"बापू! आदर्श क्या जमीन पर उतर कर इतना घिनौना होता है"

 

पूज्य बापू,

सादर प्रणाम.

दरभंगा जिले की आज जैसी स्थिति है, कांग्रेसी मंत्रीमंडल में आज जो यहां दमन चक्र चल रहा है, जमींदार और सरकारी कर्मचारियों का गठबंधन जनता और कार्यकर्ताओं पर जिस तरह जुल्म ढ़ा रहा है, आज इसकी ओर कोई आंख उठाकर देखने वाला नजर नहीं आता. चारों ओर अंधकार ही अंधकार है. गवर्नरी शासन में यहां आज की तरह के दमन और जुल्म होते तो इसके विरुद्ध प्रांत के राष्ट्रीय अखबारों के कालम के कालम मोटे अक्षरों से भर दिए गए होते और हमारे नेताओं की भी आवाज इसके विरुद्ध उठी होती, जैसा कि सदा आज के पहले हुआ करता था. लेकिन आज कांग्रेसी मंत्रिमंडल में जहां प्रांतीय राष्ट्रीय अखबारों ने अपना मुंह बंद कर रखा है, हमारे कांग्रेसी नेताओं को भी इस ओर देखने और सोचने की फुर्सत नहीं, जिला कांग्रेस कमिटियों का हाल तो और भी बदतर है. चुनाव की धांधली के कारण आज ऐसे लोग चोटी पर हैं जिन्हें जिला के जन जीवन का भयंकर अकल्याण भी विचलित नहीं करता, ऐसे समय में अगर हमे किसी से उम्मीद है तो वह आप ही हो सकते हैं, जिसने सदा सत्य और न्याय के लिए अपनी जान बाजी पर रखी है. 

गत मार्च से ही इस जिले के अधिकारियों का दमन चक्र हम समाजवादी कार्यकर्ताओं पर चलने लगा, लेकिन अब तो इस क्रूर दमन चक्र का शिकार हम समाजवादियों से प्रभावित किसान मजदूर भी होने लग गए हैं. गत मार्च में जबकि जिले भर में भीषण अन्न संकट प्रारंभ हो गया था, जिले के कोने-कोने में भूखी जनता दाने-दाने को तरस रही थी, चोर बाजार खूब गर्म था और जगह-जगह से भुखमरी की खबरें भी आने लगी थीं तो हमलोगों ने दरभंगा और मधुबनी में भुक्खड़ों के प्रदर्शन का आयोजन किया. सभा करके, जुलूस निकालकर अधिकारियों का ध्यान अन्न संकट की ओर आकृष्ट करने की कोशिश की, पर नतीज उल्ट हुआ. मर्ज के सही इलाज के बजाय सरकार ने दमन नीति को अख्तियार किया. कुछ दिनों की चुप्पी के बाद ही न जाने किस गुप्त मंत्रणा की प्रेरणा से जिला के अधिकारियों ने वार करना प्रारंभ किया. हमारे साथियों को ‘बिहार मेंटीनेंस ऑफ पब्लिक आर्डर एक्ट’ का शिकार बनाया जाने लगा. जिस कानून का निर्माण प्रांत में हिंदू-मुसलमान दंगा रोकने के लिए हुआ था, उसका उपयोग धड़ल्ले के साथ किसान-मजदूरों की सभाओं और रैलियों को रोकने के लिए किया जाने लगा. समाजवादी कार्यकर्ताओं को भी, जिन्होंने दंगा रोकने के लिए खून पसीना एक कर दिया और जिनके सफल प्रयास का लिखित प्रमाण पत्र भी कलक्टर ने दिया, इस कानून की जाल में फंसाया जाने लगा.

इस कानून के असली मकसद को ध्यान में रखे बिना ही, इसकी आड़ में नागरिक स्वतंत्रता का अपहण होने लगा. गांव-गांव में 144 धारा लागू कर सभी प्रकार की सभाओं और जुलूसों पर रोक लगा दी गई. इसी अभियोग में हमारे चुने हुए साथी गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिए गए. फलत: इस अनुचित गिरफ्तारी के विरोध में गत 18 अप्रैल को जिला के अनगिनत किसान मजदूरों ने, जिनमे हिंदू-मुसलमान, औरत मर्द सभी शामिल थे, अत्यंत उत्साह के साथ शांतिमय प्रदर्शन में भाग लिया. इस जिले के प्रदर्शनों में यह पहला मौका था जबकि लोगों ने हजारों की तादाद में हिंदू-मुसलमानों को एक साथ देखा. इतने पर भी सरकार ने इन प्रदर्शनकारियों पर दंगा फैलाने का इल्जाम लगाकर हजारों मर्द और औरतों को लाठियों से पुलिस द्वारा पिटवाया. लारियों में भर-भर कर लोगों को दूर चौरों में फिंकवाया. ठीक 1931 का दृश्य आंखों के सामने उतर आया था. इस तरह के जुल्म किसी भी सरकार के लिए शर्म की बात हो सकती है. सबसे उत्तेजना देने वाली बात तो यह हुई कि  औरतों पर बेरहमी के साथ लाठियां चलाई गई, उन्हें सड़कों पर घसीटा गया और भद्दी-भद्दी गालियां भी दी गई. राष्ट्रिय झंडों को फाड़कर उनसे जूते पोंछे गए और इस सिलसिले में उस दिन 97 व्यक्तियों को गिरफ्तार क जेल में बंद कर दिया गया.

इधर जमींदारी टूटने की चर्चा होने के समय से ही जमींदार किस तरह किसानों को बटाई जमीन से बेदखल करने पर तुले हुए हैं, इसकी जानकारी आपको प्रांतीय किसान सभा के सभापति पं रामानंद मिश्र जी के पत्र से हुई होगी. जहां किसान अपने कानूनी हक को छोड़ना नहीं चाहते, वहां जमींदार लठैतों और किराये के गुंडों के जरिय जबर्दस्ती उन्हें जमीन से बेदखल करने की चेष्टा करते हैं. साथ ही उन किसानों को मुकदमे से लाद देते हैं. जमींदारों के पास रुपए हैं. वे आसानी से इसका उपयोग कर फायदा उठा सकते हैं. इसके अतिरिक्त जमाने में ओर से छोर तक व्याप्त मंहगाई और अभाव ने धनियों के सुखों को भी कुछ काम कर दिया है, इसका असर अफसरों के दिमाग पर बड़ा गहरा है. जो सब दिन से दुखी था, उसके दुख की प्रतिक्रिया तो स्वाभाविक हो गई है, लेकिन जो सदा सुखी था, उसका थोड़ा दुख भी गंभीर प्रतिक्रिया उत्पन्न कर देता है. जमींदार की औरतें अपने पीने के लिए खुद कुएं से पानी भरें, इतना ही हममें से एक समुदाय को द्रवित कर देता है, लेकिन जो औरतें दूसरों के लिए भी अपने बचपन, जवानी और बुढ़ापे भर पानी भरती रहतीं हैं, किसी को नहीं खलता. फिर किसान और मजदूरों में थोड़ी चेतना आ रही है. इससे उन्हें ईर्ष्या होती है. खासकर दरभंगा के सबडीवीजन के एसडीओ का तो यही कहना है कि किसान आंदोलन हम जिस तरह भी होगा दबा कर ही छोड़ेंगे, यही हमें ऊपर से इंसट्रक्शन मिला है. किसानों और किसान कार्यकर्ताओं को परेशान करने के लिए सैकड़ों झूठे मुकदमे अभी जिला भर में उन पर चल रहे हैं, और उस पर से और भी नए-नए मुकदमे गढ़े जा रहे हैं. इन धांधलियों के चलते जिला भर के किसान जिस तरह से तबाह किए जा रहे हैं, उनमें से दो-चार का नमूने के तौर पर उल्लेख कर देना अनुपयुक्त न होगा. 

जगदीशपुर, थाना बहेड़ा, दरभंगा में सन 1939 ईस्वी में ही किसानों ने अपने हकों की लड़ाई की, गोलियां खाई, पंचायती हुई और तत्कालिन जिलाधिकारी ने किसानों की जमीन किसानों को दिला दी. अब किसनों की उन जमीनों को जमींदार दखल करना चाहते हैं, दर्जनों मुकदमे किसानों को तबाह करने के लिए चलाए गए, गोलियों की धमकियां दी गई, लेकिन किसानों के संगठन के आगे जमींदार को मुलायम पड़ना पड़ा. पंचायती के जिम्मे सभी मामले सुपुर्द करने की बात तय हुई. तीन पंच चुने गए. लेकिन एसडीओ बी. चौधरी के आते ही सारा मामला पलट गया. गुप्त मशविरा के बाद जमींदार ने दरख्वास्त किया कि केस का ट्रायल आन मेरिट हो. फिर क्या था? 107 की धार में किसानों से तुरंत ही लगभग डेढ़ लाख का मुचलका मांगा गया. किसानों को पकड़कर जेल में बंद कर दिया गया और उनकी गैरहाजिरी में ही उनके घरों को लूटा जाता, बिना वजन किए ही हर प्रकार का गल्ला उठा लिया जाता और सामानों की सूची भी नहीं दी जाती है. जमींदारों को साथ ले पुलिस अफसर लोगों के घरों में घुस कर उन्हें लुटते और किसानों को आतंकित कर परेशान करने की कोशिश करते हैं. कानूनी कार्यवाई भी इस प्रकार की जाती है कि कानून के बाहर के काम भी उसमें समा सकें. इस तरह की कार्यवाई समूचे जिले में की जा रही है. जिन किसान कार्यकर्ताओं को पकड़ा गया, उन्हें उसी जमींदार बाबू जटाशंकर चौधरी, जिन्होंने सन 1942 ईस्वी में कांग्रेस के श्राद्ध के उपलक्ष्य में भोज का आयोजन किया था, के यहां 24 घंटे तक बिना दाना-पानी दिए कैदी की हैसियत में कोठरी में बंद रखा और खाना मांगने पर दारोगा ने उन्हें लाठियां दी. ऐसा इसलिए किया गया जिससे किसान कार्यकर्ता का आम किसानों से असर कम हो जाए और जमींदारों का रोब उन पर छा जाए.

अटहर और इलमास नगर के भी इससे मिलते-जुलते किस्से हैं. अटहर का खूनी जमींदार जिसने 25 मार्च को एक किसान के बच्चे का चुपके से खून कर डाला, आज मजे में घूमता है, लेकिन सदर दरभंगा के एसडीओ बी. चौधरी ने वहां के किसानों को 107 धारा में जेल में बंद कर दिया है. यहां तक कि एसडीओ ने ऐसे आदमियों को भी जेल में बंद कर दिया है जिसमें दो को केवल देखने मात्र से जिलाधिकारी ने छोड़ देने का वचन दे दिया. हालांकि वे अभी तक छोड़े नहीं जा सके हैं. उनमें से एक तो दोनों आंख का अंधा है और बरसों से इस तरह सुजा हुआ है कि आसानी से चल फिर भी नहीं सकता.

खानपुर, बिक्रमपुर और उससे मिले-जुले दूसरे गांवों में एसडीओ ने 144 धारा लागू कर दी है. मिलिटरी पोस्टिंग है, किसान पीटे गए हैं और सैकड़ों की तादाद में उनकी गिरफ्तारियां हुई हैं और खुद एसडीओ की देख-रेख में किसानों की फसलों को जोत कर बर्बाद कर दिया गया है, ऐसी हालत में, मैं वहां एसडीओ के फैसले के विरुद्ध किसानों को यह सलाह देने गया कि…लेकिन मेरे वहां पहां पहुंचते ही समस्तीपुर एसडीओ बाबू बलराम सिंह भी पहुंचे और उन्होंने मुझे सभा करने का अपराधी बताया. मैंने उन्हें बताया कि सभा करने की बात तो सोलह आने गलत है. इस पर उनकी भवें तन गईं और उन्होंने मुझसे पूछा-एम आई एरेस्ट देन! यह सवाल मुझे बेतुका लगा, मैंने  कहा-दैट मे बी बेस्ट नोन टू योर सेल्फ. बस, मुझे लारी पर सवार होने के लिए मजबूर किया गया और किराए की मेरी कार वहीं पड़ी रही. मुझे ही नहीं, मुझे खाना खिलाने वाले साथी को भी गिरफ्तार किया गया और आज मैं सी क्लास क्रिमनल की जिंदगी व्यतीत कर रहा हूं. क्या यही वो हुकूमत है, जिसके लिए आज सोलह साल वर्षों से कांग्रेस  के एक ईमान्दार सिपाही की हैसियत से लड़ता आया हूं. क्या यह सच नहीं कि जो कुत्ते हमारा मांस नोच कर आज तक मोटे हुए, आज भी मैं उनका शिकार हूं और पहले जहां दुश्मनों की छ्त्र-छाया में वे ऐसा करते थे, आज यह सब हमारे दोस्तों के इशारे पर हो रहा है.

बापू! आदर्श क्या जमीन पर उतर कर इतना घिनौना होता है, जिससे नफरत पैदा हो जाए? आप आशा के आखिरी धागे हैं जिसके टूटते ही उस भयंकर विस्फोट की संभावना मालूम पड़ती है जो बरसों के साथी और मित्र को एक दूसरे का जानी दुश्मन बना देगा. एक के हाथ में सरकारी संगीनें हैं और दूसरे के तलहत्थी पर हजार बार मातृभूमि पर चढ़ाया हुआ उच्छिष्ट सा.

आपका

सूर्यनारायण

(फाइल नं. 6.7.1947. राज्य अभिलेखागार)