बाघ और शेर के बाद देश में तेंदुए भी बढ़े

भारत सरकार की ओर से 29 जुलाई, 2021 को जारी एक नये अध्ययन में पाया गया है कि देश में तेंदुओं की आधिकारिक तादाद 2014-2018 के दरमियान 63 फ़ीसदी बढ़ गयी है और इसमें बढ़ोतरी जारी है। इसी पर आधारित श्वेता मिश्रा की रिपोर्ट :-

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने 29 जुलाई को तेंदुओं और उनका शिकार व गिनती को लेकर रिपोर्ट पेश की। इसमें दावा किया गया है कि देश में 12,852 तेंदुए हैं। 2014 में गिने गये 7,910 (कम ज़्यादा के आधार पर 6,566-9,181) थे और इनकी तादाद में बढ़ोतरी दर्ज की गयी। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया था- ‘अच्छी ख़बर! शेरों और बाघों के बाद तेंदुओं की तादाद बढ़ रही है। पशु संरक्षण की दिशा में काम करने वाले सभी लोगों को बधाई। हमें इन प्रयासों को आगे भी जारी रखना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे पशु सुरक्षित आवास और माहौल में रहें।’
पर्यावरण मंत्री ने दावा किया कि रिपोर्ट इस बात का प्रमाण है कि बाघों के संरक्षण से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण होता है। अखिल भारतीय बाघ आकलन 2018 के दौरान देश के बाघों के क़ब्ज़े वाले राज्यों में जंगल वाले आवासों के भीतर तेंदुए की आबादी का भी अनुमान लगाया गया था। सन् 2018 में भारत के बाघ वाले क्षेत्रों के परिदृश्य में तेंदुए की कुल आबादी 12,852 दर्ज की गयी।
इसे सन् 2014 के आँकड़ों से तुलना करें, तो इसमें उल्लेखनीय वृद्धि हुई है; जो देश के 18 बाघों वाले राज्यों के वनों के आवासों में 7,910 थी। इसमें भारत के 14 टाइगर रिजर्व शामिल किये गये, जिन्हें ग्लोबल कंजर्वेशन एश्योर्ड एंड टाइगर स्टेंडर्ड (सीए-टीएस) की मान्यता प्राप्त है। जिन 14 बाघ अभयारण्यों को मान्यता दी गयी है, उनमें असम में मानस, काजीरंगा और ओरंग, मध्य प्रदेश में सतपुड़ा, कान्हा और पन्ना, महाराष्ट्र में पेंच, बिहार में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व, उत्तर प्रदेश में दुधवा, पश्चिम बंगाल में सुंदरवन, केरल में परम्बिकुलम हैं। कर्नाटक के बांदीपुर टाइगर रिजर्व और तमिलनाडु में मुदुमलाई और अनामलाई टाइगर रिजर्व भी इस सूची में शामिल हैं।
ख़ास बात जो रिपोर्ट में कही गयी है, वह यह कि सभी उप-प्रजातियों में भारतीय तेंदुआ अफ्रीका के बाहर सबसे ज़्यादा अपने देश में ही हैं। भारतीय उप महाद्वीप में अवैध शिकार, निवास स्थान का नुक़सान, प्राकृतिक शिकार की कमी और तेंदुओं के आपसी संघर्ष से ख़तरे के तौर पर मानकर इनके कम होने का अनुमान लगाया जाता रहा है। तेंदुआ भी अक्सर आबादी वाले इलाक़ों में नज़र आ जाते हैं, जिससे मनुष्यों के साथ संघर्ष के प्रति उनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है। किसी अन्य बिना बड़े मांसाहारी वाले क्षेत्रों में तेंदुए जैव विविधता संरक्षण के लिए एक छत्र प्रजाति के रूप में हो सकते हैं।
अध्ययन के लिए अखिल भारतीय बाघ आकलन 2018 में बाघों के क़ब्ज़े वाले राज्यों में वन्यजीव क्षेत्र के अन्दर तेंदुए होने का भी अनुमान लगाया गया था। तेंदुओं के क़ब्ज़े वाले अन्य क्षेत्र, जैसे- ग़ैर-वनाच्छादित आवास (कॉफी और चाय के बाग़ान और अन्य भूमि उपयोग, जहाँ से तेंदुओं को जाना जाता है); हिमालय में उच्च ऊँचाई, शुष्क परिदृश्य और अधिकांश पूर्वोत्तर का इलाक़ा इसमें शामिल नहीं किया गया था। इसलिए इनकी तादाद का अनुमान हर लिहाज़ से न्यूनतम के तौर पर माना
जाना चाहिए।
चार प्रमुख बाघ संरक्षण के केंद्र यानी शिवालिक पहाडिय़ों और गंगा के मैदान, मध्य भारत और पूर्वी घाटों, पश्चिमी घाटों और उत्तर पूर्वी पहाडिय़ों और ब्रह्मपुत्र बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों में तेंदुए की बहुतायत का अनुमान लगाया गया था।
संख्या की गणना में वृद्धि बेहद मायने रखती है; क्योंकि पिछली शताब्दी में निवास स्थान के नुक़सान, शिकार की कमी, संघर्ष और अवैध शिकार के कारण अफ्रीका और एशिया में उनके वर्तमान वितरण और संख्या में काफ़ी कमी आयी है। तेंदुओं की स्थिति पर हालिया विश्लेषणों से पता चलता है कि अफ्रीका में प्रजातियों की 48-67 फ़ीसदी और एशिया में 83-87 फ़ीसदी का इलाक़ा सिकुड़ गया है। यह भारत में हाल ही में किये गये एक आनुवंशिक अध्ययन के अनुरूप है, जहाँ पिछले 120-200 वर्षों में तेंदुओं की तादाद मानवों के बढ़ते दायरे से 75-90 फ़ीसदी सीमित होने का आकलन है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि प्रजातियों की स्थिति ख़तरे के क़रीब से कमज़ोर स्तर पर आ गयी है।
तेंदुए कैसे ख़तरे में हैं? इसे इस तरह समझ सकते हैं कि पिछले कुछ दिनों में ओडिशा के तीन ज़िलों में पाँच व्यक्तियों से कम-से-कम 10 तेंदुओं की खाल ओडिशा वन विभाग और राज्य पुलिस के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) ने एजेंसियों की मदद से ज़ब्त की। इनमें से दो खाल 21 जुलाई, 2021 को बौध और देवगढ़ ज़िलों से ज़ब्त की गयी। मामले में पुलिस ने एक संदिग्ध शिकारी समेत पाँचों आरोपियों को गिरफ़्तार कर लिया है और उनके ख़िलाफ़ अधिनियम की धारा-51 के तहत मामला दर्ज किया। पहले मामले में एसटीएफ कर्मियों ने बौध ज़िले के मनमुंडा थाना अंतर्गत कापासीरा से एक आरोपी के पास से एक तेंदुआ बरामद किया था। एसटीएफ अधिकारियों के अनुसार, उसके पास से एक बंदूक और वस्फिोटक के साथ अन्य आपत्तिजनक सामग्री भी ज़ब्त की गयी। ज़ब्त की गयी तेंदुए की खाल वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत जुर्म में शामिल है। ज़ब्त खाल को रासायनिक जाँच के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून भेजा गया है। दूसरे मामले में वन विभाग के अधिकारियों ने चार व्यक्तियों से रियामाला वन क्षेत्र के सिदुरकाली वन मार्ग से तेंदुए की खाल के साथ पकड़ा है। अधिकारियों को बताया गया कि संबलपुर ज़िले के रेडाखोल वन प्रभाग के जंगल में तेंदुए की मौत हो गयी।
वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो और ओडिशा व छत्तीसगढ़ के वन अधिकारियों की एक संयुक्त टीम ने 10 जुलाई, 2021 को कालाहांडी के रामपुर और जूनागढ़ में कम-से-कम आठ तेंदुए की खाल ज़ब्त की गयी और सात वन्यजीव तस्करों को गिरफ़्तार किया गया। पिछले एक साल में राज्य से 26 तेंदुओं की खाल ज़ब्त की गयी है; जबकि अकेले एसटीएफ ने 15 तेंदुए की खाल बरामद की है। इन बरामदगियों से साबित होता है कि तेंदुओं का बड़े पैमाने पर शिकार किया जा रहा है। इन संरक्षित जानवरों की खाल की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बेहद माँग है। अधिकांश तेंदुओं को शिकारियों द्वारा मार दिया जाता है, जब वे शिकार के लिए जंगलों के क़रीब आबादी वाले इलाक़े में घुस जाते हैं। तेंदुए की खाल का मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में पारम्परिक चिकित्सा में उपयोग किया जाता है और इसकी हड्डियों की भी विकट माँग है।
अब प्रकृति के संरक्षण और हिम तेंदुओं की संख्या की गणना के साथ ही उनका संरक्षण करना है। हिम तेंदुओं की तादाद दोगुनी करने का लक्ष्य है। देश में पहली बार हिम तेंदुओं की गणना के लिए वैज्ञानिक विशेषज्ञों की टीम के ज़रिये राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों, लद्दाख़, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के सहयोग से विकसित किया गया है। ग़ौरतलब है कि हिम तेंदुए 12 देशों में पाये जाते हैं। वे भारत, नेपाल, भूटान, चीन, मंगोलिया, रूस, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, किर्गिस्तान, क़ज़ाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान हैं।

कहाँ कितने तेंदुए?

शिवालिक हिल्स और गंगा का तराई क्षेत्र
 बिहार – 98 (90-106)
 उत्तराखण्ड – 839 (791-887)
 उत्तर प्रदेश – 316 (277-355)
 कुल – 1,253 (1,158-1,348)

मध्य भारत और पूर्वी घाट
 आंध्र प्रदेश – 492 (461-523)
 तेलंगाना – 334 (318-350)
 छत्तीसगढ़ – 852 (813-891)
 झारखण्ड – 46 (36-56)
 मध्य प्रदेश – 3,421 (3,271-3,571)
 महाराष्ट्र – 1,690 (1,591-1,789)
 ओडिशा – 760 (727-793)
 राजस्थान – 476 (437-515)
 कुल – 8,071 (7,654-8,488)

पश्चिमी घाट
 गोवा – 86 (83-89)
 कर्नाटक – 1,783 (1,712-1,854)
 केरल – 650 (622-678)
 तमिलनाडु – 868 (828-908)
 कुल – 3,387 (3,245-3,529)

पूर्वोत्तर पहाड़ी और ब्रह्मपुत्र का बाढग़्रस्त क्षेत्र
 अरुणाचल प्रदेश (पक्के) – 11 (8-14)
 असम (मानस, नमेरी) – 47 (38-56)
 पश्चिम बंगाल (कोरुमारा, जलदपारा और बक्सा) – 83
(66-100)
 कुल – 141 (115-170)
कुल योग 12,852 (12,172-13,535)