वैसे तो कोरोना वायरस की वजह से सभी क्षेत्रों का बुरा हाल है। लेकिन बैंङ्क्षकग क्षेत्र का हाल आगामी महीनों में सबसे ज़्यादा बुरा होने वाला है। इस बात की पुष्टि बैंकों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक से तीन लाख करोड़ रुपये के कर्ज़ को पुनर्गठित (रिस्ट्रक्चङ्क्षरग) करने की माँग से होती है। मोटे तौर पर ये कर्ज़ होटल, विमानन और रियल एस्टेट क्षेत्र से जुड़े हुए हैं; क्योंकि इन क्षेत्रों को कोरोना वायरस की वजह से सबसे ज़्यादा नुकसान उठाना पड़ा है। इन क्षेत्रों के ऋण खातों को पुनर्गठित करने की ज़रूरत इसलिए है, क्योंकि पुनर्गठन के बाद कम्पनियों को बहुत सारी राहतें दी जाती हैं; जिससे कुछ समय के लिए पुनर्गठित खाते गैर-निष्पादित आस्ति (एनपीए) होने से बच जाते हैं और मिले हुए अतिरिक्त समय में कम्पनियों को अपनी आॢथक स्थिति में सुधार करने का मौका मिलता है।
जब कम्पनियों की माली हालत जब बहुत ज़्यादा खराब हो जाती है, तो वे बैंकों से ऋण खातों को पुनर्गठित करने के लिए कहते हैं। चूँकि इस विकल्प का चुनाव बैंकों के लिए भी मुफीद होता है, इसलिए वे भारतीय रिजर्व बैंक से नकदी की िकल्लत झेलने वाली कम्पनियों के खातों को पुनर्गठित करने का आग्रह करते हैं। दरअसल कम्पनी के दिवालिया होने पर कम्पनी से बैंक जितनी वसूली कर सकते हैं, उससे कहीं अधिक पैसे बैंक को ऋण खातों के पुनर्गठन से मिलने की उम्मीद होती है। आमतौर पर ऋण का ब्याज दर कम करके या िकस्तों के भुगतान की अवधि में इज़ाफा करके ऋण खातों का पुनर्गठन किया जाता है। इस प्रक्रिया के तहत ऋण के बदले कम्पनी के शेयरों की भी अदला-बदली की जाती है। इसका यह मतलब हुआ कि कम्पनी के शेयरों के बदले बैंक, कम्पनी का कुछ या पूरा कर्ज़ माफ कर सकते हैं।
ऋण खातों के पुनर्गठन के तहत कम्पनी बैंक को बांड का कुछ हिस्सा देने के लिए भी राज़ी हो सकते हैं। कम्पनी, बैंक से ब्याज या पूँजी का कुछ हिस्सा माफ करने के लिए भी आग्रह कर सकती है।
अप्रैल के अन्त तक बैंकों का होटल क्षेत्र पर 45,862 करोड़ रुपये, विमानन क्षेत्र पर 30,000 करोड़ रुपये और रियल एस्टेट क्षेत्र पर 2.3 लाख करोड़ रुपये बकाया था। एक अनुमान के अनुसार, इन क्षेत्रों की स्थिति सामान्य होने में छ: महीनों से एक साल का समय लग सकता है। ऐसे में इन क्षेत्रों से जुड़े ऋण खातों को अगर पुनर्गठित नहीं किया जाएगा, तो बैंकों के एनपीए में भारी बढ़ोतरी हो सकती है। हालाँकि भारतीय रिजर्व बैंक ने कम्पनियों, व्यक्तिगत, खुदरा और कैश क्रेडिट कर्ज़ धारकों के लिए िकस्त एवं ब्याज की मोराटोरियम अवधि को बढ़ाकर 31 अगस्त कर दिया है। लेकिन इससे कर्ज़धारकों की समस्या का समाधान होने वाला नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को ऋण की िकस्तों और ब्याज को सिर्फ टालने का निर्देश दिया है। इन्हें माफ नहीं किया गया है। अगर कर्ज़दार मोराटोरियम का फायदा लेना चाहते हैं, तो उन्हें बाद में बैंकों को िकस्त और ब्याज दोनों देना होगा। साथ ही टाली गयी अवधि के िकस्त एवं ब्याज पर भी ब्याज लगेगा, जिसे उन्हें चुकाना होगा। क्योंकि बैंक आमतौर पर सभी प्रकार के ऋणों में चक्रवृद्धि ब्याज लेते हैं। चूँकि अभी भी आॢथक गतिविधियों को शुरू करने में लम्बा समय लग सकता है। ऐसे में मोराटोरियम की सुविधा लेने वाले ग्राहकों को लाभ की जगह नुकसान होगा।
सरकार ने लॉकडाउन के बाद सभी क्षेत्रों को अनलॉक करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। होटल, विमानन और रियल एस्टेट क्षेत्र में भी आॢथक गतिविधियों को शुरू करने का रास्ता साफ हो गया है। बावजूद इसके माना जा रहा है कि हाल-फिलहाल में इन क्षेत्रों के कामकाज में तेज़ी आने के आसार नहीं हैं। रेटिंग एजेंसी इक्रा का कहना है कि पहले से खस्ताहाल विमानन क्षेत्र को आगामी तीन वर्षों में लगभग 35,000 करोड़ रुपये की ज़रूरत होगी। होटल क्षेत्र में कई होटल कर्ज़ में डूबे हैं। व्यावसायिक परिसम्पत्ति और किराये के कारोबार में भी लगभग 25 फीसदी से ज़्यादा गिरावट आने की सम्भावना है।
लॉकडाउन की वजह से करोड़ों लोगों की नौकरियाँ जा चुकी हैं। स्व-रोज़गार करने वाले कामगार भी दो महीनों से घरों में बैठे हैं। आज नौकरी करने वाले हों या कारोबार करने वाले लगभग सभी ने बैंकों से कर्ज़ ले रखा है और वर्तमान में वे बेरोज़गार हैं। आगामी महीनों में उन्हें रोज़गार मिलने की सम्भावना कम है। क्योंकि लॉकडाउन को पूरी तरह से अनलॉक करने के बाद भी सभी क्षेत्रों में आॢथक गतिविधियों को छ: महीनों से पहले शुरू करना मुमकिन नहीं है। हालाँकि प्रवासी मज़दूरों को फिर से काम पर वापस बुलाने की कवायद शुरू कर दी गयी है। लेकिन क्या उनकी वापसी आसान होगी? घर वापसी में जिस दर्द से वे रू-ब-रू हुए हैं, क्या उनके लिए उसे भूलना मुमकिन होगा? शायद नहीं। ऐसे में बड़ी संख्या में व्यक्तिगत ऋण, कार ऋण, गृह ऋण आदि एनपीए हो सकते हैं।
बैंङ्क्षकग क्षेत्र को अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। लेकिन आज यह क्षेत्र एनपीए की समस्या से जूझ रहा है। दिसंबर, 2019 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में कहा गया था कि सितंबर, 2020 तक भारतीय अनुसूचित व्यावसायिक बैंकों का एनपीए कुल कर्ज़ के 9.9 फीसदी के स्तर पर पहुँच सकता है। इस रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर, 2020 में 53 देशी-विदेशी बैंकों की पूँजी पर्याप्तता अनुपात कम होकर 14.1 फीसदी हो जाएगी; जो सितंबर, 2019 में 14.9 फीसदी थी। कोरोना महामारी एनपीए की समस्या को और भी गम्भीर बनाने वाली है। बैंङ्क्षकग क्षेत्र में एनपीए बढऩे से अर्थ-व्यवस्था भी डावाँडोल होगी। एनपीए बढऩे से बैंक को ज़्यादा प्रावधान करने होंगे, जिससे उनका मुनाफा कम होगा और उन्हें पूँजी की कमी का सामना करना होगा, जिससे उन्हें ज़रूरतमंदों को ऋण देने में मुश्किलें आएँगी।
सभी क्षेत्रों को अनलॉक करने के बाद कारोबारी, कुटीर उद्योग, छोटे व मझौले उद्योग एवं बड़े उद्योगों को फिर से काम-काज शुरू करने के लिए वित्तीय सहायता की ज़रूरत होगी। सरकार ने 21 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की है, जिसकी एक बड़ी राशि ज़रूरतमंदों को ऋण के रूप में दी जानी है। ऐसे में अगर बैंकों को नकदी की समस्या का सामना करना पड़ेगा, तो आॢथक गतिविधियों को शुरू करने में परेशानी आयेगी। इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक को होटल, विमानन और रियल एस्टेट क्षेत्र से जुड़े ऋण खातों के पुनर्गठन के प्रस्ताव को मान लेना चाहिए। साथ ही केंद्रीय बैंक को आने वाले महीनों में बड़ी संख्या में खुदरा ऋणों को एनपीए होने से बचाने के लिए उपाय भी करने होंगे। क्योंकि मोराटोरियम अवधि के समाप्त होने के बाद बड़े पैमाने पर कार, गृह और व्यक्तिगत ऋण के एनपीए होने की सम्भावना है।