केन्द्र और दिल्ली सरकार चाहे कितने ही दावे करें कि वह कोरोना महामारी की रोकथाम के लिये सतत प्रयास कर रही है। लेकिन धरातल पर हो रहा है, सब कुछ विपरीत। अस्पतालों और बस स्टैण्डों के साथ बाजारों में जमकर सोशल डिस्टेसिंग की धज्जियाँ उडाई जा रही है । लोगों के तापमान चैक के लिये जो मशीन लिये गार्ड खडे होते है उनके हाथों में ज्यादात्तर मशीन खराब ही होती है। वे बस दिखावे के तौर पर चैक रहे है। जिसका नतीजा ये है , कि देश में कोरोना का कहर लगातार बढता ही जा रहा है। आज देश में लगभग 85 हजार मामले सामने आये और दिल्ली में 25 सौ से अधिक मामले सामने आये है।दिल्ली के लोगों ने तहलका संवाददाता को बताया कि सरकार अर्थ व्यवस्था के सुधार के चक्कर में लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड कर रही है।गरीब, दिहाडी मजदूरों और बेरोजगारों ने बताया कि जितने नियम कोरोना महामारी में बने है । उन सबका हम गरीबों को ही पालन करना है । जैसे मास्क लगाना , सोशल डिस्टेसिंग का पालन करना, जबकि अमीर और जो ठीक-ठाक जाँब में है ।उनको किसी प्रकार का कोई पालन नहीं करना पड रहा है, वे बिना मास्क के घूम रहे है।
अब बात करते है । उन लोगों की जिन लोगों ने अपनी पीडा बताते हुये सरकार के दोहरे चरित्र को उजागर किया है जैसे एक बस में सिर्फ 20 ही सवारी को बैठाने का प्रावधान सरकार ने सुनिश्चित किया है। गरीब ,दिहाडी मजदूर और बेरोजगार जो रोजगार की तलाश में जाते है दिल्ली सरकार की बसों से ही जाते है। वे एक- दो घंटे पहले ही बस डिपो पर आ जाते है और लाइनों में लग जाते है। ताकि उनको बस में बैठने को मिल जाये और अपना रोगगार प्राप्त कर सकें।फिर भी बसों के अभाव में समय पर बस ना मिलने से कई लोग रोजगार पाने से बंचित रह जाते है। शाहदरा बस डिपों पर आप बीती बताते हुये । गिरजा प्रसाद , दिलीप कुमार और संतोष ने बताया कि कोरोना काल में सबसे ज्यादा अगर परेशानी और आर्थिक तंगी किसी ने देखी है तो गरीबों ने । आज गरीब मेहनत से रोजी रोटी कमाना चाहता है। तो उसको साधन नहीं मिल रहे है, कि वो समय से काम को ज्वाइन कर लें। यहीं हाल दिल्ली सरकार के अस्पतालों का है जहां पर अस्पताल परिसर से ही गरीब मरीजों के साथ ऐसा भेदभाव किया जाता है जैसे वे इस देश के नागरिक ना हो ।इलाज कराने आये मरीजों ने बताया कि सफदरजंग अस्पताल हो या लोकनायक अस्पताल हो या अन्य सरकारी अस्पताल हो सब जगह उन मरीजों के साथ जिनकी अस्पताल में अप्रोच नहीं है । उनको परेशान किया जाता है। जबकि मरीजों का आरोप है कि अस्पतालों में कोई जाता है तो गेट पर हाथों में शरीर का तापमान चैक करने लिये जो मशीन लिये होते है ।उनमें तो आधी से ज्यादा दिखावे की है । किसी में भी सही तापमान की जानकारी नहीं आ रही है। बस दिखावा है। गरीब मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड किया जा रहा है। मरीज रतन और उनके साथ आये परिजनों ने बताया कि रतन को हार्ट में दिक्कत है । सफदरजंग अस्पताल गये तो डाक्टरों से मिलने से पहले और ओपीडी कार्ड बनने से पहले उनके साथ गार्डो ने ऐसा अमानवीय व्यवहार किया जैसे वे रोगी ना होकर अपराधी हो। रतन ने आपबीती बताई और कहा कि उनके साथ जो अमानवीय व्यवहार किया गया है तो उसकी मूल बात ये है कि उन्होंने गार्ड से बस इतना ही कहा कि दिखावे के तौर पर तापमान चैक ना करों क्योंकि जो मशीन से चैक कर रहे हो वो बंद सी ही इसलिये तापमान सही नहीं आयेगा। बस इस बात पर भडक कर गार्ड ने कहा कि कल आना और तभी ओपीडी कार्ड बनेगा। इस बात पर दोनों के बीच काफी कहा सुनी हुई । आखिरकार रतन को बिना चैकअप के ही अस्पताल से लौटना पडा। समाजसेवी अशोक शर्मा का कहना है कि दिल्ली में कुछ अस्पताल दिल्ली सरकार के अधीन आते है तो कुछ केन्द्र सरकार से अधीन आते है। इस लिहाज से दोनों सरकारें अस्पतालों को लेकर अपनी अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान तो कर रहे है । पर हकीकत में स्वास्थ्य सेवा के नाम पर ना के बराबर सुविधा मिल रही है। सिर्फ आंकडे बाजी में उलझाया जा रहा है। यहीं हाल बाजारों का है जहां पर तापमान चैक के नाम पर दिखावा किया जा रहा है। जिससे कोरोना के मरीजों की पहचान आसानी से नहीं की जा रही है। ऐसे में लोगों काफी परेशानी का सामना करना पड रहा है।और कोरोना के बढने का एक प्रमुख कारण भी बन रहा है। पर सरकारें इस ओर कोई ध्यान ही नहीं दे रही है।