सरकार ऐसा क्यों कर रही है?
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा भाजपा के नेता हैं और असम के एक क़द्दावर नेता हैं। उनकी दलील इस संदर्भ में यह है कि असम देश में बाल विवाह के आँकड़ों को लेकर बदनाम है। यही नहीं, यहाँ पर नवजातों व मातृ मृत्यु दर भी बहुत अधिक है, जो चिन्ता का सबब है। यह हक़ीक़त है। लेकिन इस समस्या के समाधान को लेकर सरकार ने जो तरीक़ा इन दिनों अपनाया है, वह विवादों के घेरे में है। बाल विवाह एक वैश्विक समस्या है; लेकिन विश्व मानचित्र पर भारत की स्थिति बहुत ख़राब है। ऐसा अनुमान है कि यहाँ क़रीब 12 लाख लड़कियाँ हर साल बालिका वधू बनती हैं यानी उनकी शादी 18 साल से कम उम्र में कर दी जाती है, जबकि यह ग़ैर-क़ानूनी है। बाल विवाह रोकथाम अधिनियम-2006 के अनुसार, देश में लडक़ी की शादी की न्यूनतम आयु 18 व लडक़े की 21 वर्ष है। लेकिन क़ानून को दरकिनार कर बाल विवाह होते हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-2021) के अनुसार, देश में 18 साल की आयु से पहले विवाह देने वाली लड़कियों की राष्ट्रीय औसत दर 23.3 प्रतिशत है। लेकिन असम में यह दर 31 प्रतिशत है।
वैसे इस सर्वेक्षण के अनुसार, देश में सबसे अधिक बाल विवाह पश्चिम बंगाल में होते हैं। उसके बाद बिहार व त्रिपुरा राज्य का स्थान आता है, जहाँ बाल विवाह दर 40 प्रतिशत से अधिक है। देश में आठ ऐसे राज्य हैं, जहाँ बाल विवाह की औसत दर राष्ट्रीय औसत दर 23 प्रतिशत से अधिक है। एक तथ्य और है, वह यह कि जिन राज्यों में साक्षरता दर और स्वास्थ्य व सामाजिक सूचकांक बेहतर हैं, वहाँ बाल विवाह की दर कम है। केरल में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार, बाल विवाह की दर 6.3 प्रतिशत है, और नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (2015-16) में यह दर 7.6 प्रतिशत थी।
इसी तरह मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु में भी बाल विवाह की दर में कमी आयी है। लेकिन असम में बाल विवाह के मामलों में उछाल आया है। 2015-16 सर्वे के अनुसार, असम में बाल विवाह की दर 30.8 प्रतिशत थी, जो कि 2019-2021 में बढक़र 31.8 प्रतिशत हो गयी। यह सर्वे यह भी बताता है कि असम में कम उम्र में गर्भवती होने वाली लड़कियों की संख्या 11.7 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आँकड़ा 6.8 प्रतिशत है। यहाँ पर प्रसंगवश इस बात का ज़िक्र किया जा रहा है कि बीते दिनों असम के ही मुख्यमंत्री हिमंता ने एक सरकारी कार्यक्रम में महिलाओं को सही उम्र में माँ बनने की सलाह दे डाली।
उन्होंने कहा कि माँ बनने की सही उम्र 22 से 30 साल है। कम उम्र में शादी न करना और सही उम्र में बच्चे पैदा न करना भी माँ और शिशु मृत्यु दर बढऩे का एक कारण है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वेक्षण के अनुसार, असम में मातृ और शिशु मृत्यु दर अत्यधिक है और इसके लिए बाल विवाह मूल कारण है। लेकिन यहाँ अहम सवाल सरकार के उस क्रूर तरीक़े पर उठ रहे हैं, जिसके ज़रिये इसे हल करने की कोशिश की जा रही है। सरकार की इस कार्रवाई को लेकर असम के विपक्षी राजनीतिक दल नाख़ुश हैं और कई अन्य रसूख़दार इसे मज़हबी रंग भी देने का प्रयास कर रहे हैं।
वैसे कोई भी बाल विवाह के पक्ष में नहीं है। लेकिन इसके बावजूद सरकार का बाल विवाह को रोकने का तरीक़ा विरोधियों को इस मामले में एक पाले में खड़ा कर रहा है। असम में बाल विवाह के ख़िलाफ़ कार्रवाई वाले ज़िलों में धुवरी, होजई, उदलगिरी, मोरीगाँव, गुवाहटी, विश्वनाथ, बोगाईंगाँव और ज़ोरहाट आदि शामिल हैं। पकड़े गये आरोपियों में क़रीब 80 प्रतिशत मुसलमान हैं। असम में 2011 जनसंख्या के अनुसार, 3.10 करोड़ की आबादी में से 34 प्रतिशत मुसलमान हैं। एक पक्ष का आरोप है कि इस कार्रवाई में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है।
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि लडक़ों की गिरफ़्तारी के बाद विवाहित लड़कियों का क्या होगा? असम में बीते छ: वर्षों से भाजपा की सरकार है। यह सरकार की विफलता है। सरकार ने मुस्लिम लड़कियों को पढ़ाने के लिए क्या $खास क़दम उठाये? स्कूल खोले नहीं और मदरसे बन्द करवा दिये।
दरअसल यह हक़ीक़त है कि बाल विवाह का सम्बन्ध सामाजिक व आर्थिक स्तर से जुड़ा हुआ है। ग़रीब, अशिक्षित, कम शिक्षित परिवारों में लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है। फिर इसका असर ऐसी लड़कियों के स्वास्थ्य, उनकी कार्यक्षमता पर ही नहीं पड़ता, बल्कि बच्चे भी प्रभावित होते हैं। बाल विवाह का देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। हिमंता का संकल्प असम को 2026 तक बाल विवाह मुक्त राज्य के तौर पर देखना है।
हालाँकि संकल्प बाल कल्याण और राष्ट्र के हित में है। लेकिन सरकार अपने मक़सद में ऐसी धरपकड़ और गिरफ़्तारियों से सफल नहीं हो सकती। लड़कियों, महिलाओं को सशक्त बनाने वाले कार्यक्रमों को अमल में लाने पर ज़ोर देने, जहाँ योग्य पात्र तक ऐसी योजनाएँ नहीं पहुँच रही, वहाँ इन फ़ासलों को भरने और अन्य ख़ामियों को दुरुस्त करने में राज्य सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।