जम्मू-कश्मीर के बडग़ाम जिले में 27 फऱवरी को हुए हैलीकॉप्टर एमआई 17 हादसे में शहीद हुए स्क्वाड्रन लीडर सिद्धार्थ वशिष्ठ ने पिछले वर्ष केरल में आई बाढ़ के दौरान बचाव अभियान में अहम भूमिका निभाईथी। सिद्धार्थ ने हज़ारों लोगों की जान बचाई थी। केन्द्रीय अद्र्धसैनिक बल, सेना, वायुसेना और नौसेना ने 14 जिलों के आठ लाख से ज़्यादा लोगों को बचाकर 8 हज़ार से ज़्यादा राहत शिविरों में पहुँचाया था।जिसके लिए स्क्वाड्रन लीडर सिद्धार्थ वशिष्ठ को इस वर्ष 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर सम्मानित भी किया गया था। सिद्धार्थ को चंडीगढ में सेना की एक टुकड़ी ने अंतिम श्रद्धांजलि दी। हरियाणासरकार ने अपने प्रदेश के इस वीर सपूत का नाम अमर रखने के लिए अंबाला जिले के हमीदपुर गाँव के सरकारी स्कूल का नाम बदलकर शहीद स्क्वाड्रन लीडर सिद्धार्थ वशिष्ठ राजकीय उच्च विद्यालय रख दियाहै। सिद्धार्थ इसी गाँव के रहने वाले थे।
एक महीने से अधिक समय तक बाढ़ की मार झेल चुका ‘ईश्वर का अपना घर’ नाम से प्रसिद्ध केरल राज्य की यात्रा पर दूसरी बार जाने का मुझे अवसर मिला। इस बार की केरल यात्रा के दौरान मुझे कालीकट(कोषीकोड), पलक्कड, सुल्तानपट, अलाप्पुषा, कोल्लम, त्रिरुवंतपुरम के साथ साथ इडुक्की और त्रिशूर आदि क्षेत्रों में जाने का भी अवसर मिला। लगभग एक हज़ार किलोमीटर की इस यात्रा के दौरान सभी क्षेत्रोंको सडक़ मार्ग से कवर किया गया। इस यात्रा के दौरान एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि हम उस राज्य की यात्रा कर रहे हैं। जहां छह महीने पहले आई बाढ़ के कारण 384 लोग मारे गए थे, 10 लाख से ज्यादा लोगविस्थापित हुए, 50 हजार मकान पूरी तरह से तबाह हो गए थे। इस आपदा में 80 हज़ार किलोमीटर सडक़ बह गई और 39 पुल पूरी तरह से ढह गए थे। जबकि पशु पक्षियों को हुए नुक्सान का कोई अंदाज़ा लगानाभी संभव नहीं हैं। उस समय राज्य के सभी जिलों को हाई एलर्ट पर रखा गया था।
स्थानीय लोगों के सहयोग और केरल की माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार के युद्ध स्तर पर चलाए गए राहत व बचाव कार्यों और लोगों के आपसी सहयोग के कारण छह माह बाद अब यह अहसास ही नहींहोता कि केरल वही राज्य है, जिसने मात्र कुछ माह पहले विकराल बाढ़ का सामना किया था। यात्रा के दौरान कहीं पर भी बह गई सडक़ नजऱ नहीं आई। लगभग सभी सडक़ों का पुन निर्माण कर लिया गया।कुछ स्थानों पर अभी भी सडक़ निर्माण चल रहा है, परन्तु वह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। ऐसे ही कुछ स्थानों पर पुल निर्माण का कार्य चल रहा है, परन्तु जब तक नए पुल तैयार नहीं हो जाते तब तक अस्थायी पुलों कानिर्माण कर दिया गया है। यात्रा के दौरान कोई भी मार्ग अवरुद्ध या फिर किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।
इसका मुख्य कारण राज्य की लाई$फ लाईन माने जाने वाले पर्यटन उद्योग को पहुँचने वाले नुक्सान से बचाना है। वाम सरकार ने ‘ईश्वर का अपना घर’ में आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या को वर्ष 2018 केमु$काबले 2020 में दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। वर्ष 2017 में घरेलू पर्यटकों की वृद्धि दर 11.3 फीसद थी, जिसे बढ़ाकर वर्ष 2020 तक 50 प्रतिशत करने का लक्ष्य निधार्रित किया गया है। वर्ष 2017 में 1.46 करोड़ घरेलू, जबकि 10.91 लाख विदेशी पर्यटक केरल घूमने आए थे। केरल एक मात्र ऐसा राज्य हैं, यहाँ चार अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं। केरल, गोवा के बाद देश में दूसरे नंबर का पर्यटन स्थल हैं, यहां बड़ी संख्यामें पर्यटक आते हैं।
इडुक्की में मात्र एक घर को छोड़ कर शेष ऐसा कोई घर नज़र नहीं आया, जोकि इस बाढ़ की भेंट चढ़ गए थे। यह घर भी मात्र इस लिए मरम्मत से मह$फूज़ रह गया, क्योंकि यहाँ रहने वाले परिवार की अभी तककोई जानकारी नहीं मिल पाई है। कहा यह जा रहा है कि जल्द ही इस घर को समतल कर दिया जाएगा। यहाँ पर ज़्यादातर घरों की मरम्मत है। लोगों ने बाढ़ से जुड़ी यादों को भुलाने के लिए रंग रोगन की कूचीफेर दी है। इडुक्की और त्रिशूर वे क्षेत्र हैं, जिनमें अगस्त में आई बाढ़ के दौरान बड़े पैमाने पर विनाश हुआ था, जिसमें 59 लोग मारे गए थे और 11,000 हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि नष्ट हो गई थी। अत्याधिक वर्षाव बाढ़ के कारण राज्य के इतिहास में पहली बार 42 में से 35 छोटे बड़े बाँधों के गेट खोल दिए गए। इंडुक्की में स्थित बाँध के भी सभी पाँच द्वारों को खोल दिया गया था। जिस कारण ये पर्वतीय जिले राज्य के अन्यक्षेत्रों से पूरी तरह कट गए थे। केरल के श्रम और कौशल मंत्री टी पी रामाकृष्णन ने बताया कि बाढ में हुए नुकसान के बाद केरल की लाईफ लाईन को एक बार फिर पटरी पर लाने में असम, बिहार और उत्तरप्रदेश से आए मजदूरों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इडुक्की पहाड़ी जि़ला हैं, मुन्नार यहाँ का प्रमुख पर्वतीय पर्यटन स्थल है। जोकि समुद्र तल से 1600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसे केरल का स्वर्ग भी कहा जाता है। जि़ंदगी की भागदौड़ और प्रदूषण से दूर यहजगह लोगों को अपनी ओर खींचती है। यहाँ प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में देशी और विदेशी प्रयर्टक आते हैं। 12 हज़ार हेक्टेयर में फैले चाय के बड़े-बड़े ख़ूबसूरत बा$गान यहां की $खासियत हैं। दक्षिण भारतकी अधिकतर ज़ाय$केदार चाय इन्हीं बा$गानों से आती है। इस क्षेत्र में पहाड़ को देख कर ऐसा प्रतीक होता है जैसे कि प्रकृति ने हरे रंग की $खूबसूरत चादर ओढ़ रखी हो। यहाँ स्थित चाय के बड़े बड़े बाग़ भीबाढ़ की चपेट में आ गए थे। कहा यह जाता है कि चाय का पौधा कभी मरता नहीं, एक बार लगाने पर अनगिनत वर्षों तक लगातार फल देता है, परन्तु इस बाढ़ की चपेट में आने से अनगिनत पौधे भी मर गए। जिसकारण यहाँ के $खूबसूरत पहाड़ भी गंजे नज़र आने लगे, परन्तु यहाँ के लोगों की मेहनत से यहाँ हरियाली वापस आई है। बड़ी संख्या में यहाँ नए पौधे लगाए गए हैं। बडे ही व्यवस्थित तरीके से लगाए गए इन छोटेछोटे नए पौधों को देख कर यह अहसास होता है कि यहाँ पहले कभी हरे भरे $खूबसूरत बा$ग हुआ करते थे।
इस बाढ़ का एक बदनुमा चेहरा भी सामने आया है। उत्तर भारत की तरह ही केरल में भी किसानों द्वारा आत्महत्या करने की कई घटनाएँ सामने आई हैं, परन्तु ये सभी घटनाएँ बाढ़ के बाद सामने आई हैं। पहाड़ीजिले इडुक्की में किसानों के आत्महत्या करने का सिलसिला जारी है। जहां बीते दो महीने में फसल बर्बाद होने या आजीविका को हुए नुकसान की वजह से कजऱ् के चलते आठ लोग आत्महत्या कर चुके हैं।आत्महत्या करने वाले किसानों की फेहरिस्त में नया नाम जेम्स (52) का है जिन्होंने 26 फरवरी को मौत को गले लगा लिया। जेम्स इडुक्की जिले में अदिमाली के रहने वाले थे। जेम्स के रिश्तेदारों ने कहा कि उनकीकाली मिर्च की फसल बाढ़ की वजह से बर्बाद हो गई थी। वह बैंक से लिये कजऱ् को नहीं चुका पाए थे। उन्होंने कहा कि कई बैंकों से कृषि कजऱ् लेने के अलावा जेम्स ने अपने बच्चों के लिये शिक्षा ऋण भी ले रखाथा। जेम्स के अलावा पहाड़ी जि़ले में वर्षों से अलग अलग कृषि गतिविधियों में लगे संतोष, सहदेवन, जॉनी मथाई, राजू, श्रीकुमार, राजन और सुरेंद्रन ने बीते दो महीने में बाढ़ के बाद फसल बर्बाद होने की चिंताऔर बढ़ते बैंक कजऱ् के चलते आत्महत्या कर ली। बताया गया है कि उनमें से कुछ को कजऱ् चुकाने में नाकाम रहने की वजह से संबंधित बैंकों की ओर से वसूली नोटिस भी मिले थे।
दूसरी ओर त्रिशूर जि़ले के माला के रहने वाले 49 वर्षीय किसान जीजो पॉल ने भी एक मार्च को अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या की। त्रिशुर जिले में अगस्त में आई बाढ़ के बाद आत्महत्या का यह पहलामामला है। जिसके बाद राज्य सरकार ने तत्काल राहत संबंधी ज़रूरी कदम उठाए हुए राज्य के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने किसानों सभी तरह के कजऱ्ों की वसूली पर 31 दिसंबर तक रोक लगा दी है। इन कर्जोंमें किसानों द्वारा सार्वजनिक, वाणिज्यिक और सहकारी बैंकों से लिए गए सभी प्रकार के कर्ज शामिल हैं। राज्य कर्ज राहत आयोग द्वारा बकाया को लेकर दी जाने वाली मदद को 50 हजार रुपये से बढ़ाकर दोलाख किया गया है। फसल नष्ट होने के कारण मुश्किल झेलने वाले किसानों के लिए तत्काल प्रभाव से 85 करोड़ रुपये तत्काल जारी करने का निर्णय लिया गया। विजयन ने कहा कि मुख्यमंत्री राहत कोष से 54 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।
विजयन का कहना है कि अब जिंदगी पटरी पर लौट आई है। लोग इस आपदा को एक बुरा सपना मानकर इसे भुलाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने इस आपदा से उपजी परिस्थितियों को नया केरल बनाने कीचुनौती के तौर पर लिया। उन्होंने कहा कि बाढ़ की वभत्सा झेल कर लौटे लोगों में एक चीज बदली, वह है लोग आगे बढक़र एक दूसरे की मदद कर रहे थे। मदद से कोई पीछे नहीं हट रहा था। घर का जो भीसामान खराब हो गया था, उसे केरल की किसी बड़ी-छोटी दुकान पर छूट के साथ मरम्मत किया गया। केरल के जो लोग राज्य या देश से बाहर जाकर बस गए हैं, वो भी किसी न किसी रूप में मदद भेज रहे थे।सभी के मिले जुले प्रयास से ही नए केरल का निर्माण संभव हुआ है। उन्होंने कहा, हालाँकि अभी भी बहुत कुछ करना शेष हैं, परन्तु जिस तेज़ी से लोगों के आपसी सहयोग से सब कुछ संभव हुआ है, उस कारणलगता है कि शेष रह गया काम भी जल्द सम्पन्न हो जाएगा। उन्होंने इस बात पर खुशी व्यक्त की कि केरल की लाईफ लाईन माने जाने वाले देशी विदेशी पर्यटक वापस आ गए है।