इस साल पतंजलि विश्वविद्यालय का पहला दीक्षांत समारोह होना था. 2006 में उत्तराखंड सरकार के अधिनियम से हरिद्वार में खोले गए इस निजी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति बाबा रामदेव हैं और कुलपति आचार्य बालकृष्ण. परंपरा के अनुसार दीक्षांत समारोह में कुलपति नवस्नातकों को शपथ दिलाते हैं जिनके लिए यह दिन जीवन के सबसे गरिमामयी दिनों में से एक होता है. इस दिन सारे स्नातक खड़े होकर अपने कुलपति द्वारा बोली जा रही शपथ को दोहराते हैं. यह शपथ मानवता की सेवा करने, अपनी शिक्षा का प्रयोग मानवता के लिए करने, उस शिक्षा की मर्यादा रखने और देश व मानवता के कानून को मानने आदि की होती है. फिर कुलपति दीक्षांत भाषण भी देते हैं जिसमें वे आदर्श जीवन जीने और विश्वविद्यालय की परंपराओं को आगे बढ़ाने की नसीहत देते हैं. पतंजलि विश्वविद्यालय में भी यही होना था.
पतंजलि के कई कार्यक्रमों में तब पार्टियों की सीमाओं से हटकर कई प्रदेशों के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री एक साथ शामिल होते थे. बाबा रामदेव जिस भी प्रदेश में जाते वहां उनके योग कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने मुख्यमंत्री या कोई मंत्री जरूर होते थे
पर इस बीच काफी कुछ बदल गया. आज पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य बालकृष्ण फर्जी डिग्रियों को रखने और फर्जी प्रमाण पत्रों की सहायता से अपना भारतीय पासपोर्ट बनाने के आरोप में गिरफ्तारी से बचने के लिए भागे-भागे फिर रहे हैं. सीबीआई ने उन्हें सम्मन देकर 28 जुलाई, 2011 को अपने देहरादून कार्यालय में अपने मूल प्रमाण पत्रों के साथ बुलाया था. पर वे नहीं आए और उन्होंने सम्मन भी नहीं लिया. इसके बाद सीबीआई के कर्मचारियों और हरिद्वार की कनखल पुलिस ने सम्मन को दिव्य योग पीठ पर चस्पा कर दिया.
बालकृष्ण का 25 जुलाई, 2011 से कोई अता-पता नहीं था. गायब होने के एक दिन पहले सीबीआई ने उनके खिलाफ देहरादून में एफआईआर लिखाई थी. बालकृष्ण के गनर जयेंद्र असवाल ने उसी दिन हरिद्वार के कनखल थाने में उनके गायब होने की रिपोर्ट की थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि बालकृष्ण और रामदेव के भाई रामभरत ने पतंजलि योग पीठ से उसे अलग गाड़ी में दिव्य योग मंदिर आने को कहा परंतु बालकृष्ण उसे दिव्य योग पीठ में नहीं मिले. सम्मन तामील न करा पाने के बावजूद कनखल थाने के थानाध्यक्ष प्रदीप चौहान बताते हैं कि आश्रम वासियों के अनुसार बालकृष्ण आश्रम में ही हैं. यह बात 27 जुलाई को प्रेस वार्ता में रामदेव ने भी कही. इससे पहले सीबीआई के सामने पेश होने की बजाय बालकृष्ण के वकीलों ने नैनीताल उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सीबीआई द्वारा बालकृष्ण के विरुद्ध दायर की गई एफआईआर खारिज करने की मांग की. अदालत ने ऐसा तो नहीं किया लेकिन उन्हें थोड़ी राहत देते हुए उनकी संभावित गिरफ्तारी पर रोक जरूर लगा दी. मामले की अगली सुनवाई अब 29 अगस्त को होनी है और अदालत ने इस बीच बालकृष्ण को जांच में सहयोग करने के लिए कहा है.
वैसे सीबीआई अगर आचार्य को गिरफ्तार भी कर लेती तो भी प्रस्तावित दीक्षांत समारोह के कार्यक्रम पर कोई खास फर्क नहीं पड़ सकता था. बालकृष्ण चाहते तो जमानत लेकर दीक्षांत समारोह में नवस्नातकों को शपथ दिला सकते थे. देश में ऐसा कोई कानून नहीं है जो किसी फर्जी डिग्रीधारक को कुलपति बनने और उसके बाद दीक्षांत समारोह में भाग लेने से रोके. कोई नहीं जानता कि पतंजलि योग पीठ ने कुलपति के लिए शैक्षिक योग्यता का क्या प्रावधान रखा है. राज्य के अन्य सरकारी विश्वविद्यालयों में कुलाधिपति राज्यपाल हैं और कुलपति पद पर जाने-माने शिक्षाविद. गढ़वाल विश्वविद्यालय की कार्य परिषद के पूर्व सदस्य योगेंद्र खंडूड़ी का मानना है कि निजी विश्वविद्यालयों के कुलपति पदों पर नियुक्ति के लिए भी सरकार को नियम बनाने चाहिए क्योंकि निजी विश्वविद्यालय पारिवारिक कंपनियों की तरह चलाए जा रहे हैं. खंडूड़ी कहते हैं, ‘ये पद तो उच्च नैतिकता और श्रेष्ठ उदाहरणों वाले व्यक्तियों को ही दिए जाने चाहिए. अन्यथा भविष्य में इस तरह के कई और मामले सामने आएंगे.’ बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को काफी समय से अति विशिष्ट व्यक्तियों वाली सुविधाएं मिली हुई हैं और उसी के अनुसार उन्हें सम्मान भी मिलता रहा है. कुछ समय पहले तक हर महीने पतंजलि योग पीठ में देश या दुनिया की कोई न कोई बड़ी और प्रसिद्ध हस्ती आती ही रहती थी.
रामदेव और उनके सहयोगी बालकृष्ण के सुखद और सम्मानित दिन 4-5 जून की अर्धरात्रि को रामलीला मैदान वाली घटना के बाद बदल गए. केंद्र सरकार ने उन दोनों और उनके संस्थानों की जांच शुरू कर दी. सबसे सरल निशाना आचार्य बालकृष्ण थे जो नागरिकता के मामले में आसानी से घिर सकते थे
लेकिन ऐसा नहीं था कि उन दिनों बालकृष्ण की नागरिकता और फर्जी डिग्रियों के मामले नहीं उठ रहे थे. तब इनके अलावा पतंजलि से जुड़े कई मामलों में आंदोलन तक हुए. सीटू की राष्ट्रीय समिति के सदस्य महेंद्र जखमोला बताते हैं, ‘मई 2005 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सांसद वृंदा करात ने दिव्य योग पीठ में हो रही अनियमितताओं को सड़क से लेकर संसद तक उठाया था.’ उस समय उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी और नारायण दत्त तिवारी प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. फिर भी करात जैसी मुखर और प्रभावशाली सांसद द्वारा उठाए गए सही और जायज मुद्दों पर भी कुछ नहीं हुआ. जखमोला का आरोप है कि तब केंद्र के स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्य सरकार को दिव्य योगपीठ की दवाइयों की जांच करने के आदेश दिए थे पर उस जांच का क्या हुआ कोई नहीं जानता. मजदूरों के शोषण पर उच्च न्यायालय के आदेशों को भी तिवारी सरकार पचाती चली गई.
इन सब विवादों के बाद भी बाबा रामदेव की संपत्ति और शोहरत बढ़ती रही. कुछ न होता देख सितंबर, 2005 को सीटू ने राष्ट्रपति को ज्ञापन भेज कर आचार्य बालकृष्ण की नागरिकता और फर्जी पासपोर्ट के मामले की जांच करने की मांग की थी. जखमोला तब राष्ट्रपति भवन से आए पत्र को दिखाते हुए कहते हैं, ‘राष्ट्रपति ने उनकी शिकायतों पर राज्य सरकार को जांच करने के लिए लिखा था. फिर भी कुछ नहीं हुआ.’
बालकृष्ण को पहला पासपोर्ट 29 अप्रैल, 1998 को जारी हुआ था. आरोपों और पुलिस की पहले की जांच रिपोर्टों में भारतीय नागरिक न होने की पुष्टि के बाद भी सात फरवरी, 2007 को बालकृष्ण को एक और पासपोर्ट जारी हो गया. यह उन्हें पहले वाले पासपोर्ट की 10 साल की वैध अवधि के समाप्त होने से पहले पुलिस व जिला प्रशासन की नयी और सही जांच रिपोर्टों के आधार पर मिला.
बाबा रामदेव और बालकृष्ण का सब कुछ ठीक चल रहा था कि रामदेव ने भारत स्वाभिमान यात्रा शुरू कर दी और विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने सहित अन्य मांगों को पूरा करने के लिए दिल्ली की तरफ कूच किया. चार-चार केंद्रीय मंत्रियों की अगवानी भी रामदेव के जोग हठ को संतुष्ट नहीं कर पाई और वे अपने अनुयायियों के साथ रामलीला मैदान में योग और आंदोलन करने लगे.
बालकृष्ण की जांच का आधार बना 29 अप्रैल, 2011 को भारतीय संत संगठन के अध्यक्ष प्रमोद कृष्ण के नेतृत्व में संतों के प्रतिनिधिमंडल का राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को दिया ज्ञापन. इस प्रतिनिधि मंडल में माधवाश्रम के शंकराचार्य, अखाड़ा परिषद के प्रवक्ता और रामदेव के मुखर विरोधी बाबा हठयोगी सहित कई संत थे. संतों ने राष्ट्रपति को दिए ज्ञापन में रामदेव और बालकृष्ण पर गंभीर आरोप लगाते हुए आरोपों की जांच सीबीआई से करवाने की मांग की. उन्होंने रामदेव द्वारा भारत के धन को नेपाल तथा दुबई के रास्ते विदेश भेज कर वहां संपत्ति खरीदने के मामलों की जांच करने की मांग भी की. ज्ञापन में छठे, सातवें और आठवें बिंदु बालकृष्ण से संबंधित शिकायतों के हैं जिनमें बताया गया है कि ‘पतंजलि योग पीठ, दिव्य योग पीठ और दिव्य फार्मेसी के महत्वपूर्ण सदस्य आचार्य बालकृष्ण नेपाल के नागरिक हैं.’ ज्ञापन के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है वह भारत में किसी ट्रस्ट का सदस्य या कंपनी का निदेशक नहीं बन सकता. संतों ने ज्ञापन में आगे बालकृष्ण का नेपाल का पता देते हुए बताया कि नेपाल का निवासी होते हुए भी उन्होंने उत्तराखंड के हरिद्वार से अपना पासपोर्ट बनाया है. संतों ने इसे एक गंभीर अपराध बताते हुए जांच की मांग की. राष्ट्रपति ने संतों के शिकायती पत्र को कार्रवाई के लिए प्रधानमंत्री के पास भेज दिया. इसी बीच यह मामला तूल पकड़ते हुए केंद्र सरकार के गले की हड्डी बन चुका था. मामले की जांच के लिए प्रधानमंत्री ने यह पत्र सीबीआई को भेज दिया जिसने 26 जून, 2011 से मामले की जांच शुरू कर दी. आरंभिक जांच में बालकृष्ण के खिलाफ सबूतों के मिलने पर सीबीआई ने आचार्य बालकृष्ण के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कर दी. इस तरह जो काम पहले लंबे आंदोलनों, जनप्रतिनिधियों की शिकायतों और संसद में मामला उठाने के बाद भी नहीं हुआ, संतों के एक प्रतिनिधिमंडल के पत्र से हो गया.
एफआईआर के अनुसार बालकृष्ण का वास्तविक नाम नारायण प्रसाद सुवैदी है. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा नेपाल के श्री तेग प्राथमिक स्कूल में प्राप्त की. 1998 में उन्होंने बरेली पासपोर्ट कार्यालय में भारतीय पासपोर्ट के लिए आवेदन किया, जहां उन्होंने आवासीय पते के प्रमाण के लिए इंडियन ऑयल कंपनी से मिले गैस कनेक्शन की फोटो प्रति जमा की. जन्मतिथि प्रमाण पत्र के लिए आचार्य बालकृष्ण ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, बनारस द्वारा उन्हें दिया गया पूर्व मध्यमा (हाई स्कूल के समकक्ष) का प्रमाण पत्र लगाया. प्रमाण पत्र के अनुसार आचार्य बालकृष्ण ने पूर्व मध्यमा की यह परीक्षा विश्वविद्यालय के उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के खुर्जा स्थित राधाकृष्ण संस्कृत महाविद्यालय केंद्र से पास की थी. विश्वविद्यालय ने बालकृष्ण को 21 मई, 1987 को मध्यमा का प्रमाण पत्र जारी किया था. इस प्रमाण पत्र के अनुसार आचार्य बालकृष्ण की जन्मतिथि 25 जुलाई, 1972 है. शैक्षिक योग्यता के रूप में आचार्य बालकृष्ण ने संपूर्णानंद विश्वविद्यालय, बनारस के द्वारा जारी आचार्य (पोस्ट ग्रेजुएशन) की डिग्री की प्रति लगाई है. बालकृष्ण ने आचार्य की परीक्षा सांख्य दर्शन विषय से खुर्जा से ही पास की. विशेषज्ञों के अनुसार आचार्य ने मध्यमा और शास्त्री स्तर पर सांख्य दर्शन नहीं पढ़ा इसलिए वे सांख्य दर्शन से आचार्य परीक्षा पास नहीं कर सकते थे.
सीबीआई के हाथ नई दिल्ली के गौतम नगर स्थित श्री मद्यानंद वेदर्षि महाविद्यालय न्यास से जारी एक प्रमाण पत्र भी लगा है जिसके अनुसार कृपालुबाग आश्रम, हरिद्वार के बालकृष्ण पुत्र जयबल्लभ सुवैदी ने उनके विद्यालय में 12 जुलाई, 1986 को प्रवेश लिया और वहां से छठी, सातवीं और आठवीं की परीक्षा पास की. इस प्रमाण पत्र में भी उनकी जन्म तिथि 25 जुलाई, 1972 दी गई है. इस प्रमाण पत्र पर यदि भरोसा किया जाए तो बालकृष्ण ने वर्ष 1986 में कक्षा छह में प्रवेश लिया और 1988 में वहां से कक्षा आठ की परीक्षा पास कर बाहर निकले . कक्षा आठ करने के बाद ही वे पूर्व मध्यमा में प्रवेश ले सकते थे. इस प्रमाण पत्र के अनुसार उन्हें पूर्व मध्यमा की परीक्षा वर्ष 1990 से पहले किसी भी हाल में पास नहीं करनी चाहिए थी. परंतु कक्षा छह में प्रवेश के अगले ही साल संपूर्णानंद विश्वविद्यालय ने उन्हें पूर्व मध्यमा का प्रमाण पत्र भी दे दिया.
शैक्षिक प्रमाण पत्रों के फर्जीवाड़े के अलावा हरिद्वार नगरपालिका ने बालकृष्ण को दो तरह के जन्म प्रमाण पत्र जारी किए हैं. मामला उठने पर नगरपलिका के अधिशासी अधिकारी बीएल आर्य ने ताल ठोककर कहा कि कोई भी व्यक्ति नगरपालिका से बालकृष्ण के जन्म प्रमाण पत्र की पत्रावलियों को सूचना अधिकार में ले सकता है. लेकिन जब मामले की जांच करने गई सीबीआई टीम को बालकृष्ण के जन्म प्रमाण पत्र से संबंधित पत्रावलियां नहीं मिली तो अधिशासी अधिकारी ने जन्म पत्रावलियों से संबंधित 17 फाइलों के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज करा दी.
बालकृष्ण ने इसके अलावा दो हथियारों के भी लाइसेंस लिए हैं. इनके आवेदन में भी उन्होंने खुद को भारतीय बताया है. पतंजलि योग पीठ ट्रस्ट की उपमंत्री रही साध्वी कमला बहिन ने हाल ही में बताया कि बालकृष्ण और करमवीर पहले से ही कृपालु बाग आश्रम में रहते थे. रामदेव बाद में आए . पर गुरु शंकरदेव के आश्रम को ट्रस्ट में बदलकर रामदेव और बालकृष्ण शक्तिशाली हो गए. बाद में इन्होंने पतंजलि और अन्य ट्रस्ट भी शुरू किए. इन सभी ट्रस्टों में रामदेव अध्यक्ष हैं और बालकृष्ण सचिव. इसके अलावा रामदेव के भाई रामभरत और आचार्य बालकृष्ण तीन दर्जन के लगभग कंपनियों में निदेशक हैं. संतों के ज्ञापन के अनुसार इन सभी कंपनियों में ट्रस्टों का पैसा लगा है. इन कंपनियों और पैसे की जांच भी प्रवर्तन निदेशालय कर रहा है.
रामदेव के साम्राज्य में अब बालकृष्ण ही बाहरी हैं. बाकी सारे ट्रस्टों, उद्योगों और संपत्तियों का प्रबंधन और लेन-देन बाबा रामदेव के भाई रामभरत, जीजा यशदेव शास्त्री और नजदीकी रिश्तेदार करते हैं. आश्रम के सूत्रों के अनुसार इन रिश्तेदारों और बालकृष्ण के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. कुछ समय पहले रामभरत और उसके साथियों ने पतंजलि योग पीठ में बालकृष्ण की जमकर पिटाई भी की. बालकृष्ण, रामदेव के सभी राज जानते हैं, इसलिए आश्रम के सूत्रों के अनुसार अब बालकृष्ण को कभी भी अकेला नहीं छोड़ा जा रहा है.
बालकृष्ण ही नहीं बाबा रामदेव ने भी कभी यह नहीं बताया कि उन्होंने कब और कहां से शिक्षा प्राप्त की है. उनके द्वारा भी पासपोर्ट लेते वक्त गलत जानकारियां दी गई हैं. कभी दिन-रात आगंतुकों से भरा रहने वाला पतंजलि योग पीठ सूना-सूना है. बाबा की सेवा में तत्पर रहने वाले कर्मचारी आने वाले संकटों और जांच को देखकर नौकरी छोड़कर जा रहे हैं. हरिद्वार का संत समाज भी अब बाबा के साथ नहीं है. मदद में आने की बजाय संत समाज और अखाड़ा परिषद ने उनके कार्यों को संत मर्यादा के प्रतिकूल और निंदनीय बताया. बाबा को छींक आने पर भी पतंजलि पहुंचने वाले भाजपा नेताओं और राज्य सरकार ने भी उनसे दूरी बना ली है. अब देखना है राज्य सरकार और उसकी एजेंसियां इन जांचों में सीबीआई का कितना सहयोग करती हैं.
फिलहाल तो सीबीआई की तेजी से लगता है कि रामदेव और उनके साम्राज्य के लिए आने वाले दिन ठीक नहीं.