मध्य प्रदेश भाजपा का महात्मा गांधी की तरफ अचानक बढ़ा झुकाव पार्टी की राजनीतिक प्राथमिकताओं में आ रहे बदलाव का सबूत है या राष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्वीकार्यता बढ़वाने की एक दिखावटी कवायद? बृजेश सिंह की रिपोर्ट
मध्य प्रदेश भाजपा ने पिछले कुछ समय में जिस तरह महात्मा गांधी के विचारों के प्रति अति रुचि एवं अगाध प्रेम का प्रदर्शन किया है उससे गांधीवादियों के साथ ही दूसरे लोग भी अचंभित हैं. इतिहास में कभी भी भाजपा में इतना गांधी प्रेम नहीं देखा गया. हाल ही में प्रदेश की भाजपा सरकार के स्कूल शिक्षा विभाग ने राजधानी में गांधी जी की पुस्तक हिंद स्वराज का वाचन व विवेचन का कार्यक्रम आयोजित किया था. हफ्ते भर चले इस कार्यक्रम के उद्देश्य पर सरकार का कहना था कि उनका प्रयास है कि भारतीय सभ्यता गांधी को एक बार उसी रूप में देख पाए, गांधी जी की बातों को उन्हीं के शब्दों में सुन पाए और उन्हीं के अनुरूप व्यवहार करना सीख पाए. इसी अवसर पर पार्टी अपने पितृपुरुष पंडित दीनदयाल उपाध्याय और महात्मा गांधी के बीच अकाट्य समानता होने की बात करना भी नहीं भूली. यह कार्यक्रम 25 सितंबर (पं. दीनदयाल जयंती) से लेकर दो अक्टूबर यानी गांधी जयंती तक चला.
इसके अलावा दो अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर भाजपा युवा मोर्चा की प्रदेश इकाई ने राज्य भर में गांधी प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ भजन गाया. इसी दिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा समेत प्रदेश भाजपा के अनेक नेता गांधी टोपी में बापू की मूर्ति पर माल्यार्पण करने के साथ ही वहां उपस्थित कार्यकर्ताओं को सत्य, अहिंसा और गांधी का मर्म समझाते नजर आए. आसपास से गुजरते लोगों को भी अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था कि हमेशा भगवा धारण करने वाले लोग आज गांधी टोपी में क्या कर रहे हैं. लोग चौंके इस कारण भी थे कि इससे पहले उन्होंने आज तक किसी भी भाजपा नेता को इतना गांधीवादी रंग में रंगा नहीं देखा था.
‘अब धर्मबाजी करके आप सत्ता में नहीं आ सकते, इसलिए पार्टी हर उस नये प्रतीक को ढूंढ़ रही है जो उसकी छवि बदल सके’
पूरे भारत में गांधी के करीब दिखने की शुरुआत तो भाजपा ने बहुत पहले कर दी थी लेकिन मध्य प्रदेश में इसकी शुरुआत भाजपा सरकार के दूसरे कार्यकाल में बड़े पैमाने पर हुई है. उस समय मीडिया और लोगों की हैरानी का ठिकाना नहीं रहा था जब इसी साल सिंगरौली में हुई भाजपा कार्यसमिति की बैठक में सभी सदस्यों को हिंद स्वराज वितरित की गई. वितरण करते समय प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा द्वारा सदस्यों से यह आग्रह किया गया कि सनातन भारत की महिमा और गरिमा का वर्णन करने वाली इस पुस्तक को सभी सदस्य जरूर पढ़ें.
भाजपा खासकर मध्य प्रदेश भाजपा के मन में गांधी और उनके विचारों को लेकर उपजे इस विलक्षण प्रेम से कांग्रेस तो हैरान-परेशान है ही साथ में लोग भी अभी यह नहीं समझ पा रहे कि आखिर माजरा क्या है. वैसे गांधी जी से खुद को जोड़ने की शुरुआत भाजपा ने बहुत पहले ही कर दी थी. 1985 में उसने पहली बार गांधीवादी समाजवाद को स्वीकार करने की बात कही थी. उसके बाद कई मौकों पर गांधी तस्वीरों के रुप में भाजपा की बैठकों में शामिल हुए. बीच में राम मंदिर आंदोलन के दौरान और उसके बाद काफी वक्त पार्टी गांधी जी से किनारा किए रही.
अब भाजपा में गांधीवाद की ओर मुड़ने की जो मुहिम शुरू हुई है उसमें मध्य प्रदेश भाजपा काफी आक्रामक दिख रही है. इस संबंध में चर्चा करते हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा कहते हैं, ‘गांधी कांग्रेस की बपौती नहीं हैं. कांग्रेस ने गांधी को केवल यूज किया है. उसने उनकी विचारधारा को तिलांजलि दे दी. लेकिन भाजपा बापू के विचारों पर चल रही है.’ भाजपा से जुड़े एक दूसरे नेता इस बारे में कहते हैं ‘राजनीतिक विरोधियों ने पूरे देश में यह दुष्प्रचार फैलाया कि भाजपा गांधी विरोधी है. जबकि हम तो बहुत पहले से ही गांधी के आदर्शों पर चल रहे हैं.’
हालांकि जानकार पार्टी के इस तर्क से सहमत नही हैं. द टेलीग्राफ के एसोसिएट एडिटर रशिद किदवई कहते हैं, ‘इन लोगों का कोई इतिहास नहीं है. इनका कोई अपना इतना बड़ा नेता भी नहीं है. यही कारण है कि ये गांधी के सहारे अपनी नैया पार लगा रहे हैं.’ गांधी और पंडित दीनदयाल के बीच समानता स्थापित करने की भाजपाई कोशिश पर वे आगे कहते हैं, ‘जिसकी जैसी इच्छा होती है वह गांधी को अपने हिसाब से समझने और समझाने की कोशिश करने लगता है. उत्तर प्रदेश सचिवालय में स्थित गांधी प्रतिमा में उनके हाथों की पांचों उंगलियां खुली देखकर अधिकारी मजाक करते हुए कहते हैं कि बापू की ये उंगलियां कह रही हैं कि बिना पांच सौ रुपये लिए कोई काम मत करो. इससे अधिक हो तो ठीक है.’
उधर, कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सब अन्ना आंदोलन का प्रभाव है. भाजपा को लग रहा है कि अन्ना के कारण गांधी एक बार फिर फैशन में हैं, गांधी टोपी सहित पूरा गांधीवाद फैशन में है तो क्यों न इसे भुनाया जाए. जनता से जुड़ने का शायद यह सही वक्त है. भाजपा के एक नेता प्रदेश में पार्टी की इस नयी रणनीति पर उठ रहे सवालों पर कहते हैं, ‘आप मध्य प्रदेश को ही क्यों देख रहे हैं? उसे भी जरा देखिए जिसके ऊपर हजारों लोगों के कत्लेआम का इल्जाम है और वह गांधी के उपवास नामक अस्त्र का प्रयोग कर अपनी राजनीतिक क्षमता और स्वीकार्यता बढ़ाने की राजनीति कर रहा है.’
राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि शायद भाजपा को इस बात का अहसास हो गया है कि इस देश में बिना गांधीवादी छवि के राजनीति लंबे समय तक नहीं की जा सकती है. भाजपा के एक नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘हिंदुत्व के ढोल को पार्टी ने इतना पीटा कि वह कब का फट चुका है. अब पार्टी के सामने विचारधारा का संकट पैदा हो गया है. जिन विचारधाराओं को लेकर पार्टी का जन्म हुआ और जिसे लेकर वह आगे बढ़ रही थी वे सारी एक-एक कर समाप्त होती जा रही हैं. अब हिंदुत्व के नाम पर अपने दम पर केंद्र में सरकार बनाना तो असंभव से भी करोड़ों गुना ज्यादा असंभव है.’
वहीं भाजपा के एक अन्य नेता कहते हैं, ‘अब राजनीति बदल गई है. आप धर्मबाजी करके सत्ता में तो आ ही नहीं सकते. जाति का मामला भी सिकुड़ता जा रहा है. अब विकास की राजनीति का समय चल रहा है. इसलिए पार्टी भी अब नये कॉस्ट्यूम पहनने को तैयार हो गई है. पार्टी अब हर उस प्रतीक को ढूंढ़ रही है जो उसकी छवि बदल सकता है. गांधी के प्रति प्रेम भी उसी कवायद का हिस्सा है.’ मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता अरविंद मालवीय भी भाजपा में आ रहे इस बदलाव को राजनीति में गांधी दर्शन की बढ़ती प्रासंगिकता की तरह देखते हैं. वे कहते हैं, ‘ बीजेपी ने आखिरकार इतने सालों के बाद यह स्वीकार तो कर लिया कि गांधी के बिना राजनीतिक यात्रा बहुत दूर तक नहीं जा सकती.’
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की मध्य प्रदेश इकाई के सचिव बादल सरोज भाजपा के गांधी प्रेम को उस निरर्थक प्रयास के रुप में देखते हैं जिसके द्वारा पार्टी अपनी राजनीतिक अछूत की यथािस्थति को तोड़ना चाहती है. वे टिप्पणी करते हैं, ‘भाजपा केंद्र में राजनीतिक अलगाव झेल रही है. यही कारण है कि वह गांधी की छवि का प्रयोग एक ऐसे सेतु के रूप में कर रही है जो उसे बाकी दलों से जोड़ सके नहीं तो जो पार्टी गांधी के हत्यारे का बचाव करने के लिए विचारधारा का तर्क प्रस्तुत करती हो उसे गांधी के विचारों से एकाएक प्रेम हो जाए यह बात पचा पाना बहुत मुश्किल है.’
कांग्रेस के एक अन्य नेता भाजपा के बापू प्रेम के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हैं. वे कहते हैं, ‘जनमानस में यह बात काफी गहरे तक बैठ गई है कि कांग्रेस गांधी और गांधीवाद को कब का भुला चुकी है. अन्ना आंदोलन के बाद यह और अधिक स्पष्ट हो गया. कांग्रेसी शासित राज्य सरकारों से लेकर केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार किस गांधी के आदर्शों पर चल रही है यह सभी को दिख रहा है. गांधीवाद से कांग्रेस के दूर होने के कारण जो वैक्यूम बना है उसे भरने का काम भाजपा बहुत चालाकी से कर रही है. वैसे भी भाजपा को लोगों के बीच भ्रम फैलाने में महारत हासिल है. ये वे लोग हैं जो उसे अपना आदर्श मानते हैं जो कहता था कि 100 बारजोर-जोर से झूठ बोलने पर वह सच हो जाता है.’
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता पार्टी के गांधी प्रेम पर एक अलग ही राय देते हैं. वे कहते हैं, ‘आज पार्टी पूरी तरह से दुविधा में है. वह कब किसका अनुसरण करने लगे कोई भरोसा नहीं. वह तो अंबेडकर को भी अब अपना मान रही है. पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में भी यह दुविधा है. हो भी क्यों ना. इतने साल हिंदूवाद और भगवा की घुट्टी पीने वाले कार्यकर्ताओं को आप कहेंगे कि गांधी के विचारों का अनुसरण और प्रचार-प्रसार करना है तो भ्रम होना स्वाभाविक है. आज कार्यकर्ता यही नहीं तय कर पा रहा है कि वास्तव में उसे कौन-सी लाइन पकड़नी है. जैसे आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव के मद्देनजर पार्टी ने कार्यकर्ताओं से कहा है कि कोई भी मंदिर का मुद्दा नहीं उठाएगा. इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं.’