कश्मीर और हिमाचल के सेब उत्पादन क्षेत्रों में नवम्बर में ही हो गयी बर्फबारी ने भले ही पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों और सैलानियों को भरपूर खुशी दे दी हो, लेकिन सेब उत्पादकों की इस बर्फबारी में कमर टूट गयी है। करीब नौ साल बाद ऐसा हुआ कि कश्मीर में नवम्बर में ही बर्फबारी हो गयी हो। कश्मीर में इस बर्फबारी से करीब 650 करोड़ का सेब तबाह हो गया है। हिमाचल में जल्दी बर्फबारी से नुकसान का आकलन अभी नहीं किया गया है लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक 80 से 120 करोड़ के बीच नुकसान यहाँ भी हुआ है।
कश्मीर में नौ साल के बाद नवम्बर के पहले ही हफ्ते में बर्फ पड़ गयी। सेब ज्यादातर उन्हीं इलाकों में होता है जहाँ ठण्ड होती है और बर्फ पड़ती है। आमतौर पर हिमाचल और कश्मीर में बर्फबारी से पहले सेब को उत्पादन क्षेत्रों से निचले इलाकों में ले जाने की तैयारी होती है। आमतौर पर इन इलाकों में नवम्बर के आखिर में या दिसंबर में बर्फबारी होती है लेकिन इस बार जल्दी बर्फ पड़ गयी। कश्मीर में तो इस बर्फबारी से बागीचे-के-बागीचे तबाह हो गए। सेब पेड़ों पर था और भारी बर्फबारी से पेड़ टूट गए या इससे सेब का बड़ा नुकसान हुआ। पेड़ टूटने से आने वाले सालों में भी सेब उत्पादकों को नुकसान झेलना पड़ेगा। दक्षिण से उत्तरी कश्मीर तक बर्फबारी ने सेब पर जबरदस्त मार की है। दक्षिण कश्मीर के शोपियां, पुलवामा, अनंतनाग जबकि उत्तरी कश्मीर के सोपोर, बारामूला, कुपवाड़ा में सेब बागान तबाह हो गए हैं।
अचानक ज्य़ादा बर्फबारी का नुकसान यह भी हुआ कि इससे हाईवे बंद हो गए। जिससे बड़ी मात्रा में सेब खराब हो रहा है।
कश्मीर घाटी में फल उत्पादक इस नुकसान से सड़क पर आ गए हैं। घाटी में 80 फीसद बागवानों के ऊपर लाखों का कज़ऱ् है। सेब और अन्य फलों की फसल की फसल तबाह होने से उन के सामने बैंकों के कज़ऱ् उतारने की विकराल समस्या आ खड़ी हुई है। यह बागवान अब सरकार से मदद की आस लगाए बैठे हैं। किसानों का कहना है अगर वक्त पर राहत राशि नहीं मिली तो बेहद मुश्किल वक्त देखना पड़ सकता है।
बेवक्त बर्फबारी से नुकसान महसूस करते ही कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (केसीसीआई) ने भी एक बयान जारी किया। इसमें चैंबर ने कहा – ”अनंतनाग समेत विभिन्न इलाकों से मिली प्रारंभिक रिपोर्टों से पता चलता है कि 500 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। हम पूरे समुदाय से अपील करते हैं कि संकट में हमारे किसान-बागवान भाइयों के साथ खड़े रहें और जो भी संभव हो, मदद करे।’’
कश्मीर के बागवानों का कहना है कि इतनी जल्दी बर्फ पड़ जाएगी इसका ख्याल उन्हें सपने में भी नहीं था। बर्फबारी भी तब हुई जब घाटी के उत्पादक सेब दिल्ली की मंडियों में ले जाने की तैयारी में थे। शोपियां के इलाके में सेब उत्पादन करने वाले ज़हूर अहमद ने ‘तहलका’ को बताया कि दिवाली में दिल्ली मंडी में सेब बेचने की तैयारी की थी लेकिन बर्फबारी ने सब उम्मीदों पर पानी फेर दिया। ”दिवाली में दिल्ली में सेब के अच्छे भाव मिल जाते हैं। पिछले कई साल से हम ऐसा कर रहे थे लेकिन इस बार मेरे बगीचे में सेब के पेड़ बर्फबारी से टूट कर ज़मीन पर आ गिरे हैं। यह पेड़ अब कभी फल नहीं दे पाएंगे।’’
शोपियां के ही इरफ़ान ने अपना दूसरा काम बंद करके सेब उत्पादन शुरू किया था। इस बार सेब की बम्पर फसल थी और वे उम्मीद कर रहे थे कि अच्छे आमदन कर लेंगे। हमने सोचा भी नहीं था कि नवंबर के पहले हफ्ते ही बर्फ पड़ जाएगी। इस बर्फबारी में मेरा 12 कनाल का सेब बगीचा तबाह हो गया है। अगर बर्फ नहीं पड़ती तो इस बाग़ से मुझे करीब 19-20 लाख की फसल मिलती।’’
कश्मीर घाटी में बागवानों को इसी सीजन का सब से नुकसान हुआ होता तब भी कम चिंता की बात होती। उनकी सबसे बड़ी चिंता सेब के पेड़ों के ही टूट जाने से है। सेब का व्यापार करने वाले मोहम्मद यासीन के मुताबिक सेब की बड़ी फसल अभी पेड़ों पर थी जब बर्फ पड़ी। कुछ किस्में देरी से पकती हैं। पेड़ भी गिर गए और जो सेब ज़मीन पर गिरा वो तो दागी हो ही गया।
जब बर्फबारी हुई तो हज़ारों ट्रक दिल्ली जाने के लिए तैयार थे। बर्फ से राजमार्ग बंद हो गए और 6500 के करीब ट्रक फंस गए। इससे सेब का नुकसान तो हुआ ही बागवानों को ट्रक मालिकों को भी पेमेंट्स करनी पड़ीं।
बागवानों के इस नुकसान से सूबे की सरकार भी सक्रिय हुई। राज्यपाल सत्य पाल मलिक ने अधिकारियों की बैठक तलब की और मामले को गंभीरता से लेते हुए नुकसान के जल्द आकलन के निर्देश जारी किये। वैसे तो राज्यपाल की तरफ से बागवानों को राहत का भरोसा दिया गया है लेकिन देखना होगा कि यह कब तक मिल पाता है। मालिक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा की कि सरकार उन किसानों को मुआवजा देगी जिन्होंने कश्मीर में बर्फबारी के कारण अपनी फसलों को खो दिया है। वैसे अभी तक सेब और दूसरे फलों को बेवक्त हुई बर्फबारी से हुए नुकसान का आकलन अभी करना है। इसके बाद रिपोर्ट सरकार तक पहुंचेंगी और उसके बाद जाकर मुआवजे की बात होगी। वैसे घाटी के बागवान कृषि बीमा की मांग भी कर रहे हैं।
कश्मीर में नौ साल के बाद नवंबर में बर्फ पडी है हालाँकि नवम्बर के पहले हफ्ते में तो ऐसा 13 साल के बाद हुआ है। जाहिर है पर्यटन उद्योग में इससे जबरदस्त उत्साह है। कश्मीर में सैलानियों की संख्या इसके बाद बढ़ी है। हालाँकि घाटी में अर्थव्यवस्था की रीढ़ तो सेब को ही माना जाता है। दूसरे फल भी बर्फ से नुकसान झेल रहे हैं। नवम्बर के दूसरे हफ्ते में भी बर्फबारी हुई है जिससे कई जगह बिजली की लाइनें ठप्प पड़ गयी हैं।
खरीददार का भी घाटा
कश्मीरी सेब देश के कोने-कोने तक तो पहुँचता ही है, विदेश में भी जाता है। लिहाजा सेब तबाह होने से उत्पादक ही नहीं खरीददार का भी नुकसान हुआ है। इस बार कश्मीर में बम्पर सेब फसल थी लेकिन बर्फ ने उसे तबाह कर दिया। अब जो बचा हुआ सेब देश भर में जाएगा उसकी कीमत स्वाभाविक रूप से ज्यादा होगी। यानी खरीददार को कश्मीरी सेब महंगा खरीदना पड़ेगा। दिल्ली की आज़ाद मंडी के आढ़ती प्रदीप चोपड़ा ने बताया कि कश्मीर के सेब का भाव इस बार ज्य़ादा हो गया है और इसमें 50 से 75 प्रतिशत तक का उछाल है।
हिमाचल में भी मार
हिमाचल में अमेरिका का सेब पहले से ही बागवानों पर मार कर रहा था कि इस बार मौसम की मार से बागवान बेहाल हैं। सेब की जुलाई-अगस्त की फसल पहले ही मौसम की मार झेल चुकी है और अब ओलों और नबंवर के पहले ही हफ्ते हो गयी बर्फबारी ने बागवानों की नींद हराम कर दी है। हिमाचल में इस बार अगेती फसल के सेब का उत्पादन पिछले 12 साल में सबसे कम हुआ है।
वैसे भी हिमाचल में करीब 4,200 करोड़ रुपए की सेब अर्थव्यवस्था उत्पादन में भारी गिरावट की मार झेल रही है। हिमाचल में सेब का ज्यादा सीजन गर्मी के मौसम में होता है। लेकिन किन्नौर और लाहौल स्पीति जैसे कबाइली इलाकों में ‘विंटर’ वैरायटी का सेब होता है जिसे इस बार जल्दी बर्फबारी से मार पड़ी है। इसके अलावा ओलों ने भी बहुत नुकसान किया है।
हाल की भारी बर्फबारी से किन्नौर जिले में सेब की फसल को पहुंचा नुकसान पहुंचा है। जिले में सेब के पेड़ों को काफी नुकसान पहुंचा है।
उधर दूसरे कबाइली जिले लाहौल स्पीति के मुख्यालय केलांग में तो सेब को हुए नुकसान का मुआवजा न मिलने से खफा किसान प्रदर्शन तक कर रहे हैं। वहां किसानों-बागवानों ने ”लाहौल घाटी किसान मंच’’ के बैनर तले प्रदेश सरकार के खिलाफ जन चेतना रैली का आयोजन किया।
मंच के अध्यक्ष सुर्दशन जस्पा ने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाया कि लाहौल घाटी में हुए सेब के नुकसान का मुआवजा नहीं दिया जा रहा है। ”घाटी में बिजली व्यवस्था चरमरा गई है, दूरसंचार और इंटरनेट व्यवस्था का खस्ता हाल है और सब्जी मंडियों का निर्माण भी घाटी में नहीं किया जा रहा है।’’
जस्पा ने कहा कि बार-बार इन समस्याओं को सरकार के ध्यान में लाने के बावजूद इनका समाधान नहीं किया जा रहा है। ”हार मानकर लाहौल घाटी के किसानों और बागवानों के हितों के सरंक्षण के लिए जन चेतना रैली का आयोजन किया। हमारी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मांग है कि घाटी की इन समस्याओं का समाधान जल्द से जल्द किया जाए, नहीं तो किसान मंच घाटी में बड़ा आंदोलन करेगा।’’
हिमाचल के बागवानी और वानिकी विभाग के सर्वे के मुताबिक राज्य में इस साल करीब 1.56 लाख पेटी ही सेब उत्पादन हुआ है, जोकि लगातार दूसरे साल औसत उत्पादन 2.5 करोड़ पेटी से बहुत कम है। गौरतलब है कि 2017-18 में प्रदेश में 2.23 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन हुआ था। विभाग के निदेशक एमएल धीमान के मुताबिक इस सेब सीजन में पूरे प्रदेश में फसल खराब है और पैदावार घटने की मुख्य वजह मौसम है।
प्रदेश में 2010 में सबसे ज्यादा 4.46 करोड़ पेटी सेब उत्पादन हुआ था। साल 2007 में सेब के अधीन मात्र 87,202 हैक्टेयर क्षेत्र था। अब यह 1,21,896 हैक्टेयर क्षेत्र तक फ़ैल चूका है लेकिन अफसोस की बात यह है कि उत्पादन बहुत घट गया है। साल में जो उत्पादन 2.96 करोड़ पेटी था वो अब दो करोड़ पेटी से भी कम तक सिमट कम रहा है। मार्च और अप्रैल में ”फ्लावरिंग’’ के दौरान अचानक मौसम खराब हुआ और ऊंचे क्षेत्रों में बर्फबारी के कारण ठंड बढ़ गई जिससे ”फ्लावरिंग’’ पर विपरीत असर पड़ा। इसके बाद जमकर ओले पड़े जिसने बागवानों का नुकसान कर दिया। ओलावृष्टि से कुछ इलाकों में तो एंटी हेल नेट भी क्षतिग्रस्त हो गए। मई-जून में तेज गर्मी ने रही-सही कसर पूरी कर दी। जमीन में नमी सूख जाने की वजह से सेब का अच्छा आकार नहीं बन पाया। इस वजह से भी उत्पादन में कमी दर्ज की गई है।
अमेरिकी सेब की मार
वैसे तो विदेशी सेब देश की तमाम बड़ी मंडियों में पहुँचता है, अमेरिका सेब ने इस बार हिमाचल के सेब के रेट गिरा दिए। इंपोर्ट ड्यूटी बढऩे से पहले ही अमेरिका से हजारों मीट्रिक टन सेब आयात होकर भारत पहुंच गया था। अमेरिकी सेब सस्ता बिकने के कारण हिमाचली सेब की डिमांड घट गई। एक समय जो सेब पेटी 2700 से 2900 बिक रही थी वह 1700 से 1900 तक बिकी। केंद्र में मोदी सरकार ने हिमाचली सेब को बढिय़ा दाम दिलवाने के नाम पर कुछ महीने पहले विदेशी सेब पर आयात शुल्क 50 से 75 फीसदी करने का ऐलान किया था लेकिन यह समय पर लागू न होने से अमेरिका के सेब ने मार्किट पर कब्ज़ा जमा लिया। अमेरिका से भारत में कारोबारियों ने हजारों मीट्रिक टन सेब आयात किया। इससे हिमाचली सेब की डिमांड घट गई।